शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

सख्त एसपी व गुस्सैल मेयर को सलाम

जरूरतमंदों को भोजन के पैकेट बांटने की व्यवस्था खत्म करने के विरोध में कलेक्ट्रेट पर पार्षदों के प्रदर्शन का फेसबुक लाइव चलने के कारण पूरा शहर इस घटना से सीधे जुड़ा हुआ था। लोग दिल थाम कर सारा नजारा देख रहे थे। खतरा बना हुआ था कि कहीं पार्षदों व पुलिस के बीच तनातनी बढ़ी तो पूरा शहर आंदोलित न हो जाए। इस बीच टीका-टिप्पणियां भी खूब हुईं। कोई एसपी कुंवर राष्ट्रदीप की सख्ती बरतने पर भूरि-भूरि तारीफ कर रहा था तो कोई जनता की खातिर सड़क पर आने के लिए मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व कांग्रेस-भाजपा पार्षदों पीठ थपथपा रहा था। बेशक लॉक डाउन के कारण घरों में कैद लोगों में पार्षदों द्वारा लोक डाउन का उल्लंघन करने के लिए आलोचना करने वालों की तादाद ज्यादा थी। यह तो अच्छा हुआ कि एसपी व मेयर ने चतुराई का परिचय दिया, दोनों पक्षों ने संयम बरता व गिरफ्तारी पर सहमति बन गई, वरना हालात बिगडऩे पर पूरे शहर को कफ्र्यू भी भुगतना पड़ सकता था।
घटना का पटाक्षेप होने के बाद भी परस्पर विरोधी टिप्पणियों का सिलसिला जारी रहा। एसपी के पक्ष में आई एक टिप्पणी आपकी नजर पेश है:-अनुशासन की अवेहलना, झुंड बना कर पहुंच गए यार, हद है, शर्मसार हुआ अजमेर, इन लोगों ने तो मर्यादा तोड़ी पर आप मर्यादा में रहे, नमन है। अजमेर सिंघम ने उतारा राजनीति का भूत, इस समय राजनीति नहीं करने दूंगा, सटीक जवाब। यह बिलकुल सही है कि पार्षदों के एक साथ एकजुट हो कर कलेक्ट्रेट पर पहुंचने से लॉक डाउन का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन हुआ।  गनीमत रही कि पार्षदों के समर्थक व दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता वहां नहीं पहुंचे, वरना स्थिति गंभीर हो सकती थी। सुपरिचित गर्म मिजाज के धर्मेन्द्र गहलोत व कड़क एसपी के आमने-सामने होने के कारण कभी भी कुछ भी हो सकता थ। गहलोत आखिरकार स्वर्गीय वीर कुमार के शिष्य रहे हैं। ऐसे मौके पर एसपी का यह कहना बिलकुल वाजिब था कि आप लोग एक-एक करके कलेक्टर से मिल सकते हैं, लेकिन इस तरह झुंड बना कर लॉक डाउन का उल्लंघन नहीं करने दूंगा। कानून सबके लिए बराबर है। उन्होंने सख्त रुख अपनाते हुए पार्षदों को जम कर लताड़ा और चेताया कि वे राजनीति नहीं करने देंगे, मगर साथ ही संयमित भी बने रहे। अचानक उनके मुंह से निकला कि आप सब का कृत्य ऐसा है कि आप गिरफ्तारी के पात्र हैं। इतना कहना था कि गहलोत ने चतुराई बररते हुए तत्क्षण गिरफ्तारी देने की बात कह दी। वे जानते थे कि कौन सा दस-बीस दिन की गिरफ्तारी होनी है। समझौता हुआ नहीं कि सभी बिना किसी मुकदमे के हाथों-हाथ छोड़ दिए जाएंगे। खैर, सभी को पुलिस के वाहन में बैठा कर सिविल लाइंस थाने ले जाया गया। बहसबाजी लंबी नहीं खिंची और तनातनी हॉट स्पॉट से सिविल लाइन थाने में शिफ्ट हो गई। मौके पर तुरंत शांति हो गई। गर एसपी ताव में आ कर बल प्रयोग कर बैठते अथवा गहलोत अपने मिजाज में आस्तीनें चढ़ा लेते तो स्थिति कुछ और ही होती।
सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि जैसे एसपी अपना कर्तव्य पालन कर रहे तो गहलोत व पार्षद भी कोई स्वार्थ की वजह से थोड़े ही लॉक डाउन तोड़ रहे थे। वे भी अपने जनप्रतिधित्व का कर्तव्य निभा रहे थे। वे जनता के हित की खातिर जमा हुए थे। लोकतंत्र में विरोध की गुंजाइश तो होती ही है। विचारणीय ये है कि अगर पार्षद कानून का उल्लंघन नहीं करते तो क्या जिला कलेक्टर उनकी मांग मानने को मजबूर होते? असल में हुआ यही कि जैसे ही गहलोत व सभी पार्षद पुलिस हिरासत में पहुंचे, पेच फंस गया। गिरफ्तारी कायम रखते तो जनता में आक्रोष फैल सकता था। ऐसे में जिला कलेक्टर पर जनप्रतिनिधियों का दबाव बढ़ गया। उन्होंने मौके की नजाकत को देखते हुए समझदारी का परिचय दिया व पार्षदों की मांग को स्वीकार कर लिया।
असल मुद्दा ये है कि जिला कलेक्टर का स्टैंड बिलकुल ठीक था। जब बीएलओ से सर्वे करवा कर जरूरतमंद परिवार चिन्हित करके उन्हें 15 दिन की सूखी राशन सामग्री पहुंचा दी गई तो भोजन के पैकेट वितरित की जरूरत ही नहीं रह गई। लेकिन पार्षदों का तर्क था कि बीएलओ ने ठीक सर्वे नहीं किया। सर्वे में उन्हें नजरअंदाज किया गया, जब कि जनता के प्रति वे सीधे जिम्मेदार हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे बहुत से लोग भी हैं जो कि सर्वे के दायरे से बाहर रह गए। अगर उनको भोजन के पैकेट नहीं दिए जाएं तो वे भूखे रह सकते थे।
वस्तुत: प्रशासन इस बात से परेशान था कि पार्षदों के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं की ओर से फूड पैकेट के वितरण के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन हो रहा था। फोटो व सेल्फी की वजह से भी माहौल बिगड़ रहा था। इसी के मद्देनजर उन्होंने फोटो व सेल्फी पर रोक लगा दी।
कुल जमा मामला जल्द ही सुलझ गया, जिसके लिए जनप्रतिनिधि व प्रशासन साधुवाद के पात्र हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com