सोमवार, 16 अप्रैल 2012

पेश है अजमेर की नामर्दी की सबसे ज्वलंत उदाहरण

दरगाह विकास योजना की भ्रूण हत्या का जिम्मेदार कौन?
ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 800 वें उर्स के लिए बनाई गई तकरीबन 300 करोड़ रुपए की योजना की भूण हत्या हो गई है। और वह भी तब जब कि दरगाह से जुड़े पक्षों, मीडिया और अजमेर फोरम ने इसके लिए दबाव बनाए रखा, मगर हमारे जनप्रतिनिधियों की लापरवाही अथवा अप्रभावी भूमिका और प्रशासन की बेरुखी के चलते सारे सब्जबाग धरे रह गए। यह बेचारे अजमेर की नामर्दी का सबसे ज्वलंत उदाहरण है, जिसकी वजह से ही इस ऐतिहासिक शहर को टायर्ड और रिटायर्ड लोगों को शहर कहा जाता है। अजमेर की ऐसी उपेक्षा पर यदि कभी कभी अलग राज्य की आवाज आती है तो वह बिलकुल सही है। इस पर यहां की जनता, सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों और यहां के मतदाताओं के वोटों पर राजनीति का आनंद लेने वालों को सोचना ही होगा।
असल में आगामी आठ सौ वें उर्स के मद्देनजर पीडीकोर ने करीब सवा साल पहले 300 करोड़ रुपए की कार्य योजना तैयार की थी। राज्य सरकार और प्रशासन को इसे अंतिम रूप देने में ही कोई पांच माह का समय लग गया। इसके बाद योजना में थोड़ा बहुत फेरबदल करके केन्द्र सरकार को भेज दिया, मगर यह बैठकों दर बैठकों के बीच झूलती रही। बीच में यह बात भी आई कि चूंकि समय पर्याप्त नहीं है, इस कारण इसे चरणों में पूरा किया जाएगा। पहला चरण अस्सी करोड़ का होगा, जो कि उर्स से पहले पूरा किया जाएगा और बाकी के चरण में बाद में पूरे किए जाएंगे। मगर अफसोस कि सब कुछ जबानी जमा खर्च ही रहा। और अब आखिरकार इसे दफन ही कर दिया गया है व जायरीन की सुविधा के लिए न्यास और पर्यटन विभाग को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने को कह दिया गया है।
हालांकि योजना को ठंडे बस्ते में डालने के लिए हमारे देश व राज्य की शासन व्यवस्था के तौर-तरीके ही जिम्मेदार हैं, मगर उससे भी बड़ा सच यह है कि यह हमारी नाकामी का ही प्रतिफल है। विशेष रूप से अजमेर के कथित नए मसीहा केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ। यहां तक कि बाद में मुख्य सचेतक बने बड़बोले नेता डॉ. चंद्रभान भी हथेली नहीं लगा पाए। अगर उन्होंने गंभीर प्रयास किए होते तो इस योजना का ऐसा हश्र नहीं होता। पायलट अपने खाते में चाहे जितनी उपलब्धियां दर्ज करवा चुके हों, नसीम अख्तर अजमेर के विकास के लिए चाहे जितनी शिद्दत जाहिर करती हों और रघु शर्मा नए रहनुमा बन कर बड़ी बड़ी बातें करते हों, मगर उनके खाते में यह नाकामी तो दर्ज हो ही चुकी है। ऐसे प्रभावशाली नेताओं के रहते भी अगर अजमेर पर सरकार गौर नहीं कर रही तो इसका सीधा सा अर्थ है कि या तो उनकी ऊपर सुनने वाला कोई नहीं है या फिर उन्होंने इसे पूरी गंभीरता से नहीं लिया। रहा सवाल विपक्षी दल भाजपा का तो ऐसा प्रतीत होता है कि चूंकि योजना संप्रदाय विशेष के आस्ताने से संबंधित थी, इस कारण उसने कोई जोर ही नहीं लगाया। महज इसलिए कि उनके हल्ला मचाने पर भी न तो उनको श्रेय मिलता और न ही वोटों का कोई फायदा होता।
असल में यह योजना जब चर्चा में आई और उस पर पहली बैठक प्रदेश के गृह मंत्री शांति धारीवाल ने अजमेर में ली, तभी पूत के पग पालने में नजर आ गए थे। धारीवाल की मौजूदगी में हुई अहम बैठक ही बेनतीजा रही थी। जिस योजना पर तकरीबन तीन सौ करोड़ रुपए खर्च किए जाने का विचार हो, ऐसी महत्वपूर्ण बैठक के लिए न तो कोई पुख्ता एजेंडा तैयार किया गया था और न ही संभागियों को उसकी तैयारी करके आने को कहा गया। जिला प्रशासन से भी पहले कोई एक्सरसाइज नहीं करवाई गई। रही सही कसर खादिम प्रतिनिधियों व विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के बीच हुई नौंकझोंक ने पूरी कर दी। धारीवाल को भी लगा कि यहां विवाद है और उसके लिए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा को जिम्मेदारी दी कि वे सभी पक्षों की आम सहमति बना कर सरकार को रिपोर्ट करें। उनके रिपोर्ट भेजने से लेकर राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच संवाद ही इतना लंबा हो गया कि यह फुटबाल ही बन गई। दरअसल मास्टर प्लान के लिए जो प्रस्ताव मोटे तौर पर रखे गए हैं, वे कोई नए नहीं हैं। उन पर पहले भी कई बार विचार हो चुका है। हर साल होने वाले उर्स मेले से पूर्व और विशेष रूप से 786वें उर्स मेले के दौरान भी लगभग इन्हीं प्रस्तावों पर चर्चा हो चुकी है, मगर उन पर अमल करने की इच्छा शक्ति न सरकार ने दिखाई और न ही प्रशासन में इतनी हिम्मत की वह बर्र के छत्ते में हाथ डाले। प्रशासन का भी यही रवैया रहा है कि जैसे-तैसे मेला निपटा लिया जाए। मेला शांति से संपन्न होने पर वह शुक्र अदा करने के लिए मजार शरीफ पर चादर पेश कर खुद भी चादर ओढ़ कर सो जाता है। ताजा मामले में भी ऐसा ही हुआ।
यहां उल्लेखनीय है कि इस परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न मार्गों के विकास, नालियों के निर्माण, सीवरेज, विद्युत सप्लाई उपकरण, सुरक्षा, पार्किंग, शौचालय, कोरिडोर, दरगाह शरीफ के प्रवेश द्वारों की चौड़ाई बढाना, अग्नि शमन, विश्राम स्थलियों का विकास, ईदगाह के विकास के साथ-साथ अजमेर शहर की कई बड़ी सड़कों के निर्माण एवं विकास का प्रावधान रखा गया है। ऐसी बड़ी योजना यदि पूरी तरह से लागू हो जाए और उस पर पूरी ईमानदारी के साथ काम हो तो शहर की काया ही पलट जाए। मगर अब यह एक सपना मात्र ही रह गया है। इस योजना को लेकर अजमेर फोरम ने भी खूब माथापच्ची की, मगर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
-तेजवानी गिरधर
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