तीन तलाक के मामले पर बयान पर सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन की दरगाह के दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान को पद से हटा कर खुद काबिज होने का ऐलान करने वाले उनके छोटे भाई एस. ए. अलीमी क्या इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश में शामिल हैं? इस विवाद पर दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान के बयान से तो यही जाहिर होता है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि ख्वाजा साहब के वंशज दीवान समय समय पर राष्ट्रीय मसलों पर सूफी मत के अनुसार अपनी राय जाहिर करते रहे हैं, जो कि इस्लामिक कट्टरपंथियों को नागवार गुजरता ही होगा। मगर बकौल दरगाह दीवान यह पहला मौका है कि उनके ही छोटे भाई उन इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश में शामिल हो गए हैं। ज्ञातव्य है कि तीन तलाक मसले पर जैसे ही दरगाह दीवान ने राय जाहिर की, उसके दूसरे ही दिन उनके छोटे भाई ने यह कह कर कि मुफ्ती की राय में दीवान हनफी मुसलमान नहीं रह गए हैं, इस कारण वे उन्हें अपदस्थ कर खुद दीवान की गद्दी पर काबिज हो रहे हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए दरगाह दीवान ने बाकायदा संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर स्पष्ट कर दिया कि उन्हें हटाने का अधिकार किसी को नहीं है और उन्हें हटा देने का बयान हास्यापद होने के साथ इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश मात्र है। चूंकि दीवान पद से हटाने का ऐलान उनके छोटे भाई ने किया था, तो दीवान का बयान का यही अर्थ निकलता है कि उनके छोटे भाई इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश में शामिल हो गए हैं। अगर यह सही है तो यह बेहद अफसोसनाक है कि जो दरगाह दुनिया में सूफी मत की सबसे कदीमी दरगाह है, और जहां से पूरे विश्व में महान संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश जाता है, उसी के एक वंशज इस्लामिक कट्टपंथियों में शुमार हो गए हैं।
हालांकि ताजा विवाद दो भाइयों का विवाद है, जो पहले से चला आ रहा है, मगर इस मुकाम पर आ कर अगर एक भाई कथित रूप से सूफी से इतर इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर चला गया है तो यह चिंतनीय है। यह चिंता का विषय इस कारण भी है, क्योंकि अब तक तो दीवान को बाहरी ताकतों का खतरा रहता था, मगर अब वे बाहरी ताकतें उनके भाई के जरिए घर में ही दखल देने लगी हैं तो उन्हें और अधिक सतर्क होना पड़ेगा। देखने वाली बात ये है कि अगर एस. ए. अलीमी ने इस्लामिक कट्टपंथियों के इशारे पर दीवान को हटाने संबंधी बयान दिया है, तो दीवान के पद पर बने रहने के बयान के बाद वे प्रतिक्रिया में जरूर कुछ न कुछ करेंगी। सरकार के लिए भी यह गौर करने लायक है। अब उसे दीवान को और अधिक सुरक्षा देनी होगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
इसमें कोई दोराय नहीं कि ख्वाजा साहब के वंशज दीवान समय समय पर राष्ट्रीय मसलों पर सूफी मत के अनुसार अपनी राय जाहिर करते रहे हैं, जो कि इस्लामिक कट्टरपंथियों को नागवार गुजरता ही होगा। मगर बकौल दरगाह दीवान यह पहला मौका है कि उनके ही छोटे भाई उन इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश में शामिल हो गए हैं। ज्ञातव्य है कि तीन तलाक मसले पर जैसे ही दरगाह दीवान ने राय जाहिर की, उसके दूसरे ही दिन उनके छोटे भाई ने यह कह कर कि मुफ्ती की राय में दीवान हनफी मुसलमान नहीं रह गए हैं, इस कारण वे उन्हें अपदस्थ कर खुद दीवान की गद्दी पर काबिज हो रहे हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए दरगाह दीवान ने बाकायदा संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर स्पष्ट कर दिया कि उन्हें हटाने का अधिकार किसी को नहीं है और उन्हें हटा देने का बयान हास्यापद होने के साथ इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश मात्र है। चूंकि दीवान पद से हटाने का ऐलान उनके छोटे भाई ने किया था, तो दीवान का बयान का यही अर्थ निकलता है कि उनके छोटे भाई इस्लामिक कट्टरपंथियों की साजिश में शामिल हो गए हैं। अगर यह सही है तो यह बेहद अफसोसनाक है कि जो दरगाह दुनिया में सूफी मत की सबसे कदीमी दरगाह है, और जहां से पूरे विश्व में महान संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश जाता है, उसी के एक वंशज इस्लामिक कट्टपंथियों में शुमार हो गए हैं।
हालांकि ताजा विवाद दो भाइयों का विवाद है, जो पहले से चला आ रहा है, मगर इस मुकाम पर आ कर अगर एक भाई कथित रूप से सूफी से इतर इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर चला गया है तो यह चिंतनीय है। यह चिंता का विषय इस कारण भी है, क्योंकि अब तक तो दीवान को बाहरी ताकतों का खतरा रहता था, मगर अब वे बाहरी ताकतें उनके भाई के जरिए घर में ही दखल देने लगी हैं तो उन्हें और अधिक सतर्क होना पड़ेगा। देखने वाली बात ये है कि अगर एस. ए. अलीमी ने इस्लामिक कट्टपंथियों के इशारे पर दीवान को हटाने संबंधी बयान दिया है, तो दीवान के पद पर बने रहने के बयान के बाद वे प्रतिक्रिया में जरूर कुछ न कुछ करेंगी। सरकार के लिए भी यह गौर करने लायक है। अब उसे दीवान को और अधिक सुरक्षा देनी होगी।
-तेजवानी गिरधर
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