रविवार, 19 दिसंबर 2010

अब मीणा को जूझना होगा छप्पन पहलवानों से

अब तक अतिरिक्त जिला कलेक्टर (प्रशासन) के शानदार व सुकून भरे पद का आनंद भोग रहे सी. आर. मीणा को अब नगर निगम के दारासिंह बनाम महापौर और रंधावा बनाम उप महापौर के अतिरिक्त सभी पार्षदों सहित कुल छप्पन पहलवानों से जूझना होगा। हालांकि अनुमान यही लगाया जा रहा है कि खुद महापौर कमल बाकोलिया ने उनको निगम में लगाने की मांग रखी होगी, फिर भी उनका दबाव तो झेलना ही होगा। एक कलेक्टर का दबाव झेलने से कहीं ज्यादा मुश्किल होता है एक जनप्रतिनिधि का दबाव झेलना। इसके अतिरिक्त नरक निगम में कैसी कुत्ता फजीती होती है, इससे भी मीणा वाकिफ ही हैं। एक पार्षद भी जब गुर्राता है तो उसकी सुननी पड़ती है। पार्षद वो ताकत हैं जो मुंह काला तक कर देने तक की कुव्वत रखते हंै। पिछले दिनों आयुक्त जगदीश चौधरी का क्या हाल हुआ था, वो तो बाहर होने के कारण बच गए, वरना लिट्रेरी मुंह काला करवा बैठते। हालांकि पार्षदों ने केवल नेम प्लेट की काली की, मगर चौधरी की जो दुर्गति हुई, वह मुंह काला होने से कम नहीं थी। पिछले दिनों एक कांग्रेस पार्षद ने तो एक जेईएन को ही थप्पड़ रसीद कर दिया था। जब जेईएन ने शिकायत की और महापौर ने उस पार्षद को तलब किया तो उलटे उन्हें ही यह सुनने को मिला कि कोई अधिकारी काम नहीं करेगा तो थप्पड़ खाएगा ही और उसने फोन रख दिया।
बहरहाल, बात चल रही थी मीणा साहब की। वे एक सुलझे हुए और व्यावहारिक प्रशासनिक अधिकारी हैं। कहां ठंडा होना है और कहां गर्म, उन्हें सब कुछ पता है। उन्हें अजमेर की नब्ज भी अच्छी तरह पता है। उम्मीद है कि वे ठीक वैसे ही कामयाब होंगे, जैसे किसी जमाने में उन्हीं के नाम राशि सी. आर. चौधरी कामयाब हुए थे। सबसे बड़ी राहत तो बाकोलिया को मिलेगी, क्यों कि वे राजनारायण शर्मा की तरह बात-बात पर अटकेंगे नहीं।
राजनीति में कौन पास कौन फेल?
गुरुवार को अजमेर आए कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने नगर निगम कमल बाकोलिया व पीसीसी सदस्य महेन्द्र सिंह रलावता से अजमेर के बारे में चंद अनौपचारिक सवाल क्या पूछ लिए, वे खबरों का हिस्सा बन गए। मजे की बात ये रही कि दोनों ही ठीक जवाब नहीं दे पाए। बाकोलिया भले ही सही जवाब न दे पाए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं, क्यों कि वे अभी नए-नए हैं, मगर रलावता का हड़बड़ाकर गलत जवाब देना कुछ जंचा नहीं। वे तो राजनीतिक आंकड़ों के बादशाह हैं। उन्हें अजमेर क्या, पूरे राजस्थान के बारे में जबरदस्त जानकारी है। खैर, कभी-कभी ऐसा हो जाता है।
तिवारी के साथ हुई इस चर्चा से एक सवाल तो उठता ही है कि क्या राजनीति के लिए ऐसी किसी प्राथमिक योग्यता की जरूरत होती है? क्या राजनीति में सफलता के लिए ऐसे सवालों का जवाब आना जरूरी है कि आपके क्षेत्र में कितने मतदाता हैं या कितने बूथ हैं? अपुन का तो मानना है कि कोई जरूरी नहीं है। यदि जरूरी ही होता तो अंगूलियों के पौरों पर आंकड़े रखने वाले रलावता अजमेर के सांसद या फिर मंत्री होते। इसके विपरीत बाकोलिया की राजनीतिक जानकारी कुछ खास नहीं, फिर भी मेयर हैं। असल में पार्षद, महापौर, विधायक या सांसद बनने के लिए ऐसे किसी बौद्धिक योग्यता की जरूरत नहीं होती। अव्वल तो प्राथमिक जरूरत होती है पर्याप्त धन की, जो खुद का भी हो सकता है और फाइनेंसर्स का भी हो सकता है, जो कि बाद में वसूल लेते हैं। दूसरा जरूरी होता है कि अच्छे मैनेजरों का, बींद भले ही भौंदू हो। और तीसरा जरूरी होता है किस्मत का बुलंद होना। अपना मानना है कि किस्मत का तगड़ा होना ही सबसे ज्यादा जरूरी है। यदि राजनीति किस्मत का खेल नहीं है तो क्या यह सत्य नहीं है कि बाकोलिया से कहीं अधिक पढ़े-लिखे और अनुभवी राजनीतिज्ञ डॉ. प्रियशील हाड़ा को मात खानी पड़ी थी? क्या यह सच नहीं है कि अनिता भदेल जब पहली बार विधायक बनीं, तब उन्हें राजनीति की एबीसीडी भी नहीं आती थी और उन्होंने अपनी योग्यता के दम पर अफसरों की क्लास ले डालने में माहिर ललित भाटी को निपटा दिया था?
ऐसे में अपना तो मानना है कि तिवारी ने जिस तरह की परीक्षा ली, वैसी राजनीति में कत्तई जरूरी नहीं है। परीक्षा में वही पास होता है, जो येन-केन-प्रकारेण ज्यादा से सिर गिनवाने में कामयाब हो जाता है, न कि ज्यादा से ज्यादा सवालों के जवाब देने वाला।
चंदगीराम को हुए नुकसान का हर्जाना कौन भरेगा?
स्वायत्त शासन विभाग के सचिव ने नगर निगम के सीईओ राजनारायण शर्मा के उस फैसले को गैरकानूनी करार दे दिया है, जो उन्होंने जयपुर रोड पर स्थित चंदगीराम शो रूम पर लागू कर उसे सीज कर दिया था। जिन तर्कों को आधार मान कर सचिव ने फैसला दिया है, उससे साफ जाहिर है कि शर्मा ने द्वेषतापूर्ण कार्यवाही करते हुए अकेले इसी शो रूम को अपना शिकार बना कर भेदभाव किया। उन्होंने जानबूझकर ऐन दीपावली से पूर्व शो रूम को सीज किया, जब कि उसमें करोड़ों रुपए का माल भरा हुआ था। कार्यवाही से साफ जहिर हो रहा था कि वे कोई दुश्मनी ही निकाल रहे हैं। अकेले इसी हरकत से नगर निगम महापौर कमल बाकोलिया पर यह आरोप लगा कि उनके राज में व्यापारियों को परेशान किया जा रहा है। यह सही है कि शो रूम मालिक कहीं न कहीं त्रुटि पर था, तभी निगम को कार्यवाही का मौका मिला, मगर जिस ढंग से कार्यवाही की गई, उससे तो यह साफ हो गया था कि ऐसा समय पर जेब गरम न करने की वजह से ही किया गया होगा। वैसे भी बताते हैं कि शो रूम के मालिक थोड़ा मु_ी भींच कर ही चलते हैं, एकाएक जेब ढ़ीली नहीं करते, इसी कारण राजनारायण की नाराजगी का शिकार हो गए।
हालांकि यह सही है कि सचिव के फैसले से फर्म को तो राहत मिली है, मगर शो रूम बंद रहने के कारण जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई कौन करेगा? क्या सरकार के पास ऐसा कोई प्रावधान है कि किसी अधिकारी की मनमर्जी के कारण किसी को नुकसान हो तो उसकी भरपाई उसी अधिकारी से ही होनी चाहिए? निश्चित ही इसका जवाब खुद सचिव के पास भी नहीं होगा।