शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

क्यों नहीं मिला ट्रोमा यूनिट के लिए स्टाफ?

फाइल फोटो- लोकार्पण करते सचिन, दुरू मियां व नसीम अख्तर
आखिर वही हुआ, जिसकी आशंका थी। जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के अधीक्षक डॉ. बृजेश माथुर को स्टाफ की कमी के बावजूद ट्रोमा यूनिट को शुरू करना पड़ा। उनके पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। हालांकि सरकार की जानकारी में है कि यहां स्टाफ की जरूरत है, मगर उसने ध्यान नहीं दिया तो लोकार्पित की हुई इस यूनिट को शुरू तो करना ही था।
असल में गत तीस जुलाई को जब इस यूनिट का शुभारंभ केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट, राज्य के चिकित्सा मंत्री दुर्रू मियां व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ ने किया था, तभी यह तथ्य मुंह नोंच रहा था कि इस यूनिट के लिए स्टाफ की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। ऐेसे में उद्घाटन को केवल एक रस्म अदायगी फोकट वाहवाही लूटने का जरिया माना गया था। तब पायलट व दुर्रु मियां ने गर्व से कहा था कि इससे जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय की सुपर स्पेशलिटी सेवाओं में वृद्धि हुई है और इसका लाभ अजमेर संभाग व राज्य के अन्य स्थानों के मरीजों व बच्चों को मिलेगा। समारोह में मौजूद जिले के अधिसंख्य जनप्रतिनिधि संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत, विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर, नाथूराम सिनोदिया, श्रीमती अनिता भदेल, महापौर कमल बाकोलिया, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत का यह दायित्व बनता था कि वे सरकार पर दबाव बना कर यहां स्टाफ की नियुक्ति करवाते, मगर ऐसा हुआ नहीं।
 अब मजबूरी में डॉ. बलराम बच्चानी व डॉ. घोसी मोहम्मद चौहान को लगाया गया है, जो कि क्रमश: सुबह आठ से दोपहर दो बजे तक और दोपहर दो से रात आठ बजे तक सेवाएं देंगे। रात में रेजीडेंट्स की सेवाएं ली जाएंगी। ऐसे में पर्याप्त स्टाफ के अभाव में यह यूनिट किस प्रकार काम कर पाएगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। स्वयं अस्पताल अधीक्षक माथुर ने खुलासा किया है कि सरकार ने जो वेतन तय किया था, उसमें कोई भी चिकित्सक ने आवेदन नहीं किया। फिलहाल तीन नर्सिंग कर्मियों को लगाया गया है, जबकि नर्सिंग कर्मियों के दस पद स्वीकृत किए गए थे।
जाहिर सी बात है कि डॉ. माथुर तो केवल सरकार को स्टाफ के लिए लिख ही सकते हैं, खुद तो नियुक्त कर नहीं सकते। साथ जो भी उपलब्ध संसाधन हैं, उसी से जैसे तैसे काम चलाने के अतिरिक्त उनके हाथ में है भी क्या? ऐसे में सरकार पर दबाव बनाने का काम तो जनप्रतिनिधियों को ही करना होगा। मगर अफसोस कि हमारे जनप्रतिनिधि या तो लापरवाह हैं या फिर सरकार उनकी बात को तवज्जो नहीं देती। कुला मिला कर यह हमारी राजनीतिक कमजोरी का ही परिणाम है। कितने दुर्भाग्य की बात है कि एक ओर तो सरकार के जिम्मेदार नुमाइंदों ने इसका लोकार्पण कर अखबारों के बड़े-बड़े फोटो खिंचवा कर वाहवाही लूटी और बाद में खूंटी तान कर सो गए।
-तेजवानी गिरधर