शनिवार, 28 दिसंबर 2019

क्या हाड़ा देवनानी व भदेल की छाया से मुक्त रह पाएंगे?

अजमेर। यह ठीक है कि भाजपा हाईकमान ने पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के चहेते रमेश सोनी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की पसंद आनंद सिंह राजावत को दरकिनार करते हुए डॉ. प्रियशील हाड़ा को शहर भाजपा अध्यक्ष बना कर दोनों क्षत्रपों को झटका दिया है, मगर अहस सवाल ये है कि क्या हाड़ा इन दोनों की छाया से मुक्त रह पाएंगे? अब तक का अनुभवे तो यही बताता है कि एक भी पूर्व अध्यक्ष इन दोनों के वजूद से इतर अपना वजूद खड़ा नहीं कर पाया है। दिलचस्प बात ये है कि यह स्थिति केडर बेस पार्टी की है।
चाहे पूर्व एडीए चेयरमेन शिव शंकर हेड़ा के दो कार्यकाल हों, या फिर पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत व अरविंद यादव का कार्यकाल, पिछले सोलह साल से स्थानीय भाजपा में देवनानी व भदेल का ही वर्चस्व रहा है। ऐसे में यह सवाल जायज है कि क्या हाड़ा इन दोनों के आभा मंडल से अलग अपना ओरा खड़ा कर पाएंगे?
असल में देवनानी व भदेल लगातार चार बार जीते हुए विधायक व राज्य मंत्री रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं में अधिसंख्य कहीं न कहीं इनके कृपा पात्र रहे हैं। इनकी अपनी फेन फॉलोइंग है। पार्टी अध्यक्षों की अपनी कोई खास टीम नहीं रही है। यही वजह है कि अध्यक्ष कोई भी हो शहर भाजपा पर इन दोनों का ही कब्जा रहा है। बेशक हेड़ा ने पिछले कार्यकाल में अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश की, मगर वे कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में शहर भाजपा की कमान भले ही हाड़ा के हाथ में हो, मगर यह संशय बना ही हुआ है कि क्या वे देवनानी व भदेल के प्रभाव से मुक्त रह पाएंगे।
यह प्रत्यक्ष नजर आता है कि भले ही हाड़ा की नियुक्ति से देवनानी व भदेल को झटका लगा है। देवनानी को कुछ ज्यादा ही लगा है, क्योंकि उनके बारे में यह स्थापित कयास था कि वे अपने चहेते रमेश सोनी को अध्यक्ष बनवाने में कामयाब हो जाएंगे। जरा और डीप में जाएं तो ऐसा लगता है कि देवनानी इतने चतुर हैं कि हाड़ा का झुकाव अपनी ओर करवा ही लेंगे। इस प्रकार का परसेप्शन पूर्व अध्यक्ष अरविंद यादव के बारे में भी था। यह सही है कि हाड़ा ने अध्यक्ष पद के चुनाव में श्रीमती भदेल के मोहरे आनंद सिंह राजावत का प्रस्तावक बन कर ऐसा दर्शाया कि वे भी भदेल खेमे के हैं, लेकिन अब जब कि वे खुद ही अध्यक्ष बन बैठे हैं तो भदेल से उनकी नाइत्तफाकी हो ही जाएगी। कारण कि भाजपा में भदेल के मुकाबले दूसरा कोली नेता उठ कर आ गया है। भदेल को इससे परेशानी होगी। ज्ञातव्य है कि हाड़ा जब मेयर का चुनाव लड़े थे, तब भदेल पर निष्क्रियता का आरोप लगा था। अपनी हार से आहत हाड़ा के मन में यह फांस पड़ी हुई होगी। इसका फायदा देवनानी उठाएंगे। वे भदेल के खिलाफ हाड़ा को सपोर्ट करेंगे। और आखिरकार हाड़ा चाहे-अनचाहे देवनानी की ओर झुक जाएंगे। यानि कि देवनानी का अजमेर उत्तर में तो कब्जा है, अब हाड़ा के जरिए दक्षिण पर भी कब्जा हो जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
77420670
tejwanig@gmail.com

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

हाड़ा के अध्यक्ष बनने से बिगड़ा भाजपा का जातीय समीकरण

अजमेर। बेशक भाजपा हाईकमान ने पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के चहेते रमेश सोनी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की पसंद आनंद सिंह राजावत को दरकिनार करते हुए डॉ. प्रियशील हाड़ा को शहर भाजपा अध्यक्ष बना कर दोनों क्षत्रपों को झटका दिया है और गुजबाजी को खत्म करने की कोशिश की है, लेकिन इससे शहर में भाजपा का जातीय समीकरण बिगड़ गया है। शहर की एक विधायक की सीट पर सिंधी के रूप में देवनानी का कब्जा है तो दूसरी सीट पर कोली जाति की श्रीमती भदेल काबिज हैं। तीसरे महत्वपूर्ण पद मेयर की सीट भी अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है। वर्तमान में मेयर की सामान्य सीट पर ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत बैठे हुए हैं और डिप्टी मेयर की सीट पर भी ओबीसी के संपत सांखला को बैठा रखा है। ऐसे में सामान्य वर्ग को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है। जिला प्रमुख का पद सामान्य के लिए आरक्षित है, मगर उसे शहर में शामिल नहीं माना जा सकता।
हाड़ा की नियुक्ति एक व्यक्ति के रूप में एक बेहतर निर्णय के रूप में मानी जा रही है, मगर उनकी छवि एक जुझारू नेता की नहीं है, जिसकी कि विपक्ष में बैठी भाजपा को जरूरत है। वे एक प्राइवेट डॉक्टर हैं। यही उनकी आजीविका का साधन है। ऐसे में वे विपक्ष में रूप में आए दिन विरोध प्रदर्शन आदि के लिए पूरा समय निकाल पाएंगे, इसमें तनिक संदेह है। हां, इतना जरूर है कि वे तीसरे विकल्प के रूप में सामने आए हैं, इस कारण देवनानी व भदेल के दो गुटों में बंटी पार्टी में वे संतुलन बैठा सकते हैं।
ताजा हालात में कुछ लोग उन्हें अनिता भदेल के नजदीक इसलिए मान रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अनिता भदेल की पसंद आनंद सिंह राजावत के नाम का प्रस्तावक बनना मंजूर किया, मगर उन्हीं को अध्यक्ष बना दिए जाने से अनिता को नागवार गुजरा होगा।भदेल के लिए यह नियुक्ति कुछ तकलीफदेह हो सकती है, क्योंकि अब तक भाजपा में कोली समाज में एक मात्र बड़ी नेता हैं, अब एक और नेता पावर सेंटर बन जाएगा। ज्ञातव्य है कि जब हाड़ा मेयर का चुनाव हारे थे, तब यही परसेप्शन बना था कि उनकी अरुचि के कारण ही हाड़ा हारे हैं। ऐसा इसलिए कि कोई भी नेता अपनी ही जाति में किसी और को आगे बढ़ता हुआ देखना पसंद नहीं कर सकता।
कुछ लोगों का मानना है कि अनिता की तुलना में देवनानी को ज्यादा बड़ा झटका लगा है। यह माना जा रहा था कि वे सोनी को नियुक्त करवाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाए हुए थे। येन-केन-प्रकारेन सोनी के ही अध्यक्ष बनने की संभावना जताई जा रही थी। खुद सोनी भी आश्वस्त थे।
हाड़ा के अध्यक्ष बनने से पार्षद जे. के. शर्मा को भी झटका लगा है। सोनी व राजावत की लड़ाई में उनका नंबर आता दिख रहा था। एक पार्षद के रूप में उन्होंने साफ सुथरी छवि बना रखी है। वे मेयर पद के भी दावेदार रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये कि उन पर भाजपा के दिग्गज राष्ट्रीय नेता भूपेन्द्र सिंह यादव का हाथ है, फिर भी उनको चांस नहीं मिल पाया।
हाड़ा के शहर अध्यक्ष बनने का एक साइड इफैक्ट ये है कि अब उनकी पत्नी की मेयर पद की संभावित दावेदारी कमजोर हो जाएगी। चूंकि शहर अध्यक्ष कोली व विधायक भी कोली जाति से है, ऐसे में भाजपा हाईकमान पर ये दबाव रहेगा कि वे किसी और अनुसूचित जाति की महिला पर दाव खेले। ऐसे में जिला प्रमुख श्रीमती वंदना नोगिया उभर कर आ सकती हैं। नए समीकरण से पहले भी उनकी दावेदारी मजबूत मानी जाती रही है। हालांकि पूर्व सभापति श्रीमती सरोज जाटव भी दावेदार हैं, मगर अपेक्षाकृत कमजोर। उनके अतिरिक्त पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा के परिवार की किसी महिला की दावेदारी मानी जा रही है।
स्वयं हाड़ा के लिए उनकी नियुक्ति राजनीति का एक सुखद मोड़ है। एक तरह से उनका यह राजनीतिक नवोदय है। मेयर के चुनाव हारने के बाद भले ही वे शहर महामंत्री बने, मगर पहली पंक्ति के नेताओं में उनकी गिनती नहीं थी। उनका नाम अध्यक्ष पद की  दावेदारी में कहीं भी नहीं था। वे तो अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने गए आनंद सिंह राजावत के प्रस्तावक थे। एक प्रस्तावक को ही अध्यक्ष बना दिया जाना वाकई चौंकाने वाला है।
कुछ जानकारों का मानना है कि हाड़ा की नियुक्ति अनुसूचित जाति वर्ग को खुश करने के लिए की गई है, ताकि उसका लाभ मेयर के चुनाव में मिले।
राजनीति की बारीक समझ रखने वाले मानते हैं कि आज भले ही श्रीमती भदेल अपने आप को मेयर चुनाव से अलग कर रही हैं, मगर आखिर में वे ही पहले नंबर पर होंगी। उनके मुकाबले दूसरा बेहतर प्रत्याशी भाजपा के पास है भी नहीं। साधन-संपन्नता व कार्यकर्ताओं के नेटवर्क के हिसाब से। वे जानती हैं कि एक विपक्षी विधायक की तुलना में मेयर बनना ज्यादा अच्छा है। देखते हैं आगे-आगे होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर
77420670
tejwanig@gmail.com

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल पर कितनी विह्वल होगी स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा की आत्मा

गुरुवार, 19 दिसंबर। आज से ठीक चार साल पहले अजमेर के एक ऐसे लाल को काल के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया, जिसने स्मार्ट सिटी बनने वाले अजमेर को एक सपना दिया था। वह सपना कितना कीमती था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनको उस सपने के लिए बाकायदा पुरस्कृत किया गया।
आपको याद होगा कि मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मिल कर अजमेर सहित दो शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी। इसी सिलसिले में 2 अक्टूबर 2015 को अजमेर नगर निगम ने ऑन लाइन सुझाव मांगे थे। तब शहर के जाने-माने वकील व पत्रकार स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा ने दस पेज का एक सुझाव सौंपा था कि कैसे इस पुरानी बसावट वाले शहर को स्मार्ट किया जा सकता है। उनके सुझाव को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए निगम ने 29 नवंबर 2015 को उन्हें एक समारोह में प्रमाण पत्र के साथ पंद्रह हजार रुपए का नकद पुरस्कार दिया, जिसमें तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व आयुक्त एच. गुईटे मौजूद थे। समझा जा सकता है कि उन्होंने कितने महत्वपूर्ण सुझाव दिए होंगे। आज जब हम स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल को देखते हैं तो स्वर्गीय श्री हाड़ा की पांचवीं पुण्यतिथी पर बरबस उनकी याद आ जाती है। अगर वे हयात होते तो अपनी आंखों से देखते कि उन्होंने जो सपना नगर निगम को सौंपा था, उसका हश्र क्या हो रहा है? बेशक उनकी आत्मा विह्वल होगी कि उन्होंने जो सुझाव दिए, जिन्हें कि सराहा भी गया, उस पर अमल में कितनी कोताही बरती जा रही है।
किसी समारोह में पति के साथ श्रीमती चांदनी हाडा
प्रसंगवश बता दें कि स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा पेशे से मूलत: वकील थे, मगर पत्रकारिता में भी उनको महारत हासिल थी। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में कोर्ट की रिपोर्टिंग की। बाद में दैनिक भास्कर से जुड़े, जहां उनके भीतर का पत्रकार व लेखक पूरी तरह से पुष्पित-पल्लवित हुआ। उन्होंने पत्रकारिता में आए नए युवक-युवतियों को तराश कर परफैक्ट पत्रकार बनाया। वे एक संपूर्ण संपादक थे, जिनमें भाषा का पूर्ण ज्ञान था, समाचार व पत्रकारिता के सभी अंगों की गहरी समझ थी। अजयमेरू प्रेस क्लब का संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। उनकी अंत्येष्टि के समय पार्थिव शरीर से उठती लपटों ने मेरे जेहन में यह सवाल गहरे घोंप दिया कि क्या कोई कड़ी मेहनत व लगन से किसी क्षेत्र में इसलिए पारंगत होता है कि वह एक दिन इसी प्रकार आग की लपटों के साथ अनंत में विलीन हो जाएगा? खुदा से यही शिकवा कि यह कैसा निजाम है, आदमी द्वारा हासिल इल्म और अहसास उसी के साथ चले जाते हैं। वे अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर मुझ सहित अनेक लोगों के जेहन में जिंदा हैं। चलो, वे बहुत सारा अर्जित ज्ञान अपने साथ ले गए, लेकिन संतोष है कि नगर निगम को अपना सपना जरूर सौंप गए। मगर साथ ही अफसोस भी है कि उस सपने को पूरा होने पर नौ दिन चले, अढ़ाई कोस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
स्वर्गीय श्री हाड़ा की पुण्यतिथी पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चांदनी हाड़ा के अहसासात को जानने की कोशिश की तो उन्होंने कुछ इस तरह अपना अनुभव बांटा:- उन्होंने पुरस्कार स्वरूप मिली राशि से अपने पिता, बहिन, पत्नी, पुत्र व छोटे भाई के दोनों बच्चों को रणथंभोर की यात्रा करवाई। उन्होंने करीब आठ सौ सीढिय़ां चढ़ कर गणेश जी की प्रतिमा से क्या कुछ मांगा था, समझ में नहीं आया। मगर उसका परिणाम ये हुआ कि पिताश्री का गणेश जी पर से विश्वास उठ गया। आज वे कहते हैं कि मैं गणेश जी को नहीं मानता। स्वाभाविक है कि जिस पिता ने वृद्धावस्था में अपने जवान बेटे खोया होगा, उसकी आस्था तो टूटेगी ही। मेरे व परिवार के सपने तो विधाता ने छीन लिए मगर मेरे पति को असली श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके सपने को हम अजमेर वासी साकार होता हुआ देखें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग बाईस
श्री विकास छाबड़ा
छोटे समाचार पत्रों के संचालकों में श्री विकास छाबड़ा आज एक जाना-पहचाना नाम है। एक पत्रकार के रूप में उनकी सोच पूरी तरह से सकारात्मक है। बेशक सिस्टम में खामी पर पूरा प्रहार करते हैं, मगर व्यक्ति विशेष के खिलाफ लिखने से सदैव परहेज रखते हैं। पीत पत्रकारिता से उन्हें सख्त नफरत है। यही प्रवृति उन्हें साफ सुथरे पत्रकारों की श्रेणी में खड़ा करती है। इसी आधार पर वे किशनगढ़ उपखंड व अजमेर जिला स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं।
अजमेर जिले में छोटे समाचार पत्रों की दुनिया में श्री विकास छाबड़ा संभवत: इकलौते पत्रकार हैं, जो अपने पाक्षिक समाचार पत्र रोशन भारत को दस साल से न केवल नियमित प्रकाशित कर रहे हैं, अपितु उसकी विषय वस्तु पर पूरा ध्यान देते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि उनका हर अंक बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से पठनीय बनाया जाता है। उसमें आपको कॉपी-पेस्ट अथवा इंटरनेट से मैटर उठा कर पेज भरने की प्रवृत्ति कभी नहीं पाएंगे। मल्टी कलर प्रिटिंग के साथ उम्दा क्वालिटी का पेपर काम में लेते हैं।  जाहिर तौर पर छपाई महंगी होती होगी, मगर उसकी भरपाई विज्ञापनों से भलीभांति कर लेते हैं। उनका सारा ध्यान जनसमस्याओं व ज्वलंत विषयों पर रहता ही है, साथ ही वर्तमान भौतिक युग के अनुसार कमर्शियल आस्पेक्ट का पूरा ख्याल रखते हैं, जो कि किसी भी समाचार पत्र को जिंदा रहने के लिए बेहद जरूरी होता है। फ्री डिस्ट्रीब्यूशन का कोई सिस्टम शुरू से ही नहीं रखा गया। उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण व सरकारी महकमों को छोड़ कर सभी पेड कस्टमर बनाए हैं। अखबार को प्राण वायु देने के लिए मार्केटिंग पर पूरा फोकस रखा व इसके लिए टीम भी बना रखी है।
श्री विकास छाबड़ा ने दैनिक भास्कर की सरक्यूलेशन एजेंसी से पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया। उसके बाद भास्कर की एड एजेंसी को बहुत खूब चलाई। इसी दरमियां दैनिक भास्कर का किशनगढ़ ब्यूरो ऑफिस इनके बिल्डिंग परिसर में खुल गया। उन्हें अखबार में लिखने का शौक तो जब ग्यारहवीं क्लास में थे, तभी लग गया। उस वक्त नवज्योति में मंच हमारा आवाज आपकी नाम से पाठकों के लिए कॉलम में वे शहर की समस्याओं को उठाया करते थे। उन्होंने सीकर से प्रकाशित दैनिक उद्योग आस पास व उसके बाद अजमेर से प्रकाशित सरेराह अखबार में भी बतौर ब्यूरो चीफ काम किया। उसके बाद खुद का अखबार रोशन भारत शुरू किया।
इससे पूर्व श्री छाबड़ा ने किशनगढ़ दर्पण, मकराना दर्पण, पीसांगन दर्पण, रूपनगढ़ दर्पण, मार्बल डायरेक्ट्री जैसी पुस्तकों के साथ किशनगढ़ जैन दिग्दर्शिका, किशनगढ़ अग्रवाल दिग्दर्शिका, शासन प्रशासन पुलिस सम्पर्क सूत्र दिग्दर्शिका, जैन दर्पण आदि कई पुस्तकों का प्रकाशन किया है।
श्री छाबड़ा ने रोशन भारत के अजमेर संस्करण के साथ ही जयपुर संस्करण का प्रकाशन भी शुरू किया। अजमेर संस्करण का विमोचन पिंक सिटी प्रेस क्लब जयपुर में किया तो जयपुर संस्करण का विमोचन काचरिया पीठ के पीठाधीश्वर जयकृष्ण जी देवाचार्य के सान्निध्य में किशनगढ़ के होटल हेलीमेक्स में किया गया। उनकी एक पुस्तक किशनगढ़ दर्पण के एक अंक का विमोचन में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने किया।
पाठकों से बेहतर जुड़ाव के लिए फंडे भी इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में रोशन भारत ने अपने पाठकों के लिए जीतो इनाम की शानदार क्विज शुरू की। किशनगढ़ के आर.के. कम्यूनिटी सेन्टर में हाल ही आयोजित पुस्कार वितरण समारोह का स्तर इतना भव्य रखा गया कि लोग इसे किशनगढ़ का नं. 1 प्रोग्राम का दर्जा दे रहे है।
श्री छाबड़ा केवल स्वयं काम करने में विश्वास न करके स्टॉफ व टीम से काम करवाना ज्यादा बेहतर समझते है। उनका मानना है कि जो काम पैसे से हो सकता है, उसके लिए खुद मत उलझो। अपनी शक्ति और बेहतर करने में लगाओ। यही उनकी सफलता का राज प्रतीत होता है। एक पाक्षिक समाचार के सफलतम प्रकाशन के जरिए शानदार लिविंग स्टैंडर्ड मैन्टेन करना कोई उनसे सीखे।

-तेजवानी गिरधर
7742067000