बुधवार, 18 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग चार
स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा
स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा पेशे से मूलत: वकील थे, मगर पत्रकारिता में भी उनको महारत हासिल थी। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में कोर्ट की रिपोर्टिंग की। बाद में दैनिक भास्कर से जुड़े, जहां उनके भीतर का पत्रकार व लेखक पूरी तरह से पुष्पित-पल्लवित हुआ। रूटीन की खबरों से हट कर वो सब कुछ जो खबर का हिस्सा नहीं बन पाता था, उसके लिए दैनिक भास्कर ने महानगर प्लस के नाम से एक पेज का अनूठा प्रयोग किया। उसमें खबरों के फॉलोअप, ह्यूमन स्टोरीज, जीवन के विविध रंगों इत्यादि का समावेश किया जाता था। इस पेज को उन्होंने बखूबी संभाला। खबर के तत्त्व को बारीकी से समझने वाले श्री हाड़ा बहुत टाइट खबर लिखा करते थे। मुझे एक भी खबर याद नहीं, जिसे संपादित करते वक्त एक भी शब्द इधर से उधर करना पड़ा हो। अपनी असीम कल्पनाशीलता का भरपूर उपयोग करते हुए उन्होंने महानगर प्लस में एक से बढ़ एक प्रयोग किए और पत्रकारिता को नया आयाम प्रदान किया। भाषा-शैली में विविध रंग भरने में भी कमाल की कारीगरी थी। उन्होंने पत्रकारिता में आए नए युवक-युवतियों को तराश कर परफैक्ट पत्रकार बनाया। मेरी नजर में वे एक संपूर्ण संपादक थे, जिनमें भाषा का पूर्ण ज्ञान था, समाचार व पत्रकारिता के सभी अंगों की गहरी समझ थी, किस खबर को कितना सम्मान चाहिए, इसका भान था। ले आउट के एक्सपर्ट थे। हैंड राइटिंग भी बहुत खूबसूरत थी, जो उनके खूबसूरत मिजाज  की द्योतक थी। यह बात दीगर है कि कंप्यूटर के इस युग में हैंडराइटिंग की प्रासंगिकता खत्म सी हो गई है। दैनिक भास्कर के कानूनी मसलों को भी उन्होंने बखूबी हैंडल किया। अजयमेरू प्रेस क्लब का संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। मीडिया की भीतरी दुनिया की खैर खबर रखने वाले पोर्टल भड़ास डॉट कॉम पर यदा कदा अपनी भड़ास निकाल लिया करते थे। इस हिसाब से वे एक विद्रोही इंसान थे, जिसे अव्यवस्था व अन्याय विचलित कर दिया करता था। जीवन के आखिरी दिनों में दरगाह ख्वाजा साहब पर अनूठ वेबसाइट भी बनाई। माशाअल्लाह, वाकई हरफनमौला इंसान थे।
अफसोस कि जीवन यात्रा में आधे रास्ते में ही हमको अलविदा कह के चल दिए। काश वे जिंदा होते तो न जाने कितने और नवोदित पत्रकारों को दिशा प्रदान करते। उनकी अंत्येष्टि के समय पार्थिव शरीर से उठती लपटों ने मेरे जेहन में यह सवाल गहरे घोंप दिया कि क्या कोई कड़ी मेहनत व लगन से किसी क्षेत्र में इसलिए पारंगत होता है कि वह एक दिन इसी प्रकार आग की लपटों के साथ अनंत में विलीन हो जाएगा? खुदा से यही शिकवा कि यह कैसा निजाम है, आदमी द्वारा हासिल इल्म और अहसास उसी के साथ चले जाते हैं। कौतुहल ये भी कि फिर जिस दुनिया में वह जाता है, वहां वह फन उसके किसी काम भी आता है या नहीं?

श्री हरि हिमथानी
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित श्री हरि हिमथानी की गिनती राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित सिंधी साहित्यकारों में होती है। उनका जन्म 1933 में सिंध के नवाबशाह जिले के हिसाब गांव में हुआ। भारत विभाजन के बाद वे अजमेर में आ कर बसे। उनकी पहली लघु कथा सन् 1952 में च्प्यार रोई दिनोज् का प्रकाशन एक प्रसिद्ध सिंधी मासिक पत्रिका च्कुमारीज् में हुआ। सन् 1954 में उनके नॉवेल च्रात जो बियों पहरज् और च्माझिया जा दंगाज् प्रकाशित हुए। इसके बाद उनके नॉवेल च्अभागिनज् और च्आशाज् ने उन्हें प्रतिष्ठित लेखक के रूप में स्थापित किया। सन् 1954 से 1960 के दौरान उनके पांच नॉवेल प्रकाशित हुए, जिनकी काफी सराहना हुई। सन् 1961 के दरम्यान उन्होंने आत्मकथा लिखना शुरू किया और दुर्भाग्य से उनके बड़े भाई ने दीपावली के सफाई के दौरान तकरीबन 1500 पन्ने कचरे के साथ फैंक दिए। तकरीबन दस साल तक उन्होंने लेखन बंद कर दिया। इसके बाद 1970 में उन्होंने फिर लिखना शुरू किया और एक के बाद एक पुस्तकें लिखते गए। सन् 1987 में उन्हें च्आरमेक असवार्डज् से नवाजा गया। सन् 1990 में उन्हें च्नई दुनिया पब्लिकेशनज् से सम्मानित किया गया। सन् 1993 में उन्हें अखिल भारतीय सिंधी बोली ऐं साहित सभा की ओर से च्लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्डज् दिया गया। सन् 1995 में उन्होंने च्डॉ. एच. एल. सदरंगानी गोल्ड मेडलज् हासिल किया। सन् 1996 में उन्हें राजस्थान सिंधी अकादमी ने लाइफ टाइम लिट्रेसी अचीवमेंट के लिए से च्सामी अवार्डज् से नवाजा गया। सन् 2001 में उन्हें एन.सी.पी.एस.एल. अवार्ड व 2002 में साहित्य अकादमी अवार्ड हासिल हुआ। सन् 2009 में उन्हें सिंधु वेलफेयर सोसायटी, जयपुर ने सम्मानित किया। उनकी तकरीबन दस लघु कथाएं और पंद्रह नॉवेल प्रकाशित हो चुके हैं। गत 21 अक्टूबर, 2010 को साहित्य अकादमी की ओर से उन्हें सम्मान देते हुए मीट द ऑथर के तहत साहित्य प्रेमियों से रूबरू करवाया गया।
-तेजवानी गिरधर
7742067000