रविवार, 22 सितंबर 2013

भाटी बंधुओं के बीच होगी भिड़ंत?

चुनाव के माहौल में कई तरह की बेसिर-पैर की अफवाहें और चर्चाएं चल पड़ती हैं। इसी किस्म की एक अफवाह है कि अजमेर दक्षिण सीट पर भाटी बंधुओं पूर्व उप मंत्री ललित भाटी और समाजसेवी हेमंत भाटी के बीच भिड़ंत हो सकती है। बात अगर ये कही जाए कि ललित भाटी तो कांग्रेस से और हेमंत भाटी भाजपा से आएंगे तो समझ में भी आती है, मगर इसमें ज्यादा दिलचस्प अफवाह ये है कि हेमंत तो कांगे्रेस से और ललित भाजपा की ओर से मैदान में उतरेंगे। बताया जा रहा है कि ललित भाटी व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के बीच झगड़े के चलते कांग्रेस विकल्प के रूप में हेमंत भाटी पर डोरे डाल रही है। हालांकि जानकार लोग मानते हैं कि हेमंत ने चूंकि मौजूदा विधायक और इस सीट की प्रबल भाजपा दावेदार श्रीमती अनिता भदेल पर वरदहस्त रखा हुआ है, इस कारण वे इसके लिए तैयार नहीं होंगे, मगर राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। इसी से जुड़ी अफवाह है कि जैसे ही भाजपा को पता लगा कि हेमंत भाटी कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं तो उसे लगा कि उनके सामने तो श्रीमती भदेल टिकेंगी ही नहीं, सो उनकी काट के लिए ललित भाटी को चुनाव लडऩे की ऑफर दी है। हालांकि इन बातों की पुष्टि करने वाला कोई नहीं है, मगर चर्चाएं तो चर्चाएं हैं, उन्हें भला कौन रोक सकता है। और अगर ये सच है तो पहली बार दोनों भाटी बंधु राजनीति के मैदान में आमने-सामने होंगे।
-तेजवानी गिरधर

जाट व मुंसिफ की जुगलबंदी के मायने?


चुनावी मौसम में टिकट वितरण से ठीक पहले पूर्व जल संसाधन मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व भाजपा किसान मोर्चा के जिला मंत्री मुंसिफ अली खान का साथ-साथ पुष्कर एवं नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र के गांवों का दौरा क्या महज एक संयोग है, या फिर इस जुगलबंदी के पीछे कोई राज है? इस संयुक्त दौरे की जानकारी आते ही कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं।
असल में यह तो लगभग तय है कि प्रो. जाट नसीराबाद से ही चुनाव लडऩे वाले हैं। हालांकि उनका नाम किशनगढ़ के लिए भी चल रहा है, मगर ज्यादा संभावना नसीराबाद की ही है। ऐसे में उनका नसीराबाद के गांवों में मुंसिफ के साथ दौरा करना समझ में आता है।
लेकिन साथ ही प्रो. जाट का पुष्कर के गांवों का दौरा करने का मतलब क्या यह निकाला जाए कि वे मुंसिफ को जाटों के वोट दिलवाने की जमीन तैयार कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि मुंसिफ पुष्कर सीट पर टिकट के प्रबल दावेदार हैं और साथ ही प्रो. जाट के करीबी भी। अब सबकी नजर इस पर लग गई है कि कहीं प्रो. जाट मुंसिफ को टिकट दिलवाने की जुगत तो नहीं कर रहे। ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट अजमेर जिले में सबसे दमदार भाजपा नेता हैं और वसुंधरा के भी खास हैं। हो सकता है, उनकी सिफारिश मुंसिफ के काम आ जाए।
-तेजवानी गिरधर

प्रशासन की नासमझी से हुई पायलट की फजीहत

जिला प्रशासन की नासमझी और लापरवाही के चलते पिछले दिनों अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की फजीहत हो गई। अजमेर जिले के जाटली गांव में सरकारी भूमि के संबंध में ग्राम पंचायत की उपेक्षा से उपजे ग्रामीणों के आक्रोष को ठीक से नहीं भांप पाने  की वजह से शिलान्यास कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। अपने ही संसदीय क्षेत्र में इस प्रकार की स्थिति से रूबरू होने का यह बेहद गंभीर मामला है।
असल में जिला प्रशासन हालत की गंभीरता को समझ ही नहीं पाया। ऐसा भी नहीं था कि लोगों का गुस्सा अचानक फूटा, जिसे काबू करना कठिन था। यह मुद्दा काफी दिन से चल रहा था। उससे भी बड़ी बात ये कि ठीक एक दिन पहले भी गांव वालों ने शिलान्यास नहीं होने देने की चेतावनी तक दे दी। इसके बावजूद प्रशासन ने उसे हल्के में लिया। कदाचित उसे गुमान था कि अव्वल तो वह गांव वालों को शांत करवा लेगा और अगर जरूरत पड़ी तो पुलिस की मदद ले ली जाएगी। इसी चक्कर में विरोध के बावजूद उसने शिलान्यास का कार्यक्रम तक कर दिया। मगर मौके के हालत इतने बेकाबू हो गए कि प्रशासन मूक दर्शक बना देखता ही रह गया। किसी केन्द्रीय मंत्री का कार्यक्रम इस प्रकार विरोध के चलते रद्द करने की नौबत प्रशासन की पूर्ण विफलता साबित करती है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन को चलाने वाले दो आला अफसर जिला कलेक्टर वैभव गालरिया व पुलिस अधीक्षक गौरव श्रीवास्तव न तो दूरदर्शिता है और न ही किसी विवाद से निपटने की अक्ल। इस प्रकार की लापरवाही व कमअक्ली वह इससे पहले सरवाड़ के तनाव के दौरान भी दिखा चुका है।
प्रशासन की नासमझी के बाद जाटली की घटना को लेकर प्रस्तावित डाक प्रशिक्षण केंद्र के निर्माण में बाधा पहुंचाने के आरोप में गांव के लोगों के खिलाफ थाना प्रभारी रामेश्वर भाटी की शिकायत पर राजकार्य में बाधा डालने और समारोह के अतिथियों के लिए बनाया गया खाना उठा कर ले जाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है, मगर यह सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने के समान ही है।
जहां तक इस घटना के राजनीतिक पहलु का सवाल है, यह अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के लिए बेहद शर्मनाक है कि खुद उनके ही संसदीय क्षेत्र में इस प्रकार हो रहे विरोध को ठीक से न तो प्रशासन हल कर पाया और न ही उनके राजनीतिक शागिर्द  सही तरीके से हैंडल कर पाए। या तो उनके चेलों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया, या फिर उनकी जमीन पर पकड़ ही नहीं थी। वैसे बताया जाता है कि आंदोलन के अगुवा हरिराम व अन्य पायलट के जगजाहिर राजनीतिक दुश्मन अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी के लोग हैं। इस कारण इसमें साजिश की बू भी आ रही है। बताया जाता है कि हरिराम के पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के भी गुडफेथ में हैं, मगर मौके पर वे डॉ. बाहेती की एक नहीं माने। कुल मिला कर सचिन की जो यह अपने ही संसदीय क्षेत्र में फजीहत हुई है, यह भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इसे उन्हें गंभीरता से लेना होगा।
-तेजवानी गिरधर