गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

अजमेर की सोनम उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर से सपा प्रत्याशी?

यह जानकर शायद आपको सुखद आश्चर्य होगा कि अजमेर की सोनम किन्नर आगामी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सीट संख्या 188, सुल्तानपुर से समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लडऩे जा रही हैं। यह जानकारी उन्होंने स्वयं अपने फेसबुक अकाउंट पर साझा की है। अगर आपकी स्मृति जरा शिथिल पड़ गई हो तो बता दें कि ये वही सोनम किन्नर हैं, जो कभी अजमेर में कांग्रेस के धरने-प्रदर्शनों में छायी रहती थीं। महज एक आम कार्यकर्ता के रूप में। बेबाक बयानी के लिए चर्चित और बिंदास व्यक्तित्व की सोनम की खासियत ये रही है कि वे दिल्ल में बड़े से बड़े कांग्रेसी नेता के दफ्तर में बेधड़क घुस जाया करती थीं। यहां तक कि उन्होंने कांग्रेस आलाकमान तक भी पहुंच बना ली थी। इसी के दम पर वे अजमेर नगर निगम की मनोनीति पार्षद भी बनीं, मगर बाद में इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं कांगे्रस पार्टी भी छोड़ दी, यह कह कर कि पार्टी की निष्ठा से सेवा करने के बाद भी उनकी उपेक्षा हो रही है। आपको याद होगा कि अपुन ने पिछले एक आइटम में लिखा था कि सोनम को कांग्रेस ने उनके कद के मुताबिक मनोनीत पार्षद के पद से नवाजा है, यदि वे इसके बाद भी असंतुष्ट हैं तो इसका मतलब ये है कि उन्हें किसी और बड़े पद की उम्मीद रही होगी। इस पर सोनम ने ऐतराज जाहिर किया कि आपने ऐसा कैसे लिख दिया? कद का सवाल कहां से उठ गया? कद का आकलन आपने कैसे कर लिया? कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता से कितने भी ऊंचे पद पर पहुंच सकता है। अपुन ने तो उनका कद एक पार्षद जितना की आंका, मगर खुद उनका जो अपने बारे में आकलन था, वह वाकई सही साबित हो गया।
बहरहाल, अजमेर के बाद वे अपने किन्हीं संपर्क सूत्रों के जरिए लखनऊ में भी रहीं। उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने का भी सौभाग्य हासिल हो गया। अपनी वाकपटुता के दम पर उन्होंने पर अखिलेश को प्रभावित भी किया और बताया जाता है कि उन्हें उचित मौके पर कोई ढंग का पद देने का आश्वासन दिया गया था।
आपको याद होगा कि इसी कॉलम में जब हमने अखिलेश से नजदीकी की खबर छापी तो सभी चौंके थे। यहां तक कि खुद सोनम ने भी यही कहा था कि आपको क्या पता? आपको कैसे पता लग गया कि मेरी अखिलेश यादव से क्या बात हुई है? कदाचित वे इस समयपूर्व रहस्योद्घाटन से असहज हो गई थीं, मगर अजमेरनामा का बात आखिर सही निकली। वे समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्य बन गई। हालांकि इसकी उन्होंने स्वयं अथवा पार्टी की ओर से कोई विधिवत घोषणा नहीं की है, मगर उर्स मेले के दौरान जायरीन के इस्तकबाल में उनकी पार्टी की ओर से शहरभर में लगाए गए होर्डिंग्स में उनकी फोटो के नीचे उनका पद साफ तौर पर लिखा हुआ था। एक राष्ट्रीय पार्टी, जिसकी कि उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में सरकार हो, उसकी कार्यसमिति का सदस्य होना वाकई उल्लेखनीय उपलब्धि थी। इसके बाद पिछले दिनों विधानसभा चुनावों के दौरान उन्हें लाइव टीवी शो में आम आदमी पार्टी की पैरवी करते देखा गया तो समझ में आया कि उन्होंने समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ लिया है।
बहरहाल, पिछले कुछ समय से वे लगातार मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के संपर्क में रही हैं, जिसका इजहार उनके फेसबुक अकाउंट पर साझा की गई फोटोज से होता रहा है। एक राष्ट्रीय पार्टी, जिसकी कि उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में सरकार हो, उसकी कार्यसमिति का सदस्य होना वाकई उल्लेखनीय है। और अब विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी होना भी कोई सामान्य बात नहीं है। कम से कम सोनम के लिए तो यह गौरव की बात है। बिंदास व्यक्तित्व की धनी व अति महत्वाकांक्षी सोनम छोटे-मोटे पड़ाव पर ठहरने वाली थी भी नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

अजमेर का एक भी नेता भाजपा प्रदेश पदाधिकारियों में शामिल नहीं

प्रदेश भाजपा की ताजा घोषित कार्यकारिणी में अजमेर के एक भी नेता को कोई पद नहीं दिया गया है। हालांकि पूर्व में महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल उपाध्यक्ष थीं, मगर उन्हें एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले के तहत हटा दिया गया है। अब एक भी पदाधिकारी नहीं रहा। संगठन के लिहाज से यह वाकई गंभीर है। मगर समझा जाता है कि इसकी वजह ये है कि सरकार में अजमेर के नेतृत्व को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जा चुका है। जिले के सात विधायकों में से दो राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल व एक संसदीय सचिव सुरेश रावत पहले से थे, शत्रुघ्न गौतम को भी संसदीय सचिव बना दिया गया। उनके अतिरिक्त राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकारण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत व राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष प्रो. सांवरलाल जाट हैं। संभवत: पहली बार सरकारी स्तर पर अजमेर को इतना राजनीतिक महत्व मिला है। शायद इसी कारण प्रदेश संगठन में किसी को एडजस्ट करने की जरूरत नहीं समझी गई।

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

अपेक्षित पद नहीं मिल पाया शत्रुघ्न गौतम को

केकड़ी के भाजपा विधायक शत्रुघ्न गौतम को अपेक्षित पद नहीं मिल पाया। वे सरकार के गठन के समय से ही मंत्री बनना चाहते थे। इसके पीछे तर्क ये था कि उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज रघु शर्मा को हराया। इसके अतिरिक्त ब्राह्मण लॉबी ने भी पूरी ताकत लगा दी। जैसे ही मंत्रीमंडल की विस्तार होने का मौका आया, उन्होंने एडी चोटी का जोर लगा दिया। अफवाह तो फैल भी गई कि उनको मंत्री बनाया जा रहा है। कानाफूसी है कि वे मंत्री बनने के करीब पहुंच भी चुके थे, मगर अजमेर जिले के दो मंत्रियों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल में से किसी एक को हटाया नहीं जा सका, इस कारण संतुष्ट करने के लिए उन्हें संसदीय सचिव बना दिया गया। स्वाभाविक है कि वे पूर्णत: खुश नहीं होंगे, मगर राज्य मंत्री स्तर की सुविधाएं पा कर संतोष करना ही होगा।
बहरहाल, अजमेर जिले के सात भाजपा विधायकों में से चार राज्य मंत्री स्तर के हो गए हैं। जिले के लिए यह सुकून की बात है, मगर अफसोस   कि एक भी केबीनेट मंत्री नहीं। जो थे, यानि कि जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वा कर हटा दिया गया। कुछ समय केन्द्र में राज्य मंत्री रहे, मगर वहां से भी हटा दिया गया। अब राज्य में किसान आयोग के अध्यक्ष हैं, मगर वो रुतबा कहां, जो एक केबीनेट मंत्री का होता है।

श्रीचंद कृपलानी बाबत अफवाह सही निकली

जैसे ही राजस्थान मंत्रीमंडल के विस्तार की सुगबुगाहट शुरू हुई, सोशल मीडिया पर यह अफवाह फैली कि चित्तौड़ के विधायक श्रीचंद कृपलानी को मंत्री बनाया जा रहा है, मगर जानकार लोगों ने इसे सिरे से नकार दिया। कदाचित उनकी सोच यह रही कि अजमेर उत्तर के विधायक व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी पर संघ का वरदहस्त है, इस कारण उन्हें हटाया नहीं जा पाएगा और सिंधी कोटे से दूसरा मंत्री बन नहीं सकेगा। यह सोच गलत साबित हुई।
हालांकि इस मामले में एक किंतु ये है कि देवनानी सिंधी कोटे के तहत अजमेर उत्तर से लड़वाए जाते हैं, चूंकि यहां सिंधी वोटों का बाहुल्य है, जबकि कृपलानी के साथ ऐसा नहीं है। चित्तौड़ में उनका सिंधी जातीय जनाधार कुछ खास नहीं है और वे पार्टी सिंबल व अपने बलबूते ही जीतते हैं। ज्ञातव्य है कि वे इस बार भाजपा सरकार के गठन के वक्त भी मंत्री पद के सशक्त दावेदार थे, मगर सिंधी कोटे में देवनानी का ही नंबर आया। बाद में उनको राजी करने के लिए चितौड़ नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया गया, मगर उन्होंने यह पद स्वीकार नहीं किया और मंत्री बनने के लिए दबाव बनाए रखा। आखिरकार वे कामयाब हो गए। कामयाब भी ऐसे कि सीधे केबीनेट मंत्री बने। वो भी स्वायत्त शासन विभाग के, जो कि एक महत्वपूर्ण महकमा है। कुल मिला कर सिंधी समुदाय में वे देवनानी से ज्यादा ताकतवर हो गए हैं।

बड़ी चर्चा थी देवनानी व भदेल के हटने की

राजस्थान मंत्रीमंडल के विस्तार से पहले यह चर्चा खूब थी कि शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल को हटाया जा रहा है। इस बात के पक्ष में दलील ये दी जा रही थी कि किशनगढ़ के विधायक भागीरथ चौधरी व केकड़ी के विधायक शत्रुघ्न गौतम को जयपुर बुलाया गया है और उनको मंत्री पद से नवाजा जा रहा है। जैसे ही इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर मंत्रीमंडल विस्तार की खबरें आने लगीं, हर एक की नजर इसी चर्चा पर भी थी। जैसे ही श्रीचंद कृपलानी को मंत्री बनाए जाने की खबर आई, हर एक की जुबान पर था कि प्रो. देवनानी की छुट्टी पक्की, क्योंकि सिंधी कोटे से एक ही मंत्री होने का अनुमान था, मगर जल्द ही अफवाह झूठी साबित हो गई।
असल में अजमेर के दोनों मंत्रियों के हटने की चर्चा पिछले काफी दिन से चल रही थी। कई बार प्रिंट मीडिया में भी छपा। इसके पीछे दलील ये दी जा रही थी कि दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा होने का नुकसान भाजपा संगठन को हो रहा है। हालांकि साथ ही यह चर्चा भी थी कि प्रो. देवनानी को हटाना आसान काम नहीं है, क्योंकि वे संघ लॉबी में शीर्ष के नेता हैं। उधर श्रीमती भदेल में पक्ष में तर्क ये था कि वसुंधरा ने खुद की पसंद से उन्हें देवनानी को बैलेंस करने के लिए बनाया है, इस कारण उन्हें नहीं हटाया जाएगा। यदि एक हटा तो दूसरा भी हटेगा। मगर मंत्रीमंडल विस्तार के साथ ही यह साफ हो गया है कि अब वे अपना कार्यकाल पूरा करेंगे।