गुरुवार, 17 मार्च 2011

कहां अटक गई रासासिंह जी की कार्यकारिणी?


हालांकि शहर जिला भाजपा के नए अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने इस बार पार्टी संविधान के मुताबिक कार्यकारिणी में बढ़ाए गए पदों के मुताबिक सभी गुटों के अधिकतर नेताओं को संतुष्ट करने का फार्मूला तैयार कर लिया है, लेकिन उसके बावजूद वे कार्यकारणी की घोषणा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे संकेत हैं कि विधायकद्वय प्रो. वासुदेव देवनानी व अनिता भदेल की खींचतान के चलते रावत को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें डर है कि कहीं कार्यकारिणी की घोषणा के साथ ही विरोध के स्वर न फूट पड़ें।
अव्वल तो पार्टी हाईकमान ने छांट कर ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाया है, जिसका अपना कोई गुट नहीं, बल्कि वे दूसरे गुटों पर निर्भर हैं। हालांकि पांच बार सांसद रहने के कारण उनकी वरिष्ठता और निर्गुट होने से उनकी तटस्थता तो साबित हो रही है, लेकिन साथ ही उनकी कमजोरी भी उजागर हो रही है। वरना भला पांच बार सांसद रहे शख्स अदद अध्यक्ष पद के लिए कैसे राजी हो जाते। वे तो प्रदेश भाजपा के महामंत्री पद के योग्य हैं। मगर चूंकि इतनी वरिष्ठता के बाद भी राजनीति पर अपनी पकड़ नहीं बनाई, इस कारण इतने छोटे पद के लिए राजी होना पड़ा, वरना भूले-बिसरे गीत हो जाते। सच तो ये है कि यह पद भी उन्हें उनकी दमदार दावेदारी की वजह से नहीं बल्कि, दो की लड़ाई में तीसरे को लाभ वाले फार्मूले की वजह से मिला है। उनकी कमजोरी तो इसी से जाहिर हो गई थी। बावजूद इसके यह उम्मीद की गई कि सबको साथ लेकर चलने की योग्यता रखने, लंबे राजनीतिक अनुभव और कुशल वक्ता होने के कारण एक मजबूत संगठन देने में कामयाब होंगे। इस दिशा में उन्होंने कवायद शुरू भी कर दी थी और सभी की राय से कार्यकारिणी के अधिसंख्य नाम तय कर दिए थे, लेकिन बताया जा रहा है कि पार्टी को लंबे समय से दो धाराओं में चला रहे देवनानी व अनिता अभी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाए हैं। इसी कारण कार्यकारिणी की घोषणा में देरी हो रही है। इस देरी से संगठन को कुछ नुकसान हो या न हो, मगर इससे रावत के कमजोर अध्यक्ष होने की बात तो उजागर हो ही रही है। हां, इतना जरूर है कि जब भी उनकी कार्यकारिणी घोषित होगी, वह जरूर मजबूत होगी, क्योंकि उसमें सारे दबंग नेता शामिल किए जाने की कवायद चल रही है।

सिनोदिया हत्याकांड को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म

किशनगढ़ के कांगे्रस विधायक नाथूराम सिनोदिया के पुत्र भंवर सिनोदिया की हत्या को लेकर राज्य सरकार के भारी दबाव पर एसओजी के पूरी ताकत के साथ अनेक स्थानों पर दबिश दिए जाने के बाद भी मुख्य आरोपी बलवाराम व शहजाद का पता न लग पाने से अफवाहों का बाजार गर्म होने लगा है। इतने हाईप्रोफाइल मर्डर केस, जिसमें कि एसओजी व गुप्तचर पुलिस ने पूरी ताकत लगा रखी है और हर संभावित ठिकाने की गहन छानबीन की जा रही है, उसके बाद भी आरोपियों का कोई सुराग नहीं मिल रहा है, ऐसे में अफवाह है कि यह कहीं किसी अनहोनी की ओर तो इशारा नहीं है। कयास है कि बलवाराम के लिंक शराब तस्करों और शहजाद के लिंग हथियार सप्लायरों से होने की कथित संभावना के मद्देनजर कहीं किसी बड़े समूह ने कुछ ऐसा तो नहीं कर दिया है कि वे पुलिस के हाथ आए ही नहीं, क्योंकि इससे उनके भी लपेटे में आने के चांसेज हैं। दूसरी ओर चर्चा ये भी है कि अगर एसओजी को दोनों आरोपियों के बारे में कुछ सूत्र मिल भी गए हैं तो वह उन्हें उजागर नहीं कर रहा। अर्थात जब तक दोनों आरोपियों के संपर्कों की संलिप्तता पूरी तरह से पुख्ता नहीं हो जाती, वह पूरी एक्सरसाइज कर लेना चाहती है। इसकी वजह ये है कि थोड़ी सी भी चूक सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। कुछ सूत्रों का कहना है कि दोनों आरोपी हत्या के बाद होने वाली सख्ती से भलीभांति वाकिफ थे, इस कारण इतना दूर चले गए हैं कि एसओजी के हाथों में एकाएक आने वाले नहीं है। कुल मिला कर जैसे-जैसे विलंब हो रहा है, आशंकाएं तेज होने लगी हैं। ऐसे में यह मामला एसओजी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है, जिसे कि विशेष तवज्जो देते हुए सरकार ने पुलिस के हाथ से मामला लेकर उसे सौंपा है।