शनिवार, 28 दिसंबर 2019

क्या हाड़ा देवनानी व भदेल की छाया से मुक्त रह पाएंगे?

अजमेर। यह ठीक है कि भाजपा हाईकमान ने पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के चहेते रमेश सोनी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की पसंद आनंद सिंह राजावत को दरकिनार करते हुए डॉ. प्रियशील हाड़ा को शहर भाजपा अध्यक्ष बना कर दोनों क्षत्रपों को झटका दिया है, मगर अहस सवाल ये है कि क्या हाड़ा इन दोनों की छाया से मुक्त रह पाएंगे? अब तक का अनुभवे तो यही बताता है कि एक भी पूर्व अध्यक्ष इन दोनों के वजूद से इतर अपना वजूद खड़ा नहीं कर पाया है। दिलचस्प बात ये है कि यह स्थिति केडर बेस पार्टी की है।
चाहे पूर्व एडीए चेयरमेन शिव शंकर हेड़ा के दो कार्यकाल हों, या फिर पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत व अरविंद यादव का कार्यकाल, पिछले सोलह साल से स्थानीय भाजपा में देवनानी व भदेल का ही वर्चस्व रहा है। ऐसे में यह सवाल जायज है कि क्या हाड़ा इन दोनों के आभा मंडल से अलग अपना ओरा खड़ा कर पाएंगे?
असल में देवनानी व भदेल लगातार चार बार जीते हुए विधायक व राज्य मंत्री रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं में अधिसंख्य कहीं न कहीं इनके कृपा पात्र रहे हैं। इनकी अपनी फेन फॉलोइंग है। पार्टी अध्यक्षों की अपनी कोई खास टीम नहीं रही है। यही वजह है कि अध्यक्ष कोई भी हो शहर भाजपा पर इन दोनों का ही कब्जा रहा है। बेशक हेड़ा ने पिछले कार्यकाल में अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश की, मगर वे कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में शहर भाजपा की कमान भले ही हाड़ा के हाथ में हो, मगर यह संशय बना ही हुआ है कि क्या वे देवनानी व भदेल के प्रभाव से मुक्त रह पाएंगे।
यह प्रत्यक्ष नजर आता है कि भले ही हाड़ा की नियुक्ति से देवनानी व भदेल को झटका लगा है। देवनानी को कुछ ज्यादा ही लगा है, क्योंकि उनके बारे में यह स्थापित कयास था कि वे अपने चहेते रमेश सोनी को अध्यक्ष बनवाने में कामयाब हो जाएंगे। जरा और डीप में जाएं तो ऐसा लगता है कि देवनानी इतने चतुर हैं कि हाड़ा का झुकाव अपनी ओर करवा ही लेंगे। इस प्रकार का परसेप्शन पूर्व अध्यक्ष अरविंद यादव के बारे में भी था। यह सही है कि हाड़ा ने अध्यक्ष पद के चुनाव में श्रीमती भदेल के मोहरे आनंद सिंह राजावत का प्रस्तावक बन कर ऐसा दर्शाया कि वे भी भदेल खेमे के हैं, लेकिन अब जब कि वे खुद ही अध्यक्ष बन बैठे हैं तो भदेल से उनकी नाइत्तफाकी हो ही जाएगी। कारण कि भाजपा में भदेल के मुकाबले दूसरा कोली नेता उठ कर आ गया है। भदेल को इससे परेशानी होगी। ज्ञातव्य है कि हाड़ा जब मेयर का चुनाव लड़े थे, तब भदेल पर निष्क्रियता का आरोप लगा था। अपनी हार से आहत हाड़ा के मन में यह फांस पड़ी हुई होगी। इसका फायदा देवनानी उठाएंगे। वे भदेल के खिलाफ हाड़ा को सपोर्ट करेंगे। और आखिरकार हाड़ा चाहे-अनचाहे देवनानी की ओर झुक जाएंगे। यानि कि देवनानी का अजमेर उत्तर में तो कब्जा है, अब हाड़ा के जरिए दक्षिण पर भी कब्जा हो जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
77420670
tejwanig@gmail.com

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

हाड़ा के अध्यक्ष बनने से बिगड़ा भाजपा का जातीय समीकरण

अजमेर। बेशक भाजपा हाईकमान ने पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के चहेते रमेश सोनी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की पसंद आनंद सिंह राजावत को दरकिनार करते हुए डॉ. प्रियशील हाड़ा को शहर भाजपा अध्यक्ष बना कर दोनों क्षत्रपों को झटका दिया है और गुजबाजी को खत्म करने की कोशिश की है, लेकिन इससे शहर में भाजपा का जातीय समीकरण बिगड़ गया है। शहर की एक विधायक की सीट पर सिंधी के रूप में देवनानी का कब्जा है तो दूसरी सीट पर कोली जाति की श्रीमती भदेल काबिज हैं। तीसरे महत्वपूर्ण पद मेयर की सीट भी अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है। वर्तमान में मेयर की सामान्य सीट पर ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत बैठे हुए हैं और डिप्टी मेयर की सीट पर भी ओबीसी के संपत सांखला को बैठा रखा है। ऐसे में सामान्य वर्ग को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है। जिला प्रमुख का पद सामान्य के लिए आरक्षित है, मगर उसे शहर में शामिल नहीं माना जा सकता।
हाड़ा की नियुक्ति एक व्यक्ति के रूप में एक बेहतर निर्णय के रूप में मानी जा रही है, मगर उनकी छवि एक जुझारू नेता की नहीं है, जिसकी कि विपक्ष में बैठी भाजपा को जरूरत है। वे एक प्राइवेट डॉक्टर हैं। यही उनकी आजीविका का साधन है। ऐसे में वे विपक्ष में रूप में आए दिन विरोध प्रदर्शन आदि के लिए पूरा समय निकाल पाएंगे, इसमें तनिक संदेह है। हां, इतना जरूर है कि वे तीसरे विकल्प के रूप में सामने आए हैं, इस कारण देवनानी व भदेल के दो गुटों में बंटी पार्टी में वे संतुलन बैठा सकते हैं।
ताजा हालात में कुछ लोग उन्हें अनिता भदेल के नजदीक इसलिए मान रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अनिता भदेल की पसंद आनंद सिंह राजावत के नाम का प्रस्तावक बनना मंजूर किया, मगर उन्हीं को अध्यक्ष बना दिए जाने से अनिता को नागवार गुजरा होगा।भदेल के लिए यह नियुक्ति कुछ तकलीफदेह हो सकती है, क्योंकि अब तक भाजपा में कोली समाज में एक मात्र बड़ी नेता हैं, अब एक और नेता पावर सेंटर बन जाएगा। ज्ञातव्य है कि जब हाड़ा मेयर का चुनाव हारे थे, तब यही परसेप्शन बना था कि उनकी अरुचि के कारण ही हाड़ा हारे हैं। ऐसा इसलिए कि कोई भी नेता अपनी ही जाति में किसी और को आगे बढ़ता हुआ देखना पसंद नहीं कर सकता।
कुछ लोगों का मानना है कि अनिता की तुलना में देवनानी को ज्यादा बड़ा झटका लगा है। यह माना जा रहा था कि वे सोनी को नियुक्त करवाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाए हुए थे। येन-केन-प्रकारेन सोनी के ही अध्यक्ष बनने की संभावना जताई जा रही थी। खुद सोनी भी आश्वस्त थे।
हाड़ा के अध्यक्ष बनने से पार्षद जे. के. शर्मा को भी झटका लगा है। सोनी व राजावत की लड़ाई में उनका नंबर आता दिख रहा था। एक पार्षद के रूप में उन्होंने साफ सुथरी छवि बना रखी है। वे मेयर पद के भी दावेदार रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये कि उन पर भाजपा के दिग्गज राष्ट्रीय नेता भूपेन्द्र सिंह यादव का हाथ है, फिर भी उनको चांस नहीं मिल पाया।
हाड़ा के शहर अध्यक्ष बनने का एक साइड इफैक्ट ये है कि अब उनकी पत्नी की मेयर पद की संभावित दावेदारी कमजोर हो जाएगी। चूंकि शहर अध्यक्ष कोली व विधायक भी कोली जाति से है, ऐसे में भाजपा हाईकमान पर ये दबाव रहेगा कि वे किसी और अनुसूचित जाति की महिला पर दाव खेले। ऐसे में जिला प्रमुख श्रीमती वंदना नोगिया उभर कर आ सकती हैं। नए समीकरण से पहले भी उनकी दावेदारी मजबूत मानी जाती रही है। हालांकि पूर्व सभापति श्रीमती सरोज जाटव भी दावेदार हैं, मगर अपेक्षाकृत कमजोर। उनके अतिरिक्त पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा के परिवार की किसी महिला की दावेदारी मानी जा रही है।
स्वयं हाड़ा के लिए उनकी नियुक्ति राजनीति का एक सुखद मोड़ है। एक तरह से उनका यह राजनीतिक नवोदय है। मेयर के चुनाव हारने के बाद भले ही वे शहर महामंत्री बने, मगर पहली पंक्ति के नेताओं में उनकी गिनती नहीं थी। उनका नाम अध्यक्ष पद की  दावेदारी में कहीं भी नहीं था। वे तो अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने गए आनंद सिंह राजावत के प्रस्तावक थे। एक प्रस्तावक को ही अध्यक्ष बना दिया जाना वाकई चौंकाने वाला है।
कुछ जानकारों का मानना है कि हाड़ा की नियुक्ति अनुसूचित जाति वर्ग को खुश करने के लिए की गई है, ताकि उसका लाभ मेयर के चुनाव में मिले।
राजनीति की बारीक समझ रखने वाले मानते हैं कि आज भले ही श्रीमती भदेल अपने आप को मेयर चुनाव से अलग कर रही हैं, मगर आखिर में वे ही पहले नंबर पर होंगी। उनके मुकाबले दूसरा बेहतर प्रत्याशी भाजपा के पास है भी नहीं। साधन-संपन्नता व कार्यकर्ताओं के नेटवर्क के हिसाब से। वे जानती हैं कि एक विपक्षी विधायक की तुलना में मेयर बनना ज्यादा अच्छा है। देखते हैं आगे-आगे होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर
77420670
tejwanig@gmail.com

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल पर कितनी विह्वल होगी स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा की आत्मा

गुरुवार, 19 दिसंबर। आज से ठीक चार साल पहले अजमेर के एक ऐसे लाल को काल के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया, जिसने स्मार्ट सिटी बनने वाले अजमेर को एक सपना दिया था। वह सपना कितना कीमती था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनको उस सपने के लिए बाकायदा पुरस्कृत किया गया।
आपको याद होगा कि मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मिल कर अजमेर सहित दो शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी। इसी सिलसिले में 2 अक्टूबर 2015 को अजमेर नगर निगम ने ऑन लाइन सुझाव मांगे थे। तब शहर के जाने-माने वकील व पत्रकार स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा ने दस पेज का एक सुझाव सौंपा था कि कैसे इस पुरानी बसावट वाले शहर को स्मार्ट किया जा सकता है। उनके सुझाव को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए निगम ने 29 नवंबर 2015 को उन्हें एक समारोह में प्रमाण पत्र के साथ पंद्रह हजार रुपए का नकद पुरस्कार दिया, जिसमें तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व आयुक्त एच. गुईटे मौजूद थे। समझा जा सकता है कि उन्होंने कितने महत्वपूर्ण सुझाव दिए होंगे। आज जब हम स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल को देखते हैं तो स्वर्गीय श्री हाड़ा की पांचवीं पुण्यतिथी पर बरबस उनकी याद आ जाती है। अगर वे हयात होते तो अपनी आंखों से देखते कि उन्होंने जो सपना नगर निगम को सौंपा था, उसका हश्र क्या हो रहा है? बेशक उनकी आत्मा विह्वल होगी कि उन्होंने जो सुझाव दिए, जिन्हें कि सराहा भी गया, उस पर अमल में कितनी कोताही बरती जा रही है।
किसी समारोह में पति के साथ श्रीमती चांदनी हाडा
प्रसंगवश बता दें कि स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा पेशे से मूलत: वकील थे, मगर पत्रकारिता में भी उनको महारत हासिल थी। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में कोर्ट की रिपोर्टिंग की। बाद में दैनिक भास्कर से जुड़े, जहां उनके भीतर का पत्रकार व लेखक पूरी तरह से पुष्पित-पल्लवित हुआ। उन्होंने पत्रकारिता में आए नए युवक-युवतियों को तराश कर परफैक्ट पत्रकार बनाया। वे एक संपूर्ण संपादक थे, जिनमें भाषा का पूर्ण ज्ञान था, समाचार व पत्रकारिता के सभी अंगों की गहरी समझ थी। अजयमेरू प्रेस क्लब का संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। उनकी अंत्येष्टि के समय पार्थिव शरीर से उठती लपटों ने मेरे जेहन में यह सवाल गहरे घोंप दिया कि क्या कोई कड़ी मेहनत व लगन से किसी क्षेत्र में इसलिए पारंगत होता है कि वह एक दिन इसी प्रकार आग की लपटों के साथ अनंत में विलीन हो जाएगा? खुदा से यही शिकवा कि यह कैसा निजाम है, आदमी द्वारा हासिल इल्म और अहसास उसी के साथ चले जाते हैं। वे अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर मुझ सहित अनेक लोगों के जेहन में जिंदा हैं। चलो, वे बहुत सारा अर्जित ज्ञान अपने साथ ले गए, लेकिन संतोष है कि नगर निगम को अपना सपना जरूर सौंप गए। मगर साथ ही अफसोस भी है कि उस सपने को पूरा होने पर नौ दिन चले, अढ़ाई कोस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
स्वर्गीय श्री हाड़ा की पुण्यतिथी पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चांदनी हाड़ा के अहसासात को जानने की कोशिश की तो उन्होंने कुछ इस तरह अपना अनुभव बांटा:- उन्होंने पुरस्कार स्वरूप मिली राशि से अपने पिता, बहिन, पत्नी, पुत्र व छोटे भाई के दोनों बच्चों को रणथंभोर की यात्रा करवाई। उन्होंने करीब आठ सौ सीढिय़ां चढ़ कर गणेश जी की प्रतिमा से क्या कुछ मांगा था, समझ में नहीं आया। मगर उसका परिणाम ये हुआ कि पिताश्री का गणेश जी पर से विश्वास उठ गया। आज वे कहते हैं कि मैं गणेश जी को नहीं मानता। स्वाभाविक है कि जिस पिता ने वृद्धावस्था में अपने जवान बेटे खोया होगा, उसकी आस्था तो टूटेगी ही। मेरे व परिवार के सपने तो विधाता ने छीन लिए मगर मेरे पति को असली श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके सपने को हम अजमेर वासी साकार होता हुआ देखें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग बाईस
श्री विकास छाबड़ा
छोटे समाचार पत्रों के संचालकों में श्री विकास छाबड़ा आज एक जाना-पहचाना नाम है। एक पत्रकार के रूप में उनकी सोच पूरी तरह से सकारात्मक है। बेशक सिस्टम में खामी पर पूरा प्रहार करते हैं, मगर व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखने से सदैव परहेज रखते हैं। पीत पत्रकारिता से उन्हें सख्त नफरत है। यही प्रवृति उन्हें साफ सुथरे पत्रकारों की श्रेणी में खड़ा करती है। इसी आधार पर वे किशनगढ़ उपखंड व अजमेर जिला स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं।
अजमेर जिले में छोटे समाचार पत्रों की दुनिया में श्री विकास छाबड़ा संभवत: इकलौते पत्रकार हैं, जो अपने पाक्षिक समाचार पत्र रोशन भारत को दस साल से न केवल नियमित प्रकाशित कर रहे हैं, अपितु उसकी विषय वस्तु पर पूरा ध्यान देते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि उनका हर अंक बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से पठनीय बनाया जाता है। उसमें आपको कॉपी-पेस्ट अथवा इंटरनेट से मैटर उठा कर पेज भरने की प्रवृत्ति कभी नहीं पाएंगे। मल्टी कलर प्रिटिंग के साथ उम्दा क्वालिटी का पेपर काम में लेते हैं।  जाहिर तौर पर छपाई महंगी होती होगी, मगर उसकी भरपाई विज्ञापनों से भलीभांति कर लेते हैं। उनका सारा ध्यान जनसमस्याओं व ज्वलंत विषयों पर रहता ही है, साथ ही वर्तमान भौतिक युग के अनुसार कमर्शियल आस्पेक्ट का पूरा ख्याल रखते हैं, जो कि किसी भी समाचार पत्र को जिंदा रहने के लिए बेहद जरूरी होता है। फ्री डिस्ट्रीब्यूशन का कोई सिस्टम शुरू से ही नहीं रखा गया। उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण व सरकारी महकमों को छोड़ कर सभी पेड कस्टमर बनाए हैं। अखबार को प्राण वायु देने के लिए मार्केटिंग पर पूरा फोकस रखा व इसके लिए टीम भी बना रखी है।
श्री विकास छाबड़ा ने दैनिक भास्कर की सरक्यूलेशन एजेंसी से पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया। उसके बाद भास्कर की एड एजेंसी को बहुत खूब चलाई। इसी दरमियां दैनिक भास्कर का किशनगढ़ ब्यूरो ऑफिस इनके बिल्डिंग परिसर में खुल गया। उन्हें अखबार में लिखने का शौक तो जब ग्यारहवीं क्लास में थे, तभी लग गया। उस वक्त नवज्योति में मंच हमारा आवाज आपकी नाम से पाठकों के लिए कॉलम में वे शहर की समस्याओं को उठाया करते थे। उन्होंने सीकर से प्रकाशित दैनिक उद्योग आस पास व उसके बाद अजमेर से प्रकाशित सरेराह अखबार में भी बतौर ब्यूरो चीफ काम किया। उसके बाद खुद का अखबार रोशन भारत शुरू किया।
इससे पूर्व श्री छाबड़ा ने किशनगढ़ दर्पण, मकराना दर्पण, पीसांगन दर्पण, रूपनगढ़ दर्पण, मार्बल डायरेक्ट्री जैसी पुस्तकों के साथ किशनगढ़ जैन दिग्दर्शिका, किशनगढ़ अग्रवाल दिग्दर्शिका, शासन प्रशासन पुलिस सम्पर्क सूत्र दिग्दर्शिका, जैन दर्पण आदि कई पुस्तकों का प्रकाशन किया है।
श्री छाबड़ा ने रोशन भारत के अजमेर संस्करण के साथ ही जयपुर संस्करण का प्रकाशन भी शुरू किया। अजमेर संस्करण का विमोचन पिंक सिटी प्रेस क्लब जयपुर में किया तो जयपुर संस्करण का विमोचन काचरिया पीठ के पीठाधीश्वर जयकृष्ण जी देवाचार्य के सान्निध्य में किशनगढ़ के होटल हेलीमेक्स में किया गया। उनकी एक पुस्तक किशनगढ़ दर्पण के एक अंक का विमोचन में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने किया।
पाठकों से बेहतर जुड़ाव के लिए फंडे भी इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में रोशन भारत ने अपने पाठकों के लिए जीतो इनाम की शानदार क्विज शुरू की। किशनगढ़ के आर.के. कम्यूनिटी सेन्टर में हाल ही आयोजित पुस्कार वितरण समारोह का स्तर इतना भव्य रखा गया कि लोग इसे किशनगढ़ का नं. 1 प्रोग्राम का दर्जा दे रहे है।
श्री छाबड़ा केवल स्वयं काम करने में विश्वास न करके स्टॉफ व टीम से काम करवाना ज्यादा बेहतर समझते है। उनका मानना है कि जो काम पैसे से हो सकता है, उसके लिए खुद मत उलझो। अपनी शक्ति और बेहतर करने में लगाओ। यही उनकी सफलता का राज प्रतीत होता है। एक पाक्षिक समाचार के सफलतम प्रकाशन के जरिए शानदार लिविंग स्टैंडर्ड मैन्टेन करना कोई उनसे सीखे।

-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 7 नवंबर 2019

एक कदम ने जीवन की दिशा बदल दी

स्वाभिमान बडी कीमत वसूल करता है

यह शृंखला इसलिए आरंभ की है, ताकि वह सब कुछ जो मेरे जेहन में दफन है, वह आपको बांट दूं, ताकि जब मैं इस फानी दुनिया से अलविदा करूं तो इन यादों का बोझ साथ न रहे।

बात सन् अगस्त 1983 की है। मेरे पिताश्री तत्कालीन वरिष्ठ जिला शिक्षा अधिकारी स्वर्गीय श्री टी. सी. तेजवानी के नागौर में निधन के बाद पूरा परिवार अपने पैतृक शहर अजमेर में लौट आया। यहां किसी अखबार में नौकरी पाने के मकसद से नागौर के सूचना व जनसंपर्क अधिकारी श्री के. बी. एल. माथुर से एक सिफारिशी पत्र अजमेर के सूचना व जनसंपर्क अधिकारी श्री देवी सिंह नरूका के नाम ले कर आया। उन्होंने मुझे तब शीघ्र प्रकाशित होने जा रहे दैनिक रोजमेल के स्टेशन रोड, मार्टिंडल ब्रिज के पास स्थित दफ्तर में स्थानीय संपादकीय प्रभारी स्वर्गीय श्री राजनारायण बरनवाल के पास भेजा। उन्होंने कहा कि अखबार शुरू होने को है, लेकिन फिलहाल पूरा स्टाफ रख लिया है, अत: बाद में कभी आना। मैं वहां से दैनिक नवज्योति गया। अपने नाम की पर्ची प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के चैंबर में भेजी। मैं बाहर बैठा इंतजार कर ही रहा था कि वहां दैनिक नवज्योति के नागौर जिला संवाददाता श्री माणक गौड आ गए। उन्होंने वहां देख कर सवाल किया, कैसे आए? मैंने प्रयोजन बताया। वे बोले, अरे, चलो में ही आपको चौधरी जी से मिला देता हूं। वे मुझे अंंदर ले गए। मेरी तारीफ करते हुए चौधरी जी से बोले कि यह लड़का बहुत टेलेंटेड है। चौधरी जी ने बिना कोई सवाल-जवाब किए ही कह दिया कि कल ही ज्वाइन कर लो। तनख्वाह चार सौ रुपए प्रतिमाह मिलेगी। मैं नवज्योति से बाहर निकल कर सोचने लगा कि इतने बड़े अखबार में मैं काम भी कर पाऊंगा या नहीं। बड़े-बड़े पत्रकार मुझे जमने देंगे या नहीं। सोचते-सोचते गली पार कर आधुनिक राजस्थान पहुंच गया। वहां प्रधान संपादक स्वर्गीय श्री दिलीप जैन से मिला। वे पहले से परिचित थे, क्योंकि नागौर रहते हुए मैं आधुनिक राजस्थान को समाचार भेजा करता था। उन्होंने भी मेरे आग्रह को तुरंत स्वीकार करते हुए अगले ही दिन से ज्वाइन करने को कह दिया। मुझे यहां थोड़ा सा अपनापन लगा। छोटा अखबार है। लगा कि यहां जल्द ही पकड़ बना लूंगा। हुआ भी वही। दूसरे ही दिन मैंने ज्वाइन कर लिया। आरंभ में मुझे अंदर के पेजों के संपादन का काम मिला। कोई छह माह ही हुए थे कि तत्कालीन संपादकीय प्रभारी श्री सतीश शर्मा ने मेरी प्रतिभा को देखते हुए कहा कि आप फ्रंट पेज पर आ जाओ, मैं सिखाऊंगा। वे पेश से तो मास्टर थे, पत्रकारिता के भी मास्टर थे। जल्द ही मैने स्वतंत्र रूप से प्रथम पेज का संपादन आरंभ कर दिया। अपने ही मार्गदर्शन में उन्होंने मुझे एडिटोरियल का इंचार्ज भी बना दिया। यहां तकरीबन पांच साल काम किया। वहां बहुत कुछ सीखा। इसके बाद दैनिक न्याय के संपादकीय प्रभारी स्वर्गीय श्री राजहंस शर्मा ने मुझे बुलाया और कहा कि पिताश्री बाबा विश्वदेव शर्मा ने मुझ पर अखबार का दायित्व सौंपा है, मेरा विश्वास है कि आप इंचार्जशिप संभाल लेंगे। मैने ज्वाइन कर लिया। मुझे फ्री हैंड दिया गया। मैने भी जम कर बैटिंग की। इस प्लेटफार्म ने मुझे पहचान दी। दैनिक न्याय के भी कई संस्मरण हैं, जो फिर कभी शेयर करूंगा। वहां पांच साल काम करने के बाद किसी बात को लेकर स्वाभिमान की रक्षार्थ इस्तीफा दे दिया। बाबा इस्तीफा मंजूर करने को तैयार नहीं थे, मगर मेरी जिद के चलते उन्हें स्वीकार करना ही पड़ा। विदाई देते समय उस जमाने के दबंग पत्रकार की आंखें नम होने पर अपनी पीठ थपथपाई कि मैने निष्ठा व अपने काम के दम पर उनका दिल जीत लिया है।
खैर, फ्री होते हुए श्री दिलीप जैन ने बुलवा लिया। वहां कुछ समय काम किया। चूंकि मिजाज से अति संवेदनशील हूं, इस कारण फिर किसी बात पर स्वाभिमान की खातिर इस्तीफा दे दिया। जैसे ही तत्कालीन सांध्य दैनिक दिशादृष्टि के संपादक श्री राधेश्याम शर्मा को पता लगा, उन्होंने मुझे बुलवाया और कहा कि वे अब दिशा दृष्टि को सांध्य की जगह प्रात:कालीन करना चाहते हैं और उसका दायित्व मुझे सौंपना चाहते हैं। मैने प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया। करीब दो साल काम करने के बाद वहां से भी जी उचट गया। केवल स्वाभिमान के कारण। उन्होंने भी मुझे बड़ी मुश्किल से छोड़ा। छोड़ कर घर बैठ गया। सन् 1996 में दैनिक भास्कर का आगमन हुआ। वहां के कई प्रसंग याद हैं, मगर फिलहाल इतना ही। तकरीबन आठ साल तक सिटी चीफ रहने के बाद जयपुर तबादला हो गया। वहां मुझे पहले स्टेट डेस्क पर बैठाया गया और कुछ समय बाद ही सिटी एडिशन का जिम्मा दिया जा रहा था। वह वाकई की-प्रोस्ट थी, मगर माताश्री की तबियत खराब रहने के चलते छह माह बाद ही इस्तीफा दे दिया। तत्कालीन संपादक श्री एन. के. सिंह ने इस्तीफा मंजूर न करते हुए वापस अजमेर भेज दिया। यहां तत्कालीन संपादक श्री इंदुशेखर पंचोली से पटरी बैठी नहीं, जो कि बैठनी भी नहीं थी, क्योंकि वे मुझ से जूनियर थे। यहां भी स्वाभिमान आड़े आया। खैर, इसकी भी एक कहानी है, जिसका जिक्र फिर कभी करूंगा। कोई तीन दिन बाद ही फिर इस्तीफा दे दिया। कुछ समय खाली बैठा रहा। फिर युवा भाजपा नेता व समाजसेवी श्री भंवर सिंह पलाड़ा ने श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी के माध्यम से बुलवा कर अखबार शुरू करने की मंशा जताई। हम दोनों ने उन्हें साफ कह दिया कि यह घाटे का सौदा है, पर वे नहीं माने, इस पर हम तैयार हो गए। हमने स्वर्गीय श्री नवल किशोर सेठी से सरे-राह टाइटल लिया। करीब पौने दो साल काम करने के बाद स्वाभिमानवश इस्तीफा दे दिया। श्री पलाड़ा मुझे नहीं छोडऩा चाहते थे, लेकिन मैं भी जिद पर अड़ गया। विदाई के वक्त मैने उनका मन भी बाबा की तरह द्रवित देखा।
खैर, उसके बाद दैनिक महका भारत के अजमेर संस्करण के स्थानीय संपादक के रूप में काम किया। अखबारों की प्रतिस्पद्र्धा के कारण वह समाचार पत्र अनियमित हो गया। फिर कुछ समय के लिए दैनिक न्याय सबके लिए में संपादक के रूप में काम किया। आर्थिक संकट के कारण अखबार बंद करने की नौबत आ गई। उसके बाद मेरे परम मित्र स्वामी न्यूज के एमडी श्री कंवल प्रकाश किशनानी के सहयोग से अजमेरनामा डॉट कॉम नाम से न्यूज पोर्टल शुरू किया, जो कि अब भी चल रहा है।
लब्बोलुआब, जीवन की इस यात्रा से एक ही निष्कर्ष निकला कि यदि मैं दैनिक नवज्योति में मिल रही नौकरी को स्वीकार कर लेता तो जीवन में इतना भटकाव नहीं होता और आज वहां स्थानीय संपादक पद पर पहुंच चुका होता। दूसरा सबक ये कि स्वाभिमान बड़ी कीमत वसूलता है। मेरे परिवार ने बहुत सफर किया। जिस स्वाभिमान की मैने दुनिया में रक्षा की, उससे अपने परिवार के सामने समझौता करना पड़ा। मैं उसे वह नहीं दे पाया, जिसे देना मेरा फर्ज था।
प्रसंगवश अतीत में जरा पीछे जा कर बताना चाहता हूं कि सन् 1979 में पत्रकारिता की शुरुआत लाडनूं ललकार के संपादक स्वर्गीय श्री राजेन्द्र जैन ने करवाई। मुझे सहायक संपादक बनाया। सन् 1980 से 1983 तक आधुनिक राजस्थान के अतिरिक्त जयपुर से प्रकाशित दैनिक अणिमा व दैनिक अरानाद के संवाददाता के रूप में काम किया।
अखबारी जीवन के अनेक संस्मरण मेरे जेहन में अब भी सजीव हैं। उनका जिक्र फिर कभी करूंगा।

सोमवार, 4 नवंबर 2019

अनिता भदेल आाखिर में अपना पत्ता खोलेंगी?

हालांकि जिस दिन अजमेर नगर निगम के मेयर की लॉटरी अनुसूचित जाति की महिला के नाम पर निकली, अजमेर दक्षिण से मौजूदा विधायक व पूर्व राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल ने उसी दिन साफ कर दिया था कि वे मेयर पद का चुनाव नहीं लड़ेंगी, पार्टी कहेगी तो भी नहीं, मगर कानाफूसी है कि वे आखिरी समय में दावा ठोकेंगी।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि श्रीमती भदेल ने एक रणनीति के तहत मेयर पद की दावेदारी से अपने आप को अलग रखा है। अगर वे जरा सी भी रुचि दिखातीं तो उनके विरोधी अभी से कार सेवा में जुट जाते। वैसे भी अभी बहुत टाइम पड़ा है। जानकारों का मानना है कि श्रीमती भदेल के लिए विपक्ष के एक विधायक के तौर पर चार साल टाइम खराब करने की बजाय आगामी पांच साल के लिए मेयर बनना ज्यादा उपयोगी है। अभी वे सिर्फ एक विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती हैं, मेयर बनने पर दो विधानसभा क्षेत्रों से भी अधिक इलाके की प्रतिनिधि हो जाएंगी। इसके अतिरिक्त स्मार्ट सिटी के तहत अभी करोड़ों रुपए के काम होने हैं। हालांकि यह तय है कि जब मेयर का चुनाव होगा, तब तक जिला प्रमुख वंदना नोगिया पद मुक्त हो जाएंगी, इस कारण दमदार तरीके से दावेदारी करेंगी, मगर उनसे अधिक दमदार दावेदारी श्रीमती भदेल की रहेगी। वंदना को मौका तो मिला, मगर उन्होंने उसका फायदा उठा कर जाजम नहीं बिछाई। रहा सवाल श्रीमती भदेल का तो अब ये उन पर निर्भर है कि वे किसी वार्ड से चुनाव लड़ कर मेयर पद की दावेदारी में आएंगी, या फिर सीधे मेयर पद की दावेदारी करेंगी। ज्ञातव्य है कि भले ही सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया हो कि मेयर का चुनाव पार्षदों में से ही होगा, मगर सीधे मेयर पद का चुनाव लडऩे की अधिसूचना अब भी वजूद में है। श्रीमती भदेल अभी भले ही अपने स्टैंड पर कायम हों, मगर राजनीति समझने वाले मानते हैं कि वे आखिरी समय में मैदान में आ डटेंगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

हेमंत भाटी की पत्नी का दावा सामने आते ही मची हलचल

कांग्रेस नेता हेमंत भाटी ने अजमेर नगर निगम के अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित मेयर पद के लिए अपनी पत्नी श्रीमती सुनीता भाटी  का जैसे ही दावा ठोका है, गुलाबी सर्दी के बीच यकायक सियासत में गरमाहट आ गई है।
ज्ञातव्य है कि अब तक की जानकारी के अनुसार अनुसूचित जाति के पुरुष के सामान्य वर्ग की महिला के साथ शादी होने पर महिला को अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले लाभ नहीं मिला करते, लेकिन भाटी ने एक अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा है कि उनकी पत्नी मेयर पद के लिए दावा करने की पात्रता रखती हैं। एक बयान में उन्होंने बताया कि गत 21 अक्टूबर को राज्यपाल ने जो अधिसूचना जारी की है, उसमें यह स्पष्ट है कि सामान्य वर्ग की महिला को अनुसूचित जाति के पुरुष के साथ शादी करने पर उसे भी अनुसूचित जाति के सारे लाभ मिलेंगे। हालांकि अधिसूचना में ये अलग से स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या वह चुनावों में भी आरक्षण के लाभ पर लागू होगी, मगर मोटे तौर पर तो यही माना जा रहा है। राज्यपाल की ओर से जारी अधिसूचना की खबर 22 अक्टूबर की राजस्थान पत्रिका में भी छपी है। उसकी कटिंग इस समाचार के साथ दी जा रही है।
खैर, बात भाटी के दावे की। जैसे ही उन्होंने दावा किया है, उन दावेदारों की पेशानी पर लकीरें खिंच गई हैं, जो कि यह सोच कर निश्चिंत थे कि भाटी की पत्नी चुनाव लडऩे की पात्रता नहीं रखतीं हैं। अनुसूचित जाति के पुरुषों की पत्नियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति की महिला पार्षदों को भी तकलीफ होना स्वाभाविक है, जो चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है कि राजनीतिक रसूखात, जनाधार व साधन संपन्नता के लिहाज से भाटी का दावा अन्य की अपेक्षाकृत भारी पड़ेगा। भले ही वे विधानसभा चुनाव में हार गए हों, मगर नगर निगम के पिछले चुनाव में उन्होंने जिस तरह अपना वर्चस्व साबित किया है, वह सबके सामने है। अकेले उन्हीं के दम पर कई पार्षद जीत कर आए थे। निगम में भाजपा को चुनौती उनके दक्षिण क्षेत्र के पार्षदों के कारण दी जा सकी, वरना उत्तर में तो हालत बहुत खराब थी। बहरहाल, अब देखते हैं कि आगे-आगे होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 3 नवंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग बीस
श्रीमती मधु खंडेलवाल
यूं तो श्रीमती मधु खंडेलवाल कई वर्षों से साहित्य व समाज की सेवा कर रही हैं, मगर अजमेर में पहली बार लेखिकाओं को एक मंच पर ला कर साहित्याकाश पर यकायक उभर कर आ गई हैं। प्रतिदिन किसी न किसी कार्यक्रम का हिस्सा बन कर अब वे एक जाना-पहचानी हस्ताक्षर हो चुकी हैं। यदि ये कहा जाए कि वे अजमेर के उन गिनती के जीवित, यानि सक्रिय व ऊर्जावान बुद्धिजीवियों में एक हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उन्होंने 30 जुलाई, 2018 में अजमेर लेखिका मंच की स्थापना की और 62 महिलाओं को इस मंच से जोडऩे में सफलता हासिल की। जाहिर तौर पर इससे स्थापित व नवोदित लेखिकाओं को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अच्छा माध्यम मिला है। इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने साहित्य को सामाजिक सरोकारों से भी जोडऩे का अनूठा प्रयोग किया है। वर्षभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन, जैसे एन.बी.टी, केन्द्रीय कारागृह, अनाथ आश्रम, नारीशाला, दयानन्द आश्रम व हाडी रानी बटालियन में साहित्य संगोष्ठी एवं चर्चा, लाडली, महिला एवं बाल विकास विभाग अन्य कॉलेज व स्कूलों में साहित्य के कई कार्यक्रमों का आयोजन किया है। इसके अतिरिक्त मूक-बधिर बच्चों को ब्रेन लिपि द्वारा साहित्य सृजन में योगदान किया है।
भारतीय जीवन बीमा निगम, अजमेर में बतौर उच्च श्रेणी सहायक के रूप में काम करते हुए उन्होंने छह पुस्तकों का लेखन व प्रकाशन किया है। उनकी दो पुस्तकें, सुगंध का रहस्य व एक भूल राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर ने प्रकाशित की हैं। पुस्तक सुगंध का रहस्य बाल साहित्य है, जिसे मयूर स्कूल के ग्रीष्मकालीन अवकाश कोर्स के रूप में शामिल किया गया है। पुस्तक एक भूल राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2018 में राज्य के सभी सरकारी पुस्तकालय में रखने हेतु क्रय की गईं। पुस्तक वैज्ञानिकों की रोचक कथाएं एवं नुपुर काफी चर्चित हैं। पुस्तक तरंग पर शॉर्ट फिल्म का फिल्मांकन किया गया।
वे राष्ट्रीय हिन्दी भाषा उन्नैयन समिति, इंदौर की प्रदेश अध्यक्ष, प्रगतिशील लेखक संघ की मानद सदस्या व भारतीय जीवन बीमा निगम में स्थित हिन्दी परिषद् की सचिव हैं। वर्ष 2018 में मेरठ लिटरेचर फैस्टिवल में वक्ता की हैसियत से शिरकत कर चुकी हैं। उनको राष्ट्रीय भाषा भारती साहित्य अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2014 से दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर निरन्तर काव्य गोष्ठी एवं कार्यक्रमों में शामिल हो रही हैं।
लेखन के अतिरिक्त उनकी रुचि समाज सेवा में भी है और समाज में निराश्रित एवं गरीब महिलाओं व निम्न तबके के लोगों को आगे बढ़ाने, शिक्षित करने एवं पुनर्वास का कार्य करने में समर्पित हैं। राजस्थान राज्य महिला आयोग की अजमेर जिला मंच की सदस्य रही हैं। गणतंत्र दिवस समारोह 2018 में जिला स्तर पर सम्मानित की जा चुकी हैं। इसी प्रकार राजस्थान राज्य महिला आयोग द्वारा महिला उत्थान हेतु सम्मान हासिल कर चुकी हैं। उन्हें राजस्थान सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा  सम्मानित किया गया है। बेटी बचाओ पुरस्कार, सावित्री बाई राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रीय महिला शक्ति पुरस्कार।, विमेन सब्सटेन्स अवार्ड, ग्लोबल डिग्निटी अवार्ड, रन फोर ह्यूमेनिटी अवार्ड, ग्लोबल प्राइड अवार्ड, खंडेलवाल समाज प्रतिभा सम्मान, राष्ट्रीय महिला सम्मान, आईडल वूमन अचिवमेन्ट अवार्ड, एल.आई.सी. महिला सशक्तिकरण अवार्ड, नेशनल ह्यूमेनिटी अवार्ड, जयपुर रत्न सम्मान, ह्यूमटेरियन एक्सीलेन्स अवार्ड आदि उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। उनकी कहानी, कविताएं आदि स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शहर भाजपा अध्यक्ष पद के लिए गहलोत सबसे ज्यादा उपयुक्त

अजमेर शहर भाजपा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी में खींचतान चल रही है। एक तरफ मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा का गुट है तो दूसरी ओर तकरीबन 15 साल तक स्थानीय भाजपाइयों को दो फाड़ करके रखने वाले पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की एकजुटता है। उनकी एकजुटता की वजह साफ है। भले ही उन्होंने शहर भाजपा को दो हिस्सों में बांट कर रखा, मगर पावरफुल होने के कारण पूरी भाजपा उनके ही कब्जे में थी। जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की कृपा से शिव शंकर हेड़ा अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने, देवनानी व भदेल की दादागिरी से त्रस्त एक नया गुट डॅवलप हो गया। संयोग से अजमेर विकास प्राधिकरण से निवृत्त होने के बाद भी हेड़ा को ही शहर भाजपा की कमान सौंपी गई, इस कारण उनका गुट कुछ और मजबूत हो गया। हालांकि वे पूर्व में भी अध्यक्ष रह चुके हैं, मगर तब वे इतने पावरफुल नहीं थे। हालत ये थी कि अजमेर नगर परिषद के चुनाव में अपने एक भी चेले को टिकट नही दिलवा पाए। सारी सीटें देवनानी व भदेल के बीच ही बंटी। चाहे प्रो. रासासिंह रावत का अध्यक्षीय कार्यकाल हो या अरविंद यादव, चलती देवनानी व भदेल की ही थी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। दोनों के पास सत्ता की ताकत रही, इस कारण जिन-जिन के भी उन्होंने काम करवाए, वे उनके भक्त हो गए। अध्यक्ष तो संगठन प्रमुख के रूप में नाम मात्र का था। कहा भले ही ये जाए कि मजबूत संगठन की वजह से ही लगातार चार बार विधानसभा चुनावों में अजमेर की दोनों सीटें जीती गईं, मगर सच्चाई ये है कि ऐसा देवनानी व भदेल के व्यक्तिगत दमखम और जातीय समीकरण की वजह से हुआ।
खैर, अब जब कि ये समझा जाता है कि नए प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया गुटबाजी खत्म करना चाहते हैं, ताकि शहर अध्यक्ष पावरफुल हो और आम कार्यकर्ता की सुनवाई हो, तो देवनानी व भदेल से त्रस्त कार्यकर्ता व छोटे नेता हेड़ा के इर्दगिर्द और अधिक लामबंद हो रहे हैं। भला यह देवनानी व भदेल को कैसे मंजूर हो सकता है कि उनका भाजपा पर से कब्जा छूट जाए, लिहाजा अपना अस्तित्व बचाने की खातिर दोनों एक दूसरे के नजदीक आ गए हैं। उन्होंने संगठन चुनाव में अपने चहेतों को मैदान में उतारने के लिए कमर कस ली है। नगर निगम चुनाव में मात्र आठ माह बचे हैं। वे जानते हैं कि यदि उनकी पसंद के पदाधिकारी न बने तो चुनाव में दिक्कत आएगी।
बात अगर शहर अध्यक्ष पद की करें तो ऐसा समझा जाता है कि संघ व भाजपा, दोनों ऐसे चेहरे की तलाश में हैं, जो मुखर हो, अनुभवी हो और सभी को साथ लेकर चल सके। फिलवक्त एक भी ऐसा चेहरा सामने नहीं आया है। आनंद सिंह राजावत जरूर दमखम रखते हैं और संगठन को ठीक से चला सकते हैं, लेकिन उन पर आमराय बनना संभव नहीं लगती। नए चेहरों में नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, मौजूदा डिप्टी मेयर संपत सांखला और पार्षद जे. के. शर्मा व नीरज जैन हैं। चांस सभी गुटों को साथ ले कर चलने का माद्दा रखने वाले नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य को भी मिल सकता था, मगर फिलहाल यौन शोषण के एक मामले में फंसने या फंसाए जाने के कारण उनका नाम बर्फ में लग गया है। इन सब के अतिरिक्त एक और दमदार नाम है मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का। उनका रुझान निकाय चुनाव में ही था, लेकिन अब जबकि मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है, उनकी चुनावी मंशा पर लाइन फिर गई है। मेयर पद से हटने के बाद उनके पास वकालत करने के लिए अलावा कोई काम नहीं रहेगा। ऐसे में समझा जाता है कि वे इस पद में रुचि दिखाएं। यह उनके राजनीतिक केरियर के लिए तो अच्छा है ही, भाजपा संगठन के लिए भी सूटेबल है। अध्यक्ष पद के जितने भी दावेदार हैं, उनमें से वे सर्वाधिक उपयुक्त हैं। निचले स्तर पर संगठन पर पकड़ के अतिरिक्त प्रशासनिक कामकाज का भी अच्छा खासा अनुभव है। वे अजमेर नगर परिषद के भूतपूर्व सभापति स्वर्गीय वीर कुमार की शैली के एक मात्र जुझारू नेता हैं। देवनानी के तो करीबी रहे ही हैं, हो सकता है कि अनिता भदेल भी हाथ रख दे। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि देवनानी से उनके पहले जैसे संबंध नहीं रहे, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है।
-तेजवानी गिरधर
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शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग उन्नीस
*श्री गजेन्द्र के. बोहरा*
पत्रकारिता व समाजसेवा के क्षेत्र में श्री गजेन्द्र के. बोहरा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पत्रकारिता में तो उन्होंने लंबा सफर तय किया ही है, सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों के साथ काम करने का भी उनका अच्छा खासा अनुभव है। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में भी दखल रखते हैं। एनएसयूआई से आरंभ राजनीतिक सफर अब उन्हें अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी में सक्रिय सदस्य तक ले आया है। सक्रिय राजनीति में भले ही किसी बड़े मुकाम तक न पहुंचे हों, मगर दिग्गज मंत्रियों से निजी रसूखात के चलते स्थापित नेताओं तक के कान कतरते हैं। यदि चंद शब्दों में उनके व्यक्तित्व को समेटने की कोशिश करूं तो इतना ही काफी है कि वे हरफनमौला इंसान हैं। मजाक में मित्र मंडली उन्हें अजमेर की 'दाई' की उपमा देती है। आप समझे, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसमें उनका दखल न हो। जानकारियों का खजाना भी कह सकते हैं उन्हें। दैनिक न्याय से आरंभ उनकी पत्रकारिता दैनिक भास्कर तक पहुंची। इतना ही नहीं, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में पैर पसारते हुए उन्होंने भास्कर टीवी में बतौर प्रभारी काम किया। जीवट से काम करने की प्रवृत्ति के दम पर उन्होंने बेरोजगार मित्र नामक अपने पाक्षिक समाचार पत्र को राज्य स्तर पर पहचान दिलाई है। उनकी अपनी खुद की प्रिटिंग यूनिट भी है। क्वालिटी प्रिटिंग में भी उन्होंने अपनी अच्छी साख कायम की है।
शहर के विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक संगठनों में भी अपने मधुर व्यहवार व कार्यकुशलता के चलते अलग पहचान है। सेवा को समर्पित महावीर इंटरनेशनल में उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरूप ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय सचिव पद से नवाजा गया। हाल ही में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में 02 अक्टूबर को 44वीं बार रक्तदान किया। स्वेच्छिक रक्तदान के चलते राज्य स्तर पर भी सम्मानित किया जा चुका है। सजगता के चलते अब तक चार देहदान करवाने का श्रेय भी इनके खाते में दर्ज हैं। आज भी अनवरत कई सामाजिक संस्थाओं से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। 
अब बात करते हैं, उनकी भाषा-शैली की। संयोग से मेरे पास उनका वह आलेख है, जो उन्होंने दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर रचित गौरव ग्रंथ में प्रकाशित होने आया था, मगर प्रकाशन की आपाधापी में गंभीर त्रुटिवश वह रह गया। इस आलेख को पढ़ कर आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि भाषा-शैली पर उनकी कितनी गहरी पकड़ है। इस बहाने उनका वह आलेख भी सार्वजनिक हो जाएगा, जिसे उन्होंने बड़े मनोयोग से तैयार किया था।
*पेश है वह आलेख :*
'वह दिन' जिसने जीवन का लक्ष्य तय कर दिया...
मैं अपनी रोजमर्रा की डाक देख रहा था, तभी वह पत्र मेरे सामने आया, जिसमें मुझे स्थानीय लेकिन देश की पत्रकारिता जगत में अग्रणी स्थान पर स्थापित दैनिक समाचार पत्र 'दैनिक नवज्योति' के प्रधान सम्पादक दीनबन्धु चौधरी से संबंधित संस्मरण, आलेख के रूप में उपलब्ध कराने का स्नेहिल आमंत्रण दिया गया था। आलेख को श्री दीनबंधु चौधरी गौरव ग्रंथ में स्थान दिए जाने का उल्लेख भी पत्र में था।
इस स्नेहिल आमंत्रण ने मुझे इतना अभिभूत कर दिया कि मेरा दृष्टि-पटल अश्रु ओस कणों से अवरुद्ध हो गया। इन्हीं अश्रु ओस कणों से बने झीने पर्दे पर वह दृश्य उभरने-मिटने लगे, जिन्होंने मेरे जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर दिया था...
अजमेर रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म संख्या एक, स्थानीय समाजसेवियों, पत्रकारों और राजनेताओं के साथ कर्मचारी संगठनों और व्यवसायिक संस्थानों के प्रमुख व्यक्तियों से जैसे भर गया था। 1986 के जुलाई माह के उस दिन, दोपहर दस्तक देने लगी थी। सभी की उत्सुक निगाहें उस तरफ टकटकी लगाए थीं, जिधर दिल्ली से आने वाली उस ट्रेन को आना था, जिस ट्रेन से 'दैनिक नवज्योति' के प्रबन्ध सम्पादक वरिष्ठ पत्रकार दीनबंधु चौधरी, अपना सोवियत रूस का प्रवास पूरा कर लौट रहे थे।
वे उस मीडिया टीम के विशेष आमंत्रित सदस्य थे, जो भारत के प्रधानमंत्री के साथ सोवियत रूस के दौरे पर जाने के लिए चुनी गई थी। निश्चित रूप से शहरवासियों के लिए वह दिन अजमेर के गौरवशाली इतिहास में एक पृष्ठ और संकलित करने वाला दिन था, इसका प्रमाण अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म एक पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा, शहरवासियों का वह हुजूम था जिसका मैं भी एक हिस्सा था।
मेरी उत्सुक और कौतुहल भरी निगाहें, कभी उस हुजूम में मौजूद जाने-पहचाने चेहरों के इर्द-गिर्द जायजा लेती थीं और फिर उसी दिशा में जा टिकती थीं, जिधर से दिल्ली से आने वाली ट्रेन एक नए सूर्य की तरह उदित होने वाली थी। मैं देख रहा था, समझ रहा था कि उस हुजूम में मौजूद हर शख्स की हालत लगभग मेरे जैसी ही थी। उन सभी में और मुझ में या मेरी सोच में, शायद एक फर्क जरूर था। वह फर्क था कि सभी को इंतजार था ट्रेन के आने का, जबकि मेरी आंखों में एक सपना तैरने लगा था। मैं उस सपने में खो गया। दूर से आ रहा और ट्रेन को ला रहा इंजन धीरे-धीरे नजदीक आ रहा था। कुछ सौ मीटर की दूरी से दिखाई देने वाली ट्रेन की रफ्तार इतनी धीमी थी, जैसे वह सैकड़ों मील की दूरी तय कर थक गई हो। दूसरी तरफ मेरे दिल की धड़कनों की रफ्तार इतनी बढ़ गई थी, जैसे वह उछल कर सीने से बाहर आ जाएगी। खून की रफ्तार इस कदर बढ़ गई थी, कि कनपटियों में फड़क रही नसों की धमक मेरे कानों में हथौड़े की तरह गूंज रही थी। धीरे-धीरे ट्रेन का इंजन मेरे सामने से गुजरा और ट्रेन के डिब्बे एक के बाद एक मेरे सामने से गुजरने लगे। फिर वह डिब्बा मेरे सामने आकर रुक गया, जिसके दरवाजे पर मैं अपने आपको खड़ा देख रहा था। स्टेशन के प्लेटफार्म पर हुजूम हाथ हिला-हिला कर मेरा अभिवादन कर रहा था। मैं भी मुस्कुराते हुए उनका अभिवादन स्वीकार कर रहा था। उस हुजूम ने ट्रेन के उस डिब्बे के उस दरवाजे को इस तरह घेर लिया था कि मुझे दरवाजे से उतरना मुश्किल हो गया था। कुछ ही पलों में मुझे कुछ लोगों ने कंधों पर उठा कर ट्रेन के डिब्बे से नीचे उतारा और प्लेटफार्म पर ही मुझे कंधों पर लेकर नाचने लगे। बड़ी मुश्किल से मेरे पैरों ने प्लेटफार्म की जमीन को छुआ। मैं कह नहीं सकता कि कंधों से उतरने में मेरी भूमिका कितनी थी और हुजूम की कितनी। उसके बाद दौर शुरू हो गया गले मिलने, बधाई और शुभकामनाओं के साथ माला पहनाने का सिलसिला। मुझे इतना मौका भी नहीं मिल रहा था कि मैं मालाओं में निरंतर डूबते जा रहे चेहरे को अपने हाथों से निजात दिला सकूं। मैं कुछ भी देख पाने में असमर्थ था और मेरी नाक फूलों की सुगंध से भर रही थी। तभी अचानक मेरे कानों में मेरे ही नाम की गूंज सुनाई दी। मैं अपने सपने से उबरने लगा। अब मेरे सामने जो चेहरा फूलों से ढका जरूर था, लेकिन वह चेहरा मेरा नहीं, दीनबंधु चौधरी साहब का था। उन्होंने मुझसे पूछा 'गजेन्द्र कैसे हो...?'
मैं चौंक कर अपने आप में लौटा। मैंने मुस्कराते हुए अपने हाथों में ली हुई माला उन्हें आदरपूर्वक पहनाते हुए कहा- मैं ठीक हूं 'सर'। मैंने झुक कर चरण स्पर्श कर मन ही मन फैसला किया कि 'मैं भी अपने आपको पत्रकारिता के उस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ूगा।' निश्चित रूप से वह दिन मेरी जिन्दगी का अहम दिन बन गया। सच कहूं तो उस पूरे कार्यक्रम के दौरान और क्या कुछ होता रहा, मुझे सिलसिलेवार याद नहीं रहा। याद रहा तो बस इतना कि मुझे अपने आपको पत्रकारिता के प्रति इस कदर समर्पित कर देना है कि ज्यादा नहीं तो उस पायदान तक तो मुझे पहुंचना ही है, जहां मुझे, मेरे परिजन और मित्र मुझे पत्रकार के रूप में एक पहचान दे सकें। आज मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मेरी समर्पित भावना ने मुझे इस लायक बना दिया कि आज मेरे परिजन और मित्र मुझे किसी बिजनेसमैन के रूप से ज्यादा पत्रकार के रूप में मान्यता देते हैं।
सच कहूं तो मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में यह स्थान दिलाने मेें मेरे श्रम और समर्पण से ज्यादा, वह स्मरणीय दिन है, जो मेरे लिए उस दिन अनुकरणीय बन गया और आज भी है।
मैं समझता हूं कि यह आलेख उन लोगों से उनको रूबरू करवाने के लिए काफी है, जो कि उन्हें परिपूर्ण पत्रकार में रूप में नहीं जानते हैं।
- तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

एडीए अध्यक्ष का पद अब सामान्य को मिलेगा?

हालांकि राजनीति में कुछ भी संभव है, मगर अब जब कि अजमेर नगर निगम के मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है, मोटे तौर पर माना जा रहा है कि अब अजमेर विकास प्राधिकरण  के अध्यक्ष का पद सामान्य वर्ग के किसी नेता को मिलेगा। पक्के तौर पर इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे पहले सामान्य की सीट पर ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत को मेयर बना दिया गया, जिसका भारी विरोध भी हुआ, मगर उसके तुरंत बाद डिप्टी मेयर का पद भी ओबीसी के संपत सांखला को दे दिया गया।
अगर ये माना जाता है कि एडीए अध्यक्ष पद किसी सामान्य वर्ग के नेता की नियुक्ति होगी तो उसमें सबसे पहले नंबर पर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का नाम आता है। असल में वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी माने जाते हैं। यद्यपि वे लगातार दो बार अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से हारे और तीसरी बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया, मगर गहलोत से नजदीकी उनके दावे को मजबूत बनाए हुए है। दूसरा दावा है प्रदेश कांग्रेस के सचिव व अजमेर शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके महेन्द्र सिंह रलावता का, जो पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से हार गए। अजमेर में वे काफी सीनियर नेता हैं, इस कारण हाईकमान तक पकड़ है। उनकी पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब यह लगभग तय था कि इस बार कांग्रेस किसी सिंधी को टिकट देगी, फिर भी वे टिकट ले कर आ गए। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का उन पर वरद हस्त है।
शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विजय जैन का भी दावा बनता है। उन्होंने विपरीत हालात में भी संगठन को मजबूत किया। अपने खास सिपहसालार मुजफ्फर भारती व बिपिन बेसिल के सहयोग से वार्ड व बूथ स्तर पर संगठनात्मक ढ़ांचा खड़ा किया। कामयाब धरने-प्रदर्शन किए। संगठन का वजूद तो रलावता के समय भी था, लेकिन इस बार चूंकि कांग्रेस की सरकार बनने की पूरी उम्मीद थी, उसी के चलते उनकी टीम ने अपेक्षाकृत बेतहर काम किया। टीम में कई नए कार्यकर्ता भी जुड़े। यह बात दीगर है कि मोदी लहर के चलते अजमेर की दोनों सीटें कांग्रेस हार गई। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की पसंद हैं। देहात जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ भी प्रमुख दावेदार हैं, वे भी पायलट की पसंद से देहात अध्यक्ष बने थे।
सामान्य वर्ग से अन्य कई और भी दावा कर सकते हैं, जिनमें राजू गुप्ता का नाम लिया जाता है। सचिन पायलट के करीबी किशनगढ़ निवासी राजू गुप्ता किशनगढ़ विधानसभा सीट के प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें टिकट नहीं मिली। हो सकता है, उनकी लॉटरी लग जाए। यहां उल्लेखनीय है कि अजमेर विकास प्राधिकरण के कार्य क्षेत्र में किशनगढ़ भी है, इस कारण उन पर बाहरी होने का ठप्पा नहीं लगेगा।
अपुन ने शुरू में ही लिखा कि राजनीति में कोई फाइनल फार्मूला नहीं होता, इस कारण अनुसूचित जाति के नेता यथा अजमेर दक्षिण से हारे हेमंत भाटी, उनके बड़े भाई पूर्व उप मंत्री ललित भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया, शहर जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रताप यादव भी नाउम्मीद नहीं हैं। वैसे जातीय संतुलन बनाने के लिए सामान्य वर्ग के किसी नेता को एडीए का अध्यक्ष बनाने का कयास लगाया जा रहा है। 
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

मेयर पद के लिए अनुसूचित जाति महिला वर्ग में दावेदारों को लेकर कयासबाजी शुरू

संशोधित एवं परिवद्र्धित
सामान्य व ओबीसी दावेदारों की उम्मीदों पर फिरा पानी
अजमेर। आगामी नगर निकाय चुनाव में अजमेर नगर निगम का मेयर पद अनुसूचित जाति की महिला के आरक्षित होने के साथ एक ओर जहां सामान्य व ओबीसी के दावेदारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है, वहीं अनुसूचित जाति महिला वर्ग में दावेदारों को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। जैसा कि हाल ही राज्य सरकार ने नई व्यवस्था लागू करते हुए आम मतदाता के लिए भी मेयर का चुनाव लडऩे का रास्ता खोल दिया है, इस कारण उन संभावित दावेदारों पर नजर है, जो कि पार्षद का चुनाव न लड़ कर सीधे मेयर पद का टिकट हासिल करने की कोशिश करेंगी। उनमें वे प्रमुख रूप से उभर कर आएंगी, जो कि पहले से शहर स्तर पर स्थापित नेताओं की पत्नियां हैं। मेयर पद नजर रखने वाली महिलाओं में से जिनको टिकट मिलने की कोई खास उम्मीद नहीं है, वे पार्षद का चुनाव जरूर लडऩा चाहेंगी। उनके लिए भी मेयर पद की दावेदारी का विकल्प तो खुला हुआ रहेगा ही।
कांग्रेस में अजमेर दक्षिण से विधानसभा चुनाव हारे प्रमुख उद्योगपति व समाजसेवी हेमंत भाटी की पत्नी की दावेदारी सबसे प्रबल हो सकती थी, लेकिन चूंकि वे क्रिश्चियन परिवार से हैं, इस कारण उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा। उनकी भाभी भी सामान्य वर्ग से हैं, इस कारण उनको भी मौका नहीं मिलेगा। पूर्व उप मंत्री ललित भाटी अपनी पत्नी को राजनीति में लाना चाहेंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। राजनीति व नगर निगम में कामकाज के अनुभव के लिहाज से सबसे तगड़ी दावेदारी शहर जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष व पूर्व पार्षद प्रताप यादव की पत्नी श्रीमती तारा देवी यादव, जो कि स्वयं भी पार्षद भी रह चुकी हैं, की बनती दिख रही है। मौजूदा पार्षदों में चंचल बेरवाल, द्रोपदी कोली, उर्मिला नायक व रेखा पिंगोलिया भी दावा ठोकने की पात्रता रखती हैं। पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की पत्नी श्रीमती रंजू जयपाल, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया की पत्नी श्रीमती लीला बाकोलिया, पार्षद सुनील केन की पत्नी श्रीमती नीता केन के भी खुल कर सामने आने की पूरी उम्मीद है। डॉ. जयपाल की बहिन, राजस्थान लोक सेवा आयोग, अजमेर की सचिव आईएएस अधिकारी रेणु जयपाल ने यूं तो कभी राजनीति में रुचि नहीं दिखाई, मगर चूंकि लंबे समय से अजमेर में ही विभिन्न पदों पर रही हैं, इस कारण सुपरिचित चेहरा हैं। ज्ञातव्य है कि उनके पिता जसराज जयपाल शहर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और माताजी स्वर्गीय श्रीमती भगवती देवी मंत्री रही हैं।
इसी प्रकार पूर्व पार्षद विजय नागौरा अपनी पत्नी का नाम चला सकते हैं। इसी कड़ी में प्रदेश महिला कांग्रेस में सक्रिय मंजू बलाई व रेणु मेघवंशी भी भाग्य आजमाने का आग्रह कर सकती हैं। ज्ञातव्य है कि मंजू बलाई के पिताश्री जोधपुर जिले से विधायक थे। हाल के चुनाव में वे हार गए थे। उन पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हाथ था।
भाजपा में जिला प्रमुख वंदना नोगिया प्रबल दावेदार हो सकती हैं।  जिला प्रमुख का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राजनीतिक कैरियर बरबरार  रखने के लिए आगे आने की कोशिश करेंगी। वे हाल के विधानसभा चुनाव में भी अजमेर दक्षिण से प्रबल दावेदार थीं। संभावना ये भी है कि मौजूदा विधायक व नगर परिषद के पूर्व सभापति श्रीमती अनिता भदेल के नाम पर भी विचार हो। हालांकि उनका विधायक पद का कार्यकाल चार साल से भी ज्यादा बाकी पड़ा है, मगर विपक्ष में होने के कारण उसका कोई आकर्षण नहीं। दूसरा ये कि कार्यक्षेत्र के लिहाज से मेयर का पद विधायक से कहीं अधिक बड़ा है। कहने की जरूरत नहीं कि अजमेर में स्मार्ट सिटी के तहत अभी बहुत कुछ काम होना बाकी है। हालांकि वे आनाकानी कर रही बताईं, मगर हो सकता है कि यह उनकी एक चाल हो। अभी दावेदारी में नहीं आना, और बाद में ऐन वक्त पर दावा ठोकना। पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा की बहू यानि विकास सोनगरा की पत्नी श्रीमती इंदु सोनगरा के लिए भी प्रयास हो सकते हैं। श्रीकिशन सोनगरा की पुत्री का नाम भी चर्चा में है। नगर परिषद की पूर्व सभापति श्रीमती सरोज जाटव तो निश्चित रूप से दावेदारी करेंगी, चूंकि वे नगर परिषद का स्वाद चख चुकी हैं। वे वर्तमान पार्षद धर्मपाल जाटव की पत्नी हैं। इसी प्रकार पार्षद वंदना नरवाल, बीना सिंगारिया, भाजपा नेता हीरालाल जीनगर की पत्नी के दावे सामने आने की उम्मीद है। अजमेर नगर सुधार न्यास की पूर्व ट्रस्टी भगवती रूपाणी भी प्रयास कर सकती हैं।
मेयर के चुनाव की उल्लेखनीय बात ये है कि साधन संपन्न व्यक्ति ही दमदार दावेदारी कर सकेगा, क्योंकि पार्षद प्रत्याशियों को उससे सहयोग की उम्मीद होगी। वही मैदान में डट सकेगा, जिसने पार्षद प्रत्याशियों को चुनाव लडऩे में मदद की होगी। इस चुनाव की अहम बात यही है। इक्का-दुक्का को छोड़ कर अधिसंख्य उतनी साधन संपन्न नहीं, जितने की जरूरत है। ऐसे में हो सकता है कि वे अपना-अपना आका तलाशें, जो कि उन पर इन्वेस्ट कर सके। चंचल बेरवाल, द्रोपदी कोली व रेखा पिंगोलिया प्रमुख उद्योगपति व अजमेर दक्षिण से हारे हेमंत भाटी का वरदहस्त पाना चाहेंगी। यह तो भाटी पर निर्भर करता है कि वे इसमें रुचि ले या नहीं और लें भी तो किस में। लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी समाजसेवा में सक्रिय रिजु झुंझुंनवाला सक्रिय हो सकते हैं और किसी पर हाथ रख कर जितवाने की गारंटी ले सकते हैं।
ज्ञातव्य है कि सामान्य व ओबीसी वर्ग के अनेक दावेदार चांस मिलने की सोच रहे थे, उनके मंसूबों पर पूरी तरह से पानी फिर गया है। इनमें कांग्रेसी दावेदारों में गत विधानसभा चुनाव में उत्तर क्षेत्र के प्रत्याशी रहे महेन्द्र सिंह रलावता व दक्षिण क्षेत्र के प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी, शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन, कांग्रेस के प्रदेश महासचिव ललित भाटी, पूर्व विधायक और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह चुके डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, नौरत गुर्जर, प्रताप यादव, समीर शर्मा, श्रवण टोनी, सुरेश गर्ग के नाम थे। इसी प्रकार भाजपा में मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, शहर भाजपा अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा, युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन, पूर्व शहर जिलाध्यक्ष अरविंद यादव, मेयर का चुनाव हार चुके डॉ. प्रियशील हाड़ा, आनंद सिंह रजावत, सुभाष काबरा, एडवोकेट गजवीर सिंह चूंडावत, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, सोमरत्न आर्य, पार्षद जे के शर्मा, रमेश सोनी, नीरज जैन आदि की चर्चा थी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग अठारह
श्री ओम माथुर
अजमेर के प्रतिष्ठित व स्थापित पत्रकारों में शुमार श्री ओम माथुर यहां के पत्रकार जगत में अपनी किस्म के अनूठे पत्रकार हैं। अन्य पत्रकारों की तरह उन्हें भी अच्छे ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने अपनी उस जमीन को नहीं छोड़ा, जिसने उन्हें स्थापित किया और आज पत्रकारों की शीर्ष पंक्ति में हैं।  पत्रकारिता का आरंभ उन्होंने दैनिक रोजमेल से किया। कुछ समय दैनिक न्याय में भी रहे, मगर बाद में दैनिक नवज्योति से जुड़े तो वहीं के हो कर रह गए। आज वे नवज्योति के स्थानीय संपादक हैं। उन्होंने काफी समय तक रिपोर्टिंग की है। अब तक अनगिनत एक्सक्लूसिव स्टोरीज कर चुके हैं। काफी समय से संपादन का काम भी बखूबी कर रहे हैं। वे लंबे समय तक आकाशवाणी के संवाददाता भी रहे हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया पर स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के ज्वलंत विषयों पर बेबाकी से लिख रहे हैं।
उनकी छवि एक सख्त पत्रकार के रूप में है। केवल काम से काम। हालांकि हैं सुमधुर व व्यवहार कुशल, मगर खबर के मामले में कोई समझौता नहीं। न किसी अधिकारी के दबाव में आते हैं और न ही किसी राजनेता के। इसे यूं भी कह सकते हैं कि मानसिक रूप से पूरे पत्रकार हैं। कोई कितना भी बड़ा लाट साब हो, उनकी कलम जब चलती है तो नश्तर ही भांति पूरा पोस्टमार्टम करके ही चैन लेती है। यही वजह है कि कई बार सार्वजनिक जीवन से वास्ता रखने वाले उनसे नाराज हो जाते हैं, लेकिन बाद में अहसास करते हैं कि उन्होंने तो अपने धर्म का पालन किया है, प्रयोजन विशेष से उनके खिलाफ नहीं लिखा है। पत्रकारिता को धर्म की भांति धारण किए हुए श्री माथुर अमूमन जनसामान्य में मिक्सअप नहीं होते। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं कि उनके मित्र नहीं हैं। बहुतेरे मित्र हैं, और मित्रता के नाते दुनियादारी वाला सारा व्यवहार भी पूरा निभाते हैं, यानि कि सभी की गमी-खुशी में आते-जाते हैं, लेकिन खबर लिखते समय संबंधों को ताक पर रख देते हैं। और यही खासियत उन्हें खांटी पत्रकार की श्रेणी में खड़ा करती है। उनके एक राजनीतिक मित्र ने एक बार मुझे बताया कि श्री माथुर हैं तो बहुत अच्छे मित्र, मार्गदर्शन भी अच्छा करते हैं, सही सलाह देते हैं, लेकिन बात ही बात में दी गई जानकारी को मौका लगने पर पत्रकारिता में उपयोग करने से नहीं चूकते। लेकिन साथ ही ये भी बताया कि श्री माथुर ने गोपनीय जानकारियों का कभी दुरुपयोग नहीं किया।
जहां तक नवज्योति संस्थान का सवाल है, एक इंचार्ज के रूप में वे सहयोगियों को पूरे अनुशासन में रखते हैं, लेकिन बाद में सभी से छोटे भाई सा व्यवहार करते हैं।
यह भी एक संयोग की बात है कि जिस मिजाज के पत्रकार वे हैं, उन्हें उसी के अनुरूप दैनिक नवज्योति का मंच मिला। दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर प्रकाशित गौरव ग्रंथ में अपने मन्तव्य में वे स्वयं लिखते हैं कि लगातार एक ही संस्थान में तीस साल तक काम करना कोई मामूली बात नहीं है। दैनिक नवज्योति, अजमेर में करीब तीस साल तक काम करने के बाद जब मैं पुनरावलोकन करता हूं, तो अहसास होता है कि अपनी बात कहने और लिखने की जो आजादी मुझे नवज्योति में मिली, शायद कहीं और होता, तो नहीं मिलती। वे लिखते हैं कि जब मैंने नवज्योति में प्रवेश किया था, तब वहां अजमेर की पत्रकारिता के दिग्गज काम कर रहे थे। उस समय ऐसा लगता था कि उनके बीच काम करते हुए शायद अपनी पहचान बनाना ही मुश्किल होगा। लेकिन खुद पर यकीन और दीनूजी के विश्वास के चलते न सिर्फ पत्रकारिता में पहचान बनाई, बल्कि पहली बार जिसे नवज्योति का स्थानीय संपादक बनाया गया, वह मैं ही था।
वे लिखते हैं कि जहां दूसरे अखबारों में खबर लिखने की कई पाबंदियां हैं, वहीं नवज्योति में दीनूजी ने कभी किसी के हाथ नहीं बांधे। मैंने नवज्योति में सालों तक इधर-उधर कॉलम लिखा है, जिसमें राजनीतिज्ञों व अफसरशाही से लेकर समाज के हर वर्ग से जुड़े लोगों पर कड़ी टिप्पणियां कीं। इसमें कई लोग ऐसे भी थे, जिनके दीनूजी से अच्छे रिश्ते थे। लेकिन उन्होंने कभी मुझे ये नहीं कहा कि मैंने फलां व्यक्ति के लिए क्यों लिख दिया। इसके उलट ऐसा कई बार हुआ है कि जब किसी ने उन्हें इस बात का उलाहना दिया कि वे मालिक के दोस्त हैं, फिर उनके अखबार में उनके खिलाफ लिखा जा रहा है। तो दीनूजी ने उन्हें ही उलाहना देते हुए कहा कि, अगर ओम ने गलत लिखा है, तो बताओ और अगर सही है, तो उसका काम ही ये है।
एक किस्सा बताना चाहूंगा। अजमेर से सांसद रहे एक राजनीतिज्ञ को इधर-उधर में उनके बारे में लिखने पर बहुत तकलीफ होती थी। उन्होंने पांच साल तो जैसे-तैसे मेरे लेखन की बर्दाश्त किया, लेकिन जब अगला चुनाव भी अजमेर से ही लडऩा पड़ा, तो दीनूजी से मिलने गए और उनसे आग्रह किया कि वे मुझे ये निर्देश दें कि मैं चुनाव तक उनके बारे में कुछ नहीं लिखूं। इस पर दीनूजी का जवाब था, मैं तो उससे नहीं कहूंगा। अगर आप कह सकते हो, तो कह दो। जाहिर है दीनूजी का रूख देख कर वे नेता खामोश लौट गए। इसी तरह एक बार मेरे लेखन से पीडि़त एक व्यक्ति ने दीनूजी को चि_ी भेजकर मुझ पर भ्रष्टाचार और दूसरे आरोप लगाए। तो उन्होंने चि_ी को मेरे समक्ष इस टिप्पणी के साथ भेजा, कि जब हाथी निकलता है, कुत्ते ऐसे ही भौंकते हैं। तुम अपना लेखन और धारदार करो। आज के दौर में शायद ही कोई अखबार मालिक इस तरह अपने स्टाफ के लिए खड़ा होता होगा।
श्री माथुर के शब्दों से ही उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का शब्द चित्र खड़ा हो रहा है। पत्रकार जगत में नव प्रवेशियों को श्री माथुर से प्रेरणा लेनी चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

पुष्कर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव सीधे लडऩे वालों के मनसूबों पर फिरा पानी

राजस्थान में स्थानीय निकाय चुनाव में नगरपालिकाओं, निगमों के प्रमुखों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही करवाए जाने के निर्णय के साथ पुष्कर नगर पालिका में सीधे चुनाव के जरिए पालिका अध्यक्ष बनने के सपने देख रहे दावेदारों के मनसूबों पर पानी फिर गया है।
असल में सरकार ने पहले ये घोषणा की थी कि निकाय प्रमुख का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली से होगा। हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए लॉटरी नहीं निकलने के कारण ये भी पता नहीं था कि अध्यक्ष किस कैटेगिरी का होगा, बावजूद इसके संभावनाओं के इस दंगल में शिरकत करने के लिए तकरीबन सात दावेदारों ने तो खुल्लम खुल्ला दावेदारी जताने का मानस बना लिया, वहीं तकरीबन नौ ने सपने संजो रखे थे कि लॉटरी निकलेगी, उसी के अनुरूप निर्णय लेंगे। दिलचस्प बात ये है कि कई नेताओं ने तो गुट बना कर हर विकल्प खुला छोड़ रखा था। जैसे ही लॉटरी खुलती, वे अपना पत्ता खोलते।
ज्ञातव्य है कि यदि लॉटरी सामान्य पुरुष के लिए निकलने की स्थिति में सबसे पहले व प्रबल दावेदार स्वाभाविक रूप से मौजूदा अध्यक्ष कमल पाठक होते। मगर वे अपना मन नहीं बना पा रहे थे। उसकी वजह कदाचित ये रही होगी कि पिछली बार तो पार्टी हाईकमान की सरपरस्ती में पार्षदों के बहुमत के आधार पर अध्यक्ष बन गए, लेकिन सीधे चुनाव में जीत का गणित क्या होगा, उसको ले कर संशय था। खैर, अब ये देखना होगा कि अध्यक्ष पद सामान्य पुरुष के लिए आरक्षित होता है तो उस स्थिति में वे दुबारा अध्यक्ष बनने के लिए पार्षद पद के लिए दावेदारी करते हैं या नहीं।
अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार भी वार्ड का चुनाव लडऩे का मानस तभी बनाएंगे, जबकि अध्यक्ष पद सामान्य पुरुष के लिए आरक्षित होगा। इसी प्रकार अरुण वैष्णव अध्यक्ष बनने को बेहद आतुर हैं, इस कारण वे भी किसी न किसी वार्ड से तैयारी करेंगे। वार्ड नंबर 2 की पार्षद रही मंजू डोलिया यूं तो नवनिर्मित वार्ड 17 या 15 से पार्षद का चुनाव लडऩे का मन बना चुकी हैं। बाबूलाल दगदी व जयनारायण को भी अपने लिए वार्ड तलाशने होंगे।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके शिवस्वरूप महर्षि 5-6 पार्षदों का जाल बिछा कर अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर चुके थे। बदली परिस्थिति में दुबारा वार्ड चुनाव लडऩे की तैयारी करेंगे।
सीधे चुनाव में अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल पुष्कर नारायण भाटी व वार्ड नंबर 15 के पार्षद कमल रामावत भी सारा ध्यान वार्ड चुनाव पर देंगे। इसी सिलसिले में रामजतन चौधरी, जगदीश कुर्डिया, गोपाल तिलोनिया, राजेंद्र महावर आदि भी लॉटरी निकलने का इंतजार कर रहे हैं, तभी आगे की रणनीति बनाएंगे।

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग सत्रह
स्वर्गीय श्री नवलराय बच्चानी
सिंधी भाषा व साहित्य की सुरक्षा व विकास के लिए अजमेर के पूर्व विधायक स्वर्गीय श्री नवलराय बच्चानी ताजिंदगी काम किया। नब्बे से भी अधिक उम्र तक उन्होंने सिंधी भाषी बच्चों को सिंधी लिपी की शिक्षा देने के लिए विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से कक्षाएं आयोजित कीं। वे सन् 1979 में राजस्थान सिंधी अकादमी की प्रथम सामान्य सभा के सदस्य रहे। सन् 1994 से 97 तक अकादमी के अध्यक्ष रहे। अकादमी ने उन्हें सन् 2005 में टी. एल. वासवाणी पुरस्कार से नवाजा। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें झूलेलाल संक्षिप्त जीवन परिचय, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन का जीवन चरित्र, डॉ. हेडगेवार का जीवन परिचय, वृहद सिंधु ज्ञान सागर ग्रंथ, गुरुजी गोलवलकर, सिंध, वृहद झूलेलाल पुस्तक आदि प्रमुख हैं। उन्होंने श्रीमती कमला गोकलानी के सहयोग से के. आर. मलकानी की अंग्रेजी पुस्तक सिंध स्टोरी का सिंधी अनुवाद किया। उन्होंने भारतीय सिंधु महासभा की अनेक स्मारिकाओं का संपादन किया। अनगिनत साहित्यिक गोष्ठियों में शिरकत की और आकाशवाणी से उनकी अनेक वार्ताएं प्रसारित हुईं। 7 मार्च 2010 को भारतीय सिंधु सभा व श्री झमटमल तोलाराम वाधवानी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से मुंबई में अच्छे समाज सेवक के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया। इसी प्रकार 10 अप्रैल 2010 को सिंधी शिक्षा विकास समिति की ओर से भी सम्मानित किया गया।

स्वर्गीय श्री नरेन्द्र राजगुरू
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रहे स्वर्गीय श्री नरेन्द्र राजगुरू का नाम हालांकि आम जन मानस में अंकित नहीं है, मगर अपने जमाने में पत्रकारिता जगत में जाने-माने हस्ताक्षर थे। उन्होंने देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं दी हैं और तकरीबन अस्सी वर्ष की उम्र में भी सतत लेखन कार्य जारी रखे हुए थे। उन्होंने जोधपुर में बीए ऑनर्स व मुंबई में पत्रकारिता का डिप्लोमा किया। उन्होंने डॉ. सत्यकामत विद्यालंकार के अभियान सप्ताहिक से लेखन कार्य शुरू किया। खादी ग्रामोद्योग मुम्बई व जयपुर में प्रचार सहायक व प्रचार अधिकारी रहे। इसके बाद डीसीएम की गृह पत्रिका से संपादन का कार्य शुरू किया। हिंद सायंकाल लि., मुम्बई में प्रचार अधिकारी के रूप में काम किया। हिंदी डायजेस्ट नवनीत, मुंबई में उपसंपादक के रूप में काम किया। मुम्बई में ही अनुजा मासिक पत्रिका आरंभ कर उसका संपादन किया। मुम्बई में ही दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र सायंदीप का संपादन किया। वे टाइम्स ऑफ इंडिया पत्र समूह, मुंबई में प्रशासनिक विभाग सहायक व अधिकारी के रूप में काम किया, लेकिन साथ ही लेखन कार्य भी जारी रखा। उन्हें लेखन की प्रेरणा डॉ. सत्येन्द्र जी व डॉ. धर्मवीर भारती से मिली। देश ही नहीं विदेश में ओमान के एक छोटे पत्र समूह और विश्व प्रसिद्ध संस्था नाफेन में भी काम किया। इस दौरान उन्हें लंदन व रूस जाने का मौका मिला। सन् 1949 से उनकी कहानियां देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं:- उपन्यास एक और नीलम, उपन्यास गुलनार, कहानी संग्रह विश्वकर्मा के आंसू, कहानी संग्रह उगते सूरज की लाली, संस्मरण वृतांत दर्द की खुली किताब(मीना कुमारी), दिल तो पागल है, गजल संग्रह (अंग्रेजी में), उपन्यास बीहड़ों की रानी। उन्होंने पत्रकार निदेशिका का भी किया। वे अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग सोलह
श्री एस. पी. मित्तल
अजमेर की पत्रकारिता में श्री एस. पी. मित्तल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। यदि यह कहा जाए कि वे एक ब्रांड हो गए हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस शख्स में गजब की ऊर्जा है। संघर्ष के मुकाबले कभी न थकने वाले इस इंसान ने पत्रकारिता में कई नए आयाम स्थापित किए हैं। अजमेर में पहली बार व्यवस्थित तरीके से केबल नेटवर्क पर लोकल न्यूज चैनल चलाने का श्रेय श्री मित्तल के खाते में ही दर्ज है। यूं अजमेर में सर्वप्रथम 1997 में यूनाइटेड वीडियो चैनल के लाइसेंस पर अजमेर चैनल के नाम से न्यूज चैनल शुरू हुआ था, जिसका संचालन श्री नानक भाटिया ने किया। सांपद्रायिक उपद्रव के दौरान उत्पात को दिखाए जाने पर जिला प्रशासन इसे रुकवा दिया। हालांकि बाद में यह चैनल फिर शुरू हुआ, मगर केबर वार के चलते फिर बंद हो गया। बाद में सन् 2000 में श्री मित्तल ने अजमेर अब तक के नाम से व्यवस्थित न्यूज चैनल आरंभ किया। इसका प्रसारण ब्यावर, किशनगढ़, नसीराबाद आदि उप खण्डों पर भी किया जाता था। सीमित साधनों में केबल पर न्यूज चलाना चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन इस काम को उन्होंने अपने अंजाम तक पहुंचाया। अजमेर वासियों के लिए यह पहला अनुभव था, इस कारण लोग बहुत दिलचस्पी के साथ इसे देखते थे। बाद में केबल वार के चलते उन्हें प्रसारण बंद करना पड़ा। दिलचस्प बात ये है कि श्री मित्तल ने दैनिक भास्कर के मुख्य संवाददाता की अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर अजमेर वासियों लोकल न्यूज चैनल से साक्षात्कार करवाया। यह अपने आप में एक बड़ी दुस्साहसपूर्ण उपलब्धि थी।
श्री मित्तल को पत्रकारिता विरासत में मिली। पिता स्वर्गीय श्री कृष्ण गोपाल गुप्ता ने पत्रकारिता की जो सीख दी, उसी के अनुरूप वे आज भी पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। श्री गुप्ता भभक नामक पाक्षिक का संचालन करते थे। यथा नाम तथा गुण की उक्ति को चरितार्थ करते हुए यह समाचार पत्र वाकई भभकता था। उनके निधन के बाद श्री मित्तल ने उसे उसी तीखे तेवर के साथ जारी रखा, जिसका प्रकाशन आज भी जारी है। श्री मित्तल ने लंबे समय तक राष्ट्रदूत व पंजाब केसरी के लिए बतौर ब्यूरो प्रमुख कार्य किया। जब राष्ट्रदूत का प्रकाशन अजमेर से आरंभ हुआ तो वे उसके पहले स्थानीय संपादक थे। पत्रकारिता में उनके लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी, मगर प्रबंधन से मतभेद के चलते उन्होंने एक झटके में इसे तिलांजलि दे दी।  बाद में जब दैनिक भास्कर अजमेर आया तो उन्होंने ही उसकी जाजम बिछाई। सरकूलेशन बढ़ाने के लिए जनता से सीधे जुड़े अनेक कार्यक्रम संचालित किए। इनमें वार्ड वार रूबरू कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ। उन्होंने यह साबित कर दिखाया कि उनमें केवल पत्रकारिता के ही नहीं, अपितु प्रबंधन के भी गुण हैं। तकरीबन आठ साल तक भास्कर में डट काम किया और मुख्य संवाददाता के रूप में अनेक शानदार स्टोरीज की। विशेष रूप से प्रशासन व राजनीति पर उनकी गहरी पकड़ रही है। उन्होंने दैनिक नवज्योति के प्रथम पृष्ठ का भी संपादन किया। उसके बाद दैनिक पंजाब केसरी के अजमेर संस्करण के प्रभारी रहे। वहां भी तनिक विवाद के चलते नौकरी छोडऩे में देर नहीं लगाई। जीवन के इस मोड़ पर आ कर उन्होंने नियमित रूप से ब्लॉग लिखने का अनूठा प्रयोग किया। हालांकि यह काम अनार्थिक होने के साथ-साथ श्रमसाध्य है, मगर पता नहीं किस चक्की का आटा खाते हैं कि नियमित रूप से तीन-चार ब्लॉक लिख देते हैं। अनेक वाट्स ऐप ग्रुप्स में उसका प्रसार है और पाठकों को इंतजार रहता है कि आज उन्होंने क्या लिखा है। हालांकि उनसे भी पहले मैंने अजमेरनामा नाम से ब्लॉग लेखन तब आरंभ किया, जब अधिसंख्य पत्रकार इंटरनेट पर हिंदी फोंट यूनिकोड के बारे में जानते तक नहीं थे, मगर नियमित ब्लॉग लेखन का श्रेय श्री मित्तल को ही जाता है। अब तो अनेक ब्लॉगर हाथ आजमा रहे हैं। श्री मित्तल अब यू ट्यूब पर टॉक शो भी कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त राज्य स्तरीय चैनल्स पर डिबेट में हिस्सा लेते हैं।
पत्रकारिता के साथ पत्रकारों के हितों के लिए भी उन्होंने कई काम किए हैं। वे जिला पत्रकार संघ के महासचिव रहे हैं और उनके कार्यकाल में ही जिले के पत्रकारों का पहला सफल सम्मेलन हुआ था। वे अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे हैं। हर साल आयोजित होने वाले फागुन महोत्सव में उनकी अहम भूमिका होती है। वे विश्व संवाद केन्द्र अजयमेरू के अध्यक्ष हैं और हर साल उल्लेखनीय कार्य करने वाले पत्रकारों को सम्मानित करते हैं।
जहां तक लेखनी का सवाल है, उनकी भाषा सीधी सपाट होती है, उसमें अलंकारों का बहुत अधिक उपयोग नहीं होता, मगर सूचना के लिहाज से वह अपडेट होती है। तेवर तो उनके मिजाज में है ही। उनकी लेखनी की प्रशंसा भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने भी की। 17 नवम्बर, 2005 को राष्ट्रपति के रूप में अजमेर आए कलाम ने तब श्री मित्तल और उनके परिवार के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए सर्किट हाउस आमंत्रित किया। इस मुलाकात की रिपोर्ट जब कलाम ने भभक समाचार पत्र में पढ़ी तो राष्ट्रपति ने शुभकामनाएं भिजवायीं।
पत्रकारिता में अनेक उतार-चढ़ाव आने के बावजूद विविधता व नवाचार में अपनी प्रतिभा झोंकने वाले वे इकलौते धुन के पक्के पत्रकार हैं। चंद शब्दों में कहा जाए तो वे डंके की चोट पर लिखने वाले निडर व जीवट वाले और कभी न थकने वाले पत्रकार हैं। नवोदित पत्रकारों को उनसे सीख लेनी चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग पंद्रह
श्री सुरेश कासलीवाल
ग्रामीण पृष्ठभूमि के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल ने जब पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि यही उनका केरियर हो जाएगा। असल में वे निकटवर्ती मांगलियावास गांव के सरपंच थे। सन् 1989 में पहली बार उपसरपंच चुने गए। उसके बाद सन् 1995 से 2000 तक व सन् 2005 से 2010 तक सरपंच रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी पंचायत में जैन समाज का मात्र एक ही परिवार है, अर्थात जनता ने उनका व्यवहार देख कर बिना किसी जात-पांत के वोट दिए। सरपंच रहते बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए जलग्रहण के क्षेत्र में राजस्थान में अव्वल दर्ज का काम किया। इसके उपलक्ष में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। मुंबई के पांच सितारा ग्रांड हयात होटल में आयोजित समारोह में न्यायाधिपति ए. एम. अहमदी से पुरस्कार लेते हुए उन्होंने राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। दिल्ली दूसरे स्थान पर रहा।
वे पीसांगन पंचायत समिति की 45 ग्राम पंचायतों के सरपंच संघ के अध्यक्ष भी रहे। हालांकि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं थे और न ही किसी पार्टी के सदस्य रहे, लेकिन तत्कालीन पुष्कर विधायक स्वर्गीय श्री रमजान खान से गहरी दोस्ती थी। तब नसीराबाद विधानसभा सीट के लिए भाजपा में दो दावेदारों के बीच टिकट को लेकर घमासान चल रहा था। स्वर्गीय श्री रमजान खान को लगा कि दोनों को छोड़ किसी तीसरे बेदाग व दबंग युवा पर दांव खेला जाए। उन्होंने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री भैरोंसिंह शेखावत से यह कह कर नसीराबाद से विधानसभा चुनाव का टिकट देने की सिफारिश की कि ये बंदा तेज-तर्रार व जनता को समर्पित होने के कारण लोकप्रिय है और जीत जाएगा। उनसे चुनाव की तैयारी करने को भी कह दिया गया, लेकिन भाजपा ने ऐन वक्त पर समझौते के तहत नसीराबाद सीट जनता दल को दे दी और स्वर्गीय श्रीकरण चौधरी ने चुनाव लड़ा। वे हार गए।
जहां तक पत्रकारिता का सवाल है, यह उन्होंने महज शौक के लिए शुरू की। सबसे पहले मांगलियावास टाइम्स के नाम से पाक्षिक समाचार पत्र आरंभ किया। समाचार पत्र को छपवाने और ग्राम पंचायत के कामों के सिलसिले में अजमेर आना-जाना होता था। जनप्रतिनिधि की भूमिका निभाते-निभाते यकायक दैनिक न्याय से जुड़े और एक रिपोर्टर के रूप में बैटिंग शुरू की। आरंभ से आक्रामक तेवर था। संयोग से दैनिक न्याय जैसे दबंग अखबार का प्लेटफार्म मिला। उन्होंने वहां वर्ष 1994 में लगातार 15 दिन तक भीलों के चंगुल में अजमेर वाले ख्वाजा के नाम से एक सीरीज दी, जिससे रातों-रात निडर पत्रकार के रूप में लोकप्रिय हो गए। पूरा खादिम समुदाय नाराज हो गया। तब आगे खबर नहीं लिखने पर उन्हें एक लाख की रिश्वत पेश की, नहीं माने तो सीरीज रोकने के लिए उनके खिलाफ कलेक्ट्रेट तक जुलूस भी निकाला गया। बहुत रिस्क थी, मगर वे बेधड़क लिखते गए। न्याय ही वह मंच था, जहां उन्होंने हर दिशा, अर्थात हर फील्ड में चौके-छक्के लगाने की योग्यता को साबित किया। उसके बाद कुछ समय तक दैनिक आधुनिक राजस्थान के संपादकीय प्रभारी रहे और समाचार जगत के लिए भी काम किया। सन् 1997 में दैनिक भास्कर से जुड़े। राजनीति व प्रशासन की बीट के साथ-साथ शायद ही ऐसा कोई महकमा हो, जिसकी उन्होंने रिपोर्टिंग नहीं की हो। दरगाह क्षेत्र की रिपोर्टिंग के तो मास्टर रहे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण जिला परिषद व ग्राम पंचायतों पर जबरदस्त पकड़ रही है। क्या मजाल कि कोई खबर छूट जाए। खबर छूटना तो दूर, सदैव लीड रोल में रहे हैं। उनकी पत्रकारिता की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि रूटीन की खबर के अतिरिक्त सदैव इस पर नजर रखते हैं कि स्पेशल रिपोर्ट तलाश की लाई जाए। उन्होंने अनेक ऐसी स्टोरीज की हैं, जिस पर आम तौर पर अन्य पत्रकारों की नजर तक नहीं जा पाती। उनकी उस स्टोरी को बड़ी तारीफ मिली, जिसमें उन्होंने बताया कि बाल विवाह रोकने के लिए बने शारदा एक्ट को बनाने वाले हरविलास शारदा ने खुद बाल विवाह किया था। वे अजमेर के ही रहने वाले थे। महिला सरपंचों पर केन्द्रित एक एक्सक्लूसिव स्टोरी, जिसका शीर्षक था- महिला सरपंच नहीं जानतीं कि मुख्यमंत्री का नाम क्या है?, पर उन्हें भास्कर के अजमेर संस्करण में पहला पुरस्कार मिला। उनकी कई स्टोरीज दैनिक भास्कर में ऑल एडीशन छप चुकी हैं। यह उनकी योग्यता का ही प्रतिफल है कि भास्कर जैसे अखबार में चीफ रिपोर्टर जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव उनका विश्लेषण बिल्कुल सटीक गया है। मतगणना के 3 दिन पहले ही किसके खाते में सीट जाएगी, इसका खुलासा कर देना, उनके राजनीतिक पंडित होने को साबित करता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री सचिन पायलट भी जब अजमेर से चुनाव हारे तब उन्होंने पहले ही व्यक्तिगत चर्चा में बता दिया कि वे चुनाव बड़े अंतर से हारेंगे। हाल ही में रिजु झुनझुनवाला के चुनाव में भी खुलकर बताया कि वे हार में सचिन पायलट का रिकॉर्ड तोड़ेंगे यानी 1 लाख 71 हजार से अधिक मतों से हारेंगे। उन्हें उत्कृष्ठ पत्रकारिता के लिए जिला स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। अंदर की बात ये है कि इसके लिए उन्होंने आवेदन नहीं किया था, जिला कलेक्टर आरुषि मलिक की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपने स्तर पर ही उनका नाम पुरस्कार के लिए चयनित किया।
एक पत्रकार के लिए सामाजिक सरोकारों से जुडऩे और निष्पक्ष पत्रकारिता भी करने के बीच सामंजस्य बैठाना बेहद कठिन होता है। श्री कासलीवाल की कई कलेक्टरों व अन्य अधिकारियों से दोस्ती रही, लेकिन प्रशासन की खामी संबंधित खबरें लिखने को लेकर कभी समझौता नहीं किया।
श्री कासलीवाल वर्तमान में अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष हैं और क्लब भवन के लिए जनप्रतिनिधियों के कोष से धन जुटाने में कसर नहीं छोड़ी। हाल ही में काफी समय से लंबित तकरीबन 45 लाख रुपए की स्वीकृति राज्य सरकार से खुद लेकर आये, जिससे दूसरी मंजिल पर कमरों का निर्माण होगा। वैशाली नगर स्थित नए भवन में साधन सुविधाएं जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक अधिकारियों से काम कैसे करवाया जाता है, यह बखूबी जानते हैं। अपनी इसी कलाकारी के दम पर कोटड़ा स्थित पत्रकार कॉलोनी विकास समिति के अध्यक्ष के नाते जम कर विकास कार्य करवा रहे हैं। अजमेर की शायद ये इकलौती कॉलोनी होगी, जिसमें सड़क के दोनों और कलर ब्लॉक तक लगे हुए हैं। पत्रकारिता के अलावा सामाजिक सरोकार में भी वे काफी सक्रिय है। लॉयन्स क्लब समेत अन्य संस्थाओं के जरिये अलग-अलग गांवों में हर साल जरूरतमंदों को 300 कंबल, स्वेटर, कपड़े और अब तक कई जरूरतमंद कन्याओं के विवाह में घर गृहस्थी के सामान दिलवा चुके हैं। क्लब अध्यक्ष रहते हुए क्लब के जरिये दो कन्याओं के विवाह में सहयोग कर नई शुरुआत कर चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग चौदह
श्री आर. डी. कुवेरा
श्री आर. डी. कुवेरा अजमेर के वरिष्ठतम पत्रकार हैं। उनका जन्म 19 सितम्बर 1933 को किशनगढ़ में स्वगीय श्री रतनलाल कुवेरा के घर हुआ।  सन् 1974 में उन्होंने साप्ताहिक लगन एक्सप्रेस व जिला कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र कांग्रेस समाचार का संपादन किया। सन् 1975 से 81 तक दैनिक नवज्योति के लिए पूरे राजस्थान का भ्रमण कर अनेक स्थानों पर संवाददाता व एजेंट नियुक्त किए। अजमेर नगर सुधार न्यास के भूतपूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी के साथ न्यास के लिए जनसंपर्क प्रभारी का कार्य किया। उन्होंने जयपुर में कांग्रेस शताब्दी समारोह के अवसर पर स्वर्गीय श्री मथुरादास माथुर के साथ विशाल प्रदर्शनी का संयोजन किया और एक्जीबीशन एट ए ग्लांस का संपादन किया।
सन् 1985 से 2009 तक दैनिक आधुनिक राजस्थान के बीकानेर व जयपुर ब्यूरो प्रमुख रहे। वे संत श्री रामचंद्र डोंगरे, श्री रामसुखदास महाराज व श्री मुरारी बापू के अजमेर व सलेमाबाद में आयोजित प्रवचन कार्यक्रमों के मीडिया प्रभारी भी रहे हैं। इसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र में मग ब्राह्मण समाज के वैवाहिक परिचय सम्मेलनों के मीडिया प्रभारी और अखिल भारतीय सर्वोदय सम्मेलन में मीडिया व वालेंटियर सेवा के संयुक्त संयोजक रहे हैं।  वर्तमान वे राज्य सरकार के अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं और राजस्थान पत्रकार निदेशिका, मासिक पत्रिका स्वतंत्र जैन चिंतन व अजयमेरु टाइम्स पाक्षिक के संपादकीय सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे जयपुर में पिंक सिटी प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्य हैं और राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ में अनेक पदों रहे हैं। हाल ही दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर आधारित गौरव ग्रंथ के लिए तथ्य संकलन, प्रबंधन, संपादन व प्रकाशन में अहम भूमिका निभाई है। पुस्तक के जयपुर में हुए विमोचन समारोह में आपको मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने सम्मानित किया। आज तकरीबन 87 साल की उम्र में भी लेखन कार्य जारी रखे हुए हैं। विभिन्न विषयों पर लिखित पुस्तकों व डायरेक्ट्रीज का संकलन करने का पुराना शौक है, इस कारण उनके पास पुस्तकों का भंडार है। 
उनके जीवन की सफलता का दूसरा पहलु ये है कि उनके प्रयासों से ही आज उनके दोनों सुपुत्र प्रतिष्ठित फर्म कुवेरा काड्र्स एंड गिफ्ट व न्यू कुवेरा गिफ्ट आइटम्स का संचालन कर रहे हैं।
एक सफल पत्रकार के साथ कुशल व्यवसायी के जीवन में कितने दिलचस्प रंग रहे हैं, जरा उन पर भी नजर डाल लेते हैं:-
सन् 1953 में मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद उन्होंने इंडियन इंश्योरेंस कंपनी में एजेंट का कार्य शुरू किया। इसके बाद किशनगढ़ में न्यू सुमेर टॉकीज के मैनेजर रहे। बाद में जोधपुर के जॉर्ज टॉकीज सर्किट की ओर से फिल्म प्रतिनिधि के रूप में काम किया। इसी प्रकार मैसर्स हुकमचंद संचेती एंड संस के विक्रय प्रतिनिधि के रूप में भी काम किया। सन् 1958 में टेरिटोरियल आर्मी के प्रशिक्षण शिविर में सर्वश्रेष्ठ केडेट का पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने सेना प्रमुख की ओर से सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट भी हासिल है। उन्होंने 1959 में 105 इन्फेंट्री बटालियन में रह कर नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया। इसके बाद किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयनारायण व्यास के संपर्क में आए। उन्हीं के आदेश पर उन्हें शिक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरी करने का मौका मिला। बाद में ग्रेड बदलवा कर ब्यावर के सनातन धर्म हायर सेकंडरी स्कूल और पटेल हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षण कार्य किया। तकरीबन 12 वर्ष तक सरकारी नौकरी करने के बाद उन्होंने निजी व्यवसाय शुरू कर दिया और अजमेर में बुक सेंटर के नाम से दुकान खोली एवं लाइब्रेरी सप्लाई व प्रकाशन का कार्य शुरू किया। वे अजमेर गांधी शांति प्रतिष्ठान के कार्यालय प्रभारी और श्री गोकुलभाई भट्ट के शराबबंदी आंदोलन के कार्यालय प्रभारी भी रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने ब्यावर में स्वर्गीय श्री घनश्याम जी से कत्थक का विधिवत दो साल प्रशिक्षण लिया है और प्रदेश के अनेक स्थानों पर लोकनृत्य सहित कई सांस्कृतिक प्रदर्शन किए हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 30 सितंबर 2019

दंगल सजने से पहले मालिश कर रहे हैं चुनावी पहलवान

कई नेताओं को है पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी निकलने का इंतजार 
पुष्कर। आसन्न नगर निकाय चुनाव में हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए लॉटरी नहीं निकली है, अर्थात अभी ये पता नहीं कि अध्यक्ष किस कैटेगिरी का होगा, बावजूद इसके संभावनाओं के इस दंगल में शिरकत करने के लिए तकरीबन सात दावेदारों ने तो खुल्लम खुल्ला दावेदारी जताने का मानस बना रखा है, वहीं तकरीबन नौ ने सपने संजो रखे हैं कि लॉटरी निकलेगी, उसी के अनुरूप निर्णय लेंगे। मुंगेरीलाल के सपनों का राज खुल जाने के बाद दावेदारों का असली खेल शुरू हो जाएगा। कोई सच में दावा करेगा तो कोई किसी को निपटाने की तैयारी करेगा। दिलचस्प बात ये है कि कई नेताओं ने तो गुट बना कर हर विकल्प खुला छोड़ रखा है। जैसे ही लॉटरी खुलेगी, वे अपना पत्ता खोल देंगे। आपको बता दें कि आगामी 3 अक्टूबर को साफ हो जाएगा कि पालिका अध्यक्ष किस कैटेगिरी को होगा, तभी चुनावी आकाश पर छाये बादल छटेंगे।
यदि लॉटरी सामान्य पुरुष के लिए निकलती है तो सबसे पहले व प्रबल दावेदार स्वाभाविक रूप से मौजूदा अध्यक्ष कमल पाठक होंगे, मगर अभी वे अपना मन नहीं बना पाए हैं। उसकी वजह कदाचित ये होगी कि पिछली बार तो पार्टी हाईकमान की सरपरस्ती में पार्षदों के बहुमत के आधार पर अध्यक्ष बन गए, लेकिन सीधे चुनाव में जीत का गणित क्या होगा, उसको ले कर संशय हो सकता है। दावे चाहे जितने कर लें, मगर सिटिंग अध्यक्ष होने के कारण एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर दिक्कत कर सकता है।
दूसरे प्रबल दावेदार हैं अरुण वैष्णव। वे ऊर्जा से लबरेज हैं और टिकट मिलने पर पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने का मन बनाए हुए हैं। उन्हें यकीन है कि पार्टी उनको सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। मौजूदा बोर्ड पर तंज कसते हुए खम ठोक कर कहते हैं कि तीर्थ की मर्यादा को न मानने वाला दावेदारी कर भी कैसे सकता है।
वार्ड नंबर 2 की पार्षद रही मंजू डोलिया यूं तो नवनिर्मित वार्ड 17 या 15 से पार्षद का चुनाव लडऩे का मन बना चुकी है, परंतु यदि सामान्य पुरुष या महिला की लॉटरी निकलती है तो वे अपनी दावेदारी प्रमुखता से करेंगी। उनकी दावेदारी में दम की वजह भी है। 300 वोटों से विजयी होना और दो बार निर्दलीय विजेता बन कर पिछले 20 सालों में उन्होंने खुद को साबित कर दिखाया है।
इसी प्रकार भाइयों की कलह के शिकार बाबूलाल दगदी व जयनारायण दगदी भाजपा व कांग्रेस से दावेदारी जता रहे हैं। उनका कहना है कि अनुभव से ही राजनीति संभव है। पुष्कर में फैले नशा कारोबार पर अंकुश, गंदगी से निजात व होटल व्यवसाय को सुचारू करना उनकी प्राथमिकता में है।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके शिवस्वरूप महर्षि ने 5-6 पार्षदों का जाल बिछा कर अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। एक तो राजनीति के अनुभव को भुनाने का वक्त आ गया है और दूसरा पार्टी आलाकमान का भी उन्हें संरक्षण प्राप्त है। उनका कहना है कि काम की प्राथमिकता वक्त के साथ-साथ सुनिश्चित की जाएगी।
पुष्कर नारायण भाटी पुष्कर वासियों के बीच चिर परिचित नाम है। कई पदों पर रहने के बाद अध्यक्ष पद की लाइन में अपने आप को सबसे आगे खड़ा पाते हैं। उनका कहना है कि ओबीसी सीट की लॉटरी निकलते ही निश्चित हो जाएगा कि अध्यक्ष कौन बनेगा। इसी प्रकार वार्ड नंबर 15 के पार्षद कमल रामावत ने भी दावेदारी के लिए पूरी तैयारी कर ली है।
साधन संपन्न रामजतन चौधरी भी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर चुके हैं, मगर वे बहुत चतुर हैं। या यूं कहिये कि घुन्ने हैं। उनका यह डायलोग देखिए, कितना दिलचस्प है कि वे सक्रिय राजनीति नहीं करते, मगर राजनीति से अछूते भी नहीं हैं। उनका कहना है कि ईमानदार और पुष्करराज से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही अध्यक्ष पद का दावेदार होना चाहिए, जिससे कि पुष्कर में पनप रहे भ्रष्ट्राचार को विराम दिया जा सके। कांग्रेस के पुराने चावल जगदीश कुर्डिया ने भी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर दी है क्योंकि उनकी पत्नी श्रीमती मंजू कुर्डिया अध्यक्ष रह चुकी है। स्वाभाविक रूप से उन्हें पालिका के कामकाज की पूरी जानकारी है और राजनीति का भी लंबा अनुभव है। गोपाल तिलोनिया सीधे तौर पर दावेदारी तो नहीं रख रहे, मगर ये कहते हैं कि अध्यक्ष पद उसी व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जो काम करने का मादा रखता हो। इसी प्रकार अध्यक्ष पद की लॉटरी अगर ओबीसी के लिए खुलती है तो राजेंद्र महावर दावेदारी के लिए पूरी ताकत लगा देंगे।
पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दामोदर शर्मा पर भी सबकी नजरें टिकी हुई हैं। टिकट मिलना तो बहुत बाद की बात है, मगर उनको पूरी उम्मीद है कि उनके नाम पर कोई आंच नहीं आएगी। उनके साथ दिक्कत ये है कि वरिष्ठ होने के बावजूद गुटबाजी से विलग नहीं हैं। किसी समय पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के नजदीकी रहे शर्मा अब पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के करीबी माने जाते हैं, जो कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खासमखास हैं।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

अगर पुष्कर पर गर्व है तो शर्म क्यों नहीं आती?

आपको यदि इस बात पर गर्व होता है कि ऐतिहासिक पुष्कर के प्रति करोड़ों श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है तो अपनी दुर्गति पर रो रहे पुष्कर को देख कर शर्म क्यों नहीं आती? जो करोड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर जो पुष्कर आपको पाल-पोस रहा है, उसकी सेवा करना क्या आपका कर्तव्य नहीं है? पुष्कर की पावन धरती पर सांस ले रहे हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि उऋण होने के लिए वह पुष्कर को क्या दे रहा है?
अगर आप पुष्कर की आबोहवा में गुजर-बसर कर रहे हैं तो क्या आपको पता है कि:- 
पुराणों में वर्णित तीर्थों में तीर्थराज पुष्कर का महत्वपूर्ण स्थान है। पद्मपुराण के सृष्टि खंड में लिखा है कि किसी समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडिय़ां जमीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा, मध्य के विष्णु व कनिष्ठ के देवता शिव हैं। मुख्य पुष्कर ज्येष्ठ पुष्कर है और कनिष्ठ पुष्कर बूढ़ा पुष्कर के नाम से विख्यात हैं। पुष्कर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्माजी के हाथों (कर) से पुष्प गिरने के कारण यह स्थान पुष्कर कहलाया। राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्माजी ने इस स्थान को पवित्र करने के उद्देश्य से कार्तिक नक्षत्र के उदय के समय कार्तिक एकादशी से यहां यज्ञ किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। उसकी पूर्णाहुति पूर्णिमा के दिन हुई। उसी की स्मृति में यहां कार्तिक माह एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगने लगा।
परम आराध्या देवी गायत्री का जन्म स्थान भी पुष्कर ही माना जाता है। कहते हैं कि यज्ञ शुरू करने से पहले ब्रह्माजी ने अपनी पत्नी सावित्री को बुला कर लाने के लिए अपने पुत्र नारद से कहा। नारद के कहने पर जब सावित्री रवाना होने लगी तो नारद ने उनको देव-ऋषियों की पत्नियों को भी साथ ले जाने की सलाह दी। इस कारण सावित्री को विलंब हो गया। यज्ञ के नियमों के तहत पत्नी की उपस्थिति जरूरी थी। इस कारण इन्द्र ने एक गुर्जर कन्या को तलाश कर गाय के मुंह में डाल कर पीठ से निकाल कर पवित्र किया और उसका ब्रह्माजी के साथ विवाह संपन्न हुआ। इसी कारण उसका नाम गायत्री कहलाया। जैसे ही सावित्री यहां पहुंची और ब्रह्माजी को गायत्री के साथ बैठा देखा तो उसने क्रोधित हो कर ब्रह्माजी को श्राप दिया कि पुष्कर के अलावा पृथ्वी पर आपका कोई मंदिर नहीं होगा।
वाल्मिकी रामायण में भी पुष्कर का उल्लेख है। अयोध्या के राजा त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग में भेजने के लिए अपना सारा तप दाव लगा देने के लिए विश्वामित्र ने यहां तप किया था।
भगवान राम ने अपने पिताश्री दशरथ का श्राद्ध मध्य पुष्कर के निकट गया कुंड में ही किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की। 
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल के कुछ दिन पुष्कर में ही बिताए थे। उन्हीं के नाम पर यहां पंचकुंड बना हुआ है। सुभद्रा हरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में कुछ समय विश्राम किया था। अगस्त्य, वामदेव, जामदग्रि, भर्तृहरि ऋषियों की तपस्या स्थली के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। बताया जाता है कि पाराशर ऋषि भी इसी स्थान पर उत्पन्न हुए थे। उन्हीं के वशंज पाराशर ब्राह्मण कहलाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि वेदों में वर्णित सरस्वती नदी पुष्कर तीर्थ और इसके आसपास बहती है।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

क्या आपको भूमाफिया जनप्रतिनिधि चाहिए?

यह खबर लिखे जाने तक हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी नहीं निकली है, इस कारण चुनावी आकाश पर धुंधलका छाया हुआ है, मगर बावजूद इसके वार्ड मेंबर के चुनाव के लिए दावेदारों ने मालिश शुरू कर दी है। कुछ ने तो पूरा गणित ही बैठा लिया है और मतदाता सूचियों में अपने-अपने हिसाब से नाम जुड़वा दिए हैं। यदि ठीक से जांच की जाए तो सारी पोल खुल जाएगी कि किस वार्ड में क्या बदमाशी की जा रही है। जहां तक ग्राउंड सर्वे का सवाल है, यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि इस बार चुनाव में भूमाफियाओं का बोलबाला रहने वाला है। यानि कि ईमानदार व समर्पित दावेदार तो चुनाव लडऩे की सोच भी नहीं सकता।
पिछले चुनाव का अनुभव बताते हुए हारे हुए एक प्रत्याशी बताते हैं कि वार्ड में उनकी जबरदस्त पकड़ थी और अब भी है। उन्होंने अनेक मतदाताओं के निजी काम करवाए थे। इस कारण उनको पूरा यकीन था कि वे आसानी से जीत जाएंगे, मगर मतदान की पूर्व संध्या में ही पासा पलट गया। समझा जा सकता है कि पासा कैसे पलटा होगा। अगर उनको एक सेंपल के रूप में लिया जाए तो कल्पना कर सकते हैं कि वास्तव में अपनी मातृ भूमि की सेवा करने वालों में चुनाव लडऩे की कितनी इच्छा शेष रह गई होगी।
असल में पुष्कर में तीन तरह के लोग प्रभावशाली हैं। जमीन की दलाली करने वाले, होटल व्यवसायी व एक्सपोर्टर्स। और इन सबसे ऊपर सक्रिय राजनीति करने वाले। इन्हीं के पास राजनीति में पैसा झोंकने की गुंजाइश है। जगहाहिर है कि आज चुनाव में पैसे का कितना बड़ा रोल है। ऐसे में ये लोग ही पुष्कर पालिका चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। जीत जाने अथवा किसी को जितवा देने के बाद ये इन्वेस्ट किए हुए धन का कई गुना दोहन करेंगे। ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार होने जा रहा है। पिछले कई चुनावों से ऐसा होता आया है। तो फिर आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि ये पुष्कर के भले की सोचेंगे। अपना ही घर तो भरेंगे। यदि एक-एक का नाम लेकर बात की जाए तो यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा कि अधिसंख्य जनप्रतिनिधियों ने राजनीति में आने के बाद कितना निजी विकास किया है। अगर राजनीति में दखल रखने वालों ने भला सोचा होता तो आज पुष्कर की बुरी हालत नहीं होती।
पुष्कर की दुर्दशा देख कर सहसा हम सरकार व प्रशासन को कोसते हैं कि वे कुछ नहीं कर रहे, मगर सच्चाई ये है कि यहां के विकास के लिए समय समय पर अतिरिक्त बजट आवंटित हुआ है। बावजूद इसके अगर पवित्र सरोवर स्वच्छ पानी को तरस रहा है, सरोवर के घाटों पर गंदगी पसरी है, सड़कों की दुर्दशा है, अतिक्रमणों की भरमार है तो इसका मतलब ये है कि जो भी राशि सरकार की ओर से आती है, वह या तो ठीक से उपयोग में नहीं लाई गई या फिर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व ठेकेदारों के बीच बंदरबांट में निपट गई।
बेशक पुष्कर का विकास करने की जिम्मेदारी सरकार की है, अजमेर विकास प्राधिकरण व नगर पालिका की है, मगर उतनी ही जिम्मेदारी हमारी है कि हम विकास कार्यों पर नजर रखें, ताकि केन्द्र व राज्य सरकार से विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले धन का दुरुपयोग न हो। इस कड़ी में हम समाजसेवी व बुद्धिजीवी श्री अरुण पाराशर का नाम ले सकते हैं, जिन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग न लेते हुए पुष्कर से जुड़े हर मसले पर गहन अध्ययन करने के बाद सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाया है कि विकास के लिए आने वाले धन का सदुपयोग हो। संभवत: वे इकलौते बुद्धिजीवी हैं, जिनके पास पुष्कर के विकास के लिए अब तक बनी सभी योजनाओं के बारे तथ्यात्मक जानकारी है और फॉलोअप के लिए आरटीआई के जरिए जुटाए गए आंकड़े हैं, जिनसे स्पष्ट दिखता है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है, जिसके बारे में आम मतदाता को कुछ भी नहीं।
श्री पाराशर का जिक्र करने का निहितार्थ यह है यदि हमें पुष्कर में हो रहे विकास कार्यों पर ठीक से निगरानी करनी है तो ऐसे और बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाना होगा। ये प्रयास करना होगा कि भूमाफियाओं की आगामी नगर पालिका चुनाव में कम से कम भूमिका हो। हर वार्ड में आपको ऐसे समाजसेवी मिल जाएंगे, जो कि वास्तव में पुष्कर का विकास चाहते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करना होगा।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

रविवार, 29 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग तेरह

डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर
पत्रकारिता पर तो अक्सर साहित्य से छेड़छाड़ और भाषा को बिगाड़ने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि पत्रकारिता ने हमेशा उस भाषा शैली का इस्तेमाल करने का प्रयास किया है, जिसे आम आदमी आसानी से समझ सके। इस बात से इनकार नहीं है कि यदा कदा कुछ अखबारों ने अपनी ही शब्दावली थोप कर कभी हिंदी को शर्मिंदा किया हो, मगर ऐसे उदाहरण बिरले ही होंगे।
मगर, भाषा को लेकर अक्सर चलने वाले विवादों और बहस के बीच हिन्दी कि साहित्यिक सेवा सेवा करने वाले कुछ भाषा के पुजारी भी रहे जिन्होंने इसे हमेशा इसे पूजा की तरह निभाया।
उनमें से यदि अजमेर से एक बड़ा नाम चुनने की बात आए तो डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर का नाम याद आता है।
मुल्क को आजादी मिलने के अगले वर्ष सन 48 में 27 जून को जन्मीं श्रीमती तंवर 1970 में राजकीय महाविद्यालय अजमेर से हिन्दी में स्नातकोत्तर किया और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर अपनी साहित्य यात्रा का आगाज़ किया।
डॉ तंवर वर्ष 2008 तक सावित्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत रह कर बालिकाओं को हिंदी साहित्य का अपना ज्ञान बांटती रहीं और इस दौरान अपने साहित्यिक सृजन को भी ऊंचाइयों तक ले जाती रहीं। हालांकि अपनी नौकरी से वे जरूर सेवानिवृत्त हैं, लेकिन एक लेखक, कवियत्री या साहित्यकार के रूप में उनकी यात्रा अनवरत है।
"कामायनी एवं उर्वशी महाकाव्यों में कामध्यात्म के नए आयाम" विषय पर अपना शोध पूर्ण कर वर्ष 1987 में राजस्थान विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
श्रीमती तंवर की लेखन विधाओं की बात करें तो,  शायद ही कोई क्षेत्र होगा जो छूटा होगा। गीत, कविता, मुक्तक, हाइकु आदि पद्य के अतिरिक्त के गद्य में समीक्षा, आलेख परिचर्चा, निबंध, कहानियां उनकी साहित्यिक यात्रा में उनके साथी रहे। देश भर की अनेक पत्र पत्रिकाओं (गगनांचल, कदिम्बिनी, अणुव्रत, मुम्बई की युगीन काव्या, कोलकाता की नैणसी, हैदराबाद से प्रकाशित संकल्य व पुष्पक, बड़ौदा की नारी अस्मिता, जबलपुर की दीपशिखा, उदयपुर से प्रकाशित मधुमती, जयपुर की साहित्य समर्था, इंदौर की गुंजन आदि) अनेक पत्रिकाओं ने उनकी रचनाओं को स्थान देकर उनकी विचार शीलता का सम्मान किया।
डॉ शकुंतला तंवर की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं जो साहित्य के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं। वर्ष 2000 में गीत काव्य "मन में कई समंदर, 2003 में कविता संग्रह "सूर्य की साक्षी में", 2013 में हाइकु संग्रह "मखमली छुअन", तथा कविता संग्रह "मुझे भी कुछ कहना है" प्रकाशित हो चुकी हैं, और एक पुस्तक "चिंतन के शिखर पर" प्रस्तावित है।
अमित टंडन
केवल लेखन ही नही, अपितु संपादन भी श्रीमती तंवर का एक पहलू है। 1989 से वर्ष 2007 तक निरन्तर उन्होंने कॉलेज की पत्रिका मृणालिनी का संपादन किया। इसके अतिरिक्त 2011 में आधुनिक काव्य संचयन सहित अनेक न पत्रिकाओं का संपादन अथवा सह संपादन किया। वे आकाशवाणी पर भी सक्रिय रहीं और समय समय पर अनके गोष्ठियों एवं परिचर्चाओं में उनके उपस्थिति नज़र आई। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं व समूहों से जुड़ कर असंख्य काव्य गोष्ठियां, परिचर्चा, विमर्श बैठकों का आयोजन व संचालन वे करती रही हैं और ये क्रम अब भी जारी है। मशहूर पत्रिका कदिम्बिनी की ओर से गठित कदिम्बिनी क्लब की अजमेर इकाई का वर्षों तक संचालन करके उन्होंने अजमेर के कवियों-साहित्यकारों को एक सूत्र में जोड़े रखा। ना केवल वरिष्ठ सृजनकार उनके आयोजनों का हिस्सा रहे, बल्कि नवांकुरों को भी वे मंच प्रदान कर आगे बढ़ाती रहीं।
साहित्य सेवा के लिए उन्हें कई बार अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जाता रहा है। उनकी पुस्तक "मन में कई समंदर" को लखनऊ में केशवचंद्र स्मृति पुरस्कार से नवाज़ा गया; "सूर्य की साक्षी में" पुस्तक को भी वर्ष 2008 में ही जबलपुर में शकुंतला दुबे सम्मान प्रदान किया गया। वर्ष 10 में जैमनी हरियाणवी अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया, वहीं अलवर में जगमग दीप ज्योति की ओर से उन्हें कुमुद टिक्कू सम्मान प्रदान किया गया। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में भी उन्हें साहित्य मधुपर्क व मार्तण्ड सम्मान से नवाज़ा गया।
इतना कार्य करने के बाद भी उनकी उंगलियां अभी भी कलम चलाने से थकी नही हैं औऱ सृजन का सफर जारी है। अजमेर के साहित्य गौरव के रूप में डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर का नाम सबसे ऊपर की पंक्ति में है।

-अमित टंडन
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