सोमवार, 30 सितंबर 2019

दंगल सजने से पहले मालिश कर रहे हैं चुनावी पहलवान

कई नेताओं को है पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी निकलने का इंतजार 
पुष्कर। आसन्न नगर निकाय चुनाव में हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए लॉटरी नहीं निकली है, अर्थात अभी ये पता नहीं कि अध्यक्ष किस कैटेगिरी का होगा, बावजूद इसके संभावनाओं के इस दंगल में शिरकत करने के लिए तकरीबन सात दावेदारों ने तो खुल्लम खुल्ला दावेदारी जताने का मानस बना रखा है, वहीं तकरीबन नौ ने सपने संजो रखे हैं कि लॉटरी निकलेगी, उसी के अनुरूप निर्णय लेंगे। मुंगेरीलाल के सपनों का राज खुल जाने के बाद दावेदारों का असली खेल शुरू हो जाएगा। कोई सच में दावा करेगा तो कोई किसी को निपटाने की तैयारी करेगा। दिलचस्प बात ये है कि कई नेताओं ने तो गुट बना कर हर विकल्प खुला छोड़ रखा है। जैसे ही लॉटरी खुलेगी, वे अपना पत्ता खोल देंगे। आपको बता दें कि आगामी 3 अक्टूबर को साफ हो जाएगा कि पालिका अध्यक्ष किस कैटेगिरी को होगा, तभी चुनावी आकाश पर छाये बादल छटेंगे।
यदि लॉटरी सामान्य पुरुष के लिए निकलती है तो सबसे पहले व प्रबल दावेदार स्वाभाविक रूप से मौजूदा अध्यक्ष कमल पाठक होंगे, मगर अभी वे अपना मन नहीं बना पाए हैं। उसकी वजह कदाचित ये होगी कि पिछली बार तो पार्टी हाईकमान की सरपरस्ती में पार्षदों के बहुमत के आधार पर अध्यक्ष बन गए, लेकिन सीधे चुनाव में जीत का गणित क्या होगा, उसको ले कर संशय हो सकता है। दावे चाहे जितने कर लें, मगर सिटिंग अध्यक्ष होने के कारण एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर दिक्कत कर सकता है।
दूसरे प्रबल दावेदार हैं अरुण वैष्णव। वे ऊर्जा से लबरेज हैं और टिकट मिलने पर पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने का मन बनाए हुए हैं। उन्हें यकीन है कि पार्टी उनको सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। मौजूदा बोर्ड पर तंज कसते हुए खम ठोक कर कहते हैं कि तीर्थ की मर्यादा को न मानने वाला दावेदारी कर भी कैसे सकता है।
वार्ड नंबर 2 की पार्षद रही मंजू डोलिया यूं तो नवनिर्मित वार्ड 17 या 15 से पार्षद का चुनाव लडऩे का मन बना चुकी है, परंतु यदि सामान्य पुरुष या महिला की लॉटरी निकलती है तो वे अपनी दावेदारी प्रमुखता से करेंगी। उनकी दावेदारी में दम की वजह भी है। 300 वोटों से विजयी होना और दो बार निर्दलीय विजेता बन कर पिछले 20 सालों में उन्होंने खुद को साबित कर दिखाया है।
इसी प्रकार भाइयों की कलह के शिकार बाबूलाल दगदी व जयनारायण दगदी भाजपा व कांग्रेस से दावेदारी जता रहे हैं। उनका कहना है कि अनुभव से ही राजनीति संभव है। पुष्कर में फैले नशा कारोबार पर अंकुश, गंदगी से निजात व होटल व्यवसाय को सुचारू करना उनकी प्राथमिकता में है।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके शिवस्वरूप महर्षि ने 5-6 पार्षदों का जाल बिछा कर अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। एक तो राजनीति के अनुभव को भुनाने का वक्त आ गया है और दूसरा पार्टी आलाकमान का भी उन्हें संरक्षण प्राप्त है। उनका कहना है कि काम की प्राथमिकता वक्त के साथ-साथ सुनिश्चित की जाएगी।
पुष्कर नारायण भाटी पुष्कर वासियों के बीच चिर परिचित नाम है। कई पदों पर रहने के बाद अध्यक्ष पद की लाइन में अपने आप को सबसे आगे खड़ा पाते हैं। उनका कहना है कि ओबीसी सीट की लॉटरी निकलते ही निश्चित हो जाएगा कि अध्यक्ष कौन बनेगा। इसी प्रकार वार्ड नंबर 15 के पार्षद कमल रामावत ने भी दावेदारी के लिए पूरी तैयारी कर ली है।
साधन संपन्न रामजतन चौधरी भी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर चुके हैं, मगर वे बहुत चतुर हैं। या यूं कहिये कि घुन्ने हैं। उनका यह डायलोग देखिए, कितना दिलचस्प है कि वे सक्रिय राजनीति नहीं करते, मगर राजनीति से अछूते भी नहीं हैं। उनका कहना है कि ईमानदार और पुष्करराज से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही अध्यक्ष पद का दावेदार होना चाहिए, जिससे कि पुष्कर में पनप रहे भ्रष्ट्राचार को विराम दिया जा सके। कांग्रेस के पुराने चावल जगदीश कुर्डिया ने भी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर दी है क्योंकि उनकी पत्नी श्रीमती मंजू कुर्डिया अध्यक्ष रह चुकी है। स्वाभाविक रूप से उन्हें पालिका के कामकाज की पूरी जानकारी है और राजनीति का भी लंबा अनुभव है। गोपाल तिलोनिया सीधे तौर पर दावेदारी तो नहीं रख रहे, मगर ये कहते हैं कि अध्यक्ष पद उसी व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जो काम करने का मादा रखता हो। इसी प्रकार अध्यक्ष पद की लॉटरी अगर ओबीसी के लिए खुलती है तो राजेंद्र महावर दावेदारी के लिए पूरी ताकत लगा देंगे।
पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दामोदर शर्मा पर भी सबकी नजरें टिकी हुई हैं। टिकट मिलना तो बहुत बाद की बात है, मगर उनको पूरी उम्मीद है कि उनके नाम पर कोई आंच नहीं आएगी। उनके साथ दिक्कत ये है कि वरिष्ठ होने के बावजूद गुटबाजी से विलग नहीं हैं। किसी समय पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के नजदीकी रहे शर्मा अब पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के करीबी माने जाते हैं, जो कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खासमखास हैं।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

अगर पुष्कर पर गर्व है तो शर्म क्यों नहीं आती?

आपको यदि इस बात पर गर्व होता है कि ऐतिहासिक पुष्कर के प्रति करोड़ों श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है तो अपनी दुर्गति पर रो रहे पुष्कर को देख कर शर्म क्यों नहीं आती? जो करोड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर जो पुष्कर आपको पाल-पोस रहा है, उसकी सेवा करना क्या आपका कर्तव्य नहीं है? पुष्कर की पावन धरती पर सांस ले रहे हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि उऋण होने के लिए वह पुष्कर को क्या दे रहा है?
अगर आप पुष्कर की आबोहवा में गुजर-बसर कर रहे हैं तो क्या आपको पता है कि:- 
पुराणों में वर्णित तीर्थों में तीर्थराज पुष्कर का महत्वपूर्ण स्थान है। पद्मपुराण के सृष्टि खंड में लिखा है कि किसी समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडिय़ां जमीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा, मध्य के विष्णु व कनिष्ठ के देवता शिव हैं। मुख्य पुष्कर ज्येष्ठ पुष्कर है और कनिष्ठ पुष्कर बूढ़ा पुष्कर के नाम से विख्यात हैं। पुष्कर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्माजी के हाथों (कर) से पुष्प गिरने के कारण यह स्थान पुष्कर कहलाया। राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्माजी ने इस स्थान को पवित्र करने के उद्देश्य से कार्तिक नक्षत्र के उदय के समय कार्तिक एकादशी से यहां यज्ञ किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। उसकी पूर्णाहुति पूर्णिमा के दिन हुई। उसी की स्मृति में यहां कार्तिक माह एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगने लगा।
परम आराध्या देवी गायत्री का जन्म स्थान भी पुष्कर ही माना जाता है। कहते हैं कि यज्ञ शुरू करने से पहले ब्रह्माजी ने अपनी पत्नी सावित्री को बुला कर लाने के लिए अपने पुत्र नारद से कहा। नारद के कहने पर जब सावित्री रवाना होने लगी तो नारद ने उनको देव-ऋषियों की पत्नियों को भी साथ ले जाने की सलाह दी। इस कारण सावित्री को विलंब हो गया। यज्ञ के नियमों के तहत पत्नी की उपस्थिति जरूरी थी। इस कारण इन्द्र ने एक गुर्जर कन्या को तलाश कर गाय के मुंह में डाल कर पीठ से निकाल कर पवित्र किया और उसका ब्रह्माजी के साथ विवाह संपन्न हुआ। इसी कारण उसका नाम गायत्री कहलाया। जैसे ही सावित्री यहां पहुंची और ब्रह्माजी को गायत्री के साथ बैठा देखा तो उसने क्रोधित हो कर ब्रह्माजी को श्राप दिया कि पुष्कर के अलावा पृथ्वी पर आपका कोई मंदिर नहीं होगा।
वाल्मिकी रामायण में भी पुष्कर का उल्लेख है। अयोध्या के राजा त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग में भेजने के लिए अपना सारा तप दाव लगा देने के लिए विश्वामित्र ने यहां तप किया था।
भगवान राम ने अपने पिताश्री दशरथ का श्राद्ध मध्य पुष्कर के निकट गया कुंड में ही किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की। 
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल के कुछ दिन पुष्कर में ही बिताए थे। उन्हीं के नाम पर यहां पंचकुंड बना हुआ है। सुभद्रा हरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में कुछ समय विश्राम किया था। अगस्त्य, वामदेव, जामदग्रि, भर्तृहरि ऋषियों की तपस्या स्थली के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। बताया जाता है कि पाराशर ऋषि भी इसी स्थान पर उत्पन्न हुए थे। उन्हीं के वशंज पाराशर ब्राह्मण कहलाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि वेदों में वर्णित सरस्वती नदी पुष्कर तीर्थ और इसके आसपास बहती है।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

क्या आपको भूमाफिया जनप्रतिनिधि चाहिए?

यह खबर लिखे जाने तक हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी नहीं निकली है, इस कारण चुनावी आकाश पर धुंधलका छाया हुआ है, मगर बावजूद इसके वार्ड मेंबर के चुनाव के लिए दावेदारों ने मालिश शुरू कर दी है। कुछ ने तो पूरा गणित ही बैठा लिया है और मतदाता सूचियों में अपने-अपने हिसाब से नाम जुड़वा दिए हैं। यदि ठीक से जांच की जाए तो सारी पोल खुल जाएगी कि किस वार्ड में क्या बदमाशी की जा रही है। जहां तक ग्राउंड सर्वे का सवाल है, यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि इस बार चुनाव में भूमाफियाओं का बोलबाला रहने वाला है। यानि कि ईमानदार व समर्पित दावेदार तो चुनाव लडऩे की सोच भी नहीं सकता।
पिछले चुनाव का अनुभव बताते हुए हारे हुए एक प्रत्याशी बताते हैं कि वार्ड में उनकी जबरदस्त पकड़ थी और अब भी है। उन्होंने अनेक मतदाताओं के निजी काम करवाए थे। इस कारण उनको पूरा यकीन था कि वे आसानी से जीत जाएंगे, मगर मतदान की पूर्व संध्या में ही पासा पलट गया। समझा जा सकता है कि पासा कैसे पलटा होगा। अगर उनको एक सेंपल के रूप में लिया जाए तो कल्पना कर सकते हैं कि वास्तव में अपनी मातृ भूमि की सेवा करने वालों में चुनाव लडऩे की कितनी इच्छा शेष रह गई होगी।
असल में पुष्कर में तीन तरह के लोग प्रभावशाली हैं। जमीन की दलाली करने वाले, होटल व्यवसायी व एक्सपोर्टर्स। और इन सबसे ऊपर सक्रिय राजनीति करने वाले। इन्हीं के पास राजनीति में पैसा झोंकने की गुंजाइश है। जगहाहिर है कि आज चुनाव में पैसे का कितना बड़ा रोल है। ऐसे में ये लोग ही पुष्कर पालिका चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। जीत जाने अथवा किसी को जितवा देने के बाद ये इन्वेस्ट किए हुए धन का कई गुना दोहन करेंगे। ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार होने जा रहा है। पिछले कई चुनावों से ऐसा होता आया है। तो फिर आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि ये पुष्कर के भले की सोचेंगे। अपना ही घर तो भरेंगे। यदि एक-एक का नाम लेकर बात की जाए तो यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा कि अधिसंख्य जनप्रतिनिधियों ने राजनीति में आने के बाद कितना निजी विकास किया है। अगर राजनीति में दखल रखने वालों ने भला सोचा होता तो आज पुष्कर की बुरी हालत नहीं होती।
पुष्कर की दुर्दशा देख कर सहसा हम सरकार व प्रशासन को कोसते हैं कि वे कुछ नहीं कर रहे, मगर सच्चाई ये है कि यहां के विकास के लिए समय समय पर अतिरिक्त बजट आवंटित हुआ है। बावजूद इसके अगर पवित्र सरोवर स्वच्छ पानी को तरस रहा है, सरोवर के घाटों पर गंदगी पसरी है, सड़कों की दुर्दशा है, अतिक्रमणों की भरमार है तो इसका मतलब ये है कि जो भी राशि सरकार की ओर से आती है, वह या तो ठीक से उपयोग में नहीं लाई गई या फिर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व ठेकेदारों के बीच बंदरबांट में निपट गई।
बेशक पुष्कर का विकास करने की जिम्मेदारी सरकार की है, अजमेर विकास प्राधिकरण व नगर पालिका की है, मगर उतनी ही जिम्मेदारी हमारी है कि हम विकास कार्यों पर नजर रखें, ताकि केन्द्र व राज्य सरकार से विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले धन का दुरुपयोग न हो। इस कड़ी में हम समाजसेवी व बुद्धिजीवी श्री अरुण पाराशर का नाम ले सकते हैं, जिन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग न लेते हुए पुष्कर से जुड़े हर मसले पर गहन अध्ययन करने के बाद सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाया है कि विकास के लिए आने वाले धन का सदुपयोग हो। संभवत: वे इकलौते बुद्धिजीवी हैं, जिनके पास पुष्कर के विकास के लिए अब तक बनी सभी योजनाओं के बारे तथ्यात्मक जानकारी है और फॉलोअप के लिए आरटीआई के जरिए जुटाए गए आंकड़े हैं, जिनसे स्पष्ट दिखता है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है, जिसके बारे में आम मतदाता को कुछ भी नहीं।
श्री पाराशर का जिक्र करने का निहितार्थ यह है यदि हमें पुष्कर में हो रहे विकास कार्यों पर ठीक से निगरानी करनी है तो ऐसे और बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाना होगा। ये प्रयास करना होगा कि भूमाफियाओं की आगामी नगर पालिका चुनाव में कम से कम भूमिका हो। हर वार्ड में आपको ऐसे समाजसेवी मिल जाएंगे, जो कि वास्तव में पुष्कर का विकास चाहते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करना होगा।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार