
वैसे एक बात है। बाकोलिया अच्छी तरह से जानते हैं कि दुकानों को सीज करने की कार्यवाही पूरी तरह से नियमानुसार है और उसके लिए दुकानदारों को बाकायदा दो-तीन नोटिस दिए जा चुके हैं, इस कारण कार्यवाही निरस्त तो हो नहीं सकती। निगम सीईओ वनिता श्रीवास्तव ने आदेश ही जारी कर दिए हैं। ऐसे में बाकोलिया केवल व्यापारियों को अपना पक्ष रखने देने के बहाने कार्यवाही को कुछ दिन के लिए टलवा सकते हैं।
सवाल ये उठता है कि बाकोलिया अगर कार्यवाही का ठीकरा देवनानी पर फोडऩा चाहते हैं, तो इसका मतलब ये है कि निगम की बला से तो भले ही अवैध दुकानें बनें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो देवनानी ने विधानसभा में सवाल उठाया, इस कारण कार्यवाही हो रही है, वरना निगम तो मूक दर्शक बन कर ही देखता रहा। ऐसे में बाकोलिया का पार्षदों को यह सीख देना कितना बेमानी है कि आप ट्रस्टी हैं, मानसून में भवन गिरने की घटना होती रहती है, जिससे कभी दुखद हादसा घटित हो सकता है। व्यापारी छह इंच दीवार पर ही तीन-चार मंजिला भवन बना लेते हैं। शहर के सभी अवैध भवनों को वैध कर देंगे तो काम कैसे चलेगा?
जहां तक देवनानी का सवाल है, उन्होंने जब सवाल लगाया था, तब यह ख्याल नहीं रहा होगा कि दुकानदारों पर कार्यवाही हुई तो ठीकरा उनके ऊपर फूटेगा। राजनीति में ऐसा ही होता है। जनहित का काम करते समय जिनके हितों पर कुठाराघात होता है, वे तो खिलाफ हो ही जाते हों, भले ही वे गलत हों। और जिस जनता के हित की खातिर आवाज उठाई, वह भी अहसान चुकाते हुए साथ खड़ी रहे, कुछ पक्का नहीं। यानि कि नेता दोनों ओर से मारा गया।
-तेजवानी गिरधर