शुक्रवार, 4 मार्च 2011

साबित हो गई राजेश यादव की मुख्यमंत्री से नजदीकी


पिछले दिनों जब अजमेर के तत्कालीन जिला कलेक्टर राजेश यादव को सीएमओ में मुख्यमंत्री के विशिष्ट सचिव के रूप में तैनात किया गया था, तभी यह तथ्य स्थापित हो गया था कि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खासमखास हैं। कुछ लोग इसे अजमेर यूआईटी के घपले से जोड़ कर सजा के रूप में गिना रहे थे, जब कि अपुन ने तभी कह दिया था कि उनका कद इससे बढ़ गया है। उस वक्त मीडिया ने भी इस बात पर आश्चर्य जताया था कि सीएमओ में पहले से दो आईएएस होने के बावजूद यादव सहित दो युवा आईएएस क्यों लगाए गए हैं। कुछ लोगों का मानना था कि सीएमओ का अफसर एक बड़े बाबू जैसा होता है, क्योंकि उसके पास स्वयं में कोई अधिकार निहित नहीं होता और केवल मुख्यमंत्री व उच्चाधिकारियों के आदेश का पालन करना मात्र होता है। यादव को सीएमओ में लगाने के राजनीतिक हलकों में जो भी अर्थ लगाए गए, मगर इससे अजमेर में कांग्रेस के उन नेताओं के सीने पर सांप लौटने लगे थे, जिनको यादव ने अपने कार्यकाल में कभी नहीं गांठा। वे कई बार इसकी शिकायत मौखिक रूप से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करते रहे, मगर यादव का बाल भी बांका नहीं हुआ। बाल बांका होना तो दूर, उलटे यादव का कद और बढ़ गया।
हाल ही जब जयपुर नगर निगम की महापौर ज्योति खंडेलवाल और निगम में तैनात चार आरएएस के बीच टकराव हुआ तो सरकार सकते में आ गई। ज्योति खंडेलवाल ने सार्वजनिक रूप से आरएएस अफसरों को अतिक्रमण किंग करार दिया तो अफसरों ने भी लामबंद हो कर विरोध जता दिया। नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल तक भौंचक्के रह गए। गुत्थी इतनी उलझ गई कि मुख्यमंत्री को संकटमोचक के रूप में राजेश यादव ही याद आए और गुरुवार की देर रात उन्हें निगम का सीईओ बनाने के आदेश जारी कर दिए। जयपुर नगर निगम का सीईओ होना कोई छोटी-मोटी बात नहीं। एक तो जयपुर नगर निगम प्रदेश के मुख्यालय का स्थानीय निकाय है, जिस पर पूरे प्रदेश की नजर रहती है। दूसरा वहां मेयर तो कांगे्रस की ज्योति खंडेलवाल तो सदन में भाजपा का बहुमत होने के कारण आए दिन सिर फुटव्वल होती है। फिर यदि मेयर व आरएएस अफसरों में सीध टकराव हो जाए तो समझा जा सकता है कि वह जंग का कैसा मैदान बना हुआ है। ऐसे में उसमें सरकार के प्रतिनिधि के तहत सीईओ के पद पर काम करने वाला कितना महत्वपूर्ण हो जाता है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। बहरहाल, अब तो यह पूरी तरह साफ हो गया है कि यादव मुख्यमंत्री के खासमखास हैं।
नगर सुधार न्यास को लगा हुआ है ग्रहण
अजमेर नगर सुधार न्यास विवादों और भ्रष्टाचार का अड्डा बनता जा रहा है। वहां आए दिन कोई न कोई फफूंद होती ही है। कांग्रेस के पिछले शासनकाल में डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को तो अध्यक्ष बना दिया गया, लेकिन सरकार न्यासियों की नियुक्ति करने का साहस नहीं जुटा पाई। भाजपा शासनकाल में धर्मेश जैन को सीडी कांड के कारण इस्तीफा देना पड़ गया, हालांकि बाद में पता लगा कि सीडी फर्जी थी। कुछ माह पूर्व संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा व सचिव अश्फाक हुसैन के बीच टकराव चर्चा का विषय रहा, जो हुसैन के तबादले के बाद जा कर थमा। मजे की बात है कि विपक्षी दल भाजपा तो दूर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस तक वहां व्याप्त अनियमितता के लेकर पिछले दिनों हमले कर चुका है। न्यास सचिव हुसैन व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के बीच हुई खींचतान किसी से छिपी नहीं है। इसी के चलते कांग्रेस की युवा सेना ने न्यास पर हमला बोल दिया था। इसके चलते पंचशील नगर योजना में दीपदर्शन सोसायटी को जमीन आवंटन के रद्द कर दिया गया। चंद वरदायी नगर योजना की जमीन और खेल मैदान आरसीए को देने के मामले भी अभी गर्म हैं। आरसीए के प्रकरण में अंडर द टेबल हुई सौदेबाजी को आज तक मीडिया वाले सूंघ रहे हैं। इसी बीच सूचना के अधिकार के एक मामले में भी न्यास प्रशासन की किरकिरी हुई। अब ठेकेदारों व एक्सईएन के बीच टकराव उभर कर आया है। ठेकेदार प्रकाश रांका ने तो एक्सईएन महावीर सिंह मेहता पर बिल भुगतान के एवज में चार लाख रुपए मांगने का आरोप खुले आम लगा दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि न्यास को ग्रहण लग चुका है। प्रशासन को चाहिए कि वह न्यास की कुंडली चैक करवाए कि कहीं उसमें काल सर्प योग तो नहीं है और उसका निवारण करने के लिए कोई शांति अनुष्ठान करवाए।
बोर्ड अध्यक्ष संघ के हाथ में गई तराजू
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में कर्मचारी संघ को हाशिये पर रख कर समता मंच की ओर से कामय दबाव की वजह से अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग ने पदावनत कर्मचारियों को पुन: पुरानी सीटों पर तो भेज दिया, लेकिन परिणाम में बोर्ड कर्मचारी खुल कर दो खेमों में बंट गए हैं। एक वर्ग समता मंच से जुड़े कर्मचारियों के उपसचिव छगनलाल के साथ की गई कथित बदसलूकी के कारण लामबंद हो गया है। छगनलाल ने भी बदसूलकी करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया है। ऐसे में अपनी मांग मनवा लेने के बाद भी समता मंच के कर्मचारी रक्षात्मक मुद्रा में आ गए हैं। जाहिर तौर पर ऐसे में अब एक बार फिर ट्यूनिंग बैठा कर चल रहे बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग व कर्मचारी संघ के हाथ में तराजू आ गई है।
यहां उल्लेखनीय है कि समता मंच के कर्मचारियों ने बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग व कर्मचारी संघ की ट्यूनिंग के कारण संघ पर अविश्वास रखते हुए उसकी मध्यस्थता को नकार कर बोर्ड प्रशासन पर सीधे दबाव बनाया। बोर्ड सचिव मिरजूराम शर्मा के आग्रह के बावजूद कर्मचारियों ने यह कह कर संघ की मध्यस्थता से इंकार कर दिया कि संघ की ही माननी होती तो वे सीधे क्यों आते। उन्होंने बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग को भी घेर लिया। चूंकि समता मंच की मांग सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप थी, इस कारण डॉ. गर्ग को झुकना पड़ा। मगर बोर्ड सचिव मिरजूराम शर्मा के घेराव के दौरान अप्रत्याशित रूप से मौके पर आए उप सचिव छगनलाल के साथ कथित तौर पर आई गाली-गलौच की नौबत समता मंच पर भारी पड़ गई है। सच्चाई क्या है, ये तो घटनास्थल पर मौजूद कर्मचारी व अधिकारी ही जानें, मगर अब वे अपना बचाव करते हुए कह रहे हैं कि छगनलाल ने अनाप-शनाप बकते हुए एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाने की धमकी दी थी। उनका ये भी कहना है कि इसके बारे में एसपी को ज्ञापन देने के बाद छगनलाल ने मुकदमा दर्ज करवाया है, अत: पुलिस के जांच अधिकारी को समता मंच के खिलाफ दर्ज मुकदमे की निष्पक्षता का ध्यान रखना चाहिए। साफ है कि वे ये कह कर मुकदमे की हवा निकालना चाहते हैं कि वह झूठा है और एससी एसटी एक्ट का दुरुपयोग करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। कुल मिला कर बोर्ड कर्मचारी समता मंच व आरक्षण मंच के बैनरों पर आमने-सामने आ गए हैं। यह स्थिति पूरे देश में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले शिक्षा बोर्ड के लिए शर्मनाक हो गई है।
दूसरी ओर समता मंच के दबाव में मजबूरी में कर्मचारी संघ को एक तरफ रखने की परेशानी में आए बोर्ड अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग बोर्ड कर्मचारियों में उभरी नई गुटबाजी के कारण राहत में आ गए हैं। समता मंच के जिन कर्मचारियों के आगे उन्हें झुकना पड़ा था, उनका ही कानूनी पेंच में उलझना डॉ. गर्ग के लिए सुकून भरा माना जा सकता है। जाहिर तौर पर उन्हें अब दोनों गुटों के बीच तराजू रखने का मौका मिल गया है। इतना ही नहीं जिस कर्मचारी संघ को ताजा मसले पर उपेक्षा सहनी पड़ी थी वह भी अब मध्यस्थता करने की स्थिति में आ गया है। लब्बोलुआब एक बार फिर कूटनीति में माहिर डॉ. गर्ग को किस्मत से कूटनीतिक सफलता हाथ लगने जा रही है। इसके अतिरिक्त समता मंच के दबाव की वजह से डॉ. गर्ग व कर्मचारी संघ की ट्यूनिंग पर जो खतरा था, वह भी फिलहाल टलता नजर आ रहा है।