गुरुवार, 3 जनवरी 2013

वसुंधरा की बहू को अजमेर से लड़ाने की तैयारी?

राजनीतिक हलके में एक टॉप सीक्रेट इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। वो यह कि क्या आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा अजमेर संसदीय क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पुत्रवधू श्रीमती निहारिका राजे को चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है।
असल में यह चर्चा इस कारण शुरू हुई है कि इन दिनों अजमेर संसदीय क्षेत्र के अनेक भाजपा नेताओं को वसुंधरा राजे की ओर से बाकायदा बूथ वाइज आंकड़े मंगवाए जा रहे हैं, इनमें जातीय समीकरण, प्रमुख कार्यकर्ताओं के नाम व उनके मोबाइल नंबर, विभिन्न जातियों के प्रमुख नेताओं व कार्यकर्ताओं के नाम-पते इत्यादि शामिल हैं। जाहिर सी बात है कि किसी भी क्षेत्र का इतना विस्तृत सर्वे वही करवाता है, जिसका उस क्षेत्र से चुनाव लडऩे का मानस होता है। एक तर्क ये भी दिया जा सकता है कि चूंकि वसुंधरा आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर फीडबैक ले रहीं है और यह सर्वे उसी का एक हिस्सा है, तो उसमें चौंकने जैसी बात नहीं होनी चाहिए, मगर इतना विस्तृत फीडबैक और वह भी केवल अजमेर संसदीय क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों का तो जरूर कुछ खास बात है। पहले जब यह जानकारी आई कि वे अजमेर उत्तर का सर्वे करवा रही हैं तो यह चर्चा उठी कि कहीं वे खुद तो अजमेर से चुनाव लडऩे का मानस तो नहीं बना रहीं, लेकिन जैसे ही यह पता लगा कि पूरे संसदीय क्षेत्र में ही यह काम हो रहा है तो लोगों ने गहन पड़ताल शुरू कर दी। उसमें यह तथ्य उभर कर आया कि संभव है वे अपनी बहू यानि पुत्र व झालावाड़ के भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह की धर्म पत्नी श्रीमती निहारिका राजे के लिए यहां राजनीतिक जमीन की तलाश करवा रही हों। इसके पीछे एक तर्क ये भी है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ लाख गुर्जर मतदाता हैं और श्रीमती निहारिका भी गुर्जर समाज की बेटी हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट भी गुर्जर समुदाय से हैं। समझा जाता है कि पिछले चुनाव में किरण माहेश्वरी के हार जाने के बाद भाजपा यहां सचिन के सामने एक सशक्त उम्मीदवार की तलाश में हैं और उसमें निहारिका फिट बैठती हैं। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, कांग्रेस व भाजपा के अपने-अपने जातीय वोट बैंक हैं। उनमें अगर परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहने वाले गुर्जर समुदाय में सेंध मार ली जाती है तो एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। यही सोच कर निहारिका के लिए जमीन तलाशी जा रही है। हालांकि यह संभावना अब भी बरकरार है कि वे खुद भी अजमेर उत्तर से चुनाव लडऩे की सोच सकती हैं। इस प्रकार चर्चा पिछली बार तब भी उठी थी कि जब उन्होंने यहां गणतंत्र दिवस का राज्य स्तरीय समारोह आयोजित करवाया और न्यास के माध्यम से गौरव पथ जैसा शानदार रोड बनवाया।
-तेजवानी गिरधर

और अब गणतंत्र दिवस के बहिष्कार का अलाप

दिल्ली गैंग रेप कांड के विरोध में उबल रहे देश में गुस्सा इस सीमा तक जा पहुंचा है कि लोग यानि गण अब गणतंत्र दिवस के बहिष्कार तक की अपील करने लगे हैं। अजमेर में भारत स्वाभिमान मुहिम से जुड़े युवा नेता अंशुल कुमार ने फेसबुक पर लिखा है कि ‎"गणतन्त्र दिवस का बहिष्कार करॆ" दामिनी कॊ श्रधाञलि दॆनॆ, प्रदर्शनकारियॊ पर हुऎ अत्याचार कॆ विरॊध मॆ और इस भ्रष्ट काग्रॆस सरकार का विरॊध करनॆ कॆ लिऎ हम सभी कॊ गणतन्त्र दिवस का बहिष्कार करना चाहिऎ|
कुछ इसी प्रकार की प्रतिक्रिया जयपुर में ईटीवी में काम करने वाले कार्तिक बलवान ही है, जो फेसबुक पर लिखते हैं कि नववर्ष मनाने और ना मनाने से अंधी,गूंगी और बहरी राजनैतिक व्यवस्था नहीं सुधरने वाली है । बेहतर होगा हम इस वर्ष गणतंत्र दिवस के राजकीय समारोह से दूरी बनाएं । 'मूसळ' (राजस्थानी भाषा) की तरह बर्ताव कर रहे "नेतृत्व" को कैसा लगेगा जब लालकिले की प्राचीर पर तिरंगा फहराने के बाद उसे सामने पड़ी कुर्सियां खाली मिलें.... हर राज्य के 'मुख्यमंत्री' और 'मंत्रियों' द्वारा गणतंत्र दिवस पर किए जाने वाले समारोह से दूरी बनाएं । मैं इस बात पर प्रतिबद्ध रहूंगा कि मैं गणतंत्र दिवस समारोह का हिस्सा नहीं बनूंगा ।
उनकी इस टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी करते हुए राजस्थान पत्रिका में काम कर रहे अभिषेक सिंघल लिखते हैं कि  बहुत बड़ी संख्या में भारतीय वैसे भी इन समारोहों का हिस्सा नहीं बनते,, उन्हें ये दिवस हॉलीडे लगते हैं.... शायद इसी सहजगामी प्रवृत्ति का ही नतीजा वर्तमान हालात हैं,,, इस राजनैतिक व्यवस्था के जनक और कोई नहीं हम,, हमारा समाज स्वयं है.
अर्थात कुल मिला कर आज हमारा लोकतंत्र व गणतंत्र ही सवालों के घेरे में आ गया है। वैसे तस्वीर का दूसरा पहलु ये भी है कि क्या गणतंत्र दिवस कांग्रेस पार्टी का कार्यक्रम है या नेताओं का या फिर आम जनता का? और जिन राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें हैं, वहां वह कार्यक्रम किसका कहलाएगा?

बहुत देर से पकड़े गए एसपी राजेश मीणा


अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा बहुत देर से पकड़े गए हैं। उन पर तो काफी पहले ही शिकंजा कस दिया जाना चाहिए था। भ्रष्टाचार से धन बटोरने का संदेह तो उन पर तब ही हो जाना चाहिए था, जब उनकी छत्रछाया में प्रशिक्षु आईपीएस अजय सिंह रिश्वत प्रकरण में पकड़े गए थे।
उल्लेखनीय है कि अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह को घर भरने की इतनी जल्दी थी कि नौकरी की शुरुआत में ही लंबे हाथ मारना शुरू कर दिया था। तभी यह आशंका हो जानी चाहिए थी कि आखिर एक नया-नया अफसर इतनी हिमाकत कर कैसे रहा है? आईपीएस अजय सिंह कितने बेखौफ थे, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि वे अपने भाई हेमंत कुमार के साथ जिस गाडी में जाते हुए पकड़े गए, उसमें अवैध शराब की दो पेटियां व 47 हजार रुपए पाए गए। ऐसा कत्तई नहीं हो सकता था कि एसपी मीणा की जानकारी के बिना ही वे इस प्रकार की कारगुजारी कर रहे थे। आपको याद होगा कि अजय सिंह ने उच्चधिकारियों की अनुमति के बिना ही कांस्टेबल राजाराम व जयपालसिंह को एसी का रिटर्न टिकिट देकर मुंबई से दहेज प्रताडऩा के आरोपी रणजीतसिंह को गिरफ्तार करने भेज दिया था। दोनों शातिर पुलिसकर्मियों ने मुंबई में बीयर बार, होटलों व बीच पर मौज-मस्ती कर मुकदमे से आरोपी और उसके परिवार के अन्य लोगों का नाम बाहर कराने के लिए लाखों की रिश्वत मांगी थी। बाद में आरोपी को अजमेर लाकर तीन दिनों तक एक होटल में बंधक बना कर रखा और पीडि़ता को पांच लाख रुपए दिलवा कर एक लाख रुपए कांस्टेबल ने वसूलेे। इसकी खबरें अखबारों में सुर्खियों में छपीं। उस वक्त भी मीणा ने उनका साथ दिया था।
दरअसल अजय सिंह भी देर से ही पकड़े गए थे। उनके कारनामों की चर्चाएं कानाफूसियों में तो होती रहीं और एसपी मीणा आंखें मूंदे रहे। अगर यह मान लिया जाए कि मीणा को कुछ पता ही नहीं लगा, तो यह उससे भी ज्यादा शर्मनाक बात कही जाएगी। वैसे अब यह पक्के तौर माना जाना चाहिए कि अजय सिंह उनकी शह पर ही खुला खेल खेल रहे थे। वो इसलिए कि मीणा विभिन्न थानों से आई मंथली के साथ पकड़े गए हैं। स्वाभाविक रूप से अजय सिंह भी उन्हें हिस्सा देते रहे होंगे। अब जरूरत है कि अजय सिंह से उनके कनैक्शन की नए सिरे जांच की जाए। अजय सिंह के पकड़े जाने पर भी यह मांग उठी थी कि केवल रिश्वत के एक ही मामले तक सीमित न रह कर उनके पास चल रही सभी जांचों की भी पड़ताल करवाई जाए।
मीणा का मंथली से कैसा नाता रहा है, इसका संदेह तब भी हुआ था, जब अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा था, वहीं मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा था। तब ये बातें अखबारों की सुर्खियां बनी थीं कि ठेले वालों से मंथली ली जाती है, इसी कारण पुलिस उन्हें हटाने में रुचि नहीं ले रही।
अव्वल तो अब यह जानकारी भी आ रही है कि मीणा पूर्व में संदिग्ध रहे हैं। मगर अफसोस कि उसके बाद भी सरकार ने उन्हें फील्ड पोस्टिंग दे कर अजमेर जैसे महत्वपूर्ण व संवेदनशील जिले की कानून व्यवस्था सौंप रखी थी। अजमेर जिला पुलिस महकमे के सब से बड़े अधिकारी एसपी राजेश मीणा की इस हरकत ने पुलिस को ही नहीं, पूरे अजमेर को शर्मसार किया है। पुलिस थानों से चौथ वसूली के इस मामले ने एक बार फिर खाकी वर्दी को दागदार किया है। मीणा तक मंथली पहुंचाने वाले रामदेव की स्वीकारोक्ति के बाद यह बात साबित हो गई है कि कानून की रक्षा करने वाले ही तंत्र में भ्रष्टाचार को पनाह दे रहे थे।
-तेजवानी गिरधर