शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

किशनगढ़ में क्या नए चेहरों पर दाव खेलेंगे दोनों दल?

यूं तो किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के पास सबसे दमदार दावेदार मौजूदा विधायक नाथूराम सिनोदिया व भाजपा के पास पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी ही हैं, मगर दोनों ही दलों में नए चेहरे भी मौका दिए जाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। यानि कि पिछले दो चुनाव से लगातार एक-दूसरे के सामने भिड़ चुके और एक-एक बार जीत चुके सिनोदिया व चौधरी की अपने-अपने दल में एकल दावेदारी अब कायम नहीं रह गई है।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है कि जाट समाज के ही पूर्व देहात जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री सी. पी. जोशी के करीबी नरेन्द्र भादू उभर कर आए हैं। इसी प्रकार युवा कांग्रेस के लोकसभा अध्यक्ष एडवोकेट राकेश शर्मा ने गत 10 सितम्बर को कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित कर यह जता दिया कि वे युवाओं के एक बड़े वर्ग के चहेते हैं। इनके अतिरिक्त अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के करीबी राजू गुप्ता भी ताल ठोकने के मूड में हैं। इसके अतिरिक्त सीमा चौधरी, पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी, प्रदीप चौधरी, श्रवण गुर्जर, जसराज, छगनलाल, नरेश चौधरी आदि भी दावेदारी कर रहे हैं। सिनोदिया की एकल दावेदारी इस वजह से कमजोर हुई है क्योंकि पिछले दिनों साक्षात्कार लेने आई मास्टर भंवर लाल मेघवाल नीत कमेटी के सामने छगन लाल चौधरी, नरेश चौधरी, नरेंद्र भादू तथा रामस्वरूप चौधरी ने उनकी मुखालफत की। बावजूद इसके आज भी सबसे मजबूत दावेदार सिनोदिया ही हैं, जिन्होंने पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सभा में भीड़ जुटा कर जता दिया कि उनका कोई सानी नहीं है। ठेठ देहाती अंदाज होने के कारण गांवों में वे काफी लोकप्रिय हैं। आम मतदाताओं को आसानी से मिल जाने के कारण भी उन्हें पसंद किया जाता है। देहात जिला अध्यक्ष होने के कारण संगठन पर भी पूरी पकड़ है, लेकिन लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में आने के कारण अनेक मतदाताओं का पूर्वाग्रह नुकसान पहुंचा सकता है।
जहां तक भाजपा का सवाल है पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी पर प्रत्यक्ष रूप से कोई बड़ा आरोप नहीं है। सिनोदिया के मुकाबले किशनगढ़ शहर में व्यापारियों से उनके संपर्क को सकारात्मक माना जाता है। उनकी दावेदारी पर यूं तो कोई विशेष प्रश्नचिन्ह नहीं, मगर उनके लिए सबसे बड़ा खतरा ये है कि पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को यदि अपनी नसीराबाद सीट मुफीद नहीं लगी तो वे ऐन वक्त पर किशनगढ़ में टपक सकते हैं। आपको याद होगा कि पिछली बार परिसीमन के बाद किशनगढ़ क्षेत्र का जाट बहुल इलाका जहां पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में शामिल हो गया, वहीं भिनाय विधानसभा क्षेत्र का जाट बहुल इलाका शामिल हो जाने के कारण जाट का इस सीट पर असर बढ़ गया था। किशनगढ़ पर उनकी कितनी गहरी नजर है, इसका अंदाजा इसी बात ये हो जाता है कि पिछले दिनों जब यहां युवा जाग्रति रैली आयोजित की गई तो उसमें जाट को भी विशेष रूप से बुलाया गया, ये अलग बात है कि ऐन वक्त पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे ने उन्हें बुलवा लिया।
इसके अतिरिक्त पूर्व सभापति सुरेश टाक भी उभर कर आए हैं। उनकी कितनी अहमियत है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों के लिए पार्टी की ओर से चुनाव खर्च जुटाने की जिम्मेदारी टाक को दी गई। आम तौर पर फार्मूला यही था है कि यह जिम्मेदारी विधायक अथवा पिछले चुनाव में हारे पार्टी प्रत्याशी को दी जानी थी, मगर इस फार्मूले में हेरफेर हुई। भाजपा नेता और राजनीति के जानकार इस माथापच्ची में लगे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है। चंदे की जिम्मेदारी टाक को दिए जाने से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या इसको टिकट वितरण से जोड़ कर देखा जा सकता है? स्वाभाविक है कि चौधरी को जिम्मा नहीं दिया जाने पर यह सवाल उठा था कि कहीं उन्हें इसके माध्यम से कोई इशारा तो नहीं दिया गया है? अगर उनके मन में यह संदेह उत्पन्न होता है कि कहीं उनकी टिकट की दावेदारी में कोई बाधा तो नहीं है, उचित ही है। टाक को अनपेक्षित जिम्मेदारी दिए जाने से उनके मन में टिकट मिलने की आस भी जागे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
विधानसभा क्षेत्र के इलाके
इस विधानसभा क्षेत्र में किशनगढ़ नगरपालिका के सभी वार्ड, भिनाय पंचायत समिति के बरोल, भगवंतपुरा, डबरेला, सिलोरा पंचायत समिति के खातोली, बनरना, बांदरसिंदरी, बुहारू, काढ़ा, मालियों की बाड़ी, सिनोदिया, सिलोरा, टिकावड़ा, हरमाड़ा, पाटन, रलावता, सरगांव, सुरसुरा, सलेमाबाद, डीडवाड़ा, त्योद, नलू, अरांई पंचायत समिति के भामोलाव, ढसूक, झीरोता, बोराड़ा, कासीर, कालानाडा, कटसूरा, मंडावरिया, मनोहरपुरा, सिरोंज, भोगादीत, सांदोलिया, दादिया, देवपुरी, अरांई, आकोडिय़ा, गाठियाना, लाम्बा गांव शामिल हैं।
जातीय समीकरण
तकरीबन 2 लाख 24 हजार 92 मतदाताओं वाले इस इलाके में जाट 43 हजार, अनुसूचित जाति 27 हजार, महाजन 25 हजार, गुर्जर 23 हजार, राजपूत 20 हजार, ब्राह्मण 19 हजार, मुस्लिम 18 हजार, माली 5 हजार, रावत 3 हजार व शेष अन्य हैं। यहां पिछले कई चुनाव से जाट व गैर जाट का मुद्दा छाया रहता है। यहां जाट बड़ी तादात में होने के कारण वे निर्णायक भूमिका में रहते हैं। उधर राजपूत, महाजन व अनुसूचित जाति के मतदाता गैर जाटवाद के मुद्दे पर अहम किरदार निभा सकते हैं।
पिछले चार चुनाव परिणाम
सन् 2008 में कांग्रेस के नाथूराम सिनोदिया ने भाजपा के भागीरथ चौधरी को 9724 मतों से पराजित किया। सिनोदिया को 65 हजार 42 व चौधरी को 55 हजार 318 वोट मिले। बसपा के अवधेश कुमार को 3 हजार 3, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रामनिवास को 3 हजार 349, राजस्थान विकास पार्टी के नाहर सिंह को 3 हजार 2 सौ 3, निर्दलीय धर्मराज रेगर को 366, सरदार को 2 हजार 81, सत्यनारायण सेन को 855, श्योराम को 668 व तेजपाल चौधरी को 689 वोट मिले।
सन् 2003 में भाजपा के भागीरथ चौधरी (52 हजार 673) ने कांग्रेस के नाथूराम सिनोदिया (48 हजार 447) को 4 हजार 226 मतों से हराया। एनसीपी के रतनलाल सारस्वत को 11 हजार 79 वोट मिले।
सन् 1998 में कांग्रेस के नाथूराम सिनोदिया (54 हजार 763) ने भाजपा के जगजीत सिंह (42 हजार 205) को 12 हजार 558 मतों से हराया।
सन् 1993 में कांग्रेस के जगदीप धनखड़  (41 हजार 444) ने भाजपा के जगजीत सिंह (39 हजार 486) को 1 हजार 958 मतों से हराया। कांग्रेस के बागी निर्दलीय सदर सुबराती को 9 हजार 19 वोट मिले।
अब तक के विधायक
1952 - चांदमल, कांग्रेस
1952 उपचुनाव-जयनारायण व्यास, कांग्रेस
1957 - पुरुषोत्तम लाल, कांग्रेस
1962 - बालचंद, निर्दलीय
1967 - सुमेर सिंह, निर्दलीय
1972 - प्रतापसिंह, निर्दलीय
1977 - करतार सिंह, जनता पार्टी
1980 - केसरीचंद चौधरी, कांग्रेस
1985 - जगजीत सिंह, भाजपा
1990 - जगजीत सिंह, भाजपा
1993 -जगदीप धनखड़, कांग्रेस
1998 - नाथूराम सिनोदिया, कांगे्रस
2003 - भागीरथ चौधरी, भाजपा
2008 - नाथूराम सिनोदिया, कांग्रेस

-तेजवानी गिरधर, 7742067000
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