मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

बेटी हो तो अनिता भदेल जैसी

अजमेर शहर में यह आम चर्चा है कि एक साधारण से परिवार में जन्मी अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने न केवल राजनीति में ऊंचाई छू कर, अपितु बेटी हो कर भी पिता के लिए बेटे की भूमिका अदा कर अपना जीवन सफल कर लिया। उन्होंने अपनी तीन बहनों की एक साथ शादी करवा कर अपने पिता की जिम्मेदारी का बोझ उठाया, यह दीगर बात है कि दुर्भाग्य से उनके पिता ये शादियां देखने से दो दिन पहले ही इस फानी दुनिया से विदा हो गए।
ऐसे समय में जब कि तीन बहनों की शादी की तैयारियां चरम पर हों और यकायक पिता का साया उठ जाए तो वह कितना दुखद होता है, इस अहसास का बयां केवल श्रीमती भदेल ही कर सकती हैं। पिता अपनी बेटियों की शादी न देख पाए, यह पीड़ा भी कितनी हृदय विदारक होगी, इसकी महज कल्पना ही की जा सकती है। उन्होंने न केवल इस अत्यंत पीड़ादायक अहसास को दिल की गहराइयों में जज्ब कर लिया, अपितु पूरी हिम्मत के साथ जिम्मेदारी कर निर्वहन भी किया। कोई सगा भाई न होने के कारण बेटे के रूप में कंधा तक दे कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि बेटी व बेटे में फर्क करने वाले मूढ़ व दकियानूसी हैं। जिसके सिर से दो दिन पहले ही पिता का हाथ उठ गया हो, वह बहनों की शादी में आए मेहमानों का मजबूरन चेहरे पर लाई गई मुस्कराहट से स्वागत करे, तो समझा जा सकता है वीरांगना झलकारी बाई की जमात में जन्मी श्रीमती भदेल भावावेग के किस झंझावात से गुजर रही होंगी। आशीर्वाद समारोह में आए मेहमानों के दिल भी इतने द्रवित थे कि वे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते वक्त हल्की मुस्कान के साथ उनकी नम आंखों में झांकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। पिता के देहावसान का दु:ख, बहनों की शादी करवाने की संतुष्टि और एक विधायक के रूप में सार्वजनिक जीवन की जिम्मेदारी के भावों को एक साथ अपने में समेटे हुए चेहरे की रेखाओं का ऐसा सामंजस्य देखना आसान था भी नहीं। ऐसे में हर एक के मुंह से बसबस यही निकल रहा था कि श्रीमती भदेल ने अपना जीवन सफल कर लिया। अगर ये कहें कि बेटा भले न हो, अनिता भदेल जैसी बेटी हो जाए, बहन हो जाए तो इससे बड़ा कोई सुख नहीं हो सकता, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बेशक उनके दिवंगत पिता की आत्मा भी यही अहसास लिए हुए उनको स्वर्ग से आशीर्वाद दे रही होगी।
ज्ञातव्य है कि श्रीमती भदेल का नाम बिना किसी सशक्त राजनीतिक पृष्ठभूमि के केवल व्यक्तिगत योग्यता और सौभाग्य से राजनीति में सफलता के पायदान पार करने के रूप में लिया जाता है। अनुसूचित जाति के एक आम परिवार में जन्म लेने वाली इस महिला ने पहले पार्षद, फिर सभापति और फिर लगातार दो बार विधायक के पद पर पहुंच कर अपनी छाप छोड़ी है।
23 दिसम्बर 1972 को श्री रोहिताश्व भदेल के घर जन्मी श्रीमती भदेल ने बी.ए., बी.एड., एम.ए. समाज शास्त्र, एम.ए. इतिहास व एम.एड. की डिग्री हासिल की है। एक शिक्षक के रूप में अपना कैरियर शुरू करने वाली श्रीमती भदेल को प्रारंभ से ही समाज सेवा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रुचि थी। उन्होंने कला अंकुर, उत्सव मंच, सुर शृंगार, लायंस क्लब इत्यादि से जुड़ कर अनेक गतिविधियों में भाग लिया। विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की संस्था सेवा भारती से जुड़ कर बाल सेवा सदन व सिलाई केन्द्र का संचालन किया। उन्होंने अनाथों, असहायों के शैक्षिक व आर्थिक उन्नयन के लिए दस्तकारी आदि के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर महिलाओं को रोजगार मुहैया करवाया। अनाथ बालक-बालिकाओं को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए विशेष प्रयत्न किए। सन् 2002 के नगर परिषद चुनाव में पार्षद बन कर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उन्हें नगर परिषद सभापति के रूप में नगर की प्रथम नागरिक बनने का भी सौभाग्य मिला। सभापति का कार्यकाल पूरा हुआ भी नहीं था कि 2004 में भाजपा ने उनको विधानसभा चुनाव में अजमेर पूर्व से आजमाया भारी मतों से विजयी हुईं। उन्होंने विधायक रहते हुए शहर में एक सुरम्य पर्यटन स्थल विकसित करने के मकसद से झलकारी बाई स्मारक बनाने में अहम भूमिका अदा की। अपने सफल कार्यकाल की वजह से ही उन्हें पार्टी ने दुबारा मौका दिया और तेरहवीं विधानसभा के चुनाव में अजमेर दक्षिण क्षेत्र से भारी मतों से विजयी रहीं। और अब स्वाभाविक रूप से आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा टिकट की सर्वाधिक सशक्त दावेदार हैं। इस बार अगर वे जीतीं और सरकार भी भाजपा की बनी तो उनका मंत्री बनना तय है।
-तेजवानी गिरधर

रन तो बनाए, चौका-छक्का नहीं लगा पाए भगत

अपना एक साल का कार्यकाल पूरा होने पर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत ने दावा किया कि उन्होंने अजमेर में करोड़ों रुपए की लागत के विकास कार्य कराए हैं, मगर वे कोई बड़ी उपलब्धि नहीं गिनवा पाए। यानि कि उन्होंने न्यास के मैदान पर रन तो बनाए हैं, मगर उल्लेखनीय उपलब्धि के नाम पर चौके-छक्के नहीं लगा पाए।
इसमें कोई दोराय नहीं कि भगत के अध्यक्ष बनने के बाद लगभग सो रही न्यास जागी और रुके हुए काम व विकास को गति मिली है। जिन फाइलों पर धूल जमा हो गई थी, उन पर से धूल झाड़ कर उन्हें आगे की टेबिलों पर सरका कर अंजाम तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की है। एक साल पूरा होने पर उन्होंने विकास कार्यों की एक लंबी फहरिश्त गिनाई है, जो आंकड़ों के लिहाज से तो बड़ी सुहानी लगती है, मगर खुद अपने खाते में दर्ज एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं गिनवा पाए। हां, पत्रकारों को उन्होंने जरूर खुश कर दिया है। ज्ञातव्य है कि कोटड़ा आवासीय योजना में स्थित पत्रकार कॉलोनी के मसले में कई पत्रकार लंबे अरसे से इस इंतजार में थे कि उनके प्लाट की लॉटरी निकाली जाए, मगर पूर्व कलैक्टर राजेश यादव व मंजू राजपाल ने जानबूझ कर उसे अटकाए रखा। हालांकि यादव ने रिलीव होने वाले दिन आवेदन पत्रों की छंटनी तो करवाई, मगर लॉटरी नहीं निकलवाई। छंटनी हुई तो विवाद भी हुए, नतीजतन मंजू राजपाल तो उन पर कुंडली मार कर ही बैठ गईं। उनकी जिद थी कि कम से कम उनके कार्यकाल में तो पत्रकारों को प्लॉट नहीं देंगी। जाहिर सी बात है कि जैसे ही भगत अध्यक्ष बने तो उन पर शुरू से ही दबाव बना और उन्होंने बड़ी चतुराई से उन प्लाटों का तो आबंटन कर ही दिया, जिन पर कोई विवाद नहीं था। कुल मिला कर भगत ने पत्रकारों को तो खुश कर ही दिया। इसका अहसास अखबारों के तेवर से लगाया जा सकता है।
भगत के लिए यह भी सुखद रहा कि उन्हीं के कार्यकाल के दौरान प्रशासन शहरों की ओर शिविर शुरू हुए है। हालांकि इसमें भगत की स्वयं की कोई उपलब्धि नहीं है, यह राज्य सरकार की योजना है, मगर जिन लोगों के नियमन हुए हैं, वे तो भगत को ही दुआ देंगे। मगर इसका एक नुकसान ये भी माना जा सकता है कि शिविरों की तैयारी व उनके क्रियान्वयन में न्यास अधिकारियों व कर्मचारियों के व्यस्त होने के कारण भगत खुद की सोच का कोई बड़ा काम हाथ में नहीं ले पाए हैं।
उनकी एक बड़ी उपलब्धि ये भी रही है कि काजल की कोठरी में रहते हुए फिलवक्त तक तो उन पर कोई दाग नहीं लगा है। तभी तो वे स्वयं यह कहने में सक्षम हो पाए कि भ्रष्टाचार का कोई भी व्यक्ति आरोप लगा सकता है, लेकिन साबित करना अलग बात है। न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने भी न्यास में भ्रष्टाचार की बात तो खूब कही, मगर सीधा-सीधा भगत को निशाना करता एक भी बड़ा आरोप नहीं लगाया है। उन्होंने ये तो कहा कि वर्तमान अध्यक्ष के कार्यकाल में दलालों को लाभ पहुंचाने का काम किया जा रहा है, मगर गिनाया एक भी नहीं। हां, उनकी इस बात में जरूर दम है कि भगत कोई भी सकारात्मक एवं ठोस योजना शुरू नहीं कर पाए हैं। सच्चाई यही है कि जब तक भगत कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं करवाएंगे, केवल सामान्य विकास कार्यों की बिना पर उन्हें उतने नंबर नहीं दिए जा पाएंगे, जितने कि जैन व पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत को मिल चुके हैं। हां, अगर उन्होंने एलीवेटेड रोड पर ध्यान दिया और अपने कार्यकाल में उसका निर्माण शुरू भी करवा पाए तो यह एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है, जिसे कि लोग वर्षों तक याद रखेंगे।
-तेजवानी गिरधर