बुधवार, 13 जून 2012

अदिति मेहता बनने ही नहीं दिया मंजू राजपाल को

झाडू लगातीं मंजू और ऊपर बेशर्मी से बैठा दुकानदार
अजमेर। जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल अजमेर से चली गईं। वे अपनी पसंद से दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर पंचायतीराज विभाग में डिप्टी सेके्रटरी के पद पर गई हैं। उनका कार्यकाल खास उपलब्धि वाला नहीं रह पाया। आखिर में तो हालत ये हो गई कि बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने खुले आम उनको नकारा और नेगेटिव कलेक्टर कहना शुरू कर दिया और मांग की कि उन्हें हटा दिया जाए। उर्स मेले के दौरान भी उन्हें कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की चादर के दौरान मिस मैनेजमेंट के कारण सांसद डा. प्रभा ठाकुर के हाथों जलील होना पड़ा। उससे भी बड़ी जलालत ये रही कि कांग्रसी नेताओं व प्रशासन के बीच टकराव के मद्देनजर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चादर सकुशल चढ़ाने के लिए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की छुट्टी रद्द कर बुलवाना पड़ा।
आप को याद दिला दें, ये वे ही मंजू राजपाल हैं, जिनके भीलवाड़ा से अजमेर आने पर अनुमान लगाया जाता था कि वे पूर्व लोकप्रिय कलेक्टर स्टील लेडी श्रीमती अदिति मेहता बन कर दिखाएंगी। तब कुछ का ख्याल था कि अजमेर में चूंकि कपड़ा फाड़ राजनीति है, इस कारण उन्हें दिक्कत आएगी तो कुछ मानते थे कि चूंकि यहां कपड़ा फाड़ राजनीति है, सिर्फ इसी कारण उनको अजमेर सूट करेगा। कुछ ऐसे भी थे, जिनकी सोच थी कि अजमेर को मंजू राजपाल और मंजू राजपाल को अजमेर सूट करेगा।
हालांकि मंजू राजपाल का भीलवाड़ा का कार्यकाल लुंजपुज ही रहा, मगर अजमेर में आते ही उन्होंने अपना मिजाज बदल लिया। उन्होंने नगर निगम के नौसीखिये मेयर कमल बाकोलिया का डुलमुल रवैया देख कर फटेहाल निगम के कामकाज में टांग फंसाने का साहस कर दिखाया। हालांकि इससे कुछ घाघ कांग्रेसी पार्षदों को बड़ी तकलीफ हुई और वे इसे निगम की स्वायत्तता पर हमला बता रहे थे, लेकिन मंजू राजपाल ने भी तय कर लिया था कि शहर की यातायात व्यवस्था और अतिक्रमणकारी दुकानदारों को दुरुस्त करके ही रहेंगी। अजमेर वासी होने के नाते संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा भी उनकी मदद कर रहे थे। यह एक आदर्श स्थिति थी। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही थी कि वे अदिति मेहता को भी पीछे छोड़ देंगी। मगर अफसोस कि ऐसा हो नहीं पाया।
जहां तक उनके जज्बे का सवाल है, तो वह कितना था यह इसी से साबित होता है कि उनकी पहल पर जिला प्रशासन ने राजस्थान दिवस पर सफाई के लिए एक अनूठे तरीके से संदेश दिया। न केवल मंजू राजपाल ने झाडू लगाई, अपितु उनके साथी अफसरों, नगर निगम के महापौर कमल बाकोलिया ने भी उनका साथ दिया। तब एक दृश्य तो ऐसा उत्पन्न हो गया था, जिसमें मंजू राजपाल तो झाडू लगा रही थीं, जबकि उनके ठीक ऊपर दुकान को आगे बढ़ा कर अस्थाई अतिक्रमण किए दुकानदार बेशर्मी से बैठे हुआ था। इस मुद्दे को उठाते हुए अजमेरनामा ब्लाग में लिखा था कि दुकानदार को उसे तनिक भी अहसास नहीं कि जिले की हाकिम खुद झाडू हाथ में लेकर खड़ी हैं, और वह आराम से हाथ पर हाथ धरे बैठे ताक रहा था, मानो कोई सफाई कर्मचारी सफाई कर्मचारी सफाई करने को आई है। उसे ये भी ख्याल नहीं कि झाडू लगाना कलेक्टर का काम नहीं है। वे तो संदेश दे रही हैं। आज अजमेर में हैं, कल कहीं और चली जाएंगी।
कहने का तात्पर्य ये कि वह दृश्य यह बताने को काफी था कि आम अजमेरवासी कितना उदासीन सा है। आम नागरिक ही क्यों, हमारे जनप्रतिनिधि भी सफाई के प्रति कितने जागरूक हैं, यह इसी से साबित होता है कि जिला कलेक्टर ने नगर निगम के सभी पार्षदों को भी इस अभियान की शुरुआत में साथ देने का न्यौता दिया था, मगर शहर वासियों की सेवा करने के नाम पर वोट मांगने वाले अधिसंख्य पार्षद इसमें शरीक नहीं हुए। क्या कांग्रेस के, क्या भाजपा के। शहर के विकास में कंधे से कंधा मिला कर चलने की वादा करने वाले उप महापौर अजित सिंह राठौड़ भी नदारद थे। तब अपुन ने लिखा था कि ऐसे में एक क्या हजार मंजू राजपालें आ जाएं, हमें कोई नहीं सुधार सकता।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि ऐसी जज्बे वाली अफसर नाकामयाब हो गई? असल में अकेले वे ही नहीं, उनका साथ दे रहे संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा का भी यही हाल रहा। वे भी अजमेर के लिए कुछ करना चाहते हैं, मगर साथ ही दुर्भाग्य ये भी है कि वे कई बार मजबूत होने के बाद भी राजनीतिक कारणों से मजबूर साबित हुए हैं। हालत ये है कि अब वे उनसे मिलने जाने वालों के सामने राजनीतिज्ञों व आम जनता का सहयोग न मिलने का रोना रोते दिखाई देते हैं। उन्हें बड़ा अफसोस है कि वे अपने पद का पूरा उपयोग करते हुए अजमेर का विकास करना चाहते हैं, मगर जैसा चाहते हैं, वैसा कर नहीं पाते। आपको याद होगा कि दोनों अधिकारियों के विशेष प्रयासों से शहर को आवारा जानवरों से मुक्त करने का अभियान शुरू हुआ, मगर चूंकि राजनीति में असर रखने वालों ने केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट का दबाव डलवा दिया, इस कारण वह अभियान टांय टांय फिस्स हो गया। अतिक्रमण हटाने व यातायात व्यवस्था सुधारने के मामले में भी राजनीति आड़े आ गई। यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए वन-वे करने का निर्णय उसी राजनीति की भेंट चढ़ गया। पशु पालन की डेयरियों को अजमेर से बाहर ले जाने की कार्यवाही शुरू करने का ऐलान को भी राजनीति जीम गई।
इसी प्रकार यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए जवाहर रंगमंच के बाहर बनी गुमटियों को दस साल की लीज समाप्त होने के बाद हटाया गया तो शहर के नेता यकायक जाग गए। कांग्रेसी पार्षदों ने वोटों की राजनीति की खातिर गरीबों का रोजगार छीनने का मुद्दा बनाते हुए जेसीबी मशीन के आगे तांडव नृत्य कर बाधा डालने की कोशिश की, वहीं भाजपा दूसरे दिन जागी और कांग्रेसी पार्षदों पर घडिय़ाली आंसू बहाने का आरोप लगाते हुए प्रशासन को निरंकुश करार दे दिया। गुमटियां तोडने पर इस प्रकार उद्वेलित हो कर नेताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि प्रशासन तो जन-विरोधी है, जबकि वे स्वयं गरीबों के सच्चे हितैषी। विरोध करने वालों को इतना भी ख्याल नहीं आई कि अगर वे इस प्रकार करेंगे तो प्रशासनिक अधिकारी शहर के विकास में रुचि क्यों लेंगे। केवल नौकरी ही करेंगे न। और यही हुआ। बाद में मंजू राजपाल ने भी तय कर लिया कि वे अब सिर्फ नौकरी ही करेंगी।
मंजू राजपाल का नकारात्मक पहलु ये रहा कि वे रिजर्व नेचर की हैं। इस कारण हंसने की जगह भी मुस्करा भर देती हैं। उनका यह मिजाज अजमेर की प्रभारी मंत्री श्रीमती बीना काक का पसंद नहीं आया। उन्होंने गणतंत्र दिवस समारोह के नीरस होने पर तो यहीं नाराजगी जताई और जयपुर जा कर इस बात पर भी अफसोस जताया कि श्रीमती राजपाल हंसती नहीं हैं। दिलचस्प बात ये है कि उनके इस न हंसने की प्रवृत्ति पर भी बड़ी चर्चा हुई। जिले के तीन विधायक उनकी ढाल बनने की कोशिश करते हुए उनके व्यवहार की तरफदारी कर रहे थे। हालांकि बाद में मंजू राजपाल ने जैसे तैसे बीना काक को राजी किया और पिछले गणतंत्र दिवस समारोह में उनकी शाबाशी हासिल कर ली। खैर, कुल मिला कर उनका रूखा और रिजर्व व्यवहार की उनके लिए परेशानी का कारण बन गया। अधिकतर नेता इसी कारण नाखुश हो गए थे कि वे किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थीं। ऐसे में टंडन को उनके खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ा।
लब्बोलुआब, जब मंजू राजपाल रिलीव हुईं तो किसी को कोई मलाल नहीं था। अंदर ही अंदर सभी खुश थे। केवल चंद अधिकारियों ने उन्हें औपचारिक विदाई दे कर छुट्टी पाई।

-तेजवानी गिरधर
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