सोमवार, 25 अप्रैल 2011

यातायात व्यवस्था में सुधार बेहद जरूरी

एक ओर जहां अजमेर शहर के मुख्य मार्ग सीमित और पहले से ही कम चौड़े हैं, ऐसे में लगातार बढ़ती आबादी और प्रतिदिन सड़कों पर उतरते वाहनों ने यातायात व्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर दिया है।
हालांकि यूं तो पूर्व जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता के कार्यकाल में ही प्रशासन ने समझ लिया था कि यातयात व्यवस्था को सुधारना है तो मुख्य मार्गों से अतिक्रमण हटाने होंगे और इस दिशा में बड़े पैमाने पर काम भी हुआ। सख्ती के साथ अतिक्रमण हटाए जाने के कारण श्रीमती मेहता को स्टील लेडी की उपमा तक दी गई। उनके कदमों से एकबारगी यातायात काफी सुगम हो गया था, लेकिन बाद में प्रशासन चौड़े मार्गों को कायम नहीं रख पाया। दुकानदारों ने फिर से अतिक्रमण कर लिए। परिणामस्वरूप स्थिति जस की तस हो गई। इसी बीच सड़कों पर लगातार आ रहे नए वाहनों ने हालात और भी बेकाबू कर दिए हैं।
यह एक सुखद बात है कि अजमेर शहर के ही निवासी मौजूदा संभागीय आयुक्त श्री अतुल शर्मा ने बिगड़ती यातायात व्यवस्था का विशेष नजर रखना शुरू किया है। उन्होंने पार्किंग और ट्रेफिक में सुधार के लिए कार्ययोजना भी बनाई है। स्टेशन रोड पर ओवर ब्रिज उसी कार्ययोजना का अंग है। योजना के तहत अनेक सुधारात्मक कदम उठाए जाने हैं। उसी कड़ी में सभी प्रमुख मार्गों पर दोनों और सफेद लाइनें खींची गई हैं ताकि यातायात व्यवस्था में सुधार हो। इसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आए हैं। लाइनों के बाहर खड़े होने वाहनों के चालान काटने से भी नागरिकों को सिविक सेंस आने लगा है। इसके बावजूद अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
हालांकि यह बात सही है कि पिछले बीस साल में आबादी बढऩे के साथ ही अजमेर शहर का काफी विस्तार भी हुआ है और शहर में रहने वालों का रुझान भी बाहरी कॉलोनियों की ओर बढ़ा है। इसके बावजूद मुख्य शहर में आवाजाही लगातार बढ़ती ही जा रही है। रोजाना बढ़ते जा रहे वाहनों ने शहर के इतनी रेलमपेल कर दी है, कि मुख्य मार्गों से गुजरना दूभर हो गया है। जयपुर रोड, कचहरी रोड, पृथ्वीराज मार्ग, नला बाजार, नया बाजार, दरगाह बाजार, केसरगंज और स्टेशन रोड की हालत तो बेहद खराब हो चुकी है। कहीं पर भी वाहनों की पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इसका परिणाम ये है कि रोड और संकड़े हो गए हैं और छोटी-मोटी दुर्घटनाओं में भी भारी इजाफा हुआ है।
ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि यातायात व्यवस्थित करने केलिए समग्र मास्टर प्लान बनाया जाए। उसके लिए छोटे-मोटे सुधारात्मक कदमों से आगे बढ़ कर बड़े कदम उठाने की दरकार है। मौजूदा हालात में स्टेशन रोड से जीसीए तक ओवर ब्रिज और मार्टिंडल ब्रिज से जयपुर रोड तक एलिवेटेड रोड नहीं बनाया गया तो आने वाले दिनों में स्टेशन रोड को एकतरफा मार्ग करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। रेलवे स्टेशन के बाहर तो हालत बेहद खराब है। हालांकि जल्द ही ओवर ब्रिज शुरू होने से कुछ राहत मिलेगी, लेकिन रेलवे स्टेशन का प्लेट फार्म तोपदड़ा की ओर भी बना दिया जाए तो काफी लाभ हो सकता है।
इसी प्रकार कचहरी रोड पर खादी बोर्ड के पास रेलवे के बंगलों के स्थान पर, गांधी भवन के सामने, नया बाजार में पशु चिकित्सालय भवन और मोइनिया इस्लामिया स्कूल के पास मल्टीलेवल पार्किंग प्लेस बनाने की जरूरत है। इसी प्रकार आनासागर चौपाटी से विश्राम स्थली या सिने वल्र्ड तक फ्लाई ओवर का निर्माण किया जाना चाहिए, जो कि न केवल झील की सुंदरता में चार चांद लगा देगा, अपितु यातायात भी सुगम हो जाएगा।
कुल मिला कर जब तक बड़े कदम नहीं उठाए जाते सुधार के लिए उठाए जा रहे कदम ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही रहेंगे।

सरकार के डर से न्यास ने की गुमटियां आवंटित

लोहागल रोड पर जवाहर रंगमंच के पास यातायात में बाधा बन रही गुमटियों को तोडऩे पर जो विरोध हुआ, उसे देखते हुए नगर सुधार न्यास ने आखिरकार बेदखल गुमटी धारियों को नई गुमटियां आवंटित कर दीं। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रशासन को यह अक्ल तभी आई, जब उसके कदम का विरोध किया गया।
असल में एक तो विरोध करने वालों में कांग्रेसी पार्षद मुखर थे, दूसरा सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शिलान्यास समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के आने के कारण प्रशासन जानता था कि वह मुश्किल में आएगा, इस कारण ठीक एक दिन पहले ही झटपट में नई गुमटियां आवंटित कर दीं। लेकिन इससे यह तो साबित हो ही गया कि प्रशासन को अक्ल बाद में आई कि जिन लोगों को बेदखल किया गया है, उन्हें राजी किया जाना चाहिए। यह कदम पहले भी उठाया जा सकता था, मगर उस वक्त प्रशासन का सारा ध्यान केवल गुमटियां हटाने पर था। कदाचित उसे यह भी ख्याल था कि अगर तोडऩे से पहले गुमटियां आवंटित कर भी जातीं तो भी विरोध तो होना ही था, इस कारण पहले गुमटियां तोड़ीं और बाद में विरोध होने पर नई आवंटित कर दी गईं।
इस मामले में भाजपा फिसड्डी ही साबित हुई। एक तो दोनों भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल सहित शहर जिला भाजपा गुमटियां तोड़े जाते वक्त नदारद थे। उन्होंने दूसरे दिन बयान जारी कर विरोध दर्ज करवाया। इससे भी अहम बात ये है कि यदि भाजप विधायकों को ऐतराज था तो उन्हें संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में ट्रेफिक मैनेजमेंट कमेटी में जब यह निर्णय किया जा रहा था, तब विरोध दर्ज करवाना था। उस वक्त तो वे कुछ बोले ही नहीं। विधायक श्रीमती भदेल के इस बयान पर बेहद आश्चर्य होता है कि उन्हें यह ही पता नहीं कि इस प्रकार का निर्णय बैठक में लिया गया था। सवाल ये उठता है कि बैठक में वे क्या सो रही थीं। देवनानी का कहना है कि वे बैठक के बीच में ही चले गए थे, इस कारण उन्हें पता नहीं लगा। इससे साबित होता है कि उन्होंने बाद में यह जानने की जरूरत भी नहीं समझी कि बैठक में उनकी अनुपस्थिति में क्या निर्णय हुए हैं। यदि दोनों विधायक उस वक्त यह दबाव बनाते कि जिन लोगों की गुमटियां तोड़ी जानी हैं, उनको नई गुमटियां आवंटित की जाएं, तो कदाचित यह स्थिति नहीं आती। बहरहाल, ताजा प्रकरण से यह साबित हो गया कि हमारे जनप्रतिनिधि तभी जागते हैं, जब कुछ हो जाता है और प्रशासन को भी तभी अक्ल आती है, जब विरोध के सुर तेज हो जाते हैं। रहा सवाल गुमटी धारियों का तो उनके बारे में कुछ कहना ही बेकार है, क्योंकि उनकी तो गुमटी के क्षेत्रफल से दुगने क्षेत्रफल पर अतिक्रमण करने की आदत बनी हुई है।