बुधवार, 5 दिसंबर 2012

इंदिरा गांधी की मूर्ति से होगा मास्टर प्लान का उल्लंघन?


हालांकि संभागीय आयुक्त श्रीमती किरण सोनी गुप्ता की अध्यक्षता में गठित समिति ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी की मूर्ति मोइनिया इस्लामिया स्कूल के समीप इन्दिरा स्मारक स्थल पर लगाने के प्रस्ताव को स्वीकृत कर दिया है, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इससे सन् 2005-2023 के मास्टर प्लान का उल्लंघन नहीं होगा? मास्टर प्लान के मुताबिक स्टेशन रोड 120 फीट चौड़ा होना चाहिए। सरकार व प्रशासन उसकी अनुपालना तो कर नहीं पा रहे, उलटा मूर्ति लगा कर भविष्य के लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं। एक ओर तो सुप्रिम कोर्ट मार्गाधिकार की अनुपालना के लिए मंदिर इत्यादि तक को हटाने के निर्देश देता है तो दूसरी ओर स्मारक बनाने के लिए नियमों की अवहेलना की जा रही है। आश्चर्य तो इस बात है कि इस मूर्ति को लगाने वाला नगर सुधार न्यास स्वयं मास्टर प्लान का कस्टोडियन है, अगर वही मार्गाधिकार का उल्लंघन करता है तो आम आदमी से क्या अपेक्षा की जा सकती है? इसके अतिरिक्त नगर नियोजन विभाग व यातायात पुलिस की जिस प्रकार तुरत-फुरत में हरी झंडी मिली है, उससे से जाहिर है कि अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने वाले विभागों पर पूरा राजनीतिक दबाव रहा है।
धर्मेश जैन
इस सिलसिले में नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन का मानना है कि मौजूदा स्थान पर मूर्ति लगाने से मार्गाधिकार तो उल्लंघन तो होगा ही, यातायात भी प्रभावित होगा। उनका कहना है कि किसी महापुरुष का स्मारक बनाने पर भले ही ऐतराज नहीं किया जाना चाहिए, मगर इतना तो ध्यान रखा ही जाना चाहिए कि उससे आम जनता को कोई परेशानी न हो। जाहिर सी बात है कि मूर्ति लगने के बाद उसके सामने कार्यक्रम इत्यादि भी होंगे, ऐसे में यातायात बुरी तरह से प्रभावित होगा। इसके अतिरिक्त मेन रोड पर होने के कारण मूर्ति की सुरक्षा का भी सवाल खड़ा होगा। उनका सुझाव है कि कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं को मौजूदा की बजाय कोई और स्थान चुनना चाहिए। एक तरीका ये भी हो सकता है कि मार्गाधिकार कायम रखने के लिए मौजूदा जगह से कुछ और पीछे मूर्ति स्थापित की जाए।
नरेन शहाणी
बहरहाल, दूसरी ओर न्यास के मौजूदा सदर नरेन शहाणी भगत ने कांग्रेसियों के लिहाज से एक उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने संभागीय आयुक्त के सभी संबंधित विभागों से दुबारा स्वीकृति लेने के निर्देश की पालना करवाने के लिए अधिशासी अभियंता अनूप टंडन को व्यक्तिगत रूप से विभागों के अधिकारियों से मिलने भेजा और स्वीकृतियां हासिल कीं। इसी के साथ संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता वाली कमेटी ने मूर्ति लगाने को हरी झंडी दे दी है।
आइये, जरा आपको जरा पीछे ले चलें। आज भले ही इसका श्रेय भगत के खाते में दर्ज हो मगर असल में यह स्मारक केकड़ी के पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारिया की राजनीति में धमाकेदार शुरुआत का आगाज रही है। तकरीबन पच्चीस साल पहले जिन दिनों सिंगारिया कांग्रेस में सक्रिय हुए ही थे तो उन्होंने अपनी एंट्री धमाकेदार तरीके से करने के लिए स्टेशन रोड पर मोइनिया
बाबूलाल सिंगारिया
इस्लामिया स्कूल की दीवार पर इंदिरा गांधी के फोटो के साथ उनके लोकप्रिय बीस सूत्र का एक भित्ति चित्र लगवाया था। इस पर विवाद हुआ और बाद में विवाद तब ज्यादा बढ़ गया, जबकि उसके ऊपर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ भी लगा दिया गया। बाद में जब टैम्पो स्टैंड के लिए स्कूल के मैदान की जमीन ली गई तो दीवार तोड़े जाने के सबब इसे हटाने की नौबत आ गई। मगर कांग्रेसी अड़ गए। उन दिनों सिंगारिया, पूर्व विधायक हाजी कयूम खान, महेन्द्र सिंह रलावता, महेश ओझा, कैलाश झालीवाल वाली सशक्त लॉबी ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। बड़ी जद्दोजहद हुई। आखिर भित्ति चित्र वाली दीवार के हिस्से को छोड़ते हुए दोनों तरफ मार्ग निकालना पड़ा। बाद में पुराने भित्ति चित्र के ठीक पीछे नया भित्ति चित्र व्यवस्थित तरीके से बनवाया गया और तब से यह स्थान इंदिरा गांधी के स्मारक के रूप में स्थापित हो गया, जहां पर कांग्रेस का एक गुट जयंती व पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने आया करता था।
यहां पर मूर्ति की स्थापना करने की बात तो बहुत बाद में आई। नगर सुधार न्यास ने वर्ष 2002 में मोइनिया इस्लामिया स्कूल के बाहर प्रतिमा लगाने के आवेदन किया था। इस पर संभागीय आयुक्त कार्यालय ने नगर सुधार न्यास को 16 अक्टूबर 2003, 6 जुलाई 2004, 6 सितंबर 2004, 7 अक्टूबर 2004 और फरवरी 2005 को पत्र लिखकर निगम की एनओसी पेश करने के निर्देश दिए थे, लेकिन प्रदेश में भाजपा का शासन होने की वजह से न्यास ने केवल 7 अप्रैल 2004 को पत्र लिखकर निगम से एनओसी देने का आग्रह कर इतिश्री कर ली। निगम में भाजपा का बोर्ड होने की वजह से मामला लटका रहा।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों गांधी जयंती पर कांग्रेस की एक सभा में मूर्ति स्थापना के मुद्दे को मुख्य रूप से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रताप यादव ने उठाया था। इससे पहले भी वे अनेक बार इस मुद्दे पर राज्य सरकार से पत्र व्यवहार करते रहे हैं। उनका मुद्दा था कि जब केन्द्र व राज्य में कांग्रेस की सरकार है और नगर निगम में मेयर व न्यास में सदर कांग्रेस के हैं, तब भी क्या इंदिरा गांधी की प्रतिमा नियत स्थान पर लगने के इंतजार में न्यास में ही पड़ी रहेगी। इस हलचल का परिणाम ये रहा कि मेयर कमल बाकोलिया ने दस साल से लंबित मामले का निबटारा कर दिया। इसके बाद भगत ने भी त्वरित कार्यवाही करवाई।
-तेजवानी गिरधर