शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012
अब डॉक्टर बाहेती की बारी है
कहते हैं कभी-कभी चाय से ज्यादा केतली गरम हो जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ गुरुवार को। स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल की ओर से पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर भू-रूपांतरण से संबंधित विवादित धारा 90बी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाए जाने पर जितना पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को उबलना था, उससे कहीं अधिक नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन फट पड़े।
जैन ने कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए कहा है कि कांग्रेस सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में जम कर भ्रष्टाचार करने के लिए ही इसे लागू किया था और अब जबकि उस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है तो फिर भ्रष्टाचार करने के लिए बीच की गली निकालने कोशिश कर रही है। सरकार की गलती को छुपाने के लिए स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर झूठा और बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। उनके आरोप में दम नजर आता है क्योंकि अगर इस धारा का भाजपा सरकार ने दुरुपयोग कर टकसाल बना लिया था और इसमें खामियां थीं तो कांग्रेस ने सत्ता में आते ही इसे हटा क्यों नहीं दिया? हाईकोर्ट के रोक लगाने पर ही धारा क्यों हटाई गई?
खैर, इस मुद्दे पर धारीवाल के बयान पर प्रदेश भाजपा क्या रुख अख्तियार करती है, ये उतना दिलचस्प नहीं है, जितना कि इस मुद्दे को लेकर पूर्व न्यास अध्यक्ष जैन का खुद को पाक साबित करना और बिना नाम लिए पूर्व न्यास अध्यक्ष डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को आरोपों के कटघरे में खड़ा करना। जैन ने नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद के अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए चुनौती दी है कि धारीवाल एक भी ऐसा मामला बताएं, जिसमें 90 बी के तहत नियमों की अनदेखी अथवा भ्रष्टाचार किया गया है। उन्होंने यह तक घोषणा की है कि अगर उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक भी मामला साबित कर दिया जाता है तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। सीधी सी बात है, हालांकि इस पर प्रतिक्रिया देने की जिम्मेदारी सीधे तौर पर वसुंधरा राजे अथवा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी की बनती है, मगर जैन ने धारीवाल के आरोप को सीधे तौर पर अपने ऊपर ले लिया है, तभी तो जवाबी हमला कर रहे हैं। वैसे इसमें बुराई भी क्या है? सांच को आंच नहीं। एक सिंधी कहावत है-सच त बीठो नच। अर्थात जो सच्चा है, वो खुले आम मस्ती में नाच सकता है। जैन भी अपने आप को सच्चा बताते हुए बेबाक बयानी कर रहे हैं।
जैन ने अजमेर का ही हवाला देते हुए आरोप लगाया है कि पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान नगर सुधार न्यास के जरिए जम भ्रष्टाचार करते हुए इस धारा का खुला दुरुपयोग किया गया है। भ्रष्टाचार की पराकाष्टा इसी से साबित होती है कि कस्टोडियन, स्कीम एरिया में काश्तकारों के लिए अध्रिहीत की गई जमीन, आनासागर डूब क्षेत्र सहित नालों तक की जमीनों का नियमन कर दिया गया। यह सीधे सीधे तौर पर पूर्व न्यास अध्यक्ष डॉ. श्रीगोपाल बाहेती पर चलाया गया है। अब ये बाहेती की जिम्मेदारी है कि वे सामने आएं।
ये सचिन व नसीम की नाकामी है
महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के आगामी 800वें सालाना उर्स में जायरीन की आवक ज्यादा होने की संभावना के मद्देनजर बनाई विशेष योजना के लिए हुई अनेक बैठकों के बाद भी सरकार ने फूटी कौड़ी तक जारी नहीं की है। असल में तकरीबन तीस सौ करोड़ रुपए की योजना बीरबल की खिचड़ी की तरह ऐसी पकी है कि उस पर उर्स से पहले अमल न होने की आशंका उत्पन्न हो गई थी। इसी कारण उसे अलग-अलग चरणों में पूरा करने का निर्णय किया गया। पहले चरण में अस्सी करोड़ के काम कराने का तय किया गया और कामों की सूची भी राज्य सरकार को भेज दी गई, मगर अफसोस कि अब तक सरकारी अधिकारी राशि आने का ही इंतजार कर रहे हैं। अब तो इतना कम समय बचा है कि अगर अस्सी करोड़ जारी भी हो गए तो महज लीपापोती हो कर रह जाएगी। इसकी आशंका इस लेखक ने अपने ब्लॉग पर कोई पांच माह पहले ही जाहिर कर दी थी।
हालांकि यह हमारे देश व राज्य की शासन व्यवस्था के तौर-तरीकों का ही परिणाम है, मगर इसके लिए प्रयासों की कमी के लिए सीधे तौर पर अजमेर के सांसद व केन्द्रीय
संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ को जिम्मेदार ठहराया जाए तो कोई अतशयोक्ति नहीं होगी। अगर उन्होंने गंभीर प्रयास किए होते तो इस योजना का ऐसा हश्र नहीं होता। पायलट अपने खाते में चाहे जितनी उपलब्धियां दर्ज करवा चुके हों और नसीम अख्तर भी अजमेर के विकास के लिए चाहे जितनी शिद्दत जाहिर करती हों, मगर उन दोनों के खाते में यह नाकामी तो दर्ज हो ही चुकी है। ऐसे प्रभावशाली मंत्रियों के रहते भी अगर अजमेर पर सरकार गौर नहीं कर रही तो इसका सीधा सा अर्थ है कि या तो उनकी ऊपर सुनने वाला कोई नहीं है या फिर उन्होंने इसे पूरी गंभीरता से नहीं लिया। असल में यह योजना जब चर्चा में आई और उस पर पहली बैठक प्रदेश के गृह मंत्री शांति धारीवाल ने अजमेर में ली, तभी पूत के पग पालने में नजर आ गए थे। धारीवाल की मौजूदगी में हुई अहम बैठक ही बेनतीजा रही थी। जिस योजना पर तकरीबन तीन सौ करोड़ रुपए खर्च किए जाने का विचार हो, ऐसी महत्वपूर्ण बैठक के लिए न तो कोई पुख्ता एजेंडा तैयार किया गया था और न ही संभागियों को उसकी तैयारी करके आने को कहा गया। जिला प्रशासन से भी पहले कोई एक्सरसाइज नहीं करवाई गई। रही सही कसर खादिम प्रतिनिधियों व विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के बीच हुई नौंकझोंक ने पूरी कर दी। धारीवाल को भी लगा कि यहां विवाद है और उसके लिए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा को जिम्मेदारी दी कि वे सभी पक्षों की आम सहमति बना कर सरकार को रिपोर्ट करें। उनके रिपोर्ट भेजने से लेकर राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच संवाद ही इतना लंबा हो गया है कि अब तक कुछ भी नहीं हो पाया है।
दरअसल मास्टर प्लान के लिए जो प्रस्ताव मोटे तौर पर रखे गए हैं, वे कोई नए नहीं हैं। उन पर पहले भी कई बार विचार हो चुका है। हर साल होने वाले उर्स मेले से पूर्व और विशेष रूप से 786वें उर्स मेले के दौरान भी लगभग इन्हीं प्रस्तावों पर चर्चा हो चुकी है, मगर उन पर अमल करने की इच्छा शक्ति न सरकार ने दिखाई और न ही प्रशासन में इतनी हिम्मत की वह बर्र के छत्ते में हाथ डाले। प्रशासन का भी यही रवैया रहा है कि जैसे-तैसे मेला निपटा लिया जाए। मेला शांति से संपन्न होने पर वह शुक्र अदा करने के लिए मजार शरीफ पर चादर पेश कर खुद भी चादर ओढ़ कर सो जाता है। ताजा मामले में भी ऐसा ही हुआ। एक तो जनप्रतिनिधियों की लापरवाही और दूसरा अधिकारियों की बेरुखी के कारण आज साफ लगने लगा है कि केवल तीन माह में अस्सी करोड़ रुपए के काम करवाए ही नहीं जा सकेंगे। अर्थात लीपापोती की आशंका सच होती दिखाई दे रही है।
यहां उल्लेखनीय है कि इस परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न मार्गों के विकास, नालियों के निर्माण, सीवरेज, विद्युत सप्लाई उपकरण, सुरक्षा, पार्किंग, शौचालय, कोरिडोर, दरगाह शरीफ के प्रवेश द्वारों की चौड़ाई बढाना, अग्नि शमन, विश्राम स्थलियों का विकास, ईदगाह के विकास के साथ-साथ अजमेर शहर की कई बड़ी सड़कों के निर्माण एवं विकास का प्रावधान रखा गया है। ऐसी बड़ी योजना यदि पूरी तरह से लागू हो जाए और उस पर पूरी ईमानदारी के साथ काम हो तो शहर की काया ही पलट जाएगी। मगर समय के अभाव में काम पूरे होने से पहले ही उर्स सर पर आ जाएगा। इस योजना को लेकर अजमेर फोरम ने भी खूब माथपच्ची की, मगर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। अजमेर के दोनों मंत्रियों ने कितनी गंभीर कोशिश की, वह सबके सामने आ ही चुका है। रहा सवाल बेचारे प्रशासन का तो वह राशि न मिलने के कारण लाचारी जता रहा है। यहां उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ख्वाजा साहब के 786वें उर्स में विशेष पैकेज आया था, मगर तब भी इतना कम समय था कि कामों में लीपापोती हुई और बाद में लंबे समय तक उसकी जांच होती रही।
दरअसल मास्टर प्लान के लिए जो प्रस्ताव मोटे तौर पर रखे गए हैं, वे कोई नए नहीं हैं। उन पर पहले भी कई बार विचार हो चुका है। हर साल होने वाले उर्स मेले से पूर्व और विशेष रूप से 786वें उर्स मेले के दौरान भी लगभग इन्हीं प्रस्तावों पर चर्चा हो चुकी है, मगर उन पर अमल करने की इच्छा शक्ति न सरकार ने दिखाई और न ही प्रशासन में इतनी हिम्मत की वह बर्र के छत्ते में हाथ डाले। प्रशासन का भी यही रवैया रहा है कि जैसे-तैसे मेला निपटा लिया जाए। मेला शांति से संपन्न होने पर वह शुक्र अदा करने के लिए मजार शरीफ पर चादर पेश कर खुद भी चादर ओढ़ कर सो जाता है। ताजा मामले में भी ऐसा ही हुआ। एक तो जनप्रतिनिधियों की लापरवाही और दूसरा अधिकारियों की बेरुखी के कारण आज साफ लगने लगा है कि केवल तीन माह में अस्सी करोड़ रुपए के काम करवाए ही नहीं जा सकेंगे। अर्थात लीपापोती की आशंका सच होती दिखाई दे रही है।
यहां उल्लेखनीय है कि इस परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न मार्गों के विकास, नालियों के निर्माण, सीवरेज, विद्युत सप्लाई उपकरण, सुरक्षा, पार्किंग, शौचालय, कोरिडोर, दरगाह शरीफ के प्रवेश द्वारों की चौड़ाई बढाना, अग्नि शमन, विश्राम स्थलियों का विकास, ईदगाह के विकास के साथ-साथ अजमेर शहर की कई बड़ी सड़कों के निर्माण एवं विकास का प्रावधान रखा गया है। ऐसी बड़ी योजना यदि पूरी तरह से लागू हो जाए और उस पर पूरी ईमानदारी के साथ काम हो तो शहर की काया ही पलट जाएगी। मगर समय के अभाव में काम पूरे होने से पहले ही उर्स सर पर आ जाएगा। इस योजना को लेकर अजमेर फोरम ने भी खूब माथपच्ची की, मगर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। अजमेर के दोनों मंत्रियों ने कितनी गंभीर कोशिश की, वह सबके सामने आ ही चुका है। रहा सवाल बेचारे प्रशासन का तो वह राशि न मिलने के कारण लाचारी जता रहा है। यहां उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ख्वाजा साहब के 786वें उर्स में विशेष पैकेज आया था, मगर तब भी इतना कम समय था कि कामों में लीपापोती हुई और बाद में लंबे समय तक उसकी जांच होती रही।
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