शुक्रवार, 31 मार्च 2017

कौन जाए वाजपेयी जी की चादर में?

एक कहावत है कि उगते सूरज को हर कोई सलाम करता है, डूबते को कोई नहीं। यह यूं ही नहीं बनी है। अनुभव सिद्ध है। दुनिया के अधिकांश रिश्ते व व्यवहार स्वार्थ आधारित हैं। जिससे स्वार्थ सिद्ध नहीं होता, उससे भला कौन नेह रखता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दरगाह शरीफ लाई गई चादर को चढ़ाते वक्त अगर कोई भाजपाई नहीं पहुंचा तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह तो दुनियादारी व राजनीति का दस्तूर है।
भाजपाई जानते हैं कि वाजपेयी की ओर से भेजी गई चादर को चढ़ाते वक्त कौन कौन हैं, ये वाजपेयी जी देखने व जानने वाले नहीं हैं। ऐसे में वहां हाजिर हो कर क्या हासिल कर लेंगे? जब तक वे प्रधानमंत्री थे, पार्टी के हर कार्यकर्ता का हित उनसे जुड़ा हुआ था। अब क्या? दूसरा ये भी कि अब तो ऐसा दौर आ गया है कि वाजपेयी जी के प्रति थोड़ी भी निष्ठा दिखा तो जिनके हाथ में सत्ता है, वे बुरा मान जाएंगे। उनका भी ये ही दबाव होता है कि आज हम ताकतवर हैं, हमें मानो, जो नैपथ्य में चले गए, उनको क्यों याद करते हो।
वाजपेयी जी की तो स्थिति भिन्न है। लाल कृष्ण आडवाणी जी की स्थिति का अनुमान लगाइये। वे तो अब भी शारीरिक व बौद्धिक रूप से सक्रिय हैं, मगर चूंकि अब सत्ता में नहीं, इस कारण उनको कोई नहीं पूछता। अजमेर तो पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत की भी दुर्गति देख चुका है। राज्य पर वसुंधरा राजे के काबिज होने के बाद उनको हाशिये पर डाल दिया गया था। जब अजमेर आए तो गिनती के भाजपाईयों के अलावा कोई भी जिम्मेदार नेता उनके स्वागत को नहीं पहुंचा। इस डर से कि वसुंधरा राजे बुरा मान जाएंगी। इसके अतिरिक्त ये भी कि किसी वक्त राजस्थान का शेर कहलाने वाले से अब रिश्ता रखने से मिलना भी क्या था, जो उनकी मिजाजपुर्सी करें।
ताजा उदाहरण ही ले लीजिए। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर अजमेर आए तो शहर भाजपा की ओर से आह्वान के बाद भी जिम्मेदार पदाधिकारी व जनप्रतिनिधियों ने परहेज किया। वजह साफ है। वसुंधरा राजे अभी सत्ता में हैं। अगर माथुर के प्रति थोड़ी सी औपचरिक निष्ठा दिखाई तो महारानी रुष्ठ हो जाएंगी। सच तो ये है कि जिन लोगों ने माथुर का स्वागत किया, उनकी सूची बाकायदा वसुंधरा राजे तक पहुंचाई गई है।
कुल मिला कर सारा ताकत का खेल है। जिसके पास सत्ता है, जिसका सूरज अभी चमक रहा है, उसी को सलाम है, जो डूबा हुआ है या डूबता जा रहा है, उसको सलाम करने से कोई फायदा नहीं। उलटा चमकते सूरज से होने वाले नुकसान का खतरा है।
-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 27 मार्च 2017

न हो कर भी भाजपा में ही हैं लाला बन्ना

अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत वर्तमान में आधिकारिक रूप से भाजपा में न होने के बाद भी भाजपा में समझे जाने चाहिए। उन्होंने जिस तरह से वरिष्ठ भाजपा नेता ओम माथुर के स्वागत समारोह में अपने समर्थकों के साथ शिरकत की और उससे भी बड़ी बात ये कि शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव सहित अन्य नेताओं ने कोई आपत्ति नहीं की, उससे यह मान लिया जाना चाहिए कि वे भाजपा से अलग नहीं हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी जता दिया है कि मौका आने पर फिर से पार्टी में दमदार उपस्थिति दर्ज करवाएंगे।
असल में सब जानते हैं कि वे माथुर के करीबी हैं। इसे उन्होंने इस कार्यक्रम में शिकरत करके यह साबित भी कर दिया है। भले ही अभी वे भाजपा में नहीं हैं, चूंकि मेयर चुनाव में उन्होंने बगावत की थी, मगर चूंकि माथुर के कार्यक्रम में बिंदास तरीके के साथ शामिल हो कर यह जता दिया है कि वे अंतत: भाजपा में आ ही जाएंगे। जिस तरह का उन्होंने शक्ति प्रदर्शन किया, उससे यह भी स्थापित हो गया है कि उचित समय पर उन्हें भाजपा में  शामिल करना ही पड़ेगा। इतना ही नहीं, अजमेर उत्तर, जहां से उनकी भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लडऩे की इच्छा रही है, वहां वे अब भी गैर सिंधीवाद के सबसे बड़े आइकन हैं, भले ही वर्तमान में भाजपा में नहीं हों।
सर्वविदित है कि कभी श्रीमती अनिता भदेल के करीबी रहे लाला बन्ना का देवनानी से छत्तीस का आंकड़ा है। वे अजमेर उत्तर के प्रबल दावेदार तो हैं ही, विशेष रूप से मेयर के चुनाव में जिस प्रकार धर्मेन्द्र गहलोत के खिलाफ खड़े हो गए, वह भी इस बात को रेखांकित करता है कि वे देवनानी के खिलाफ हैं। ऐसे शख्स का देवनानी लॉबी में गिने जाने वाले शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव की मौजूदगी में ताल ठोक कर समारोह में मौजूद होना, वाकई चौंकाने वाला है। इसके अजमेर की भाजपाई राजनीति में दूरगामी परिणाम सामने आएंगे।

माथुर की बदोलत उभर कर आया सोनगरा गुट

अजमेर में यूं तो प्रमुख रूप से औंकार सिंह लखावत नीत अनिता भदेल और प्रो. वासुदेव देवनानी के ही गुट सक्रिय हैं, मगर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर के स्वागत समारोह के बहाने श्रीकिशन सोनगरा गुट भी उभर कर आ गया है। हालांकि यह गुट पहले भी रहा है, मगर काफी समय से सुप्तप्राय: था। जैसे ही माथुर के मुख्यमंत्री बनने की अफवाहें उड़ी हैं, यह गुट सामने आ गया है। दिलचस्प बात ये है कि जो शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव इन दिनों नए समीकरणों के तहत देवनानी गुट में माने जाते हैं, उन्होंने भी अपने पुराने गुट साथ-साथ पार्टी बैनर पर सभी को स्वागत समारोह से जोडऩे की कोशिश की। यह बात दीगर है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की नाराजगी के डर से देवनानी, श्रीमती भदेल, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, डिप्टी मेयर संपत सांखला, एडीए चेयरमेन शिवशंकर हेडा आदि ने परहेज किया। वे जानते थे कि अगर समारोह में गए तो इसे वसुंधरा राजे अन्यथा ले सकती हैं। सच बात तो ये है कि वसुंधरा खेमे के कुछ लोगों पर ये जिम्मेदारी थी कि वे कौन-कौन आया, इसकी रिपोर्ट तुरंत फोटो सहित भेजें। कुल मिला कर वे सभी लोग चिन्हित हो गए हैं, जिन्होंने समारोह में भाग लिया।
हालांकि वैसे यादव को कुछ हद तक कामयाबी भी मिली। उनके आह्वान पर श्रीकिशन सोनगरा व उनके पुत्र विकास सोनगरा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, सोमरत्न आर्य, पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना, कमला गोखरू, पूर्व नगर परिषद सभापति सरोज यादव, पूर्व शहर जिला अध्यक्ष पूर्णाशंकर दशोरा, तुसली सोनी, विनीत पारीक, श्रीमती रश्मि शर्मा, श्रीमती वनिता जैमन आदि समारोह में गए। देवनानी गुट की मौजूदा जिला प्रमुख वंदना नोगिया, पार्षद नीरज जैन, वीरेन्द्र वालिया, महेन्द्र जादम, राजेन्द्र लालवानी, अनीश मोयल, रमेश सोनी आदि भी गए, मगर समझा जाता है कि वे गफलत में पहुंचे या फिर उन पर यादव का इतना दबाव था कि वे टाल नहीं पाए। ये भी एक चकित कर देने वाला तथ्य रहा कि देवनानी गुट और उत्तर विधानसभा क्षेत्र के ज्यादा लोगों ने इसमें शिरकत की।
अगर इस समारोह को यह मान कर कि भाजपा के वरिष्ठ नेता का स्वागत किया गया है, एक सामान्य सी घटना है तो भी ये सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों ने वहां जाना उचित क्यों नहीं समझा? क्या वे माथुर को पार्टी नेता नहीं मानते?
लब्बोलुआब, यह बात साफ है कि चूंकि इन दिनों वसुंधरा की जगह माथुर को मुख्यमंत्री बनाए जाने की अफवाहें जोर पर हैं, इस कारण जिम्मेदार जनप्रतिनिधि समारोह में जा कर वसुंधरा के प्रति अपनी वफादारी पर सवालिया निशान नहीं लगवाना चाहते थे। हां, इतना तय है कि अगर माथुर वाकई मुख्यमंत्री बने तो वे नेता फायदे में रहेंगे, जिन्होंने उनके प्रति अपनी आस्था जाहिर की है। 

गुरुवार, 23 मार्च 2017

अजमेर दक्षिण के लिए संघ की ओर लाया गया शख्स हुआ सक्रिय

हालांकि अभी विधानसभा चुनाव दूर हैं और राजनीति वो चौसर है, जिस पर कब कैसे पासे होंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर कानाफूसी है कि संघ देवनानी की ही तरह ऐसे शिक्षा जगत के एक शख्स को उदयपुर से अजमेर ला चुकी है, जिसे चंद लोग, या यूं कहें कि मित्र ही जानते हैं। वे सक्रिय भी हो गए हैं, मगर फिलहाल सामाजिक धरातल मजबूत कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि पहले अपने कॉलेज छात्र जीवन के साथियों के साथ पुनर्संपर्क किया जाए। वस्तुत: छात्र जीवन में वे यहां राजकीय महाविद्यालय में काफी सक्रिय रहे थे।
बताया जाता है कि उन्हें अभी से ग्राउंड पर अजमेर दक्षिण में गुपचुप तानाबाना बुनने को कहा गया है। संयोग से वे मूलत: अजमेर से और कोली समाज से ही है। इसका ये अर्थ ये निकाला जा सकता है कि संघ श्रीमती भदेल का विकल्प तैयार करना चाहता है।
कानाफूसी है कि चूंकि नगर परिषद चुनाव में अजमेर दक्षिण में भाजपा की करारी हार हो चुकी है और श्रीमती भदेल के कभी दाहिने व बायें हाथ रहे हेमंत भाटी व सुरेन्द्र सिंह शेखावत अब उनके साथ नहीं हैं, इस कारण उनका टिकट काटने का आधार बन गया है। कोई ये तर्क देता है कि लगातार तीन बार जीतेे हुए और वर्तमान में मंत्री की जिम्मेदारी निभाने वालों का टिकट भला कैसे काटा जा सकता है। इस बात में दम भी है, मगर चूंकि अजमेर की दोनों सीटें आरएसएस के खाते की हैं और सब जानते हैं कि संघ में जिस स्तर पर निर्णय होता है, उसको आदेश के रूप में ही पालना होता है। संघ की नजर में व्यक्ति कुछ नहीं होता, उसकी लोकप्रियता कुछ नहीं होती, होता है तो सिर्फ संघ का नेटवर्क व उसका आदेश शिरोधार्य करने वाले भाजपा कार्यकर्ता। खुद देवनानी जी ही उसके सबसे सटीक उदाहरण हैं। जब वे अजमेर लाए गए तो उन्हें कोई नहीं जानता था, फिर भी संघ ने उन्हें जितवा दिया। श्रीमती भदेल भी जिस तरह से उभर कर आईं, वह संघ का ही कमाल है। वैसे भले ही संघ एकजुट व मजबूत संगठन हैं, मगर वहां भी अंदर धड़ेबाजी तो है ही, ऐसे में हो सकता है आखिरी वक्त में जिसका पलड़ा भारी होगा, वह बाजी मार जाएगा। जहां तक राजनीतिक क्षेत्र का सवाल है, उसमें मौजूदा जिला प्रमुख वंदना नोगिया, डॉ. प्रियशील हाड़ा आदि की चर्चा है। बताते हैं कि कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां भी मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के संपर्क में हैं।

पहले से पता था कि सुरंग नहीं बन सकती, फिर क्यों किए 15 लाख बर्बाद

पुष्कर घाटी में सुरंग का पहला सपना तो लखावत ने देखा था
एक बार यह फिर से खुलासा हो गया है कि पुष्कर घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। ज्ञातव्य है कि राजस्थान सरकार के संसदीय सचिव और पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत ने इसकी कवायद शुरू की और इसके लिए बाकायदा बजट भी उपलब्ध करवा दिया था। उन्हें इसकी जल्दी भी थी कि यह काम पूरा हो जाए, मगर 15 लाख रुपये खर्च होने के बाद जांच में यह तथ्य सामने आया है कि घाटी का पत्थर बेहद कच्चा है, इसलिए इसको तुड़वा कर नीचे इतनी लंबी सुरंग नहीं बनाई जा सकती।
असल में घाटी में सुरंग बनाने का सपना सबसे पहले तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत ने देखा था। राज्यसभा सदस्य रहते उन्होंने इसके लिए भरपूर कोशिश की। तब भी यही तथ्य सामने आया था कि घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। उसी के बाद अजमेर को पुष्कर से रेल मार्ग से जोडऩे का काम हुआ।
सवाल ये उठता है कि घाटी में सुरंग बनाना संभव न होने की रिपोर्ट प्रशासन के पास थी, फिर भी संसदीय सचिव सुरेश रावत के प्रस्ताव को कैसे मान लिया गया? ऐसा प्रतीत होता है कि या तो मौजूदा अधिकारियों को उस पहले वाली रिपोर्ट की जानकारी नहीं थी या फिर वे रावत के दबाव में जानबूझ कर चुप रहे। कदाचित इसके बारे में लखावत को भी जानकारी रही ही होगी, मगर वे क्यों कर चुप रहे, समझ में नहीं आता। मगर इसका परिणाम ये हुआ कि फिर से हुई कवायद के पंद्रह लाख रुपए बर्बाद हो गए। यह बेहद अफसोसनाक बात है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 19 मार्च 2017

सामाजिक मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया लिलियन ग्रेस ने

राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग की सदस्य लिलियन ग्रेस ने हिंदुओं के ईसाई धर्मांतरण के सामाजिक मुद्दे को राजनीतिक रूप दे दिया है, जिससे ईसाई समाज के कांग्रेसी नेता की स्थिति अजीबोगरीब हो गई।
हुआ दरअसल ये कि हिंदुओं को ईसाई बनाए जाने के कथित आरोप के प्रतिकार में ईसाई समुदाय का एक प्रतिनिधिमंडल क्रिश्चियनगंज थाना पुलिस में शिकायत करने पहुंचा। उन्होंने इस प्रकार के झूठे आरोपों का निराधार बताया और आरोप लगाने वालों पर कार्यवाही की मांग की।
इस मौके पर मीडिया को संबोधित करते हुए एक ईसाई धर्मगुरू ने बिना किसी राजनीति का जिक्र किए सिर्फ इतना कहा कि हमारी कौम पर धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाया गया है और वे चाहते हैं कि मामले की निष्पक्ष जांच हो। इस सिलसिले में उन्होंने नंदकिशोर गुर्जर का नाम भी लिया। लेकिन जब लिलियन ग्रेस प्रेस से मुखातिब हुईं तो उन्होंने कहा कि पूरे राजस्थान में उन्होंने चेक किया व कहीं भी धर्मांतरण नहीं हुआ है। जहां कहीं भी मामला सामने आया है, वह झूठा पाया गया है, उसका कोई सबूत नहीं मिला है। वे यहीं तक नहीं रुकीं और उन्होंने इस मुद्दे को पिछली सरकार से जोड़ दिया।  उन्होंने कहा कि जब भी ऐसा मामला सामने आता है, आरोप लगाने वाला पिछली सरकार से ताल्लुक रखने वाला है और वह इस सरकार से क्रिश्चियन कम्युनिटी को डरा कर रखना चाहता है, ताकि उनका वोट बैंक बना रहे। हालांकि उन्होंने कांग्रेस का नाम नहीं लिया, मगर उनका निहितार्थ यही था कि कांग्रेस ईसाइयों को भाजपा सरकार से डरा कर रखती है, ताकि अपने वोट बैंक पर कब्जा बरकरार रहे। समझा जा सकता है कि ऐसा उन्होंने क्यों कहा? वे भाजपा पृष्ठभूमि से हैं और इसी कारण आयोग की सदस्य हैं। वे पुलिस थाने में गईं तो सामाजिक प्रतिनिधिमंडल में थीं, मगर जब खुद के बोलने की बारी आई तो अपनी बात राजनीतिक तरीके से ही बोल पड़ीं। प्रतिनिधिमंडल में सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर कांग्रेस नेता बिपिन बेसिल भी मौजूद थे। लिलियन ग्रेस के इस आरोप से उनकी स्थिति अजीबोगरीब हो गई। वे चुप ही रहे। कदाचित मौके पर विवाद से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया।
बहरहाल, इस वाकये ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि हिंदू-ईसाई धर्मांतरण का मुद्दा सामाजिक है अथवा राजनीतिक। मगर यह गुत्थी बड़ी पेचीदा है कि अगर कोई ईसाई धर्मगुरुओं पर हिंदुओं के धर्मांतरण का आरोप लगाएगा तो उससे ईसाई वोट बैंक कैसे बरकरार रह पाएगा। असल बात तो ये है कि आमतौर पर धर्मांतरण का सवाल तो हिंदूवादी ही उठाते रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 16 मार्च 2017

सुनील पारवानी की नजर है सांगानेर सीट पर?

प्रदेश कांग्रेस के सचिव व अजमेर शहर जिला कांग्रेस के सह प्रभारी सुनील पारवानी का मानस जयपुर की सांगानेर सीट से विधानसभा चुनाव लडऩे का प्रतीत होता है। इसके संकेत निराधार नहीं हैं। पारवानी एस पी एल के अध्यक्ष भी हैं। उनकी पहल पर एस पी एल की ओपनिंग सेरेमनी गुरुवार, 16 मार्च हो जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम पर हुई। पारवानी ने समाज से समाज की युवा प्रतिभाओं का उत्साह बढ़ाने की अपील भी की। समझा जा सकता है कि जमीन पर पकड़ और लोकप्रियता के लिए इतना बड़ा आयोजन किया जा रहा।
उल्लेखनीय है कि सांगानेर में सिंधी बहुतायत में हैं। यहां से भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी जीतते रहे हैं। स्वाभाविक रूप से उनकी जीत में सिंधियों का ही योगदान रहता है। हालांकि यहां सिंधी दावेदार भी रहे, मगर तिवाड़ी के कद के आगे कोई नहीं ठहर पाया। कांग्रेस में भी सिंधी दावेदारी करते रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि जब पारवानी को अजमेर का सह प्रभारी बनाया गया तो यही समझा गया कि उन्हें चुनाव से दो साल पहले इसी कारण यहां भेजा गया है, ताकि चुनाव के लिए जमीन तैयार कर सकें। कुछ लोग तो उन्हें अजमेर उत्तर का प्रबल दावेदार मानते हैं। उन्होंने जब सिंधी समाज की कुछ बैठकें लीं तो यही माना गया कि वे चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि वे बैठकें स्थानीय सिंधी नेताओं ने पारवानी से नजदीकी जाहिर करने और अपना जनाधार दिखाने के लिए की थीं। ज्ञातव्य है कि लगातार दो बार गैर सिंधी का प्रयोग विफल होने के बाद यही माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस किसी सिंधी को टिकट देगी। हालांकि यूं तो यहां कई दावेदार हैं, मगर कांग्रेस को सशक्त दावेदार की तलाश है। इस कड़ी में पारवानी का नाम  लिया जाता है, जो कि न केवल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के करीबी हैं, बल्कि साधन संपन्न भी हैं।
हालांकि पुख्ता तौर पर यह कहना थोड़ा जल्दबाजी होगी कि वे सांगानेर से ही टिकट की दावेदारी करेंगे, मगर जिस प्रकार का वे आयोजन कर रहे हैं, उसे इसी रूप में लिया जा रहा है। हां, एक बात है, यदि कांग्रेस जयपुर में एक टिकट सिंधी को देती है तो अजमेर उत्तर की सीट संशय में पड़ सकती है। यह आशंका स्थानीय दावेदारों के लिए चिंता का विषय हो सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 15 मार्च 2017

होली भी एक साथ नहीं मना पा रहे भाजपाई

वाकई अजमेर की माया तीन लोक से न्यारी मथुरा की तरह है। एक ओर उत्तरप्रदेश में भाजपा की प्रचंड जीत से कार्यकर्ता बौरा रहा है और मोदी मोदी करते नहीं थक रहा, वहीं अजमेर के बेचारे भाजपा कार्यकर्ता होली जैसा त्यौहार तक मिल कर नहीं मना पा रहे। परंपरा रही है कि होली के मौके पर नाराज दोस्तों व रिश्तेदारों को दुश्मनी समाप्त करवाई जाती है। यदि दुश्मनी खत्म न भी हो तो कम से कम एक दूसरे को रंग तो लगवा ही दिया जाता है। मगर अजमेर की भाजपा का निराला ही रंग है। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल के बीच वर्षों पुरानी अदावत समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही। होना तो यह चाहिए था कि शहर भाजपा के बैनर तले शहर भर के कार्यकर्ता एक हो कर होली मनाते, मगर बाकायदा अजमेर उत्तर के कार्यकर्ताओं का अलग से होली मिलन समारोह फॉयसागर रोड स्थित दोसी वाटिका में हुआ। इसमें अजमेर दक्षिण के श्रीमती भदेल के करीबी नजर नहीं आए। कार्यकर्ता किस कदर बंटे हुए हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वाट्स ऐप पर भी दोनों के समर्थकों के अलग-अलग ग्रुप बने हुए हैं। एक है टीम अनिता भदेल तो दूसरा चौथी बारी देवनानी। इस गुटबाजी में कार्यकर्ता कितना पिस रहा है, यह तो वह ही जानता है। अफसोसनाक बात ये है कि दोनों के बीच एकता करने की हिम्मत किसी में नहीं। यहां तक कि संघ भी चुपचाप सब देख रहा है।
खैर, देवनानी ने सार्वजनिक रूप से भले ही न कहा हो, मगर उनकी चौथी बार चुनाव लडऩे की पूरी तैयारी है। आज इलैक्शन हो जाए तो वे पूरी तरह से तैयार हैं।
वैसे ये भी एक आश्चर्य है कि बाकायदा दो गुटों में बंटी होने के बाद भी भाजपा पिछली तीन बार से लगातार दोनों सीटों पर जीतती रही है और अब चौथी बार भी दोनों चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं।

आप को है अजमेर उत्तर में सिंधी प्रत्याशी की तलाश

कानाफूसी है कि आम आदमी पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अजमेर उत्तर से किसी सिंधी प्रत्याशी की तलाश है। हालांकि अभी तय नहीं कि पार्टी की आगामी चुनाव में राजस्थान में क्या भूमिका रहेगी, मगर गुप्त रूप से पार्टी के प्रतिनिधि अजमेर उत्तर के लिए प्रत्याशी की खोज कर रहे हैं। उन्होंने कुछ लोगों से संपर्क भी किया है। कदाचित पार्टी का ख्याल है कि इस बार भी कांग्रेस किसी सिंधी को टिकट नहीं देगी, ऐसे में उनकी ओर से सिंधी प्रत्याशी उतारा गया तो वह सिंधी वोटों का बंटवारा कर सकता है।  जानकार लोगों का मानना है कि दोनों दल भले ही किसी को भी टिकट दें, मगर कोई न कोई सिंधी राजनीति में पहचान बनाने के लिए टिकट लेने को राजी हो ही जाएगा। वैसे आम आदमी पार्टी का सिंधी प्रत्याशी तभी त्रिकोणीय मुकाबला कर सकता है, जबकि दोनों ही दल गैर सिंधी को टिकट दें, जिसकी संभावना को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता।

खोयी जमीन फिर संभाल रही हैं अनिता भदेल

आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल अपने इलाके में खोयी जमीन फिर से संभालने की जुगत में है। इसके लिए उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी के उपलक्ष में दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के 32 वार्डों में क्रिकेट प्रतियोगिता करवाने का कार्यक्रम बनाया है।
सर्वविदित है कि पिछले नगर निगम चुनाव में अजमेर दक्षिण में भाजपा का परफोरमेंस बहुत कमजोर रहा, जिसे इस रूप में लिया गया कि श्रीमती भदेल जिस क्षेत्र से लगातार तीन बार जीती हैं, उसकी जमीन खिसक गई है। वस्तुत: पिछले विधानसभा चुनाव में हारे कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत भाटी ने अगली बार चुनाव लडऩे का मानस रखते हुए निगम चुनाव में कड़ी मेहनत की। हर वार्ड में अपनी टीम बनाई। नतीजतन उन्हें कामयाबी मिली।  यह चमत्कार उन्होंने युवाओं के सहयोग से किया। श्रीमती भदेल जानती हैं कि अगर अगले चुनाव में भी उन्हें जीतना है तो युवकों को नए सिरे से जोडऩा होगा। यही ख्याल में रख कर उन्होंने वार्ड वार क्रिकेट प्रतियोगिता का अनूठा प्रयोग करने का निश्चय किया है। सब जानते हैं कि आज युवाओं में क्रिकेट का कितना क्रेज है। अगर यह प्रतियोगिता वे सफलतापूर्वक करवा लेती हैं तो निश्चय ही युवा वर्ग से उनका जुड़ाव हो जाएगा।
दो चतुराइयां उन्होंने और की हैं। एक तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी के बहाने संघ को तुष्ट करने की कोशिश की है, दूसरा अनुसूचित जाति के मतदाताओं को लामबंद करने के मकसद से इस आयोजन का उद्घाटन 14 अप्रैल को संविधान निर्माता बाबा आंबेडकर की जयंती के मौके पर कर रही हैं। बाबा साहेब के प्रति अनुसूचित जाति में कितनी श्रद्धा है, ये किसी से छिपी नहीं है। प्रतियोगिता की व्यवस्थाओं का जिम्मा अजमेर नगर निगम के उप महापौर संपत सांखला को दिया है, जो कि लो प्रोफाइल व मैनेजमेंट के सिद्धहस्त कलाकार हैं। बस, एक बात अटपटी लगी, वो ये कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम को उपयोग किया है तो किसी स्वदेशी खेल की प्रतियोगिता करवानी चाहिए थी, मगर वो केवल आदर्श की बात है। आज आप कबड्डी, खो-खो, गिल्ली-डंडा या सतोलिया की प्रतियोगिता करवाते तो कोई नहीं जुड़ता, जितना कि क्रिकेट के नाम से जुड़ेगा।
बहरहाल, अब देखना ये होगा कि वे अपने मकसद में कितना कामयाब हो पाती हैं। वैसे है ये धांसू आइडिया। जिसने भी दिया है, वह श्रीमती भदेल की ओर से साधुवाद का पात्र बनता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 13 मार्च 2017

होली है भई होली है

सरकारी सील ठप्पे
ओपी सैनी-वकीलों के फेर में
ललित के पंवार-छपास
मेहाराम विश्नोई-कांग्रेस से परेशान
हनुमान सहाय मीणा-टाइम पास
गौरव गोयल-छैल भंवर
मालिनी अग्रवाल-मुझे क्या फिक्र
पुनीत चावला-मस्त मौला
प्रो. बी.एल. चौधरी-सरकार की फूंक
प्रो. कैलाश सोढानी-हम से बढ़ कर कौन
किशोर कुमार-एक बेचारा काम के बोझ का मारा
सुरेश सिंधी-तीन लोक से मथुरा न्यारी
राधेश्याम मीणा-नौकरी बजानी है
हरफूल यादव-कभी गाडी नाव पर, कभी नाव गाडी पर
के.के. शर्मा-हम से बढ़ कर कौन
नितिन दीप ब्लग्गन-अब मुझे क्या पड़ी है
ओम प्रकाश-लहर का इंतजार
मोनिका सेन-सुष्मिता सेन

कुर्ता-पायजामा
प्रो. सांवर लाल जाट-सेवा काम आई
सचिन पायलट-आशा की किरण
भूपेंद्र यादव-लंबी छलांग
औंकारसिंह लखावत-राजनीति की चील
वासुदेव देवनानी-टांग ऊपर
अनिता भदेल-किस्मत की धनी
सुरेश रावत-लंबी रेस का घोड़ा
रामनारायण गुर्जर-...नाक काहू से बैर
डॉ. रघु शर्मा-मीडिया का मारा
अरविंद यादव-आका मेहरबान तो...
नसीम अख्तर-ये तो गलत बात है
प्रो. बी.पी. सारस्वत-कभी तो लहर आएगी
भूपेंद्रसिंह राठौड़-मीडिया मेहरबान
विजय जैन-लो प्रोफाइल
धर्मेंद्र गहलोत-अक्ल दाढ आ गई
शिव शंकर हेड़ा-उत्तर पर नजर
संपत सांखला-पक्षियों में कौआ
सुशील कंवर पलाड़ा-किस्मत बुलंद
रासा सिंह रावत-ढ़लती सांझ
रामचन्द्र चौधरी-लाइलाज नेता
कमल बाकोलिया-अब क्या करूं...
नरेन शहाणी भगत-फिलहाल चुप्पी ही भली
हेमंत भाटी-मछली की आंख पर नजर
डॉ. श्रीगोपाल बाहेती-अमीबा
भंवर सिंह पलाड़ा-बहुत दूर जाना है
सोमरत्न आर्य-अजमेरीलाल
महेन्द्र सिंह रलावता-इस बार आर या पार
धर्मेश जैन-अधूरा सपना
ललित भाटी-मैदान नहीं छोडूंगा
सुरेन्द्र सिंह शेखावत-समझदार
डॉ. राजकुमार जयपाल-अपुन तो अब भी राजा हैं
पूर्णाशंकर दशोरा-हाशिये पर
हरीश झामनानी-वक्त गंवा दिया
सबा खान-फोटो एंगल मास्टर
राजेश टंडन-..गुलामची थोड़े ही छोडूंगा
सतीश बंसल-राजनीति से समाजसेवा भली
कैलाश झालीवाल-हम से बढ़ कर कौन
शैलेन्द्र अग्रवाल-सिपाही

शहर के चौधर
डी.बी. चौधरी-एवरग्रीन
जे.पी. गुप्ता-अज्ञातवास
नरेन्द्र चौहान-खुशवंत सिंह
डॉ. रमेश अग्रवाल-भानुमति का कुनबा
उपेंद्र शर्मा-मुसाफिर
कंवल प्रकाश किशनानी-तू नानी तो मैं भी नानी
हरीश वर्यानी-अजमेर-जयपुर शटल
गोपाल सिंह लबाना-कछुआ चाल
वीरेन्द्र आर्य-अजमेर का मोह
डॉ. इंदु शेखर पंचोली-लंबी दौड़
ओम माथुर-यारों का यार
सुरेन्द्र चतुर्वेदी-छुपा रुस्तम
राजेन्द्र शर्मा-काम की बीमारी
राजेंद्र गुंजल-सेवा का मेवा
एस.पी. मित्तल-ब्लॉग मास्टर
गिरधर तेजवानी-रस्सी जल गई..
अमित वाजपेयी-लंबी छलांग
सुरेश कासलीवाल-कलेक्टर की छाया
त्रिलोक जैन-पत्रकारिता की विरासत
प्रताप सनकत-रायता ढुल गया
राजेंद्र याज्ञिक-मस्तमौला
भानुप्रताप गुर्जर-सही वक्त का सही फैसला
अशोक शर्मा-यायावर
प्रेम आनंदकर-जो गुजर जाए वो अच्छा
संजय माथुर-काम के दम पर
अरविन्द गर्ग-कल्लू मामा
यशवंत भटनागर-भाड़ में जाए पत्रकारिता
तीरथदास गोरानी-छेडख़ानी
युगलेश शर्मा-ना काहू से दोस्ती
दिलीप शर्मा-समय समय का फेर
सचिन मुद्गल-उड़ चला पंछी
सुरेश लालवानी-बॉस इस आल्वेज राइट
विक्रम चौधरी-यारबाज
दिलीप मोरवाल-जेएलएन की दाई
योगेश सारस्वत-अब मिला मुकाम
अतुल सिंह-साइबर स्पेशलिस्ट
बलजीत सिंह-नींव का पत्थर
निर्मल मिश्रा-हम नहीं सुधरेंगे
अनोज शुक्ला-खिलाड़ी
पंकज यादव-भोले भंडारी
बृजेश शर्मा-छप्पन छुर्री
संतोष खाचरियावास-वक्त का इंतजार
गिरीश दाधीच-सियाना
देवेन्द्र सिंह-मुकाम मिल ही गया
क्षितिज गौड़-अंग्रेज
रक्तिम तिवाड़ी-भोला पंछी
अरविंद अपूर्वा-काहे की चिंता
धर्मेंद्र प्रजापति-थानेदार
अजय यादव-भोला भगत
भूपेंद्र सिंह-अंतर्मुखी
सी पी जोशी-वक्त के भरोसे
रजनीश शर्मा-स्टाइलिश
पी.के. श्रीवास्तव-बिना पीके
सूर्य प्रकाश गांधी-आजीवन बापू
रोहिताश्व गुर्जर-तिरछी नजर
रजनीश रोहिल्ला-चलती का नाम गाडी
मनोज दाधीच-यस बॉस
मनवीर सिंह-ढ़ाई घर की चाल
अभिजीत दवे-दुकान चालू आहे
राकेश भट्ट-पुष्कर नरेश
जाकिर हुसैन-जाऊं कहां बता ए दिल
नवाब हिदायतुल्ला-मन की मन में रह गई
संजय अग्रवाल-खुद की दुनिया में मस्त
बालकिशन-घाव करें गंभीर
नरेन्द्र भारद्वाज-जितना ऊपर उतना नीचे
संजय गर्ग-रंगीन दुनिया
प्रियांक शर्मा-हीरो
कौशल जैन-उठाऊ चूल्हा
आशु-हम किसी से कम नहीं
नरेश पार्टी-नाम यूं ही नहीं पड़ा
महेश नटराज-तीसरा बेटा
सत्यनारायण जाला-प्रेस क्लब का खूंटा
मुकेश परिहार-उछल कूद नहीं छूटती
नवीन सोनवाल-चलती का नाम गाडी
मोहन कुमावत-रमता जोगी
जय माखीजा-बेटा बाप से भी बढ़ कर
अशोक बंदवाल-दुनिया जाए भाड़ में
मोहम्मद अली-कहां से कहां तक
रमेश डाबी-हमका ऐसा वैसा ना समझो
मोहन ठाडा-जाहिं विधि राखे राम

रविवार, 12 मार्च 2017

पत्रकार मित्तल को लगा राजनीति का चस्का

अजमेर के जाने माने पत्रकार एस पी मित्तल को राजनीति का चस्का लग गया दिखता है। उन्होंने न केवल अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष पद पर रहते हुए शहर के अनेक कार्यक्रमों में अतिथि पद स्वीकार कर जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है, जिसको कि फागुन समारोह में फागुन समाचार के दौरान रेखांकित भी किय गया, अपितु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े दो बड़े आयोजनों में सक्रिय भागीदारी भी निभाई है। इतना ही नहीं संघ के एजेंडे में शामिल कश्मीर पर निरंतर लेखन के साथ आए दिन नरेन्द्र मोदी की तारीफ के ब्लॉग लिखने की भी खासी चर्चा है। कहीं न कहीं उनके मन में राजनीति का चस्का जाग गया है, इसका संकेत पिछले दिनों मसाणिया भैरवधाम, राजगढ़ के उपासक चंपालाल जी महाराज के जन्मदिन के मौके पर दिया। चुनिंदा राजनीतिज्ञों के बीच किसी ने उन्हें चुनाव लडऩे का सुझाव दिया तो तपाक से बोल पड़े कि बाबा का आशीर्वाद हो तो वे तैयार हैं। बस दिक्कत सिर्फ एक ही है, वो यह कि अजमेर उत्तर में भाजपा गैर सिंधीवाद का प्रयोग करने का साहस दिखा पाती है या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता।
बुरा न मानो होली है

शनिवार, 11 मार्च 2017

विजय जैन करेंगे अजमेर उत्तर से दावेदारी

शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विजय जैन ने आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से कांग्रेस टिकट की दावेदारी का मानस बना लिया है। उन्हें उम्मीद है कि जिस प्रकार सिंधियों के दबाव के बावजूद गैर सिंधी के रूप में पूर्व पुष्कर विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को दो बार इस सीट से उम्मीदवार बनाया गया, वैसे ही उन्हें भी मौका मिल सकता है। असल में वे जानते हैं कि इस बार न तो दो बार हार का मजा चख चुके डॉ. बाहेती दावेदारी करेंगे और न ही लगातार तीसरी कांग्रेस उन पर दाव खेलने का जोखिम उठाएगी। वे पुष्कर का रुख करने के मूड में हैं। ऐसे में कोई गैर सिंधी दावेदार है नहीं। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के महासचिव महेन्द्र सिंह रलावता अपने आपको प्रबल दावेदार मानते हैं और उनकी शहर पर पकड़ भी है, मगर संभव है कांग्रेस परंपरागत भाजपाई जैनियों के वोट बैंक में सेंध मारने के लिए विजय जैन को मौका दे दे। इसी उम्मीद में उन्होंने मानस बनाया है कि इस बार वे दावेदारी करेंगे। हालांकि वे पुरानी कार्यकारिणी से ही काम चला रहे हैं और उनकी खुद की टीम अभी नहीं बनी है, बावजूद इसके उन्होंने बिजली के मुद्दे पर सफल अजमेर बंद करवा कर अपनी ताकत साबित कर दी है। हालांकि उन्होंने कुछ सिंधियों को टिकट दिलवाने की लॉलीपोप दे रखी है, मगर समझा जाता है कि ऐन वक्त पर खुद ही दावेदारी कर देंगे।
बुरा न मानो होली है

बेटे को चुनाव लड़वाने की तैयारी कर रहे हैं देवनानी

शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने की संभावना के चलते अपने पुत्र महेश देवनानी को चुनाव लड़वाने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि कई भाजपा नेता उनसे खफा हैं, उन्होंने विधानसभा क्षेत्र के हर बूथ पर अपने पक्के समर्थकों की मजबूत टीम बना ली है। बताया जाता है कि अगले वर्ष होने वाले चुनाव तक देवनानी की उम्र 70 वर्ष हो जाएगी, ऐसे में लगातार तीन बार चुनाव जीतने और मंत्री होने के बावजूद टिकट मिलने की संभावना कम है।  हालांकि यूं तो भाजपा के कर्ताधर्ता नरेन्द्र मोदी परिवारवाद के खिलाफ हैं, इस कारण महेश की संभावना कम है, मगर जिस प्रकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कुछ बड़े नेताओं की औलादों को टिकट दिए गए, उससे देवनानी को उम्मीद है कि वे अपने पुत्र को भी टिकट दिलवाने में कामयाब हो जाएंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि देवनानी की संघ पर जबरदस्त पकड़ है। संघ ने यदि महेश के नाम पर मुहर लगा दी तो भाजपा में किसी की हिम्मत नहीं कि वह चूं तक कर सके।
बुरा न मानो होली है

अजमेर से चुनाव नहीं लड़ेंगी अनिता भदेल

चर्चा है कि महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल अजमेर दक्षिण का चुनाव मैदान छोडऩे का मानस बना चुकी हैं। असल में नगर निगम चुनाव में जिस प्रकार उनके विधानसभा क्षेत्र में पार्टी को जो दुर्गति हुई है, उससे उनको समझ में आ गया है कि चौथी बार यहां से जीतना मुश्किल है। वैसे भी उनके दाहिने व बायें हाथ सुरेन्द्र सिंह शेखावत व हेमंत भाटी अब उनके साथ नहीं हैं। हेमंत भाटी ने तो उनसे अलग हो कर उनके सामने चुनाव लड़ा भी, मगर मोदी लहर में हार गए। उसके बाद उन्होंने अजमेर दक्षिण पर जबरदस्त पकड़ बना ली और निगम चुनाव में अपना दबदबा भी साबित कर दिया। बताया जाता है कि उन्होंने कांग्रेस के साथ खुद अपनी टीम भी बूथ वार तैयार कर रखी है। उसका मुकाबला करना श्रीमती भदेल के लिए कठिन होगा। ऐसे में वे शाहपुरा का रुख करने के मूड में हैं। चूंकि वे लगातार तीन बार जीती हैं, इस कारण उनका टिकट तो नहीं कटेगा, मगर सीट बदलने की इजाजत मिल जाएगी।
बुरा न मानो होली है

धर्मेश जैन बने महाराणा प्रताप स्मारक न्यास के अध्यक्ष

अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन के लिए एक नए पद का सृजन किया गया है। उन्हें महाराणा प्रताप स्मारक न्यास का सदर बनाया गया है। हालांकि उन्हें उम्मीद तो ये थी कि उन्हें अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जाएगा, क्योंकि उनका पिछला कार्यकाल जिस आरोप की वजह अधूरा छूट गया था, वह झूठा निकला और उनको क्लीन चिट मिल गई। मगर ऐसा हो न सका। अब सवाल ये पैदा हो गया कि ऐसे वरिष्ठ भाजपा नेता को कहां एडजस्ट किया जाए। इसके लिए बेहतर ये समझा गया कि उनके लिए एक नया पद ही बना दिया जाए। चूंकि पुष्कर घाटी पर नौसर गांव के पास उन्होंने महाराणा प्रताप स्मारक बनाने की नींव रखी, जिसे बाद में साकार रूप मिला, उसका श्रेय उनके ही खाते में गिना गया। स्मारक पूरा होने तक भी वे लगातार हर साल वहां कार्यक्रम भी करते रहे हैं। ऐसे में सरकार ने सोचा क्यों न इसी स्मारक के नाम पर न्यास का गठन कर दिया जाए, जिसका सदर उन्हें बना दिया जाए। इसका एक लाभ ये भी होगा कि वे इस स्मारक की ठीक से देखभाल कर लेंगे। बहरहाल, उन्हें एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हो गई है। भविष्य में जब तक यह स्मारक वजूद में रहेगा, लोग धर्मेश जैन को याद करेंगे। कुल मिला कर महाराणा प्रताप की धरती से अजमेर आए इस नेता ने अपने आप को अमर कर लिया है।
बुरा न मानो होली है

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

देवनानी को धमकी : व्यक्ति नहीं, विचार महत्वपूर्ण

शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को पिछले दिनों मिले धमकी भरे पत्र के सिलसिले में मैने एक विचार आपसे साज्ञा किया था कि इसे एक मामूली धमकी समझना पुलिस की बड़ी भूल हो सकती है। चूंकि इस मामले में एक पारिवारिक विवाद सामने आया है, जिसमें भाई-भाभी को फंसाने की गरज से पंचायतराज प्रशिक्षण केंद्र के सहायक लेखाधिकारी सैयद अतहर अब्बास काजमी ने यह पत्र लिखा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बुजुर्ग व सेवाभावी कार्यकर्ता ने मुझे फोन कर कहा कि मेरी पोस्ट गलत साबित हो गई है। मैने उनसे आग्रह किया कि आप पोस्ट ठीक से पढिय़े, उसमें लिखा क्या है। हालांकि वे संतुष्ट नहीं हो पाए, चूंकि अमूमन संघ स्वयंसेवक से बहस करना अंतहीन होती है, मगर मेरा यह कहना था कि यह एक या दो व्यक्तियों का सिरफिरापन नहीं, बल्कि वैचारिक मतभिन्नता का मामला है, जिसे बड़ी संजीदगी से निपटना होगा। संयोग से एक व्यक्ति का सिरफिरापन सामने आया, मगर बड़ा सवाल है कि उसने भी उसी विचार को काम में लिया न, जो सनसनी फैलाने वाला था। अगर वह एक सामान्य धमकी भरा पत्र लिखता तो कदाचित उसे उतनी तवज्जो नहीं मिलती, जितनी कि इस संवेदनशील विषय पर लिखने की वजह से सुर्खी मिली। इस पर देवनानी की प्रतिक्रिया भी काफी तीखी थी।
वस्तुत: यह उस एक सैयद अतहर अब्बास काजमी का विचार नहीं है, बल्कि यह पूरे एक समुदाय के भीतर ही भीतर सुलग रहा है, यह बात दीगर है कि प्रत्यक्षत: उभर कर नहीं आया, जिसके अनेकानेक कारण हैं, मगर यदि एक व्यक्ति इसका उपयोग किसी को फंसाने के लिए कर सकता है तो किसी और को कुछ और घातक करने को भी प्रेरित कर सकता है। इसी संदर्भ में मैंने लिखा है कि यह मामला दो विचारधाराओं के मुकाबले का लगता है। ऐसे में पुलिस को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
यह पोस्ट लिखी ही इसलिए गई थी कि अजमेर की पृष्ठभूमि कुछ संवेदनशील है और उसमें दरगाह बम ब्लास्ट का भी जिक्र किया गया था। संयोग से इन्हीं दिनों उस मामले में कोर्ट ने संघ के ही तीन स्वयंसेवकों को दोषी माना है, जिस एक समुदाय विशेष संतुष्ट नहीं कि अभियोजन ने ठीक से पैरवी नहीं की, इस कारण कई और बरी हो गए। इस प्रकरण में संघ का सीधा सीधा सांगठनिक हाथ नहीं, मगर संघ से जुड़े स्वयंसेवकों से संलिप्तता सामने आई है, तो अजमेर इतिहास में इस रूप में दर्ज हो गया है, जहां के एक वाशिंदे व उसके सहयोगियों की वजह से भगवा आतंकवाद के आरोप को नकारने की दृढ़ता कमजोर हुई है। इस लिहाज से अजमेर और अधिक संवेदनशील हो गया है। हो सकता है कि यह डर अभी प्री मैच्योर लगे, मगर अब और अधिक सतर्क होने की जरूरत है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 7 मार्च 2017

राजावत के मुंह से फिर निकल गया सच

भाजपा विधायक भवानी सिंह राजावत सच्चे राजनीतिज्ञ नहीं, बल्कि सच्चे इंसान प्रतीत होते हैं। आजकल सच्चा राजनीतिज्ञ वही, जो झूठ बोलने में माहिर हो, मगर राजावत अमूमन सच बोल जाते हैं। हालांकि वे बोलने के बाद जरूर पछताते होंगे कि जो नहीं कहना चाहिए था, वह कह दिया।
पिछले दिनों उन्होंने अनौपचारिक बात में मोदी सरकार की नोट बंदी की आलोचना की, मगर जब उसका वीडियो वायरल हो गया तो दूसरे ही दिन भाजपा में खलबली मच गई। ऐसे में उन्होंने अपने कथन का खंडन किया कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा था।
हाल ही नयापुरा स्थित पोस्ट ऑफिस पासपोर्ट सेवा केंद्र के उद्घाटन के मौके पर कोटा में नया एयरपोर्ट नहीं बनवाने को लेकर भी इतने खफा हुए कि अपनी ही सरकार पर तंज कस दिया और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की तारीफ कर दी। राजावत ने सांसद ओम बिरला की मौजूदगी में कहा कि पायलट जब अजमेर से सांसद थे, तो किशनगढ़ जैसी जगह पर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बन गया। कहां किशनगढ़ और कहां कोटा?
स्वाभाविक रूप से यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं। खबर थी ही ऐसी। अजमेर के भाजपा नेताओं तो बहुत बुरा लगा होगा कि उनकी पार्टी के विधायक कांग्रेस नेता की तारीफ कर रहे हैं, जबकि उन्होंने तो पायलट की नाकामी गिना कर वोट बटोरे थे। अब जब किशनगढ़ का हवाई अड्डा शुरू होगा तो वे इसका श्रेय नहीं ले पाएंगे, क्योंकि तब लोग उन्हें राजावत का बयान याद दिलवा देंगे।
अजमेर के संदर्भ में ये खबर इसलिए भी अहमियत रखती है क्योंकि पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत की तुलना में पायलट ने एक टर्म में ही इतना काम करवा दिया कि भाजपाई भी आपसी खुसर फुसर में उनकी उपलब्धियों को स्वीकार करते थे। मगर मोदी लहर ने सब पर पानी फेर दिया। आपको याद होगा कि तब पायलट ने मोदी लहर की आशंका में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि अगर काम करने पर भी वोट नहीं मिलेगा तो फिर नेताओं का अपने क्षेत्र में काम करवाने पर से विश्वास उठ जाएगा। बेशक लहर में पायलट भी नहीं बच पाए, मगर यह चर्चा आज भी होती है कि पायलट ने जो काम करवाए, उसकी तुलना में रावत ने धेला भर भी काम नहीं करवाया।
खैर, भाजपा विधायक ने ही पायलट को सर्टिफिकेट दे दिया है, तो अब तो अजमेर के भाजपाइयों को भी मानना पड़ेगा।

क्या केवल हिलाल कमेटी से इस्तीफा देना की काफी होगा?

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के सिलसिले में चांद दिखाई देने के ऐलान में बदलाव को लेकर पिछले दिनों हुए विवाद के साथ कुछ और धार्मिक व रस्मी पेचीदगियां भी पैदा हो गई हैं। इन पर दरगाह कमेटी ने अभी तक गौर नहीं किया है, मगर दरगाह से जुड़े लोग व आम मुसलमानों में उसकी खासी चर्चा है।
दरअसल हिलाल कमेटी में तीन प्रमुख सदस्य सीधे दरगाह से ही जुड़े हुए हैं, जिनमें शहर काजी व शाहजहांनी मस्जिद के इमाम मौलाना तौसीफ सिद्दीकी, अकबरी मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल गफूर व सदर ए मुसरिस, दारुल उलूम मोइनिया इस्लामिया मौलाना बशीरुल कादरी शामिल हैं। बाकी के तीन बाहर के हैं, जिनमें हाफिज रमजान और मौलाना जाकिर हुसैन अशरफ, हाफिज फैयाज हुसैन मुस्लिम धर्म व रीति-रिवाज के जानकार होने के नाते हिलाल कमेटी में हैं। गौरतलब है कि इन सदस्यों ने उनके साथ बदसलूकी होने के कारण हिलाल कमेटी से इस्तीफा देने की पेशकश कर रखी है। बाहर के सदस्य अगर हिलाल कमेटी से इस्तीफा देते हैं तो दरगाह कमेटी उनकी जगह पर अन्य की नियुक्ति कर देगी, मगर अजमेर के तीन सदस्यों का केवल हिलाल कमेटी से इस्तीफा देना काफी नहीं होगा। चूंकि वे दरगाह स्थित तीन प्रमुख स्थानों के मुखिया हैं, इसी के नाते हिलाल कमेटी के सदस्य हैं। यानि कि उन्हें उन पदों से भी इस्तीफा देना होगा, तभी उनके स्थान पर नए पदासीन किए जा सकेंगे, जो कि नई हिलाल कमेटी के सदस्य होंगे। हालांकि दरगाह कमेटी हिलाल कमेटी के सदस्यों के साथ बदसलूकी को लेकर गंभीर है और सख्त कार्यवाही का आश्वासन दे रही है, ऐसे में संभव है सभी सदस्य इस्तीफे की पेशकश वापस ले लें।
एक और मसला भी चर्चा में है। वो यह कि शरियत के मुताबिक पेश इमाम के साथ बदसलूकी करने वालों की नमाज जायज नहीं होती है। अगर वे नमाज में शिरकत करते हैं तो उनके पीछे खड़े नमाजी की नमाज भी फासिद हो जाएगी। जाहिर तौर पर बदसलूकी करने वाले भी नमाज तो अदा करते ही होंगे। दरगाह कमेटी को इस पर भी गौर करना होगा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए?
जहां तक मूल विवाद का सवाल है, इसको लेकर भी वर्ग बन गए हैं। एक ओर खादिम हैं तो दूसरी ओर आम मुसलमाल। दरगाह कमेटी व जिला प्रशासन को यह देखना होगा कि विवाद का निपटारा जल्द से जल्द हो जाए, ताकि दो वर्गों के बीच कटुता की नौबत न आए।
गौरतलब है कि हिलाल कमेटी ने 27 फरवरी को हुई बैठक के बाद चांद नहीं दिखाई देने का ऐलान किया। इस हिसाब से 1 मार्च से ही जमादिउस्सानी महीने की एक तारीख मानी जाती। चूंकि इस तारीख की बड़ी अहमियत है, इस कारण इसकी खबर तुरंत देशभर में फैल गई। मगर बताया जाता है कि 28 फरवरी को हिलाल कमेटी के पास अहमदाबाद से खबर आई कि चांद 27 को ही दिखाई दे चुका है और चांद की पहली तारीख 28 को ही हो गई है। इसी को आधार बना कर हिलाल कमेटी के सदर ने ऐलान कराया कि चांद रात 27 की ही हो गई और 28 को चांद की एक तारीख है। यानि कि ख्वाजा साहब की छठी 5 मार्च को और उर्स का झंडा 24 मार्च को चढ़ेगा। जाहिर तौर पर यह ऐलान होते ही खलबली मच गई। दरगाह से जुड़े कुछ लोगों ने शहर काजी और कमेटी सदस्यों के साथ कथित तौर पर बदसलूकी की।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

सोमवार, 6 मार्च 2017

पुलिस को रखनी होगी अतिरिक्त सतर्कता

तेजवानी गिरधर
राजस्थान के शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी को पिछले दिनों धमकी भरा पत्र भेजने के मामले में अजमेर पुलिस त्वरित गति से कार्य कर रही है और उम्मीद है कि वह तह तक पहुंच ही जाएगी, मगर जिस तरह का मामला है, उसमें अजमेर की पृष्ठभूमि को ख्याल में रख कर अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है।
वस्तुत: तीर्थराज पुष्कर व दरगाह ख्वाजा साहब को अपने आंचल में समेटे हुए अजमेर नगरी यूं तो दुनिया भर में सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए जानी जाती है, और यहां है भी, मगर साथ ही यह उतनी संवेदनशील नगरी भी है। दोनों तीर्थ स्थलों में ड्रग माफिया के अतिरिक्त अंडर वल्र्ड के कनैक्शन रहे हैं, जो कई बार उजागर हो चुके हैं। इसी सिलसिले में दरगाह बम ब्लास्ट सबसे ज्वलंत उदाहरण है। केरल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं के साथ हो रही हिंसा के बाद अजमेर में राष्ट्रवादियों में जैसा रोष पिछले दिनों दिखाई दिया, उस पर भी गौर करना चाहिए। संघ के लिए अजमेर कितनी अहमियत रखता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों संघ की अति महत्वपूर्ण बैठक यहां हुई, जिसमें मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे व गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया तक ने हाजिरी दी।
जिले में धर्मांतरण की छिटपुट घटनाएं भी होती रहती हैं, जिनका विरोध भी होता है। चूंकि अकबर किला विवाद में भी शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने राष्ट्रवाद की दुहाई दी है, और उसी को मुद्दा बना कर उनको धमकी भरा पत्र मिला है, अत: पुलिस को यह समझना होगा कि अकेले पत्र लिखने वाले को पकड़ लेने मात्र से इतिश्री नहीं होगी। राष्ट्रवाद के नाम पर जिस प्रकार देवनानी ने बिंदास हो कर बयान दिया, वह आतंकवादियों के लिए चुनौती से कम नहीं है। ताजा मामले में अब तक जो खुलासा हुआ है, वह गौर करने लायक है।  जिस तरन्नुम के नाम से देवनानी को धमकी भरा पत्र लिखा गया, उसे भी अज्ञात व्यक्ति ने दो पत्र लिखे हैं, जिसमें कट्टरपंथी बातों का जिक्र करते हुए उसको समुदाय विशेष के स्कूल में जाकर शिक्षा लेने की नसीहत दी गई है। यानि कि इसके पीछे महज एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा काम कर रही है। इस लिहाज से यह मामला दो विचारधाराओं के मुकाबले का लगता है। ऐसे में पुलिस को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

देवनानी को मिला जमीन मजबूत करने का मौका

राजस्थान सरकार के शिक्षामंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को पिछले दिनों मिले धमकी भरे पत्र के पीछे किसकी साजिश थी, इसका खुलासा तो पुलिस कर ही लेगी, मगर कानाफूसी है कि इस मसले को लेकर उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी जमीन मजबूत करने का मौका मिल गया है।
उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि वे एक राष्ट्रवादी हैं और जहां भी आतंकियों के नाम पर जगहों के नाम होंगे, वे उन्हें बदलने की कोशिश करेंगे। ऐसा करके उन्होंने एक ओर तो संघ विचारधारा को पोषित कर उसका वरदहस्त बरकरार रखने की कोशिश की है, तो साथ ही धरातल पर वोटों का धु्रवीकरण करने पर उनकी गहरी नजर है। जब उन्होंने अकबर के किले का नाम अजमेर का किला करने को कहा तो स्वाभाविक रूप से उनका मकसद संघ की मंशा पूरी करना था। इसी सिलसिले में उन्होंने कहा कि वामपंथियों ने भारत के इतिहास को तबाह किया है। इतिहास में अब तक कहा जाता रहा है कि अकबर महान था लेकिन रिसर्च में यह साबित होता है कि महाराणा प्रताप महान थे। यह एक संयोग ही है कि अकबर के किले के मसले पर उनको धमकी भरा पत्र मिल गया। ऐसे में उन्हें एक बार फिर अकबर की बजाय महाराणा प्रताप को महान बताने का मौका मिल गया।  कुल मिला कर उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की है कि वे पक्के संघनिष्ठ हैं। इसके एवज में आगामी विधानसभा चुनाव में उनके टिकट को लेकर संघ भी पूरा साथ देगा। जाहिर तौर पर उनकी नजर बहुसंख्यक हिंदू वोटों पर भी है, जो कि टिकट मिलने पर जीतने के लिए जरूरी हैं।

शनिवार, 4 मार्च 2017

संघ को क्यों बनाना पड़ा जनाधिकार बचाओ मंच?

केरल में वामपंथी सरकार के संरक्षण में हो रही हिंसा के विरोध में शहर के विभिन्न मार्गों से जन आक्रोश रैली निकाली गई। रैली के समापन पर नया बाजार चौपड़ पर आमसभा भी हुई।
बेशक कहीं भी हिंसा होती है तो वह गलत है। खासकर से संगठन विशेष के कार्यकर्ताओं को निशाना बना कर हिंसा करना घोर निंदनीय कृत्य है। इस प्रकार की हिंसा को न रोक पाने के लिए केरल की वामपंथी सरकार को जितना कोसा जाए, कम है। स्वाभाविक रूप से केरल सरकार के खिलाफ देशभर की तरह अजमेर में भी रोष व्याप्त है। मगर कौतुहल सिर्फ ये कि जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और राष्ट्रवादी विचारधारा वाले कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही हैं और संघ की पहल पर ही संघ विचारधारा से पोषित भाजपा के कार्यकर्ताओं ने रैली का आयोजन किया तो ऐसी क्या वजह थी कि उसके लिए जनाधिकार बचाओ मंच का उपयोग करने की जरूरत महसूस हुई। संघ चाहता तो खुद के झंडे तले यह आयोजन कर सकता था। जितने लोग मंच के बैनर पर जुटे, उतने ही या उससे भी अधिक लोग जुट सकते थे। ऐसा संभव ही नहीं कि संघ का आदेश हो और उसके रिमोट से चलने वाली भाजपा और संघ की प्रशाखाएं उसकी अवहेलना कर सकें। भाजपाइयों की हालत तो ये है कि एकबारगी भाजपा संगठन के किसी आयोजन में शामिल होने में सुस्ती दिखा दें, मगर संघ का आदेश उनके लिए अपरिहार्य होता है।
यहां बता दें कि इस आयोजन में भाजपा सहित विश्व हिन्दू परिषद, हिन्दू जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ, सिंधु सभा, विद्यार्थी परिषद, सिक्ख संगत, स्वदेशी जागरण मंच, संस्कार भारती, विद्या भारती, ग्राहक पंचायत भारतीय शिक्षक संघसेवा भारती, सहकार भारती, भारत विकास परिषद, रुक्टा राष्ट्रीय, अधिवक्ता परिषद, विज्ञान भारती, इतिहास संकलन, सक्षम, शिक्षण मंडल, क्रीड़ा भारती, लघु उद्योग भारती, राष्ट्र सेविका समिति आदि ने भाग लिया। इनमें से अधिकतर किसी न किसी रूप में संघ के ही अंग हैं, बस कार्यक्षेत्र पृथक पृथक है। फिर भी संघ को जनाधिकार बचाओ मंच के नाम का इस्तेमाल करना पड़ा। हालांकि यह संघ के अधिकार का मामला है कि वह अपना आंदोलन किसी भी मंच के जरिए करे, मगर उसे खुद का ही सशक्त मंच छोड़ कर अन्य मंच की जरूरत महसूस हो तो तनिक कौतुहल होना स्वाभाविक है।

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

अकबर का किला ही है उसका नाम

नया बाजार स्थित अकबर के किले का नाम बदल कर अजमेर का किला करने को लेकर किसी खादिम तरन्नुम चिश्ती की ओर से शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को भेजे गए धमकी भरे पत्र की वजह से यह किला एकबारगी फिर से चर्चा में आ गया है। असल में यह विवाद पूर्व में भी हुआ था, जब इसमें मरम्मत का काम हुआ था और किले के मुख्य द्वार पर  लगे बोर्ड पर अजमेर का किला एवं संग्रहालय लिख दिया गया। जब इतिहासकारों ने विरोध किया तो फिर अकबर का किला लिख दिया गया। इस पर कुछ संगठनों ने विरोध जताया और अंतत: तत्कालीन जिला कलेक्टर आरुषि मलिक ने इस पर अजमेर का किला लिखवा दिया। आपको जानकारी होगी कि पिछले दिनों एक मुहिम चली थी, जिसमें अकबर को महान नहीं मानने और महाराणा प्रताप तो महान मानने पर जोर था। यह वाकया उसी दरम्यान का है।
वस्तुस्थिति ये है कि भले ही आज इस पर अजमेर का किला व एवं संग्रहालय लिखा हुआ है, मगर इस नामकरण का कोई तथ्यात्मक दस्तावेज रिकार्ड में मौजूद नहीं है। रिकार्ड के मुताबिक 1968 में एक गजट नोटिफिकेशन जारी हुआ था, जिसमें इसका नाम अकबर का किला ही बताया गया है, जिसे मैगजीन, राजकीय संग्रहालय व दौलतखाना भी कहा जाता है। किले के मुख्य द्वार के बाद दीवार पर लगे शिलालेख पर भी लिखा है कि अजमेर का मुगल किला बादशाह अकबर के द्वारा हिजरी 978(1570 ईसी) में बनाया गया है अकबर फोर्ट अजमेर। बहरहाल, इस गजट नोटिफिकेशन के बाद ऐसा कोई गजट नोटिफिकेशन रिकार्ड पर जानकारी में नहीं है कि इसका नाम फिर बदल कर अजमेर का किला किया गया हो। संभव है संगठनों के दबाव में आ कर जिला कलेक्टर आरुषि मलिक ने सामाजिक समरसता बरकरार रखने के लिए अजमेर का किला नामकरण कर दिया हो, मगर वह उचंती में ही किया गया माना जाना चाहिए।
लब्बोलुआब, बात इतनी सी है कि अगर इसका नाम अजमेर का किला करना ही था तो बाकायदा नामकरण परिवर्तन की प्रक्रिया अपना कर उसका गजट नोटिफिकेशन करवाया जाना चाहिए था। बस विवाद इतना सा है। स्थानों व योजनाओं के नाम बदलने के अनेकानेक उदाहरण हैं। सत्ता पर काबिज राजनेता अपनी पसंद व विचारधारा के अनुसार नाम बदलते रहे हैं। बस, उसकी विधिक प्रक्रिया का पालन करते हैं, ताकि नाम परिवर्तन रिकार्ड पर आ जाए।
प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि मेरे द्वारा संपादित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में अकबर के किले के बारे में जो लिखा हुआ है, वह इस प्रकार है:-
अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित इस किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। अकबर ने यहां से समस्त दक्षिणी पूर्वी व पश्चिमी राजस्थान को अपने अधिकार में कर लिया था। जहांगीर ने भी 1613 से 1616 के दौरान यहीं से कई सैन्य अभियानों का संचालन किया। इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाता है। इसमें चार बड़े बुर्ज और 54 फीट व 52 फीट चौड़े दरवाजे हैं। यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल भारतीय राजनीति में अहम स्थान रखता है, क्योंकि यहीं पर सम्राट जहांगीर ने दस जनवरी 1916 ईस्वी को इंग्लेंड के राजा जॉर्ज पंचम के दूत सर टामस रो को ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की अनुमति दी थी। टामस रो यहां कई दिन जहांगीर के साथ रहा। ब्रिटिश काल में 1818 से 1863 तक इसका उपयोग शस्त्रागार के रूप में हुआ, इसी कारण इसका नाम मैगजीन पड़ गया। वर्तमान में यह संग्रहालय है। पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर का सहज ज्ञान जनसाधारण को कराने और संपदा की सुरक्षा करने की दृष्टि से भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक मार्शल ने 1902 में लार्ड कर्जन के अजमेर आगमन के समय एक ऐसे संग्रहालय की स्थापना का सुझाव रखा था, जहां जनसाधारण को अपने अतीत की झांकी मिल सके। अजमेर के गौरवमय अतीत को ध्यान में रखते हुये लार्ड कर्जन ने संग्रहालय की स्थापना करके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट श्री कालविन के अनुरोध पर कई राज्यों के राजाओं ने बहुमूल्य कलाकृतियां उपलब्ध करा संग्रहालय की स्थापना में अपना अपूर्व योग दिया। संग्रहालय की स्थापना 19 अक्टूबर, 1908 को एक शानदार समारोह के साथ हुई। संग्रहालय का उद्घाटन ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट श्री कालविन ने किया और उस समारोह में विभिन्न राज्यों के राजाओं के अतिरिक्त अनेकों विदेशी भी सम्मिलित हुये। पुरातत्व के मूर्धन्य विद्वान पं. गौरी शंकर हीराचन्द ओझा को संग्रहालय के अधीक्षक पद का भार सौंपा गया और ओझा जी ने अपनी निष्ठा का परिचय ऐसी बहुमूल्य कलाकृतियां एकत्रित कर दिया कि जिसके परिणामस्वरूप अजमेर का संग्रहालय दुर्लभ सामग्री उपलब्ध कराने की दृष्टि से देशभर में धाक जमाये हुए है। इसमें अनेक प्राचीन शिलालेख, राजपूत व मुगल शैली के चित्र, जैन मूर्तियां, सिक्के, दस्तावेज और प्राचीन युद्ध सामग्री मौजूद हैं। सन् 1892 में इसके दक्षिणी पूर्वी बुर्ज में नगरपालिका का दफ्तर खोला गया।
-तेजवानी गिरधर
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देवनानी को धमकीभरा पत्र लिखने वाली शातिर

नया बाजार स्थित अकबर के किले का नाम अजमेर का किला करने को लेकर जिस तरन्नुम चिश्ती ने शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी को धमकी भरा पत्र लिखा है, वह बेशक शातिर है। उसने भाषायी तकनीकी का ख्याल रखते हुए अपना नाम मुल्क की खादिम तरन्नुम चिश्ती लिखा है, जिसका मतलब ये है कि वह मुल्क की खिदमत करने वाली है, जबकि भ्रम ये हो रहा है कि वह अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की खादिम है, क्योंकि उसने नाम के साथ खादिम और चिश्ती लिखा है। वैसे उसने  एक चूक भी की है, वो यह कि खादिम शब्द पुर्लिंग है, अगर वह स्त्री है तो उसे खुद्दामा या खादिमा लिखना चाहिए था, जैसे ख्वाजा साहब के खादिम अपने आप को खुद्दाम-ए-ख्वाजा लिखा करते हैं।
वह है कौन यह तो जांच के बाद ही पता लग पाएगा, मगर उसने भ्रम यह फैलाया है कि वह खादिम है।
दिलचस्प पहलु ये है कि उसने पत्र लिखने का जो समय चुना है, उसके पीछे भी उसका मकसद है। अकबर के किले का नाम अजमेर का किला एवं संग्रहालय कर दिए जाने को काफी वक्त हो गया है। अगर उसे ऐतराज था तो तभी विरोध दर्ज करवाना चाहिए था, मगर उसने ऐसा समय चुना है, जबकि इस वक्त राजस्थान विधानसभा चल रही है। हो सकता है कि उसका ख्याल हो कि इस प्रकार का धमकीभरा पत्र लिखने पर उसकी चर्चा ज्यादा होगी। स्वाभाविक सी बात है कि राज्य के किसी मंत्री को एक समुदाय विशेष का व्यक्ति धमकी देगा तो उससे सनसनी तो होनी ही है, वह भी एक ऐसे ऐतिहासिक स्थल को लेकर जिसके साथ समुदाय विशेष की शख्सियत का ताल्लुक है।
बहरहाल, पुलिस को उस तरन्नुम चिश्ती का तो पता लगाना ही चाहिए, साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि कहीं कोई असामाजिक तत्व अजमेर के सांप्रदायिक सौहार्द्र को तो नहीं बिगाडऩा चाह रहा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 2 मार्च 2017

चांद के ऐलान में बदलाव की नौबत आनी ही नहीं चाहिए

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के सिलसिले में चांद दिखाई देने के ऐलान में बदलाव को लेकर विवाद गहरा गया है। बदलाव से खफा लोगों द्वारा हिलाल कमेटी के सदस्यों के साथ बदसलूकी के विरोध में कमेटी सदस्य इस्तीफा देने पर आमादा हैं। दुनियाभर में सूफी मत की कदीमी दरगाह में हुआ यह वाकया अफसोसनाक है। दरगाह कमेटी व नाजिम को चाहिए कि वे इस मसले का तुरंत हल निकालें और ऐसे इंतजाम पर विचार करें कि आइंदा इस किस्म की बड़ी गलती न हो।
असल में चांद दिखाई देने का ऐलान करने के लिहाज से हिलाल कमेटी की खासी अहमियत है। उर्स के दौरान किसी दिन अथवा छठी में आने के लिए जायरीन हिलाल कमेटी की ओर से किए जाने वाले चांद के ऐलान के आधार पर ही कार्यक्रम तय करते हैं और ट्रेनों में रिजर्वेशन कराते हैं। इतना ही नहीं स्थानीय स्तर पर भी सारे इंतजामों की बुकिंग इसी आधार पर की जाती है। जाहिर सी बात है कि अगर यहां चांद दिखाई देने के ऐलान में बदलाव होतो है तो वह देशभर आने वाले जायरीन के लिए परेशानी का सबब है। हालांकि हिलाल कमेटी यूं तो सोच-समझ कर ही चांद दिखाई देने का ऐलान करती है, मगर इस बार गफलत हो गई। ये कैसे हुई, इसकी जांच होनी चाहिए।
गौरतलब है कि हिलाल कमेटी ने 27 फरवरी को हुई बैठक के बाद चांद नहीं दिखाई देने का ऐलान किया। इस हिसाब से 1 मार्च से ही जमादिउस्सानी महीने की एक तारीख मानी जाती। चूंकि इस तारीख की बड़ी अहमियत है, इस कारण इसकी खबर तुरंत देशभर में फैल गई। मगर बताया जाता है कि 28 फरवरी को हिलाल कमेटी के पास अहमदाबाद से खबर आई कि चांद 27 को ही दिखाई दे चुका है और चांद की पहली तारीख 28 को ही हो गई है। इसी को आधार बना कर हिलाल कमेटी के सदर मौलाना शब्बीर और कमेटी ने ऐलान कराया कि चांद रात 27 की ही हो गई और 28 को चांद की एक तारीख है। यानि कि ख्वाजा साहब की छठी 5 मार्च को और उर्स का झंडा 24 मार्च को चढ़ेगा। जाहिर तौर पर यह ऐलान होते ही खलबली मच गई। दरगाह से जुड़े कुछ लोगों ने शहर काजी और कमेटी सदस्यों के साथ कथित तौर पर बदसलूकी की।
इस सिलसिले में शहर काजी मौलाना तौसीफ अहमद सिद्दीकी का कहना है कि तकरीबन डेढ़ साल पहले अजमेर में देशभर के उलेमा काजियों के सम्मेलन में तय किया गया था कि खबर मुस्तफीज के आधार पर अजमेर से कहीं बाहर भी चांद दिखाई दिया और अजमेर में चांद नहीं दिखा, तब भी अजमेर में चांद दिखाई देना मान लिया जाएगा। इस खबर मुस्तफीज के आधार पर पहले भी अहमदाबाद से मिली शहादत के आधार पर अजमेर में चांद का ऐलान किया जा चुका है। इस बार हुआ तो लोगों ने विरोध कर दिया। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर खबर मुस्तफीज की ही अहमियत है तो चांद के बारे में ऐलान पहले कैसे कर दिया गया। ऐसा करने से पहले कमेटी को पुख्ता हो जाना चाहिए था।
बहरहाल, ताजा हालात ये है कि हिलाल कमेटी के सदस्यों के साथ बदसलूकी के विरोध में कमेटी सदस्य कमेटी के मोहतमिम दरगाह नाजिम के छुट्टी से लौटने पर इस्तीफा देने का ऐलान कर चुके हैं। बेशक हिलाल कमेटी के सदस्यों के साथ हुई बदसलूकी गलत है, मगर उन्हें ये भी सोचना चाहिए कि इस प्रकार चांद की तारीख में बदलाव करने पर लाखों लोगों को कितनी परेशानी होती है और लोगों का गुस्सा होना लाजिमी है। हिलाल कमेटी के सदस्यों को भी सोचना चाहिए कि वे कितनी जिम्मेदारी वाली जगह पर बैठे हैं, जहां के ऐलान पर पूरे देश के जायरीन की नजर रहती है। अगर इस प्रकार चांद दिखाई देने में बदलाव की नौबत आती है तो फिर आइंदा लोग उनके पहले ऐलान पर कैसे ऐतबार करेंगे। बेहतर ये है कि दरगाह नाजिम कमेटी सदस्यों के साथ बैठ कर यह इंतजाम करें कि तारीख में बदलाव की नौबत ही न आए। इसके लिए कोई टाइम मुकर्रर करना चाहिए कि उसके बाद खबर मुस्तफीज को नहीं माना जाएगा, वरना ऐसा वाकया फिर मुकाबिल हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000