गुरुवार, 7 नवंबर 2019

एक कदम ने जीवन की दिशा बदल दी

स्वाभिमान बडी कीमत वसूल करता है

यह शृंखला इसलिए आरंभ की है, ताकि वह सब कुछ जो मेरे जेहन में दफन है, वह आपको बांट दूं, ताकि जब मैं इस फानी दुनिया से अलविदा करूं तो इन यादों का बोझ साथ न रहे।

बात सन् अगस्त 1983 की है। मेरे पिताश्री तत्कालीन वरिष्ठ जिला शिक्षा अधिकारी स्वर्गीय श्री टी. सी. तेजवानी के नागौर में निधन के बाद पूरा परिवार अपने पैतृक शहर अजमेर में लौट आया। यहां किसी अखबार में नौकरी पाने के मकसद से नागौर के सूचना व जनसंपर्क अधिकारी श्री के. बी. एल. माथुर से एक सिफारिशी पत्र अजमेर के सूचना व जनसंपर्क अधिकारी श्री देवी सिंह नरूका के नाम ले कर आया। उन्होंने मुझे तब शीघ्र प्रकाशित होने जा रहे दैनिक रोजमेल के स्टेशन रोड, मार्टिंडल ब्रिज के पास स्थित दफ्तर में स्थानीय संपादकीय प्रभारी स्वर्गीय श्री राजनारायण बरनवाल के पास भेजा। उन्होंने कहा कि अखबार शुरू होने को है, लेकिन फिलहाल पूरा स्टाफ रख लिया है, अत: बाद में कभी आना। मैं वहां से दैनिक नवज्योति गया। अपने नाम की पर्ची प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के चैंबर में भेजी। मैं बाहर बैठा इंतजार कर ही रहा था कि वहां दैनिक नवज्योति के नागौर जिला संवाददाता श्री माणक गौड आ गए। उन्होंने वहां देख कर सवाल किया, कैसे आए? मैंने प्रयोजन बताया। वे बोले, अरे, चलो में ही आपको चौधरी जी से मिला देता हूं। वे मुझे अंंदर ले गए। मेरी तारीफ करते हुए चौधरी जी से बोले कि यह लड़का बहुत टेलेंटेड है। चौधरी जी ने बिना कोई सवाल-जवाब किए ही कह दिया कि कल ही ज्वाइन कर लो। तनख्वाह चार सौ रुपए प्रतिमाह मिलेगी। मैं नवज्योति से बाहर निकल कर सोचने लगा कि इतने बड़े अखबार में मैं काम भी कर पाऊंगा या नहीं। बड़े-बड़े पत्रकार मुझे जमने देंगे या नहीं। सोचते-सोचते गली पार कर आधुनिक राजस्थान पहुंच गया। वहां प्रधान संपादक स्वर्गीय श्री दिलीप जैन से मिला। वे पहले से परिचित थे, क्योंकि नागौर रहते हुए मैं आधुनिक राजस्थान को समाचार भेजा करता था। उन्होंने भी मेरे आग्रह को तुरंत स्वीकार करते हुए अगले ही दिन से ज्वाइन करने को कह दिया। मुझे यहां थोड़ा सा अपनापन लगा। छोटा अखबार है। लगा कि यहां जल्द ही पकड़ बना लूंगा। हुआ भी वही। दूसरे ही दिन मैंने ज्वाइन कर लिया। आरंभ में मुझे अंदर के पेजों के संपादन का काम मिला। कोई छह माह ही हुए थे कि तत्कालीन संपादकीय प्रभारी श्री सतीश शर्मा ने मेरी प्रतिभा को देखते हुए कहा कि आप फ्रंट पेज पर आ जाओ, मैं सिखाऊंगा। वे पेश से तो मास्टर थे, पत्रकारिता के भी मास्टर थे। जल्द ही मैने स्वतंत्र रूप से प्रथम पेज का संपादन आरंभ कर दिया। अपने ही मार्गदर्शन में उन्होंने मुझे एडिटोरियल का इंचार्ज भी बना दिया। यहां तकरीबन पांच साल काम किया। वहां बहुत कुछ सीखा। इसके बाद दैनिक न्याय के संपादकीय प्रभारी स्वर्गीय श्री राजहंस शर्मा ने मुझे बुलाया और कहा कि पिताश्री बाबा विश्वदेव शर्मा ने मुझ पर अखबार का दायित्व सौंपा है, मेरा विश्वास है कि आप इंचार्जशिप संभाल लेंगे। मैने ज्वाइन कर लिया। मुझे फ्री हैंड दिया गया। मैने भी जम कर बैटिंग की। इस प्लेटफार्म ने मुझे पहचान दी। दैनिक न्याय के भी कई संस्मरण हैं, जो फिर कभी शेयर करूंगा। वहां पांच साल काम करने के बाद किसी बात को लेकर स्वाभिमान की रक्षार्थ इस्तीफा दे दिया। बाबा इस्तीफा मंजूर करने को तैयार नहीं थे, मगर मेरी जिद के चलते उन्हें स्वीकार करना ही पड़ा। विदाई देते समय उस जमाने के दबंग पत्रकार की आंखें नम होने पर अपनी पीठ थपथपाई कि मैने निष्ठा व अपने काम के दम पर उनका दिल जीत लिया है।
खैर, फ्री होते हुए श्री दिलीप जैन ने बुलवा लिया। वहां कुछ समय काम किया। चूंकि मिजाज से अति संवेदनशील हूं, इस कारण फिर किसी बात पर स्वाभिमान की खातिर इस्तीफा दे दिया। जैसे ही तत्कालीन सांध्य दैनिक दिशादृष्टि के संपादक श्री राधेश्याम शर्मा को पता लगा, उन्होंने मुझे बुलवाया और कहा कि वे अब दिशा दृष्टि को सांध्य की जगह प्रात:कालीन करना चाहते हैं और उसका दायित्व मुझे सौंपना चाहते हैं। मैने प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया। करीब दो साल काम करने के बाद वहां से भी जी उचट गया। केवल स्वाभिमान के कारण। उन्होंने भी मुझे बड़ी मुश्किल से छोड़ा। छोड़ कर घर बैठ गया। सन् 1996 में दैनिक भास्कर का आगमन हुआ। वहां के कई प्रसंग याद हैं, मगर फिलहाल इतना ही। तकरीबन आठ साल तक सिटी चीफ रहने के बाद जयपुर तबादला हो गया। वहां मुझे पहले स्टेट डेस्क पर बैठाया गया और कुछ समय बाद ही सिटी एडिशन का जिम्मा दिया जा रहा था। वह वाकई की-प्रोस्ट थी, मगर माताश्री की तबियत खराब रहने के चलते छह माह बाद ही इस्तीफा दे दिया। तत्कालीन संपादक श्री एन. के. सिंह ने इस्तीफा मंजूर न करते हुए वापस अजमेर भेज दिया। यहां तत्कालीन संपादक श्री इंदुशेखर पंचोली से पटरी बैठी नहीं, जो कि बैठनी भी नहीं थी, क्योंकि वे मुझ से जूनियर थे। यहां भी स्वाभिमान आड़े आया। खैर, इसकी भी एक कहानी है, जिसका जिक्र फिर कभी करूंगा। कोई तीन दिन बाद ही फिर इस्तीफा दे दिया। कुछ समय खाली बैठा रहा। फिर युवा भाजपा नेता व समाजसेवी श्री भंवर सिंह पलाड़ा ने श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी के माध्यम से बुलवा कर अखबार शुरू करने की मंशा जताई। हम दोनों ने उन्हें साफ कह दिया कि यह घाटे का सौदा है, पर वे नहीं माने, इस पर हम तैयार हो गए। हमने स्वर्गीय श्री नवल किशोर सेठी से सरे-राह टाइटल लिया। करीब पौने दो साल काम करने के बाद स्वाभिमानवश इस्तीफा दे दिया। श्री पलाड़ा मुझे नहीं छोडऩा चाहते थे, लेकिन मैं भी जिद पर अड़ गया। विदाई के वक्त मैने उनका मन भी बाबा की तरह द्रवित देखा।
खैर, उसके बाद दैनिक महका भारत के अजमेर संस्करण के स्थानीय संपादक के रूप में काम किया। अखबारों की प्रतिस्पद्र्धा के कारण वह समाचार पत्र अनियमित हो गया। फिर कुछ समय के लिए दैनिक न्याय सबके लिए में संपादक के रूप में काम किया। आर्थिक संकट के कारण अखबार बंद करने की नौबत आ गई। उसके बाद मेरे परम मित्र स्वामी न्यूज के एमडी श्री कंवल प्रकाश किशनानी के सहयोग से अजमेरनामा डॉट कॉम नाम से न्यूज पोर्टल शुरू किया, जो कि अब भी चल रहा है।
लब्बोलुआब, जीवन की इस यात्रा से एक ही निष्कर्ष निकला कि यदि मैं दैनिक नवज्योति में मिल रही नौकरी को स्वीकार कर लेता तो जीवन में इतना भटकाव नहीं होता और आज वहां स्थानीय संपादक पद पर पहुंच चुका होता। दूसरा सबक ये कि स्वाभिमान बड़ी कीमत वसूलता है। मेरे परिवार ने बहुत सफर किया। जिस स्वाभिमान की मैने दुनिया में रक्षा की, उससे अपने परिवार के सामने समझौता करना पड़ा। मैं उसे वह नहीं दे पाया, जिसे देना मेरा फर्ज था।
प्रसंगवश अतीत में जरा पीछे जा कर बताना चाहता हूं कि सन् 1979 में पत्रकारिता की शुरुआत लाडनूं ललकार के संपादक स्वर्गीय श्री राजेन्द्र जैन ने करवाई। मुझे सहायक संपादक बनाया। सन् 1980 से 1983 तक आधुनिक राजस्थान के अतिरिक्त जयपुर से प्रकाशित दैनिक अणिमा व दैनिक अरानाद के संवाददाता के रूप में काम किया।
अखबारी जीवन के अनेक संस्मरण मेरे जेहन में अब भी सजीव हैं। उनका जिक्र फिर कभी करूंगा।

सोमवार, 4 नवंबर 2019

अनिता भदेल आाखिर में अपना पत्ता खोलेंगी?

हालांकि जिस दिन अजमेर नगर निगम के मेयर की लॉटरी अनुसूचित जाति की महिला के नाम पर निकली, अजमेर दक्षिण से मौजूदा विधायक व पूर्व राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल ने उसी दिन साफ कर दिया था कि वे मेयर पद का चुनाव नहीं लड़ेंगी, पार्टी कहेगी तो भी नहीं, मगर कानाफूसी है कि वे आखिरी समय में दावा ठोकेंगी।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि श्रीमती भदेल ने एक रणनीति के तहत मेयर पद की दावेदारी से अपने आप को अलग रखा है। अगर वे जरा सी भी रुचि दिखातीं तो उनके विरोधी अभी से कार सेवा में जुट जाते। वैसे भी अभी बहुत टाइम पड़ा है। जानकारों का मानना है कि श्रीमती भदेल के लिए विपक्ष के एक विधायक के तौर पर चार साल टाइम खराब करने की बजाय आगामी पांच साल के लिए मेयर बनना ज्यादा उपयोगी है। अभी वे सिर्फ एक विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती हैं, मेयर बनने पर दो विधानसभा क्षेत्रों से भी अधिक इलाके की प्रतिनिधि हो जाएंगी। इसके अतिरिक्त स्मार्ट सिटी के तहत अभी करोड़ों रुपए के काम होने हैं। हालांकि यह तय है कि जब मेयर का चुनाव होगा, तब तक जिला प्रमुख वंदना नोगिया पद मुक्त हो जाएंगी, इस कारण दमदार तरीके से दावेदारी करेंगी, मगर उनसे अधिक दमदार दावेदारी श्रीमती भदेल की रहेगी। वंदना को मौका तो मिला, मगर उन्होंने उसका फायदा उठा कर जाजम नहीं बिछाई। रहा सवाल श्रीमती भदेल का तो अब ये उन पर निर्भर है कि वे किसी वार्ड से चुनाव लड़ कर मेयर पद की दावेदारी में आएंगी, या फिर सीधे मेयर पद की दावेदारी करेंगी। ज्ञातव्य है कि भले ही सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया हो कि मेयर का चुनाव पार्षदों में से ही होगा, मगर सीधे मेयर पद का चुनाव लडऩे की अधिसूचना अब भी वजूद में है। श्रीमती भदेल अभी भले ही अपने स्टैंड पर कायम हों, मगर राजनीति समझने वाले मानते हैं कि वे आखिरी समय में मैदान में आ डटेंगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

हेमंत भाटी की पत्नी का दावा सामने आते ही मची हलचल

कांग्रेस नेता हेमंत भाटी ने अजमेर नगर निगम के अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित मेयर पद के लिए अपनी पत्नी श्रीमती सुनीता भाटी  का जैसे ही दावा ठोका है, गुलाबी सर्दी के बीच यकायक सियासत में गरमाहट आ गई है।
ज्ञातव्य है कि अब तक की जानकारी के अनुसार अनुसूचित जाति के पुरुष के सामान्य वर्ग की महिला के साथ शादी होने पर महिला को अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले लाभ नहीं मिला करते, लेकिन भाटी ने एक अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा है कि उनकी पत्नी मेयर पद के लिए दावा करने की पात्रता रखती हैं। एक बयान में उन्होंने बताया कि गत 21 अक्टूबर को राज्यपाल ने जो अधिसूचना जारी की है, उसमें यह स्पष्ट है कि सामान्य वर्ग की महिला को अनुसूचित जाति के पुरुष के साथ शादी करने पर उसे भी अनुसूचित जाति के सारे लाभ मिलेंगे। हालांकि अधिसूचना में ये अलग से स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या वह चुनावों में भी आरक्षण के लाभ पर लागू होगी, मगर मोटे तौर पर तो यही माना जा रहा है। राज्यपाल की ओर से जारी अधिसूचना की खबर 22 अक्टूबर की राजस्थान पत्रिका में भी छपी है। उसकी कटिंग इस समाचार के साथ दी जा रही है।
खैर, बात भाटी के दावे की। जैसे ही उन्होंने दावा किया है, उन दावेदारों की पेशानी पर लकीरें खिंच गई हैं, जो कि यह सोच कर निश्चिंत थे कि भाटी की पत्नी चुनाव लडऩे की पात्रता नहीं रखतीं हैं। अनुसूचित जाति के पुरुषों की पत्नियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति की महिला पार्षदों को भी तकलीफ होना स्वाभाविक है, जो चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है कि राजनीतिक रसूखात, जनाधार व साधन संपन्नता के लिहाज से भाटी का दावा अन्य की अपेक्षाकृत भारी पड़ेगा। भले ही वे विधानसभा चुनाव में हार गए हों, मगर नगर निगम के पिछले चुनाव में उन्होंने जिस तरह अपना वर्चस्व साबित किया है, वह सबके सामने है। अकेले उन्हीं के दम पर कई पार्षद जीत कर आए थे। निगम में भाजपा को चुनौती उनके दक्षिण क्षेत्र के पार्षदों के कारण दी जा सकी, वरना उत्तर में तो हालत बहुत खराब थी। बहरहाल, अब देखते हैं कि आगे-आगे होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 3 नवंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग बीस
श्रीमती मधु खंडेलवाल
यूं तो श्रीमती मधु खंडेलवाल कई वर्षों से साहित्य व समाज की सेवा कर रही हैं, मगर अजमेर में पहली बार लेखिकाओं को एक मंच पर ला कर साहित्याकाश पर यकायक उभर कर आ गई हैं। प्रतिदिन किसी न किसी कार्यक्रम का हिस्सा बन कर अब वे एक जाना-पहचानी हस्ताक्षर हो चुकी हैं। यदि ये कहा जाए कि वे अजमेर के उन गिनती के जीवित, यानि सक्रिय व ऊर्जावान बुद्धिजीवियों में एक हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उन्होंने 30 जुलाई, 2018 में अजमेर लेखिका मंच की स्थापना की और 62 महिलाओं को इस मंच से जोडऩे में सफलता हासिल की। जाहिर तौर पर इससे स्थापित व नवोदित लेखिकाओं को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अच्छा माध्यम मिला है। इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने साहित्य को सामाजिक सरोकारों से भी जोडऩे का अनूठा प्रयोग किया है। वर्षभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन, जैसे एन.बी.टी, केन्द्रीय कारागृह, अनाथ आश्रम, नारीशाला, दयानन्द आश्रम व हाडी रानी बटालियन में साहित्य संगोष्ठी एवं चर्चा, लाडली, महिला एवं बाल विकास विभाग अन्य कॉलेज व स्कूलों में साहित्य के कई कार्यक्रमों का आयोजन किया है। इसके अतिरिक्त मूक-बधिर बच्चों को ब्रेन लिपि द्वारा साहित्य सृजन में योगदान किया है।
भारतीय जीवन बीमा निगम, अजमेर में बतौर उच्च श्रेणी सहायक के रूप में काम करते हुए उन्होंने छह पुस्तकों का लेखन व प्रकाशन किया है। उनकी दो पुस्तकें, सुगंध का रहस्य व एक भूल राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर ने प्रकाशित की हैं। पुस्तक सुगंध का रहस्य बाल साहित्य है, जिसे मयूर स्कूल के ग्रीष्मकालीन अवकाश कोर्स के रूप में शामिल किया गया है। पुस्तक एक भूल राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2018 में राज्य के सभी सरकारी पुस्तकालय में रखने हेतु क्रय की गईं। पुस्तक वैज्ञानिकों की रोचक कथाएं एवं नुपुर काफी चर्चित हैं। पुस्तक तरंग पर शॉर्ट फिल्म का फिल्मांकन किया गया।
वे राष्ट्रीय हिन्दी भाषा उन्नैयन समिति, इंदौर की प्रदेश अध्यक्ष, प्रगतिशील लेखक संघ की मानद सदस्या व भारतीय जीवन बीमा निगम में स्थित हिन्दी परिषद् की सचिव हैं। वर्ष 2018 में मेरठ लिटरेचर फैस्टिवल में वक्ता की हैसियत से शिरकत कर चुकी हैं। उनको राष्ट्रीय भाषा भारती साहित्य अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2014 से दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर निरन्तर काव्य गोष्ठी एवं कार्यक्रमों में शामिल हो रही हैं।
लेखन के अतिरिक्त उनकी रुचि समाज सेवा में भी है और समाज में निराश्रित एवं गरीब महिलाओं व निम्न तबके के लोगों को आगे बढ़ाने, शिक्षित करने एवं पुनर्वास का कार्य करने में समर्पित हैं। राजस्थान राज्य महिला आयोग की अजमेर जिला मंच की सदस्य रही हैं। गणतंत्र दिवस समारोह 2018 में जिला स्तर पर सम्मानित की जा चुकी हैं। इसी प्रकार राजस्थान राज्य महिला आयोग द्वारा महिला उत्थान हेतु सम्मान हासिल कर चुकी हैं। उन्हें राजस्थान सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा  सम्मानित किया गया है। बेटी बचाओ पुरस्कार, सावित्री बाई राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रीय महिला शक्ति पुरस्कार।, विमेन सब्सटेन्स अवार्ड, ग्लोबल डिग्निटी अवार्ड, रन फोर ह्यूमेनिटी अवार्ड, ग्लोबल प्राइड अवार्ड, खंडेलवाल समाज प्रतिभा सम्मान, राष्ट्रीय महिला सम्मान, आईडल वूमन अचिवमेन्ट अवार्ड, एल.आई.सी. महिला सशक्तिकरण अवार्ड, नेशनल ह्यूमेनिटी अवार्ड, जयपुर रत्न सम्मान, ह्यूमटेरियन एक्सीलेन्स अवार्ड आदि उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। उनकी कहानी, कविताएं आदि स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शहर भाजपा अध्यक्ष पद के लिए गहलोत सबसे ज्यादा उपयुक्त

अजमेर शहर भाजपा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी में खींचतान चल रही है। एक तरफ मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा का गुट है तो दूसरी ओर तकरीबन 15 साल तक स्थानीय भाजपाइयों को दो फाड़ करके रखने वाले पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की एकजुटता है। उनकी एकजुटता की वजह साफ है। भले ही उन्होंने शहर भाजपा को दो हिस्सों में बांट कर रखा, मगर पावरफुल होने के कारण पूरी भाजपा उनके ही कब्जे में थी। जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की कृपा से शिव शंकर हेड़ा अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने, देवनानी व भदेल की दादागिरी से त्रस्त एक नया गुट डॅवलप हो गया। संयोग से अजमेर विकास प्राधिकरण से निवृत्त होने के बाद भी हेड़ा को ही शहर भाजपा की कमान सौंपी गई, इस कारण उनका गुट कुछ और मजबूत हो गया। हालांकि वे पूर्व में भी अध्यक्ष रह चुके हैं, मगर तब वे इतने पावरफुल नहीं थे। हालत ये थी कि अजमेर नगर परिषद के चुनाव में अपने एक भी चेले को टिकट नही दिलवा पाए। सारी सीटें देवनानी व भदेल के बीच ही बंटी। चाहे प्रो. रासासिंह रावत का अध्यक्षीय कार्यकाल हो या अरविंद यादव, चलती देवनानी व भदेल की ही थी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। दोनों के पास सत्ता की ताकत रही, इस कारण जिन-जिन के भी उन्होंने काम करवाए, वे उनके भक्त हो गए। अध्यक्ष तो संगठन प्रमुख के रूप में नाम मात्र का था। कहा भले ही ये जाए कि मजबूत संगठन की वजह से ही लगातार चार बार विधानसभा चुनावों में अजमेर की दोनों सीटें जीती गईं, मगर सच्चाई ये है कि ऐसा देवनानी व भदेल के व्यक्तिगत दमखम और जातीय समीकरण की वजह से हुआ।
खैर, अब जब कि ये समझा जाता है कि नए प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया गुटबाजी खत्म करना चाहते हैं, ताकि शहर अध्यक्ष पावरफुल हो और आम कार्यकर्ता की सुनवाई हो, तो देवनानी व भदेल से त्रस्त कार्यकर्ता व छोटे नेता हेड़ा के इर्दगिर्द और अधिक लामबंद हो रहे हैं। भला यह देवनानी व भदेल को कैसे मंजूर हो सकता है कि उनका भाजपा पर से कब्जा छूट जाए, लिहाजा अपना अस्तित्व बचाने की खातिर दोनों एक दूसरे के नजदीक आ गए हैं। उन्होंने संगठन चुनाव में अपने चहेतों को मैदान में उतारने के लिए कमर कस ली है। नगर निगम चुनाव में मात्र आठ माह बचे हैं। वे जानते हैं कि यदि उनकी पसंद के पदाधिकारी न बने तो चुनाव में दिक्कत आएगी।
बात अगर शहर अध्यक्ष पद की करें तो ऐसा समझा जाता है कि संघ व भाजपा, दोनों ऐसे चेहरे की तलाश में हैं, जो मुखर हो, अनुभवी हो और सभी को साथ लेकर चल सके। फिलवक्त एक भी ऐसा चेहरा सामने नहीं आया है। आनंद सिंह राजावत जरूर दमखम रखते हैं और संगठन को ठीक से चला सकते हैं, लेकिन उन पर आमराय बनना संभव नहीं लगती। नए चेहरों में नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, मौजूदा डिप्टी मेयर संपत सांखला और पार्षद जे. के. शर्मा व नीरज जैन हैं। चांस सभी गुटों को साथ ले कर चलने का माद्दा रखने वाले नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य को भी मिल सकता था, मगर फिलहाल यौन शोषण के एक मामले में फंसने या फंसाए जाने के कारण उनका नाम बर्फ में लग गया है। इन सब के अतिरिक्त एक और दमदार नाम है मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का। उनका रुझान निकाय चुनाव में ही था, लेकिन अब जबकि मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है, उनकी चुनावी मंशा पर लाइन फिर गई है। मेयर पद से हटने के बाद उनके पास वकालत करने के लिए अलावा कोई काम नहीं रहेगा। ऐसे में समझा जाता है कि वे इस पद में रुचि दिखाएं। यह उनके राजनीतिक केरियर के लिए तो अच्छा है ही, भाजपा संगठन के लिए भी सूटेबल है। अध्यक्ष पद के जितने भी दावेदार हैं, उनमें से वे सर्वाधिक उपयुक्त हैं। निचले स्तर पर संगठन पर पकड़ के अतिरिक्त प्रशासनिक कामकाज का भी अच्छा खासा अनुभव है। वे अजमेर नगर परिषद के भूतपूर्व सभापति स्वर्गीय वीर कुमार की शैली के एक मात्र जुझारू नेता हैं। देवनानी के तो करीबी रहे ही हैं, हो सकता है कि अनिता भदेल भी हाथ रख दे। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि देवनानी से उनके पहले जैसे संबंध नहीं रहे, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग उन्नीस
*श्री गजेन्द्र के. बोहरा*
पत्रकारिता व समाजसेवा के क्षेत्र में श्री गजेन्द्र के. बोहरा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पत्रकारिता में तो उन्होंने लंबा सफर तय किया ही है, सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों के साथ काम करने का भी उनका अच्छा खासा अनुभव है। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में भी दखल रखते हैं। एनएसयूआई से आरंभ राजनीतिक सफर अब उन्हें अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी में सक्रिय सदस्य तक ले आया है। सक्रिय राजनीति में भले ही किसी बड़े मुकाम तक न पहुंचे हों, मगर दिग्गज मंत्रियों से निजी रसूखात के चलते स्थापित नेताओं तक के कान कतरते हैं। यदि चंद शब्दों में उनके व्यक्तित्व को समेटने की कोशिश करूं तो इतना ही काफी है कि वे हरफनमौला इंसान हैं। मजाक में मित्र मंडली उन्हें अजमेर की 'दाई' की उपमा देती है। आप समझे, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसमें उनका दखल न हो। जानकारियों का खजाना भी कह सकते हैं उन्हें। दैनिक न्याय से आरंभ उनकी पत्रकारिता दैनिक भास्कर तक पहुंची। इतना ही नहीं, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में पैर पसारते हुए उन्होंने भास्कर टीवी में बतौर प्रभारी काम किया। जीवट से काम करने की प्रवृत्ति के दम पर उन्होंने बेरोजगार मित्र नामक अपने पाक्षिक समाचार पत्र को राज्य स्तर पर पहचान दिलाई है। उनकी अपनी खुद की प्रिटिंग यूनिट भी है। क्वालिटी प्रिटिंग में भी उन्होंने अपनी अच्छी साख कायम की है।
शहर के विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक संगठनों में भी अपने मधुर व्यहवार व कार्यकुशलता के चलते अलग पहचान है। सेवा को समर्पित महावीर इंटरनेशनल में उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरूप ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय सचिव पद से नवाजा गया। हाल ही में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में 02 अक्टूबर को 44वीं बार रक्तदान किया। स्वेच्छिक रक्तदान के चलते राज्य स्तर पर भी सम्मानित किया जा चुका है। सजगता के चलते अब तक चार देहदान करवाने का श्रेय भी इनके खाते में दर्ज हैं। आज भी अनवरत कई सामाजिक संस्थाओं से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। 
अब बात करते हैं, उनकी भाषा-शैली की। संयोग से मेरे पास उनका वह आलेख है, जो उन्होंने दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर रचित गौरव ग्रंथ में प्रकाशित होने आया था, मगर प्रकाशन की आपाधापी में गंभीर त्रुटिवश वह रह गया। इस आलेख को पढ़ कर आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि भाषा-शैली पर उनकी कितनी गहरी पकड़ है। इस बहाने उनका वह आलेख भी सार्वजनिक हो जाएगा, जिसे उन्होंने बड़े मनोयोग से तैयार किया था।
*पेश है वह आलेख :*
'वह दिन' जिसने जीवन का लक्ष्य तय कर दिया...
मैं अपनी रोजमर्रा की डाक देख रहा था, तभी वह पत्र मेरे सामने आया, जिसमें मुझे स्थानीय लेकिन देश की पत्रकारिता जगत में अग्रणी स्थान पर स्थापित दैनिक समाचार पत्र 'दैनिक नवज्योति' के प्रधान सम्पादक दीनबन्धु चौधरी से संबंधित संस्मरण, आलेख के रूप में उपलब्ध कराने का स्नेहिल आमंत्रण दिया गया था। आलेख को श्री दीनबंधु चौधरी गौरव ग्रंथ में स्थान दिए जाने का उल्लेख भी पत्र में था।
इस स्नेहिल आमंत्रण ने मुझे इतना अभिभूत कर दिया कि मेरा दृष्टि-पटल अश्रु ओस कणों से अवरुद्ध हो गया। इन्हीं अश्रु ओस कणों से बने झीने पर्दे पर वह दृश्य उभरने-मिटने लगे, जिन्होंने मेरे जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर दिया था...
अजमेर रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म संख्या एक, स्थानीय समाजसेवियों, पत्रकारों और राजनेताओं के साथ कर्मचारी संगठनों और व्यवसायिक संस्थानों के प्रमुख व्यक्तियों से जैसे भर गया था। 1986 के जुलाई माह के उस दिन, दोपहर दस्तक देने लगी थी। सभी की उत्सुक निगाहें उस तरफ टकटकी लगाए थीं, जिधर दिल्ली से आने वाली उस ट्रेन को आना था, जिस ट्रेन से 'दैनिक नवज्योति' के प्रबन्ध सम्पादक वरिष्ठ पत्रकार दीनबंधु चौधरी, अपना सोवियत रूस का प्रवास पूरा कर लौट रहे थे।
वे उस मीडिया टीम के विशेष आमंत्रित सदस्य थे, जो भारत के प्रधानमंत्री के साथ सोवियत रूस के दौरे पर जाने के लिए चुनी गई थी। निश्चित रूप से शहरवासियों के लिए वह दिन अजमेर के गौरवशाली इतिहास में एक पृष्ठ और संकलित करने वाला दिन था, इसका प्रमाण अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म एक पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा, शहरवासियों का वह हुजूम था जिसका मैं भी एक हिस्सा था।
मेरी उत्सुक और कौतुहल भरी निगाहें, कभी उस हुजूम में मौजूद जाने-पहचाने चेहरों के इर्द-गिर्द जायजा लेती थीं और फिर उसी दिशा में जा टिकती थीं, जिधर से दिल्ली से आने वाली ट्रेन एक नए सूर्य की तरह उदित होने वाली थी। मैं देख रहा था, समझ रहा था कि उस हुजूम में मौजूद हर शख्स की हालत लगभग मेरे जैसी ही थी। उन सभी में और मुझ में या मेरी सोच में, शायद एक फर्क जरूर था। वह फर्क था कि सभी को इंतजार था ट्रेन के आने का, जबकि मेरी आंखों में एक सपना तैरने लगा था। मैं उस सपने में खो गया। दूर से आ रहा और ट्रेन को ला रहा इंजन धीरे-धीरे नजदीक आ रहा था। कुछ सौ मीटर की दूरी से दिखाई देने वाली ट्रेन की रफ्तार इतनी धीमी थी, जैसे वह सैकड़ों मील की दूरी तय कर थक गई हो। दूसरी तरफ मेरे दिल की धड़कनों की रफ्तार इतनी बढ़ गई थी, जैसे वह उछल कर सीने से बाहर आ जाएगी। खून की रफ्तार इस कदर बढ़ गई थी, कि कनपटियों में फड़क रही नसों की धमक मेरे कानों में हथौड़े की तरह गूंज रही थी। धीरे-धीरे ट्रेन का इंजन मेरे सामने से गुजरा और ट्रेन के डिब्बे एक के बाद एक मेरे सामने से गुजरने लगे। फिर वह डिब्बा मेरे सामने आकर रुक गया, जिसके दरवाजे पर मैं अपने आपको खड़ा देख रहा था। स्टेशन के प्लेटफार्म पर हुजूम हाथ हिला-हिला कर मेरा अभिवादन कर रहा था। मैं भी मुस्कुराते हुए उनका अभिवादन स्वीकार कर रहा था। उस हुजूम ने ट्रेन के उस डिब्बे के उस दरवाजे को इस तरह घेर लिया था कि मुझे दरवाजे से उतरना मुश्किल हो गया था। कुछ ही पलों में मुझे कुछ लोगों ने कंधों पर उठा कर ट्रेन के डिब्बे से नीचे उतारा और प्लेटफार्म पर ही मुझे कंधों पर लेकर नाचने लगे। बड़ी मुश्किल से मेरे पैरों ने प्लेटफार्म की जमीन को छुआ। मैं कह नहीं सकता कि कंधों से उतरने में मेरी भूमिका कितनी थी और हुजूम की कितनी। उसके बाद दौर शुरू हो गया गले मिलने, बधाई और शुभकामनाओं के साथ माला पहनाने का सिलसिला। मुझे इतना मौका भी नहीं मिल रहा था कि मैं मालाओं में निरंतर डूबते जा रहे चेहरे को अपने हाथों से निजात दिला सकूं। मैं कुछ भी देख पाने में असमर्थ था और मेरी नाक फूलों की सुगंध से भर रही थी। तभी अचानक मेरे कानों में मेरे ही नाम की गूंज सुनाई दी। मैं अपने सपने से उबरने लगा। अब मेरे सामने जो चेहरा फूलों से ढका जरूर था, लेकिन वह चेहरा मेरा नहीं, दीनबंधु चौधरी साहब का था। उन्होंने मुझसे पूछा 'गजेन्द्र कैसे हो...?'
मैं चौंक कर अपने आप में लौटा। मैंने मुस्कराते हुए अपने हाथों में ली हुई माला उन्हें आदरपूर्वक पहनाते हुए कहा- मैं ठीक हूं 'सर'। मैंने झुक कर चरण स्पर्श कर मन ही मन फैसला किया कि 'मैं भी अपने आपको पत्रकारिता के उस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ूगा।' निश्चित रूप से वह दिन मेरी जिन्दगी का अहम दिन बन गया। सच कहूं तो उस पूरे कार्यक्रम के दौरान और क्या कुछ होता रहा, मुझे सिलसिलेवार याद नहीं रहा। याद रहा तो बस इतना कि मुझे अपने आपको पत्रकारिता के प्रति इस कदर समर्पित कर देना है कि ज्यादा नहीं तो उस पायदान तक तो मुझे पहुंचना ही है, जहां मुझे, मेरे परिजन और मित्र मुझे पत्रकार के रूप में एक पहचान दे सकें। आज मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मेरी समर्पित भावना ने मुझे इस लायक बना दिया कि आज मेरे परिजन और मित्र मुझे किसी बिजनेसमैन के रूप से ज्यादा पत्रकार के रूप में मान्यता देते हैं।
सच कहूं तो मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में यह स्थान दिलाने मेें मेरे श्रम और समर्पण से ज्यादा, वह स्मरणीय दिन है, जो मेरे लिए उस दिन अनुकरणीय बन गया और आज भी है।
मैं समझता हूं कि यह आलेख उन लोगों से उनको रूबरू करवाने के लिए काफी है, जो कि उन्हें परिपूर्ण पत्रकार में रूप में नहीं जानते हैं।
- तेजवानी गिरधर
7742067000