बुधवार, 25 मई 2011

कानून के अभाव में पनप रहा है खून बेचने का धंधा

खून बेचने के खिलाफ कोई ठोस और विशेष कानून न होने के कारण अजमेर में खून बेचने का धंधा पनपता जा रहा है। हाल ही खून खरीदने और बेचने वाला एक दलाल व उसके तीन साथी युवकों को पकड़ा गया है, लेकिन उनके खिलाफ प्राथमिक रूप से शांति भंग करने की धारा 151 ही लगाई गई है। यह तो एक मामला है, जो कि उजागर हो गया है, वरना हकीकत ये है कि चोरी छिपे यह धंधा खूब पनप रहा है। हालांकि इस ओर सरकार का ध्यान गया है और चिकित्सा मंत्री एमामुद्दीन अहमद उर्फ दुर्रु मियां ने पिछले दिनों ऐलान किया है था कि खून के व्यावसायिक कारोबार को रोकने के लिए कानून बनाया जाएगा, मगर उस घोषणा का क्या हुआ, आज तक पता नहीं लग पाया है।
यह तो एक संयोग है कि ताजा मामला इस कारण उजागर हुआ क्योंकि राजस्थान पत्रिका के एक जागरूक फोटो जर्नलिस्ट जय माखीजा ने मुस्तैदी दिखाई, मगर खून के धंधे का पहले भी खुलासा हो चुका है। पूर्व में भी नेहरू अस्पताल के पास कई बार संदिग्ध लोगों के बारे में केसरबाग पुलिस चौकी को सूचित किया जा चुका है, लेकिन पुलिस भी क्या करे? खून बेचने वाले और दलाल के खिलाफ किस कानून के तहत कार्यवाही करे? हद से हद उन्हें धारा 151 या 109 के तहत पकड़ती है, लेकिन छूटने के बाद वे फिर उसी धंधे में लग जाते हैं। पुलिस उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में असमर्थ है।
असल में खून बेचने का धंधा इस वजह से भी पनप रहा है कि जरूरत पडऩे पर खून आसानी से मिल नहीं पाता। जैसे ही अस्पताल की ओर से कहा जाता है कि खून की व्यवस्था करो तो मरीज के परिजन के हाथ-पैर फूल जाते हैं। पहले तो वे किसी जान-पहचान वालों के माध्यम से रक्तदाताओं से संपर्क करते हैं, इसके बावजूद सफलता हाथ नहीं आने पर दलालों से संपर्क करते हैं। जाहिर तौर पर इस मामले में नेहरू अस्पताल के कुछ कर्मियों की मिलीभगत का भी संदेह होता है। समझा जा सकता है कि मरीज और दलाल के बीच की कड़ी का काम करते हैं, वरना दलाल को कैसे पता लग सकता है कि अमुक मरीज को खून की जरूरत है और वह खून नहीं जुटा पा रहा। अलबत्ता इस बात की भी संभावना भी है कि दलाल अपने गुर्गों को ब्लड बैंक के आसपास तैनात करते होंगे। ताजा प्रकरण में तो यह साफ ही है कि दलाल अस्पताल के बाहर ही बीड़ी-सिगरेट बेचता है, इस कारण उसकी ब्लड बैंक पर पूरी नजर रहती थी। संभावना इस बात की है कि कुछ और दलाल भी अस्पताल के बाहर खड़े रहते होंगे। बताया जाता है कि दलाल जनाना अस्पताल के पास भी मौजूद रहते हैं। अनेक प्रसूताओं को खून की जरूरत होती है और उसके लिए उनके परिजन मुंह मांगा पैसा देने को तैयार रहते हैं। दूसरी ओर सरकारी व्यवस्था इतनी लचर है कि वह जरूरतमंद को खून देने से पहले काफी परेशान करता है। ऐसे में दलाल की चल पड़ती हैं। बताया जाता है कि दलाल प्राइवेट नर्सिंग होम व अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जरूरतों को भी पूरा करते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों नेहरू अस्पताल के ब्लड बैंक के इंचार्ज ने कहा था कि वे पूरी जांच और पता-ठिकाना जानने के बाद ही खून लेते हैं, लेकिन वे भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं थे कि खून का कारोबार पूरी तरह से रुक गया है। उनका कहना था कि वे आमतौर पर मरीज के रिश्तेदार से ही खून लेते हैं, लेकिन दलाल के जरिए कब कौन मरीज का रिश्तेदार बन कर आ जाए, इसका पता लगाना कठिन हो जाता है। अहम बात ये है कि जिस मरीज को खून की जरूरत होती है, उसका रिश्तेदार मरीज को बचाने के लिए जहां कहीं से भी खून मिलता है, लेने की कोशिश करता है। वैसे भी कई मरीजों के रिश्तेदार खून देने में आनाकानी करते हैं। ऐसे में उनकी मजबूरी हो जाती है कि दलाल के जरिए खून खरीदें। सबसे बड़ी बात ये है कि मरीज का रिश्तेदार मरीज की जान बचाने की खातिर, खून बेचने वाला पैसों की खातिर और दलाल कमीशन के लिए आपसी रजामंदी से काम करते हैं। ऐसे में शिकायत का तो सवाल ही नहीं उठता।
हालांकि अब तक यही जानकारी थी कि आर्थिक रूप से कमजोर व फकीर ही अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खूब बेचते थे, लेकिन अब यह भी साफ हो गया है कि शौक पूरा करने की खातिर पढ़े-लिखे युवक भी इस जाल में फंस चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ खानाबदोश भी नशे की लत को पूरा करने के लिए खून बेच रहे हैं। ऐसे में पुलिस को और ज्यादा सतर्क होना पड़ेगा। विशेष रूप से आगामी उर्स मेले के दौरान। मेले में आए अनेक फकीर इस धंधे में लग जाते हैं। वे खून बेच कर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। उनका ठिकाने आमतौर पर बजरंगगढ़ के नीचे, दरगाह इलाके और रेलवे स्टेशन के आस-पास हैं। बताया जाता है कि एक यूनिट खून के बदले तकरीबन पांच सौ रुपए तक मिल जाते हैं, जिससे उनका दो-तीन दिन का काम तो चल ही जाता है।