शनिवार, 14 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग एक
राजस्थान में अजमेर पत्रकारिता की पाठशाला रही है। आज राज्य में पत्रकारिता का जो कल्चर है, उसमें अजमेर की अहम भूमिका है। बेशक राष्ट्रदूत व राजस्थान पत्रिका का भी योगदान रहा है, मगर अजमेर में स्थापित दैनिक नवज्योति के मुख्यालय व दैनिक न्याय ने ऐसे कई पत्रकारों को जन्म दिया है, जो आज विभिन्न समाचार पत्रों में प्रतिष्ठित हैं। जहां राजस्थान पत्रिका सधी हुई भाषा व संक्षिप्तिकरण के लिए जाना जाता रहा है, वहीं दैनिक नवज्योति की पहचान समाचार में संपूर्ण अपेक्षित कंटेंट समाहित किए जाने के रूप में है। दैनिक न्याय का योगदान इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि यहां शुद्ध हिंदी पर विशेष जोर दिया जाता था। दैनिक भास्कर के राजस्थान में आने के बाद पत्रकारिता को नई दिशा मिली। यदि ये कहा जाए कि भास्कर ने अखबारी जगत के कल्चर में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भास्कर ने पत्रकारों को प्रोफेशनल बनाया है। विशेष रूप से भाषा-शैली की बात करें तो मध्यप्रदेश के नई दुनिया समाचार पत्र में किए गए प्रयोग भास्कर के माध्यम से ही राजस्थान में आए हैं।
इसमें कोई दोराय नहीं कि राजस्थान की पत्रकारिता अपने आप में परिपूर्ण व संपन्न रही है, मगर मेरी नजर में पत्रकारिता की स्कूलिंग मध्यप्रदेश की बेहतर है। जब भास्कर अजमेर में स्थापित हुआ तो आरंभ में भोपाल से पत्रकार भेजे गए थे। उनकी कार्यशैली को गहनता देखा तो पाया कि वे वर्सटाइल हैं। अर्थात उनसे समाचार लिखवाइये या संपादकीय, सटायर लिखवाइये या छोटी-मोटी कविता, आकर्षक हैडिंग बनवाइये या लेआउट, इस सब में वे पारंगत थे।
विषय की भूमिका के बाद अब बात अजमेर के जाने-पत्रकारों की भाषा-शैली की। मेरा प्रयास है कि विषय के साथ पूरी ईमानदारी के साथ न्याय करूं। स्वभाविक रूप से यह मेरा नजरिया है, जिन लोगों ने इन पत्रकारों का जाना होगा, उनका दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है। अत: समालोचकों का स्वागत है। एडीशन-ऑल्ट्रेशन अपेक्षित है, ताकि जिन करेक्टर्स को हम जानना चाहते हैं, उन्हें परिपूर्णता के साथ समझें।
आइये, अब मुद्दे पर आते हैं। मूर्धन्य पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा, जिन्होंने जयपुर जा कर अपनी धूम मचाई, की समाचार लेखन व न्यूज आइटम की शैली अनूठी है। असल में कॉलेज टाइम में वे बेहतरीन डिबेटर हुआ करते थे। उनकी शैली की विशेषता ये है कि भाषा बहुत टाइट होती है। मेरी नजर में वे एक मात्र पत्रकार हैं, जिनकी लेखनी में एक भी शब्द इधर से उधर नहीं किया जा सकता। चाह कर भी नहीं किया जा सकता। अलबत्ता, लोच का तनिक अभाव होता है, जो कि समाचार को रोचकता प्रदान करता है, मगर लेखन इतना धारा प्रवाह होता है, जो सीधे जेहन में उतरता चला जाता है।  हर शब्द व पंक्ति एक दूसरे से गहरी गुंथी होती है। पत्रकारिता में परफेक्शन की वे मिसाल हैं। जिन पत्रकारों की सीखने में रुचि है, उनके लिए वे प्रेरणा स्तम्भ हैं। वैसे भी राजस्थान में अनेक स्थापित पत्रकार उनकी देन हैं। ज्ञातव्य है कि श्री लोढ़ा अजमेर में दैनिक नवज्योति, राजस्थान पत्रिका व नवभारत टाइम्स से जुड़े रहे। जयपुर में भास्कर के आने पर स्टेट कॉआर्डिनेटर रहे। इसके बाद इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रवेश किया और बेहतरीन राजनीतिक विश्लेषक के रूप में स्थापित हो गए। वे सुनहरा राजस्थान नामक साप्ताहिक का भी शानदार संचालन कर रहे हैं।
बात अब डॉ. रमेश अग्रवाल की। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में रह कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद भास्कर ज्वाइन किया। कुछ वर्ष जयपुर भी रहे व अब लौट कर अजमेर को दिशा दे रहे हैं। गाहे-बगाहे संपादकीय टिप्पणी के अतिरिक्त कॉलम भी लिखते हैं। उनका अपना एक बड़ा पाठक वर्ग है। उनमें एक आदर्श पत्रकार के दर्शन किए जाते हैं। वे जिस शैली में अपनी बात रखते हैं, वह इस अर्थ में अद्वितीय है कि उसकी कॉपी अब तक कोई पत्रकार नहीं कर पाया है। की ही नहीं जा सकती। उनके लेखन में कई ऐसे शब्द मिल जाएंगे, जो आम तौर पर आपने सुने या पढ़े ही नहीं होंगे। कुछ शब्द ऐसे प्रयोग में लाते हैं, जिनका अर्थ समझने के लिए आपको डिक्शनरी का सहारा लेना पड़ जाएगा। शायद कुछ शब्द उत्तरप्रदेशी हिंदी के होते हैं, जो कि आम पाठक के सिर के ऊपर से गुजर जाते हैं। मगर ये ही शब्द उनके लेखन में खुशबू प्रदान करते हैं। सच कहा जाए तो उनके कुछ पेट वर्ड ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ कर तुरंत कह बैठेंगे कि ये उनकी लेखनी है, क्योंकि उनका उपयोग सिर्फ वे ही करते हैं। कड़वी से कड़वी बात को भी बहुत मीठे अंदाज में कहना कोई उनसे सीखे, जो कि उनके स्वभाव में भी है। हालांकि बक्शते फिर भी नहीं हैं। भाषा शैली में ट्विस्ट व लोच का अत्यंत रुचिकर समावेश होता है। आम तौर पर एक-आध शेर का तड़का डाल कर यह अहसास करवा देते हैं कि वे मूलत: साहित्यिक टच के पत्रकार हैं। पत्रकार से कहीं अधिक साहित्यिक व्यक्ति हैं। कुल मिला कर वे अपने लेखन में कई करवटें लेते हुए विविधता के साथ स्वादिष्ट प्रस्तुति देते हैं। साथ ही जो कहना चाहते हैं, उसे पाठक में गहरे पैठा कर ही सुकून पाते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में दैनिक भास्कर में प्रकाशित उनके एक पॉलिटिकल आइटम की चंद पंक्तियां बतौर बानगी पेश हैं:-
चुनावी गलियों में डंडे खड़काता चुनाव आयोग यह देख कर गद् गद् है कि उसके डंडे की फटकार से चुनावी उम्मीदवारों की घिग्घी बंध गई है।
चुनाव आयोग इन उम्मीदवारों की भोली सूरत और छुंछे हाथ देख कर कैसे ठगौरी खा रहा है।
कहते हैं कि पार्टी के सीनियर भाई गुलाम मुस्तफा ने इमरान भाई की बहियां मरोड़ते हुए यह कह कर उनका मुंह कील दिया कि तुम्हें अध्यक्ष बना दिया ना।
सरे आम ऐसी टकिहाई के बाद इमरान भाई भले ही, जनाब महेन्द्र सिंह रलावता के लिये काम न करें, रलावताजी के अंगरखे के टांके ढीले पड़ते दिखाई नहीं देते।
रलावताजी के एक करीबी दोस्त ने बगैर मतलब समझाए न जाने क्यूं एक शेर पिछले दिनों हमें सुनाया था कि:-
मेरे लिये किसी कातिल का इन्तजाम न कर 
करेंगी कत्ल खुद अपनी हरकतें मुझको।

क्रमश:

-तेजवानी गिरधर
7742067000