बुधवार, 13 जुलाई 2016

क्या सांवरलाल जाट को राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया जा रहा है?

हाल ही केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए गए प्रो. सांवरलाल जाट को राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इस आशय का समाचार सोशल मीडिया पर चल रहा है। इस समाचार में कितना दम है, मगर इतना तय है कि कहीं न कहीं प्रो. जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने के बाद जाटों, विशेष रूप से अजमेर जिले के जाटों की नाराजगी से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व भाजपा हाईकमान चिंतित हैं। यही वजह है कि प्रो. जाट को फिर से किसी बड़े पद पर स्थापित किए जाने पर विचार किया जा सकता है। हालांकि प्रो. जाट के स्थान पर नागौर जिले के सांसद सी. आर. चौधरी का समायोजन कर जाटों को राजी करने की कोशिश जरूर की गई है, मगर उसका लाभ अजमेर जिले में होता नहीं दिखाई देता। अजमेर व नागौर के जाट में मौलिक फर्क है।
असल में आजादी के बाद लंबे समय तक जाट समुदाय का रुझान कांग्रेस की ओर रहा है, मगर प्रो. जाट संभवत: पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अजमेर जिले के जाटों को भाजपा के साथ जोड़ा। बेशक यहां के जाटों पर उनकी पकड़ जातिवाद के नाते ही है, मगर खुद उनकी भी निजी पैठ इस समाज में है। जब वे भाजपा में आए, उस वक्त तक भी नागौर जिले के जाट कांग्रेस के साथ थे। बाद में जा कर वहां भी भाजपा की बयार आई। कुल मिला कर चौधरी को मंत्री बनाए जाने से अजमेर के जाटों पर कोई असर नहीं पड़ा है। वे अपने नेता के मंत्री पद से हटाए जाने से बहुत आहत हैं। उन्हें अफसोस है कि वे अच्छे भले राजस्थान में जलदाय विभाग का केबीनेट मंत्री पद ले कर बैठे थे और उनकी राष्ट्रीय राजनीति में जाने की कोई इच्छा नहीं थी, फिर भी केवल और केवल कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट को हराने के लिए उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया। चलो, केन्द्र सरकार में राज्य मंत्री पद दे कर उनका कद बरकरार रखा गया, मगर दो साल बाद ही हटा दिया गया। अब वे अदद सांसद रह गए हैं, जो कि न तो प्रो. जाट को गवारा है और न ही उनके समर्थकों की फौज को। और ये फौज ऐसे ही नहीं बनी है। प्रो जाट ने सैकडों समर्थकों को निहाल किया है, जिनकी सात पीढी भी उनका अहसान नहीं चुका पाएगी। यदि ये कहा जाए कि जाट नागौर जिले के बाबा नाथूराम मिर्धा शैली के नेता हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। समझा जाता है कि अजमेर के जाटों की नाराजगी को देखते हुए ही प्रो. जाट को मंत्री जैसे किसी सुविधा युक्त पद पर बैठाने का रास्ता निकाला जा रहा है।
रहा सवाल वसुंधरा राजे के साथ प्रो. जाट की ट्यूनिंग का तो यह सर्वविदित है कि उन्हें वसुंधरा का संकट मोचक हनुमान माना जाता था। कई गंभीर मसलों में वे उनके साथ कंघे से कंघा मिला कर खड़े रहे। हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कभी प्रो. जाट और उनकी जीवन शैली को पसंद नहीं करता, मगर फिर भी वसुंधरा ने उन्हें अपने दरबार में अहम जिम्मेदारी दे रखी थी। अपने पहले कार्यकाल में भी मंत्री बनाया और दूसरे में भी। अब जब वे लौट कर अजमेर आ गए हैं तो वसुंधरा पर ही जिम्मेदारी आ गई है कि कैसे उनका पुनर्वास किया जाए। यहां यह बिलकुल स्पष्ट है कि यदि प्रो. जाट अदद सांसद रह कर कमजोर होते हैं तो जाटों पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। ऐसे में जाट बहुल अजमेर लोकसभा क्षेत्र में एक बड़ा वोट बैंक खिसकने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा, जो कि रणनीतिक रूप से भाजपा के लिए कत्तई मुफीद नहीं रहेगा। सोशल मीडिया पर चल रही खबर कितनी सही है, पता नहीं, मगर तार्किक रूप से बात गले उतरती तो है। इसमें एक संभावना ये भी हो सकती है कि खराब स्वास्थ्य के चलते यदि प्रो. जाट स्वयं ही खुद की बजाय अपने पुत्र को आगे करते हैं तो उसको भी तवज्जो दी जाएगी।
-तेजवानी गिरधर
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