शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

अब तक क्या झक मार रहा था निगम प्रशासन?

नगर निगम प्रशासन ने शहर में बुधवार को अचानक दस निर्माणाधीन व्यावसायिक परिसरों पर धावा बोल दिया और छह के निर्माण पर रोक लगा दी। चार परिसरों के मालिकों को नोटिस देने का निर्णय किया है और एक में तोडफ़ोड़ भी की गई है। सुर्खियों में छपी इस खबर से ऐसा प्रतीत होता है मानो निगम प्रशासन ने कोई जंग जीत ली हो। इसे जंग की ही संज्ञा देनी चाहिए क्यों कि निगम में दस्ते ने इसे युद्ध स्तर पर ही अंजाम दिया। मगर अहम सवाल ये है कि निगम प्रशासन की नींद अचानक कैसे खुल गई? विशेष रूप से ये कि अतिक्रमण व अवैध निर्माण पर ध्यान देने वाले अधिकारी व कर्मचारी क्या फोकट में ही तनख्वाह उठा रहे थे? क्या ये भवन केवल मंगलवार की रात में ही खड़े हो गए कि निगम को बुधवार को तुरंत कार्यवाही करनी पड़ गई? या फिर अब तक तो देख कर भी नजरअंदाज कर रहे थे, क्यों कि इन भवनों के मालिकों की उन पर नजरें इनायत थीं और अब जब कि कांग्रेस पार्षदों के दबाव में मेयर कमल बाकोलिया ने अधिकारियों की खिंचाई की, तब जा कर उनको मजबूरी में कार्यवाही करनी पड़ी? एक अखबार ने तो चंद शब्दों की रोचक हैडिंग च्हो गए खड़े, तब नैन पड़ेज् में ही साफ दिया है कि स्पष्ट है कि ये कथित अवैध भवन लंबे अरसे से बड़ी तसल्ली से बनाए जा रहे थे और निगम के अधिकारी चुप बैठे थे। ऐसे में सिर्फ एक ही सवाल कौंधता है तो फिर वे अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे थे? नीचे से ऊपर तक हो रहे भ्रष्टाचार पर सवाल खड़े करने वाली हमारी व्यवस्था क्या यह सवाल खड़ा करेगी? क्या केवल दोषियों को ही हिकारत की नजर से देखा जाएगा और इस दोष में भागीदारी निभा रहे अधिकारियों को पाक साफ मान लिया जाएगा? क्या सरकार व न्यायालय इस पर प्रसंज्ञान लेते हुए जवाब तलब करेंगे कि वे आखिर अब तक कर क्या रहे थे? भवन मालिकों पर तो कार्यवाही होगी मगर क्या जिन अधिकारियों व कर्मचारियों की देखरेख में ये भवन बन रहे थे, उनको भी कटघरे में खड़ा किया जाएगा?
पिछले दिनों घटे घटनाक्रम से तो साफ ही है कि ये सभी भवन पिछले भाजपा बोर्ड के दौरान बनना शुरू हुए थे। नगर निगम के मेयर पद के भाजपा प्रत्याशी रहे डॉ. प्रियशील की राय को ध्यान रखें तो यही अहसास होता है कि उन्होंने कदाचित ऐसे भवनों के बारे में जिक्र करते हुए नए बोर्ड के बारे में बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि मेयर ने लोगों के प्रतिष्ठान बंद करवाए और व्यापारियों को आंख दिखाना शुरू कर दिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये वही व्यापारी हों, जिनके बारे उन्होंने अपना दर्द बयां किया था। यदि ये वही व्यापारी हैं तो फिर यह पक्का है कि पिछले बोर्ड का ऐसे भवनों को बनाने के लिए पूरा संरक्षण था। सवाल ये उठता है कि क्या मेयर इस बात की भी जांच करवाएंगे कि ये भवन किसकी शह पर खड़े हो गए? वे जो दुहाई दे कर चुनाव जीत कर आए हंै, उसके तहत तो उन्हें और उनके बड़े प्रचारक नेताओं को इस ओर ध्यान देना चाहिए। सरकारी मातहतों को तो उन्होंने बड़ी आसानी से फटकार दिया, क्यों कि उन्हें तो बेचारों को नौकरी की गरज है, मगर क्या पिछले बोर्ड के जनप्रतिनिधियों की भी कोई जवाबदेही तय करने की हिम्मत भी दिखा पाएंगे? ये सब सवाल ऐसे हैं, जो आमजन के मन में उमड़-घुमड़ रहे हैं। अब ये तो वक्त ही बताएगा कि मेयर बाकोलिया अपनी पार्टी की सरकार के होते हुए कोई हिम्मत दिखा पाते हैं या नहीं।
कांग्रेस में चल रहा है शक्ति प्रदर्शन का दौर
जब से स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट व शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल के बीच नाइत्तफाकी उजागर हुई है, जयपाल किसी न किसी तरीके से लगातार शक्ति प्रदर्शन किए जा रहे हैं। आमतौर वे इसके लिए किसी मंत्री के अजमेर आने का मौका तलाशते हैं। वे मंत्री का स्वागत-सत्कार करने के बहाने मजमा इकट्ठा करते हैं। ऐसा करने से मंत्री जी तो खुश होते ही हैं, शक्ति प्रदर्शन भी हो जाता है। हालांकि वे आधिकारिक रूप से शहर अध्यक्ष हैं कि इस कारण उन पर सीधे ये सवाल नहीं उठाया जा सकता कि मंत्रियों का स्वागत क्यों कर रहे हैं, मगर उनके इन आयोजनों में पायलट खेमे के लोगों की अनुपस्थिति ये दर्शाती है कि मामला कुछ और है। बुधवार को शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल जब यहां अपने महकमे के अधिकारियों की क्लास लेने आए तो जयपाल ने उनके स्वागत में अपने निवास स्थान पर ही शानदान जलसा आयोजित किया, मगर इस जलसे में पायलट खेमे के महेन्द्र सिंह रलावता, कैलाश झालीवाल, विजय जैन, बिपिन बैसिल व जयपाल के धुर विरोधी ललित भाटी गैर हाजिर रहे। अब ये गैर मौजूद रहने वाले ही जानें कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया या फिर उन्होंने वहां जाना उचित नहीं समझा।