मंगलवार, 31 जनवरी 2012

ये कलेक्टर की लापरवाही नहीं तो क्या है?


महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर कलेक्ट्रेट में आयोजित मौन सभा में जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल व अतिरिक्त कलेक्टर मोहम्मद हनीफ, अतिरिक्त कलैक्टर शहर जगदीश पुरोहित व एसडीएम निशु अग्निहोत्री उपस्थित नहीं हुए। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार के आदेशों की पालना में अधिकारी आयोजन की औपचारिकता तो निभाते हैं, मगर उसके प्रति गंभीरता नहीं बरतते। और अधिकारियों का तो पता नहीं कि वे नियत समय 11 बजे हुई सभा में क्यों नहीं पहुंचे, मगर जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल तो अपने चैंबर में ही थीं, फिर भी नहीं पहुंचीं। अतिरिक्त कलैक्टर शहर जगदीश पुरोहित जरूर नियत समय से पहले सभा में पहुंच गए, मगर उन्हें यकायक ख्याल आया श्रीमती राजपाल का, तो वे उन्हें बुलाने गए और इसी दौरान हूटर बज गया, नतीजतन वे सभा में शामिल होने से वंचित रह गए। जैसा कि वे बताते हैं, उन्होंने श्रीमती राजपाल के साथ उनके चैंबर में ही दो मिनट का मौन रखा। सवाल ये उठता है कि जब सरकार के आदेश के तहत हर दफ्तर में मौन सभा होनी थी तो जिले में इस आयोजन के आदेश प्रसारित करने वाली जिला कलैक्टर खुद क्यों नहीं शामिल हुईं? वे चाहे जितनी भी व्यस्त रही हों, मगर कम से कम उन्हें तो समय पर उपस्थित रहना ही चाहिए था। हालांकि अतिरिक्त कलैक्टर जगदीश पुरोहित का तर्क है कि जो जहां हो, वहीं उसे दो मिनट का मौन रखना था, तो सवाल उठता है कि ऐसे में सभा आयोजित करने की जरूरत ही क्या थी? हर कोई अपनी-अपनी सीट पर ही मौन रख लेता। उनके बयान में विरोधाभास साफ झलकता है। यदि उनका तर्क सही है तो वे काहे को जिला कलैक्टर को बुलाने गए? जिला कलेक्टर को उनके चैंबर में ही मौन करने देते, अर्थात उन्हें इस बात का अहसास था कि जिला कलेक्टर को सभा में होना ही चाहिए। इसी कारण वे उन्हें बुलाने गए और उन्हें भी हूटर बज जाने के कारण वहीं पर मौन रखना पड़ा।
ऐसा प्रतीत होता है कि हम सरकारी स्तर पर होने वाले आयोजनों को बेगार समझने लगे हैं और मजबूरी में आयोजन करते हैं, जबकि हमारी उनमें कोई रुचि नहीं होती। ताजा प्रकरण भले ही कोई बहुत गंभीर न हो, मगर यह हमारी प्रवृत्ति को तो उजागर करता ही है। आपको याद होगा कि पिछले साल 26 जनवरी पर गणतंत्र दिवस समारोह महज औपचारिक रूप से मनाने और पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक की इच्छा के अनुरूप समारोह को शानदार तरीके से अधिकाधिक लोगों के बीच आयोजित न करने पर श्रीमती काक ने नाराजगी जाहिर की थी। इस बार जरूर श्रीमती राजपाल ने पूरा ध्यान रखा और श्रीमती काक ने भी उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की।