सोमवार, 2 दिसंबर 2013

वैश्यों के रुख पर निर्भर है अजमेर उत्तर का चुनाव परिणाम

डॉ. श्रीगोपाल बाहेती
अजमेर उत्तर में मतदाताओं के उत्साह के चलते 67.36 प्रतिशत तक मतदान होने की वजह से किस पार्टी को लाभ होगा, इसका आकलन करना राजनीतिक पंडितों व स्वयं राजनीतिज्ञों के लिए मुश्किल हो गया है। हालांकि मोटे तौर पर शहरी क्षेत्र में बढ़े हुए मतदान प्रतिशत का लाभ सीधे तौर पर भाजपा के पक्ष में माना जाता है, मगर इस बार के धरातल के कुछ तथ्य इस धारणा को डिगाते नजर आते हैं।
ज्ञातव्य है कि पिछले चुनाव में अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में एक लाख 57 हजार 70 मतदाताओं में से 88 हजार 742 मतदाताओं ने मतदान किया, जबकि इस बार 1 लाख 78 हजार 427 में से 1 लाख 20 हजार 186 मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
अब बात करते हैं स्थानीय समीकरणों की। हुआ ये कि कांग्रेस की ओर से इस बार फिर गैर सिंधी का कार्ड खेलते हुए डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को अपना प्रत्याशी घोषित किया। जाहिर तौर पर इससे सिंधियों में गुस्सा उत्पन्न हुआ। हालांकि इस बार सिंधियों ने घोषित रूप से कोई मुहिम नहीं चलाई, मगर पिछली बार जगाई गई जागृति उनमें मौजूद थी। किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं महसूस हुई। इसमें आग में घी का काम किया डॉ. बाहेती के नाम से किसी शरारती तत्व की ओर से जारी एक परचे ने। इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। चूंकि सिंधी लामबंद होते नजर आए, इस कारण वैश्य भी जाग गए। यूं तो वे पिछली हार के कारण जागे हुए ही थे, मगर जब जाति के नाम पर वोटों के धु्रवीकरण की पूरी आशंका बनी, इस कारण उन्होंने भी कमर कस ली, ये बात दीगर है कि इसका अहसास उन्होंने होने नहीं दिया। हालात में तनिक बदलाव तब महसूस किया गया, जब प्रधानमंत्री पद के भाजपाई उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की अजमेर में सफल सभा हुई। भाजपा नेताओं को आशा थी कि मोदी के प्रभाव में वैश्यवाद धीमा पड़ जाएगा। कदाचित ऐसा हुआ भी हो। इसमें कोई दोराय नहीं कि मतदान के दौरान वैश्य बहुल नया बाजार, पुरानी मंडी, अहाता मोहल्ला, घी मंडी नहर मोहल्ला, कड़क्का चौक आदि इलाकों वैश्यवाद प्रत्यक्ष रूप से नजर आया, मगर गुत्थी यहीं उलझी हुई है। यह आकलन करना कठिन हो गया है कि वैश्यवाद चला कितना? उस पर मोदी की कथित लहर ने कितना पानी फेरा? भाजपा मानसिकता के वैश्यों ने बाहेती की खातिर अपनी पार्टी की प्रतिबद्धता को ताक पर कितना रखा? कांग्रेसी ये मान कर चल  रहे हैं कि उन्हें वैश्यवाद का फायदा मिलेगा, मगर भाजपाई सोच ये है कि वैश्यवाद का असर उनके प्रतिबद्ध वोटों पर नहीं पड़ा होगा। हां, इतना तय है कि पूरा का पूरा वैश्य समाज जातिवाद की चपेट में मोदी अथवा कांग्रेस से नाराजगी को नहीं भूल गया होगा।
प्रो वासुदेव देवनानी
बात अगर सिंधियों की करें तो यह तो स्पष्ट है कि वह कुछ सिंधी कांग्रेसी नेताओं के बाहेती का साथ देने के बाद भी भाजपा की ओर ही झुके रहे। इसमें गौर करने लायक बात ये है कि सिंधी मतदाता का रुख तो साफ था, मगर उसमें उतना उत्साह नहीं था, जितना वैश्यों में नजर आया। वजह स्पष्ट है। सिंधियों ने योजनाबद्ध तरीके से मतदान में रुचि नहीं दिखाई, जबकि वैश्य पिछली हार का बदला लेने के लिए प्रतिबद्ध थे। ऐसे में यह समझना कठिन हो गया है कि आखिर हुआ क्या?
कुल जमा बात ये है कि मोदी की चुनावी सभा व कांग्रेस सरकार के विरुद्ध स्वाभाविक एंटी इन्कमबेंसी व सिंधीवाद का फायदा जहां देवनानी को मिला होगा, वहीं मुसलमानों के मत प्रतिशत में उछाल और वैश्यवाद के चलते बाहेती जीतने का सपना देख सकते हैं। यह सपना साकार हो भी सकता है, मगर तब जबकि वाकई पूरे के पूरे वैश्य ने अर्जुन की तरह मछली की आंख पर ही नजर रखी होगी।
-तेजवानी गिरधर