सोमवार, 7 जनवरी 2013

थानेदार बागी हुए तो क्या करेंगे पालीवाल साहब?


अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक लोकेश सोनवाल के थानेदारों से मंथली वसूलने के मामले में लपेटे में आने और एक दर्जन थानेदारों को लाइन हाजिर करने के बाद पूरे पुलिस महकमे का इकबाल खत्म हो चुका है। मगर ऐसा लगता है कि आईजी पुलिस  चैन की बंसी बजा रहे हैं और आने वाली मुसीबत से पूरी तरह बेखबर बने हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि आज आम जनता तो हर पुलिस वाले को शक की नजर से देख ही रही है, लाइन हाजिर थानेदार भी बगावती तेवर अख्तियार करने का मानस बना चुके हैं, ऐसे में पूरे पांच दिन की चुप्पी तोड़ते हुए आईजी अनिल पालीवाल को मीडिया के सामने अवतरित होने का ख्याल आया। उन्हें चिंता लगी कि जर्जर हो चुके पुलिस तंत्र के बारे में जनता में विश्वास कायम किया जाना चाहिए। असल में सच इससे कुछ अलग है। वे तो मीडिया के सामने आए थे अपनी पीठ थपथपाने को कि देखिए 12 थानेदार नए लगाए जाने के बाद भी उन्होंने मूर्ति चोर गिरोह का भंडाफोड़ करवा दिया है। उन्हें ख्याल ही नहीं था कि पत्रकार उन्हें छील कर रख देंगे। प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजमेर के तेज तर्रार पत्रकारों ने उनको जम कर घेरा। कई बार तो वे बगलें झांकने की स्थिति में आ गए क्योंकि पत्रकारों ने पुलिस तंत्र के अंदर की जितनी जानकारी उन्हें दी, वे चकित रह गए। एक पत्रकार एनडीटीवी के ब्यूरो चीफ मोइन ने जब उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि पिछले पांच दिन से पुलिस वाले आम जनता से आंखें तक नहीं मिला पा रहे हैं, लाइन हाजर थानेदार बगावती तेवर में आने को आतुर हैं, आपने उनका विश्वास बढ़ाने के लिए क्या किया? जाहिर सी बात है कि उनके पास कोई जवाब नहीं था। तब उन्हें ख्याल आया कि मौजूदा विषम हालात में पुलिस का इकबाल कायम करने और आमजन में विश्वास फिर स्थापित करने की जिम्मेदारी उनकी ही है। इस पर उन्होंने बाकायदा सूचना केन्द्र के जरिए प्रेस रिलीज जारी करवाई। इसमें उन्होंने दावा किया कि पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की मुस्तैदी से रेंज के अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर व टोंक जिलों में नागरिकों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए हाई-वे तथा मुख्य मार्गों पर रात्रि गश्त बढ़ाई गई है और बीट प्रणाली को मजबूत बनाया गया है। दावा ये भी था कि खुद उन्होंने पुलिस अधिकारियों की मीटिंग लेना शुरू कर दिया है। इस सिलसिले में उन्होंने पुलिस की पुरानी उपलब्धियों को भी गिनाया।
उनकी इन बातों पर भले ही आम जनता यकीन भी कर ले, मगर लाइन हाजिर किए गए थानेदारों का जो तेवर बताया जा रहा है, उससे निपटना बेहद मुश्किल काम होगा। ज्ञातव्य है कि पुलिस अनुशासन के चलते कानाफूसी में ही सही, मगर मीडिया ने खुलासा कर दिया है कि लाइन हाजिर किए गए थानेदार कहने लगे हैं कि हमें मारा, तो सब मरेंगे। हम डिप्टी से लेकर आईपीएस, मंत्री, राजनीतिक दलों तक को मंथली देते हैं। इन दलों की रैलियां, उनके भोजन के पैकेट, भीड़ ले जाने के लिए गाडिय़ां कौन उपलब्ध करवाता है। वे तो यहां तक कह रहे बताए कि उन्होंने मुंह खोला तो प्रदेश के 30-40 आईपीएस भी निपट जाएंगे। इनमें एसीबी के अफसर भी तो शामिल हैं। उनका यह रवैया बेहद घातक मोड़ पर ले जा सकता है। सब जानते हैं कि हमारा पुलिस तंत्र अनुशासन में बंधा हुआ है, मगर कम से कम अजमेर में ऐसे हालात हो चुके हैं, जब कि पूरी पुलिस एक बार बगावत पर उतर आई थी। तत्कालीन मेयर धर्मेन्द्र गहलोत के नेतृत्व में कलेक्ट्रेट में हुए प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज के बाद जब पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की गई तो 8 जनवरी 2008 को पूरा पुलिस महकमा उखड़ गया था। न तो पुलिस कर्मी फील्ड में आए और न ही पुलिस लाइन में उन्होंने मैस का खाना खाया। अजमेर पुलिस के इतिहास में वह काला दिन दर्ज है। बड़ी मुश्किल से मामला कंट्रोल किया जा सका था। ताजा मामले में तो एक साथ 12 थानेदार लपेटे में आ रहे हैं, जिनका यह मन्तव्य है कि अगर राजनेता व बड़े अफसर मंथली लेते हैं तो उनका इसमें क्या दोष है? पालीवाल ने अगर समय रहते हालात पर काबू न पाया तो बगातव की यह सुलगती आग पूरे राजस्थान को भी लपेटे में ले सकती है।
-तेजवानी गिरधर