मंगलवार, 18 मई 2021

सबा खान : एक जिंदा औरत का इंतकाल


सुर्खी पढ़ कर आपका चौंकना लाजिमी है। इंतकाल तो किसी जिंदा इंसान का होता है, भला मरा हुआ कैसे इस फानी दुनिया को छोड़ सकता है? वह तो पहले ही अलविदा कर चुका होता है। आपके दिमाग में उठा यह सवाल बिलकुल वाजिब है। मगर मेरी कलम की कोख से यह सुर्खी इसलिए पैदा हुई, क्योंकि मेरी नजर में यह शहर गिनती के जिंदा लोगों की बस्ती है।   इसका कत्तई मायने ये नहीं कि बाकी के सारे लोग मरे हुए हैं। वे भी जिंदा हैं, मगर उतने नहीं, जितने सबा खान जैसे गिनती के लोग होते हैं। मायने ये कि शहर के सारे वाशिंद जिंदा तो हैं, मगर जिस्मानी तौर पर। दिमागी या रूहानी तौर पर नहीं। या तो वे दिमाग सिरहाने रख कर सो रहे हैं या फिर उनकी रूह मर चुकी है। कुछ दोस्तों को ऐसा कहना नागवार गुजर सकता है, मगर जरा मेरे अंदाज-ए-बयां पर गौर फरमाइये। यदि आपने ये जुमला सुना हो कि अजमेर टायर्ड और रिटायर्ड लोगों का शहर है, तो बड़ी आसानी से आपको मेरी बात गले उतर जाएगी। अजमेर के बारे में यह जुमला मेरी मखलूक नहीं। जब मेरी समझदानी अभी ठीक से काम करना भी शुरू नहीं हुई थी, तब से समझदार लोगों से सुनता आया हूं। नहीं पता कि ये जुमला किसके मुंह से निकला, मगर जमीनी हकीकत यही है। किसी शायर ने यूं ही नहीं कहा कि अजीब लोगों का बसेरा है इस शहर में, सब कुछ सहन करते हैं, मगर चूं तक नहीं करते। ये चंद अल्फाज अजमेर और अजमेर वासियों की फितरत को बयां करते हैं।

बहरहाल सबा खान का जिक्र करते हुए उनके नाम के साथ मरहूम इसलिए नहीं जोडूंगा, चूंकि उनके भीतर जो जज्बा था, वो शहर में गिनती के जिंदा लोगों के जेहन में धड़क रहा है। वह कभी नहीं मरा करता। सबा ने जो पहचान बनाई, वह उनके अलविदा होने के बाद भी जिंदा है। और नाम के साथ श्रीमती इसलिए नहीं जोडूंगा कि मेरी नजर में वे मर्द औरत थीं। बिंदास। उनके कांधे पर चस्पा उन तमगों का जिक्र करना बेमानी सा है, जिसके बारे में हर किसी को पता है कि वे राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रदेश महासचिव थीं, अजमेर शहर जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में अग्रणी संस्था प्रिंस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष और जवाहर फाउंडेशन की मजबूत स्तंभ थीं। हां, इतना जरूर कहना पड़ेगा कि वे एक जिंदादिल इंसान, हरदिल अजीज और खुश मिजाज थीं। हर किसी से बड़े खुलूस के साथ मिला करती थीं, मानों बरसों जी जान-पहचान हो।

जैसे ही उनके इंतकाल की खबर आई तो वाट्सऐप और फेसबुक के जरिए पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। सुनने वाले हर शख्स की सांसें चंद लहमात के लिए ठहर सी गई। हजारों की आंखों में पानी तैरने लगा। किसी को यकीन ही नहीं हुआ। मगर यह कड़वी हकीकत थी। असल में वे भरपूर सेहतमंद थीं। गर कोरोना के शिकंजे में नहीं आतीं तो खूब जीतीं। क्या यह सरासर नाइंसाफी नहीं है कि कोरोना ने कम उम्र में ही जबरन उनकी सांसें रोक दीं? बिना यह सोचे कि ऐसे इंसानों की अजमेर को कितनी दरकार है?

अब जरा, उनकी शख्सियत के बारे में। उनमें गजब की फुर्ती थी, चुस्ती थी। यानि बिजली जैसी चपलता। तभी तो उनकी साथिनें पूछा करती थीं कि कौन सी चक्की का आटा खाती हो। कांग्रेस में तकरीबन दस साल शहर महिला अध्यक्ष रहीं। इस दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो कि वे कहीं नजर न आई हों। राजनीति से इतर भी वे आम अवाम के हर काम के लिए जुटी दिखाई देती थीं। उनके पास शहर का जो भी मसला आता था, जो भी फरियादी आता था, वे तत्काल आला अफसरान के चेंबर में बेधड़क घुस कर पैरवी करती थीं। सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गई थी। कांग्रेस और भाजपा, दोनों में इस किस्म के नेता कम ही हैं। बावजूद इसके नगर निगम के लगातार दो चुनावों में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। असल में टिकट बांटने का गणित ही कुछ और है। हां, चंद महीनों के लिए जरूर मनोनीत पार्षद बनाया गया, मगर इतने समय में वे कर भी क्या सकती थीं? असल में उनका सपना था कि चाहे अजमेर से चाहे पुष्कर से, विधायक बनें और जनता की सेवा करें।

अफसोस, एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं। और इसी के साथ अपार संभावनाओं का अंत हो गया। शहर वासियों केलिए भी, परिवार वालों के लिए भी।

इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलेही राजऊन

अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुकाम अता फरमाए। गमजदा परिवार वालों को सब्र जमील अता फरमाए।

-तेजवानी गिरधर

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मंगलवार, 11 मई 2021

अजमेर ने पांच बार सांसद रहे जनप्रिय नेता प्रो. रासासिंह रावत को खो दिया


भाजपा के वरिष्ठ नेता और अजमेर से पांच बार भाजपा के सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत का निधन हो गया। प्रो. रावत सहज सुलभता और अपनी विशेष भाषण शैली और धाराप्रवाह उद्बोधन के कारण लोकप्रिय थे। उनका जन्म सन् 1 अक्टूबर 1941 को श्री भूरसिंह रावत के घर हुआ। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. और हिंदी व संस्कृत में एम.ए. की शिक्षा अर्जित की और अध्यापन कार्य से अपनी आजीविका शुरू की। उन्हें 25 साल तक अध्यापन का अनुभव था। उल्लेखनीय सेवाओं के कारण उन्हें शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर 1989 को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य के दौरान स्काउटिंग में विषेश सेवाएं देने के कारण उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा गया। सामाजिक संगठन आर्य समाज अजमेर से उनका गहरा नाता रहा और पूर्व में इसके अध्यक्ष रहे व बाद में संरक्षक रहे। समाजसेवा से उनका कितना गहरा रिश्ता है, इसका अनुमान उनके दयानंद बाल सदन के प्रधान, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के प्रधान व राजस्थान रावत राजपूत महासभा के पूर्व प्रधान व हाल तक संरक्षक का दायित्व निभाने से हो जाता है। वे सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में विशेष रुचि रखते थे। भाजपा की नई चुनावी रणनीति के चलते उन्हेंं राजसमंद से लड़ाया गया, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। बाद में उन्हें अजमेर शहर भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 

भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज क प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।

सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 

रासा सिंह रावत के निधन पर भाजपा शहर जिला अध्यक्ष डॉ. प्रियशील हाड़ा, राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव, अजमेर लोकसभा सांसद भागीरथ चौधरी, विधायक वासुदेव देवनानी, विधायक अनिता भदेल, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत, महापौर ब्रजलता हाड़ा, धर्मेश जैन, अरविंद यादव, शिव शंकर हेड़ा, धर्मेंद्र गहलोत, सुरेंद्र सिंह शेखावत, नीरज जैन, रमेश सोनी, जयकिशन पारवानी, संपत सांखला, संजय खंडेलवाल, आनंद सिंह राजावत, दीपकसिंह राठौड़, सीमा गोस्वामी, रमेश मेघवाल, हेमंत सुनारीवाल, देवेन्द्र सिंह शेखावत आदि ने दुख व्यक्त किया है।

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