सोमवार, 30 सितंबर 2019

दंगल सजने से पहले मालिश कर रहे हैं चुनावी पहलवान

कई नेताओं को है पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी निकलने का इंतजार 
पुष्कर। आसन्न नगर निकाय चुनाव में हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए लॉटरी नहीं निकली है, अर्थात अभी ये पता नहीं कि अध्यक्ष किस कैटेगिरी का होगा, बावजूद इसके संभावनाओं के इस दंगल में शिरकत करने के लिए तकरीबन सात दावेदारों ने तो खुल्लम खुल्ला दावेदारी जताने का मानस बना रखा है, वहीं तकरीबन नौ ने सपने संजो रखे हैं कि लॉटरी निकलेगी, उसी के अनुरूप निर्णय लेंगे। मुंगेरीलाल के सपनों का राज खुल जाने के बाद दावेदारों का असली खेल शुरू हो जाएगा। कोई सच में दावा करेगा तो कोई किसी को निपटाने की तैयारी करेगा। दिलचस्प बात ये है कि कई नेताओं ने तो गुट बना कर हर विकल्प खुला छोड़ रखा है। जैसे ही लॉटरी खुलेगी, वे अपना पत्ता खोल देंगे। आपको बता दें कि आगामी 3 अक्टूबर को साफ हो जाएगा कि पालिका अध्यक्ष किस कैटेगिरी को होगा, तभी चुनावी आकाश पर छाये बादल छटेंगे।
यदि लॉटरी सामान्य पुरुष के लिए निकलती है तो सबसे पहले व प्रबल दावेदार स्वाभाविक रूप से मौजूदा अध्यक्ष कमल पाठक होंगे, मगर अभी वे अपना मन नहीं बना पाए हैं। उसकी वजह कदाचित ये होगी कि पिछली बार तो पार्टी हाईकमान की सरपरस्ती में पार्षदों के बहुमत के आधार पर अध्यक्ष बन गए, लेकिन सीधे चुनाव में जीत का गणित क्या होगा, उसको ले कर संशय हो सकता है। दावे चाहे जितने कर लें, मगर सिटिंग अध्यक्ष होने के कारण एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर दिक्कत कर सकता है।
दूसरे प्रबल दावेदार हैं अरुण वैष्णव। वे ऊर्जा से लबरेज हैं और टिकट मिलने पर पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने का मन बनाए हुए हैं। उन्हें यकीन है कि पार्टी उनको सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। मौजूदा बोर्ड पर तंज कसते हुए खम ठोक कर कहते हैं कि तीर्थ की मर्यादा को न मानने वाला दावेदारी कर भी कैसे सकता है।
वार्ड नंबर 2 की पार्षद रही मंजू डोलिया यूं तो नवनिर्मित वार्ड 17 या 15 से पार्षद का चुनाव लडऩे का मन बना चुकी है, परंतु यदि सामान्य पुरुष या महिला की लॉटरी निकलती है तो वे अपनी दावेदारी प्रमुखता से करेंगी। उनकी दावेदारी में दम की वजह भी है। 300 वोटों से विजयी होना और दो बार निर्दलीय विजेता बन कर पिछले 20 सालों में उन्होंने खुद को साबित कर दिखाया है।
इसी प्रकार भाइयों की कलह के शिकार बाबूलाल दगदी व जयनारायण दगदी भाजपा व कांग्रेस से दावेदारी जता रहे हैं। उनका कहना है कि अनुभव से ही राजनीति संभव है। पुष्कर में फैले नशा कारोबार पर अंकुश, गंदगी से निजात व होटल व्यवसाय को सुचारू करना उनकी प्राथमिकता में है।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके शिवस्वरूप महर्षि ने 5-6 पार्षदों का जाल बिछा कर अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। एक तो राजनीति के अनुभव को भुनाने का वक्त आ गया है और दूसरा पार्टी आलाकमान का भी उन्हें संरक्षण प्राप्त है। उनका कहना है कि काम की प्राथमिकता वक्त के साथ-साथ सुनिश्चित की जाएगी।
पुष्कर नारायण भाटी पुष्कर वासियों के बीच चिर परिचित नाम है। कई पदों पर रहने के बाद अध्यक्ष पद की लाइन में अपने आप को सबसे आगे खड़ा पाते हैं। उनका कहना है कि ओबीसी सीट की लॉटरी निकलते ही निश्चित हो जाएगा कि अध्यक्ष कौन बनेगा। इसी प्रकार वार्ड नंबर 15 के पार्षद कमल रामावत ने भी दावेदारी के लिए पूरी तैयारी कर ली है।
साधन संपन्न रामजतन चौधरी भी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर चुके हैं, मगर वे बहुत चतुर हैं। या यूं कहिये कि घुन्ने हैं। उनका यह डायलोग देखिए, कितना दिलचस्प है कि वे सक्रिय राजनीति नहीं करते, मगर राजनीति से अछूते भी नहीं हैं। उनका कहना है कि ईमानदार और पुष्करराज से प्रेम करने वाला व्यक्ति ही अध्यक्ष पद का दावेदार होना चाहिए, जिससे कि पुष्कर में पनप रहे भ्रष्ट्राचार को विराम दिया जा सके। कांग्रेस के पुराने चावल जगदीश कुर्डिया ने भी अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर दी है क्योंकि उनकी पत्नी श्रीमती मंजू कुर्डिया अध्यक्ष रह चुकी है। स्वाभाविक रूप से उन्हें पालिका के कामकाज की पूरी जानकारी है और राजनीति का भी लंबा अनुभव है। गोपाल तिलोनिया सीधे तौर पर दावेदारी तो नहीं रख रहे, मगर ये कहते हैं कि अध्यक्ष पद उसी व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जो काम करने का मादा रखता हो। इसी प्रकार अध्यक्ष पद की लॉटरी अगर ओबीसी के लिए खुलती है तो राजेंद्र महावर दावेदारी के लिए पूरी ताकत लगा देंगे।
पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दामोदर शर्मा पर भी सबकी नजरें टिकी हुई हैं। टिकट मिलना तो बहुत बाद की बात है, मगर उनको पूरी उम्मीद है कि उनके नाम पर कोई आंच नहीं आएगी। उनके साथ दिक्कत ये है कि वरिष्ठ होने के बावजूद गुटबाजी से विलग नहीं हैं। किसी समय पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के नजदीकी रहे शर्मा अब पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के करीबी माने जाते हैं, जो कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खासमखास हैं।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

अगर पुष्कर पर गर्व है तो शर्म क्यों नहीं आती?

आपको यदि इस बात पर गर्व होता है कि ऐतिहासिक पुष्कर के प्रति करोड़ों श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है तो अपनी दुर्गति पर रो रहे पुष्कर को देख कर शर्म क्यों नहीं आती? जो करोड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर जो पुष्कर आपको पाल-पोस रहा है, उसकी सेवा करना क्या आपका कर्तव्य नहीं है? पुष्कर की पावन धरती पर सांस ले रहे हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि उऋण होने के लिए वह पुष्कर को क्या दे रहा है?
अगर आप पुष्कर की आबोहवा में गुजर-बसर कर रहे हैं तो क्या आपको पता है कि:- 
पुराणों में वर्णित तीर्थों में तीर्थराज पुष्कर का महत्वपूर्ण स्थान है। पद्मपुराण के सृष्टि खंड में लिखा है कि किसी समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडिय़ां जमीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा, मध्य के विष्णु व कनिष्ठ के देवता शिव हैं। मुख्य पुष्कर ज्येष्ठ पुष्कर है और कनिष्ठ पुष्कर बूढ़ा पुष्कर के नाम से विख्यात हैं। पुष्कर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि ब्रह्माजी के हाथों (कर) से पुष्प गिरने के कारण यह स्थान पुष्कर कहलाया। राक्षस का वध करने के बाद ब्रह्माजी ने इस स्थान को पवित्र करने के उद्देश्य से कार्तिक नक्षत्र के उदय के समय कार्तिक एकादशी से यहां यज्ञ किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। उसकी पूर्णाहुति पूर्णिमा के दिन हुई। उसी की स्मृति में यहां कार्तिक माह एकादशी से पूर्णिमा तक मेला लगने लगा।
परम आराध्या देवी गायत्री का जन्म स्थान भी पुष्कर ही माना जाता है। कहते हैं कि यज्ञ शुरू करने से पहले ब्रह्माजी ने अपनी पत्नी सावित्री को बुला कर लाने के लिए अपने पुत्र नारद से कहा। नारद के कहने पर जब सावित्री रवाना होने लगी तो नारद ने उनको देव-ऋषियों की पत्नियों को भी साथ ले जाने की सलाह दी। इस कारण सावित्री को विलंब हो गया। यज्ञ के नियमों के तहत पत्नी की उपस्थिति जरूरी थी। इस कारण इन्द्र ने एक गुर्जर कन्या को तलाश कर गाय के मुंह में डाल कर पीठ से निकाल कर पवित्र किया और उसका ब्रह्माजी के साथ विवाह संपन्न हुआ। इसी कारण उसका नाम गायत्री कहलाया। जैसे ही सावित्री यहां पहुंची और ब्रह्माजी को गायत्री के साथ बैठा देखा तो उसने क्रोधित हो कर ब्रह्माजी को श्राप दिया कि पुष्कर के अलावा पृथ्वी पर आपका कोई मंदिर नहीं होगा।
वाल्मिकी रामायण में भी पुष्कर का उल्लेख है। अयोध्या के राजा त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग में भेजने के लिए अपना सारा तप दाव लगा देने के लिए विश्वामित्र ने यहां तप किया था।
भगवान राम ने अपने पिताश्री दशरथ का श्राद्ध मध्य पुष्कर के निकट गया कुंड में ही किया था। महाभारत के वन पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की। 
कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल के कुछ दिन पुष्कर में ही बिताए थे। उन्हीं के नाम पर यहां पंचकुंड बना हुआ है। सुभद्रा हरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में कुछ समय विश्राम किया था। अगस्त्य, वामदेव, जामदग्रि, भर्तृहरि ऋषियों की तपस्या स्थली के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। बताया जाता है कि पाराशर ऋषि भी इसी स्थान पर उत्पन्न हुए थे। उन्हीं के वशंज पाराशर ब्राह्मण कहलाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि वेदों में वर्णित सरस्वती नदी पुष्कर तीर्थ और इसके आसपास बहती है।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

क्या आपको भूमाफिया जनप्रतिनिधि चाहिए?

यह खबर लिखे जाने तक हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद की लॉटरी नहीं निकली है, इस कारण चुनावी आकाश पर धुंधलका छाया हुआ है, मगर बावजूद इसके वार्ड मेंबर के चुनाव के लिए दावेदारों ने मालिश शुरू कर दी है। कुछ ने तो पूरा गणित ही बैठा लिया है और मतदाता सूचियों में अपने-अपने हिसाब से नाम जुड़वा दिए हैं। यदि ठीक से जांच की जाए तो सारी पोल खुल जाएगी कि किस वार्ड में क्या बदमाशी की जा रही है। जहां तक ग्राउंड सर्वे का सवाल है, यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि इस बार चुनाव में भूमाफियाओं का बोलबाला रहने वाला है। यानि कि ईमानदार व समर्पित दावेदार तो चुनाव लडऩे की सोच भी नहीं सकता।
पिछले चुनाव का अनुभव बताते हुए हारे हुए एक प्रत्याशी बताते हैं कि वार्ड में उनकी जबरदस्त पकड़ थी और अब भी है। उन्होंने अनेक मतदाताओं के निजी काम करवाए थे। इस कारण उनको पूरा यकीन था कि वे आसानी से जीत जाएंगे, मगर मतदान की पूर्व संध्या में ही पासा पलट गया। समझा जा सकता है कि पासा कैसे पलटा होगा। अगर उनको एक सेंपल के रूप में लिया जाए तो कल्पना कर सकते हैं कि वास्तव में अपनी मातृ भूमि की सेवा करने वालों में चुनाव लडऩे की कितनी इच्छा शेष रह गई होगी।
असल में पुष्कर में तीन तरह के लोग प्रभावशाली हैं। जमीन की दलाली करने वाले, होटल व्यवसायी व एक्सपोर्टर्स। और इन सबसे ऊपर सक्रिय राजनीति करने वाले। इन्हीं के पास राजनीति में पैसा झोंकने की गुंजाइश है। जगहाहिर है कि आज चुनाव में पैसे का कितना बड़ा रोल है। ऐसे में ये लोग ही पुष्कर पालिका चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। जीत जाने अथवा किसी को जितवा देने के बाद ये इन्वेस्ट किए हुए धन का कई गुना दोहन करेंगे। ऐसा नहीं है कि ऐसा पहली बार होने जा रहा है। पिछले कई चुनावों से ऐसा होता आया है। तो फिर आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि ये पुष्कर के भले की सोचेंगे। अपना ही घर तो भरेंगे। यदि एक-एक का नाम लेकर बात की जाए तो यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा कि अधिसंख्य जनप्रतिनिधियों ने राजनीति में आने के बाद कितना निजी विकास किया है। अगर राजनीति में दखल रखने वालों ने भला सोचा होता तो आज पुष्कर की बुरी हालत नहीं होती।
पुष्कर की दुर्दशा देख कर सहसा हम सरकार व प्रशासन को कोसते हैं कि वे कुछ नहीं कर रहे, मगर सच्चाई ये है कि यहां के विकास के लिए समय समय पर अतिरिक्त बजट आवंटित हुआ है। बावजूद इसके अगर पवित्र सरोवर स्वच्छ पानी को तरस रहा है, सरोवर के घाटों पर गंदगी पसरी है, सड़कों की दुर्दशा है, अतिक्रमणों की भरमार है तो इसका मतलब ये है कि जो भी राशि सरकार की ओर से आती है, वह या तो ठीक से उपयोग में नहीं लाई गई या फिर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व ठेकेदारों के बीच बंदरबांट में निपट गई।
बेशक पुष्कर का विकास करने की जिम्मेदारी सरकार की है, अजमेर विकास प्राधिकरण व नगर पालिका की है, मगर उतनी ही जिम्मेदारी हमारी है कि हम विकास कार्यों पर नजर रखें, ताकि केन्द्र व राज्य सरकार से विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले धन का दुरुपयोग न हो। इस कड़ी में हम समाजसेवी व बुद्धिजीवी श्री अरुण पाराशर का नाम ले सकते हैं, जिन्होंने सक्रिय राजनीति में भाग न लेते हुए पुष्कर से जुड़े हर मसले पर गहन अध्ययन करने के बाद सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाया है कि विकास के लिए आने वाले धन का सदुपयोग हो। संभवत: वे इकलौते बुद्धिजीवी हैं, जिनके पास पुष्कर के विकास के लिए अब तक बनी सभी योजनाओं के बारे तथ्यात्मक जानकारी है और फॉलोअप के लिए आरटीआई के जरिए जुटाए गए आंकड़े हैं, जिनसे स्पष्ट दिखता है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है, जिसके बारे में आम मतदाता को कुछ भी नहीं।
श्री पाराशर का जिक्र करने का निहितार्थ यह है यदि हमें पुष्कर में हो रहे विकास कार्यों पर ठीक से निगरानी करनी है तो ऐसे और बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाना होगा। ये प्रयास करना होगा कि भूमाफियाओं की आगामी नगर पालिका चुनाव में कम से कम भूमिका हो। हर वार्ड में आपको ऐसे समाजसेवी मिल जाएंगे, जो कि वास्तव में पुष्कर का विकास चाहते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करना होगा।

-तेजवानी गिरधर
अजमेर की मशाल से साभार 

रविवार, 29 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग तेरह

डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर
पत्रकारिता पर तो अक्सर साहित्य से छेड़छाड़ और भाषा को बिगाड़ने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि पत्रकारिता ने हमेशा उस भाषा शैली का इस्तेमाल करने का प्रयास किया है, जिसे आम आदमी आसानी से समझ सके। इस बात से इनकार नहीं है कि यदा कदा कुछ अखबारों ने अपनी ही शब्दावली थोप कर कभी हिंदी को शर्मिंदा किया हो, मगर ऐसे उदाहरण बिरले ही होंगे।
मगर, भाषा को लेकर अक्सर चलने वाले विवादों और बहस के बीच हिन्दी कि साहित्यिक सेवा सेवा करने वाले कुछ भाषा के पुजारी भी रहे जिन्होंने इसे हमेशा इसे पूजा की तरह निभाया।
उनमें से यदि अजमेर से एक बड़ा नाम चुनने की बात आए तो डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर का नाम याद आता है।
मुल्क को आजादी मिलने के अगले वर्ष सन 48 में 27 जून को जन्मीं श्रीमती तंवर 1970 में राजकीय महाविद्यालय अजमेर से हिन्दी में स्नातकोत्तर किया और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर अपनी साहित्य यात्रा का आगाज़ किया।
डॉ तंवर वर्ष 2008 तक सावित्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत रह कर बालिकाओं को हिंदी साहित्य का अपना ज्ञान बांटती रहीं और इस दौरान अपने साहित्यिक सृजन को भी ऊंचाइयों तक ले जाती रहीं। हालांकि अपनी नौकरी से वे जरूर सेवानिवृत्त हैं, लेकिन एक लेखक, कवियत्री या साहित्यकार के रूप में उनकी यात्रा अनवरत है।
"कामायनी एवं उर्वशी महाकाव्यों में कामध्यात्म के नए आयाम" विषय पर अपना शोध पूर्ण कर वर्ष 1987 में राजस्थान विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
श्रीमती तंवर की लेखन विधाओं की बात करें तो,  शायद ही कोई क्षेत्र होगा जो छूटा होगा। गीत, कविता, मुक्तक, हाइकु आदि पद्य के अतिरिक्त के गद्य में समीक्षा, आलेख परिचर्चा, निबंध, कहानियां उनकी साहित्यिक यात्रा में उनके साथी रहे। देश भर की अनेक पत्र पत्रिकाओं (गगनांचल, कदिम्बिनी, अणुव्रत, मुम्बई की युगीन काव्या, कोलकाता की नैणसी, हैदराबाद से प्रकाशित संकल्य व पुष्पक, बड़ौदा की नारी अस्मिता, जबलपुर की दीपशिखा, उदयपुर से प्रकाशित मधुमती, जयपुर की साहित्य समर्था, इंदौर की गुंजन आदि) अनेक पत्रिकाओं ने उनकी रचनाओं को स्थान देकर उनकी विचार शीलता का सम्मान किया।
डॉ शकुंतला तंवर की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं जो साहित्य के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं। वर्ष 2000 में गीत काव्य "मन में कई समंदर, 2003 में कविता संग्रह "सूर्य की साक्षी में", 2013 में हाइकु संग्रह "मखमली छुअन", तथा कविता संग्रह "मुझे भी कुछ कहना है" प्रकाशित हो चुकी हैं, और एक पुस्तक "चिंतन के शिखर पर" प्रस्तावित है।
अमित टंडन
केवल लेखन ही नही, अपितु संपादन भी श्रीमती तंवर का एक पहलू है। 1989 से वर्ष 2007 तक निरन्तर उन्होंने कॉलेज की पत्रिका मृणालिनी का संपादन किया। इसके अतिरिक्त 2011 में आधुनिक काव्य संचयन सहित अनेक न पत्रिकाओं का संपादन अथवा सह संपादन किया। वे आकाशवाणी पर भी सक्रिय रहीं और समय समय पर अनके गोष्ठियों एवं परिचर्चाओं में उनके उपस्थिति नज़र आई। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं व समूहों से जुड़ कर असंख्य काव्य गोष्ठियां, परिचर्चा, विमर्श बैठकों का आयोजन व संचालन वे करती रही हैं और ये क्रम अब भी जारी है। मशहूर पत्रिका कदिम्बिनी की ओर से गठित कदिम्बिनी क्लब की अजमेर इकाई का वर्षों तक संचालन करके उन्होंने अजमेर के कवियों-साहित्यकारों को एक सूत्र में जोड़े रखा। ना केवल वरिष्ठ सृजनकार उनके आयोजनों का हिस्सा रहे, बल्कि नवांकुरों को भी वे मंच प्रदान कर आगे बढ़ाती रहीं।
साहित्य सेवा के लिए उन्हें कई बार अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जाता रहा है। उनकी पुस्तक "मन में कई समंदर" को लखनऊ में केशवचंद्र स्मृति पुरस्कार से नवाज़ा गया; "सूर्य की साक्षी में" पुस्तक को भी वर्ष 2008 में ही जबलपुर में शकुंतला दुबे सम्मान प्रदान किया गया। वर्ष 10 में जैमनी हरियाणवी अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया, वहीं अलवर में जगमग दीप ज्योति की ओर से उन्हें कुमुद टिक्कू सम्मान प्रदान किया गया। उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में भी उन्हें साहित्य मधुपर्क व मार्तण्ड सम्मान से नवाज़ा गया।
इतना कार्य करने के बाद भी उनकी उंगलियां अभी भी कलम चलाने से थकी नही हैं औऱ सृजन का सफर जारी है। अजमेर के साहित्य गौरव के रूप में डॉ श्रीमती शकुंतला तंवर का नाम सबसे ऊपर की पंक्ति में है।

-अमित टंडन
7976050493

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग बारह

श्री हरीश वर्यानी
सिंधी भाषा के दैनिक समाचार पत्र हिंदू के अजमेर संस्करण के सम्पादक श्री हरीश वर्यानी अजमेर के पत्रकार जगत व देश के सिंधी साहित्य जगत में जाना पहचाना नाम है। सिंधी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। एक ओर जहां अरबी लिपि के जानकारों की संख्या लगातार कम होती जा रही है, उन्होंने सिंधी भाषा का दैनिक गत तकरीबन 37 साल से प्रकाशित-संपादित कर सिंधी भाषा व साहित्य के संरक्षण के लिए अविस्मरणीय काम किया है। इस योगदान के लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। वे तीन बार राजस्थान सिंधी अकादमी के सदस्य रह चुके हैं। आकाशवाणी, जयपुर पर उनकी अनेक वार्ताएं प्रसारित हो चुकी हैं।

जनाब नवाब हिदायत उल्ला
जनाब नवाब हिदायत उल्ला का नाम यूं तो नई पीढ़ी के उभरते हुए पत्रकारों में शुमार है, मगर रिपोर्टिंग में सक्रियता के चलते जल्द ही स्थापित पत्रकारों में गिने जाने लगे हैं। वर्तमान में अजयमेरू प्रेस क्लब के महासचिव हैं। उन्होंने बी.ए. की डिग्री हासिल करने के बाद पत्रकारिता में कदम रखा और जयपुर की एक समाचार व फीचर एजेंसी से जुड़ गए। इसके अतिरिक्त दैनिक हुक्मनामा को भी अपनी सेवाएं दी। वर्तमान में स्वयं का पाक्षिक समाचार पत्र सलाम अजमेर प्रकाशित करते हैं। साथ ही पंजाब केसरी में भी संवाददाता के रूप में काम कर रहे हैं। विशेष रूप से दरगाह इलाके की रिपोर्टिंग में महारत हासिल की है।

डॉ. लाल थदानी
राजस्थान सिंधी अकादमी के अध्यक्ष रहे डॉ. लाल थदानी अजमेर में एक अरसे से सामाजिक गतिविधियों में सर्वाधिक सक्रिय लोगों में शुमार किए जाते हैं। वे भूतपूर्व राजस्व मंत्री स्वगीय श्री किशन मोटवानी के करीबी रहे और प्रमुख समाजसेवी होने के नाते अजमेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदारों में भी शामिल रहे हैं। समाजसेवा के क्षेत्र में वे अनके संस्थाओं से जुड़े हुए हैं, मगर सिंधी सत्कार समिति एवं संदेश संस्था के संस्थापक अध्यक्ष रहते हुए अनेकानेक गतिविधियां संचालित की हैं। वे सन् 1998 में राष्ट्रीय स्तर पर विजयश्री अवार्ड और सन् 2001 में रेड एंड व्हाइट बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। सन् 1998 में बेस्ट सिटीजन ऑफ इंडिया, सन् 1999 में राज्यपाल के हाथों सिंधी अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। उन्हें लेखन में भी रुचि है। उनकी एक पुस्तक काश मैं कुछ कर पाता और एक गजल संग्रह का प्रकाशन हो चुका है। इसके अतिरिक्त पाक्षिक समाचार पत्र हेमू कालानी के कार्यकारी संपादक हैं। उनके द्वारा लिखित, निर्देशित दहेज आधारित नाटक टूटती रेखाएं और राजनीतिक व्यंग्य मूंगफली का छिलका को अखिल भारतीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुका है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग ग्यारह
अजमेर की पत्रकार बिरादरी में कुछ नाम ऐसे भी रहे, जिन्हें फील्ड पर कभी नहीं देखा गया, या यूं कहें कि एडिटिंग डेस्क व पेज डिजाइनिंग से शुरुआत की और अंत तक उसी वर्क प्रोफाइल में रह कर एक इतिहास हो गए।  उनमें से दो ऐसे हैं, जिनसे वर्षों का साथ रहा, मगर मुझ से ज्यादा करीबी वरिष्ठ पत्रकार श्री अमित टंडन की है, लिहाजा उन पर उन्होंने ही कलम चलाना सहज स्वीकार कर लिया।
पेश है उनका नजरिया:-

श्री यशवंत भटनागर
ऐसे नामों में दो लोग याद आते हैं। एक श्री यशवंत भटनागर और दूसरे श्री अनिल दुबे। हालांकि श्री दुबे जब तक अजमेर में रहे तो डेस्क तक सीमित रहे मगर पिछले करीब डेढ़ दशक पहले जबसे किशनगढ़ में भास्कर के ब्यूरो चीफ बनाये गए थे तो वहां फील्ड वर्क में भी उन्होंने जड़ें जमाईं।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर वाली कहावत को चरितार्थ करने वाले पत्रकार साथियों में श्री नरेन्द्र चौहान के बाद श्री यशवंत भटनागर का नंबर आता है। आप फितरतन इन्हें रहीम, कबीर, रैदास, कुछ भी संज्ञा दे सकते हैं। दीन दुनिया से दूर एक शांत धीर गम्भीर इंसान।
श्री भटनागर को पत्रकारिता में 30 साल से ज्यादा ही हो गए होंगे। कॉलेज में पढ़ाई के साथ ही उन्होंने दैनिक नवज्योति में डेस्क पर काम शुरू कर दिया था। ये वो दौर था जब बेरोजगार युवा सौ-डेढ़ सौ रुपए की जेबखर्ची के लिए पार्ट टाइम जॉब अक्सर कर लिया करते थे। और उस पर अखबार की नौकरी, तो एक रुतबा माना जाता था। श्री भटनागर का सफर शुरू तो हुआ नवज्योति से,  लेकिन जल्दी ही एक मोड़ ऐसा आया कि शहर में आधुनिक राजस्थान नाम से एक और अखबार शुरू हुआ और अपने साथी श्री अरुण बरोठिया के साथ श्री भटनागर उसे जमाने मे जुट गए। उस वक्त छोटे, मझोले हर तरह के अखबार की अहमियत थी और अखबारनवीसों का रुतबा हुआ करता था। आधुनिक राजस्थान ने भी जल्दी पैर जमाए, मगर श्री भटनागर की किस्मत कहीं और लिखी थी। इस बीच रोज़मेल नाम से एक और नया अखबार शुरू हुआ और स्थापित करने वाली टीम में भी श्री भटनागर का नाम जुड़ा। वो अखबार बहुत तेजी से बढ़ा और शहर में छा गया। हालांकि कुछ समय बाद किन्हीं कारणों से रोज़मेल बंद हो गया और श्री भटनागर चूंकि अब पत्रकारिता में रम चुके थे, तो किसी और क्षेत्र में जॉब तलाशने की जगह अखबार में ही काम ढूंढा और उस वक्त के सबसे बड़े टेबलॉयड दैनिक न्याय से जुड़ गए। हर अखबार में उन्होंने डेस्क और समाचारों के संपादन का कार्य ही किया। न्याय में भी हालांकि कुछ टूटन पैदा हुई और कुछ समय के लिए वो अजमेर से बंद हुआ। मगर तब न्याय के अन्य साझेदारों ने अलवर में संस्करण खोला तो श्री भटनागर अपने एक अन्य साथी वरिष्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर के साथ अलवर चले गए। (श्री माथुर वर्तमान में दैनिक नवज्योति के स्थानीय संपादक हैं)
अलवर में भी दानापानी ज्यादा नहीं था। इसी दरम्यान न्याय के और साझेदार ने अहमदाबाद में एक अखबार गुजरात वैभव शुरू किया और श्री भटनागर वहां चले गए। कुछ समय वहां कार्य करने के बाद अजमेर लौटे और पुन: उसी दैनिक नवज्योति को जॉइन किया, जहां से कैरियर की शुरुआत की थी। उसके बाद कई साल तक वहीं डेस्क पर संपादन किया। 1997 जब भास्कर ने अजमेर में कदम रखा, तब श्री भटनागर वहां जुड़े और सिटी डेस्क, डाक डेस्क, स्क्रीनिंग डेस्क आदि कई डेस्क के प्रभारी के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
ये एक ऐसा सफर था, जिसमें मंजि़ल का पता नहीं था। सिर्फ सड़क थी और चलते जाना था। बस एक जुनून था कि काम करना है। बिना रिपोर्टिंग किये सिर्फ डेस्क पर काम करके पत्रकारिता में एक लंबी पारी खेलना और मीडिया जगत में नाम बनाना आसान नहीं होता। शायद ऐसे उदाहरण मिलें भी नहीं। मगर श्री भटनागर एक अपवाद बने। खबरों का ऐसा ज्ञान, भाषा पर पकड़, सम्पादन में कसावट। अनेक न्यू कमर्स रहे, जिन्होंने उनके अधीन रह कर काम सीखा। श्री भटनागर से मार्गदर्शन पाने वालों में राजस्थान पत्रिका जयपुर संस्करण के स्थानीय संपादक श्री अमित वाजपेयी भी हैं। ऐसे ही अनेक वर्तमान पत्रकार व डेस्क संपादक उनके अधीन रहे और आज अच्छा काम कर रहे हैं।

श्री अनिल दुबे
अब कुछ बात श्री अनिल दुबे की। श्री दुबे आए तो जोधपुर से थे, मगर अजमेर के होकर रह गए। भास्कर में संपादन डेस्क पर काम करते-करते उनमें जब प्रबंधन को योग्यता नजऱ आई, तो उन्हें किशनगढ़ ब्यूरो के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई। जैसा पूर्व में अजऱ् किया कि श्री दुबे ने कभी बिरले ही रिपोर्टिंग की होगी, क्योंकि वे अजमेर संस्करण में डेस्क कार्मिक ही थे। मगर किशनगढ़ में जब प्रभारी के रूप में रिपोर्टिंग का मोर्चा संभाला तो कई आयाम स्थापित किये। मार्बल नगरी की महत्ता के अनुरूप स्थानीय समाचारों को जिले भर में शाया कर वहां अखबार के लिए अच्छा मार्केट तैयार किया। यूं कहें कि भास्कर अखबार को किशनगढ़ में स्थापित करने में श्री दुबे की महत्वपूर्ण भूमिका थी, तो गलत नहीं होगा। असल में ब्यूरो चीफ पर ही विज्ञापन, परिशिष्ट, स्पेशल पृष्ठ आदि की जि़म्मेदारी अधिक होती है। सोर्स डेवलप करके समाचार की संख्या बढ़ाना, अखबार की बिक्री बढ़ाना, रेवेन्यू जनरेट करना, सब ब्यूरो चीफ के ऊपर होता है, और श्री दुबे सबसे लंबे समय तक भास्कर के लिए किशनगढ़ में इस पद पर रहे और बखूबी अपने काम को अंजाम देते रहे।
-अमित टंडन
7976050493

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग दस
अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाओं के बारे में जारी इस सीरीज में मेरे पत्रकार मित्र श्री अमित टंडन ने भी हाथ बंटाया है। मुझे उन्होंने ही ध्यान दिलाया कि हमारे पत्रकार साथी श्री अमित वाजपेयी व श्री क्षितिज गौड़ की विकास यात्रा से भी सुधि पाठकों को अवगत कराया जाए। मेरे आग्रह पर यह नजरिया श्री टंडन ने ही लिखा है। हूबहू पेश है:-
श्री अमित वाजपेयी
अजमेर की पत्रकारिता में एक शख्स का उल्लेख बहुत जरूरी हो जाता है। पिछले 20-22 साल में आई पत्रकारिता की आधुनिक क्रांति में उस वक्त युवा पीढ़ी का जो बेच आया था, उसमें एकदम फ्रेश और लेखन से एकदम अनजान एक लड़का दैनिक भास्कर में आया। तब उसे तत्कालीन शाखा प्रबंधक श्री अनिल शर्मा ने विज्ञापन दाताओं के प्रतिष्ठान के सिंगल कॉलम के राइट अप लिखने की जि़म्मेदारी सौंपी। दअरसल ये एक ऐसी पत्रकारिता है, जिसमें अखबार वालों को अपने विज्ञापन दाताओं को उपकृत करके खुश रखना पड़ता है, क्योंकि उन्हीं से रेवेन्यू आता है। ऐसे में जो कंपनी, दुकानदार या शोरूम विज्ञापन देता है, तो कोई छोटी मोटी तारीफ वाली फ्री खबर की उम्मीद करता है। बस ये न्यू कमर पत्रकार विज्ञापनदाताओं की इसी उम्मीद को पूरा करते थे। आज वो पत्रकार अपने शऊर, योग्यता, क्षमता और लगन के बल पर अनेक वरिष्ठ साथियों से आगे निकल कर राजस्थान पत्रिका जयपुर में स्थानीय संपादक के पद पर आसीन हैं।
हम बात कर रहे हैं श्री अमित वाजपेयी की। भास्कर के शुरुआती दौर में किराए के छोटे से भवन में, टिन शेड के नीचे बैठ कर जब संपादकीय टीम ख़बरों में उलझी होती थी, तब प्रशिक्षु पत्रकार श्री वाजपेयी स्वयं श्री गिरधर तेजवानी, श्री यशवंत भटनागर या मेरे पास आकर अपने छोटे-छोटे राइट अप पर मार्गदर्शन लिया करते थे।
मिलनसारिता, व्यवहार कुशलता और हंसमुख स्वभाव ऐसा कि मना तो उन्हें कोई कर ही नहीं सकता। और फिर वक्त पंख लगा कर फास्ट फॉरवर्ड होकर भागा। श्री वाजपेयी को मुख्य धारा की रिपोर्टिंग में लिया गया। बड़ी तेजी से कुछ सीखने की ललक का उदाहरण बन कर श्री वाजपेयी ने बहुत जल्द अपना स्थान ना केवल पक्का किया, बल्कि अपने हुनर के दम पर उस मुकाम को ऊंचा उठाया। उन्हें रिपोर्टिंग में कई महत्वपूर्ण बीट्स दी गईं, जो आम तौर पर काफी सीनियरिटी प्राप्त करने के बाद मिलती हैं। फिर एक समय आया के शहर में राजस्थान पत्रिका ने अपना स्वतंत्र संस्करण शुरू किया और श्री वाजपेयी का चयन उसमें बतौर सिटी रिपोर्टर हुआ। वहां भी अपनी कार्यकुशलता से उन्होंने अनेक विभागों की बीट्स पर अनके महत्वपूर्ण और एक्सक्लूसिव खबरें देकर स्वयं को साबित किया। तत्पश्चात उन्हें सबसे बड़ी और दमदार कही जाने वाली बीट मिली, यानी क्राइम बीट। उसके बाद तो श्री वाजपेयी ने खबरों पर खबरें छाप कर जैसे क्राइम रिपोर्टिंग को एक अलग रूप से प्रस्तुत किया। मेन न्यूज के बाद उसके फॉलो अप पर पूर्ण नजऱ रखना। उनकी सबसे बड़ी खासियत है के वे अपनी बीट में सोर्स डेवलप करने में बड़े माहिर हैं। आज भी निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं और गौरव का विषय है कि आज उनका नाम अजमेर के पत्रकारों में प्रथम श्रेणी में शुमार है।

श्री क्षितिज गौड़
एक नाम जो और याद आता है, वो है श्री क्षितिज गौड़ का। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने का ख्वाब था उनका। तमन्ना थी कि विश्वविद्याल में व्याख्याता बनें, मगर किस्मत ने पत्रकारिता में रोक लिया।
श्री गौड़ ने पत्रकारिता अंशकालिक कार्मिक के तौर पर ये सोच कर शुरू की थी कि शिक्षा जगत के अपने वांछित पद को प्राप्त करने के बाद वहीं सेटल हो जाएंगे और पत्रकारिता को फिर अंशकालिक ही रखेंगे, अथवा छोड़ देंगे। आम तौर पर कई शिक्षक या सरकारी कर्मचारी पार्ट टाइम पत्रकारिता करते आ रहे हैं। बहरहाल श्री क्षितिज गौड़ एक बार जो पत्रकारिता में प्रविष्ट हुए तो इसी बिरादरी के होकर रह गए। भास्कर में कई वर्ष तक रिपोर्टिंग करने के बाद दैनिक नवज्योति में सेवाएं दीं। टाइम्स ऑफ इंडिया के स्थानीय संवाददाता के रूप में भी कार्य कर रहे हैं।
-अमित टंडन
7976050493

मेरा नजरिया ये है कि श्री वाजपेयी वाकई अपने आप में अनूठा उदाहरण हैं। कम समय में लंबी छलांग लगाने वाले वे अजमेर के पहले पत्रकार हैं। जाहिर है ऐसा केवल प्रतिभा व लगन से ही संभव हो सकता है। इसी प्रकार श्री गौड़ अंग्रेजी की भी पत्रकारिता करने के कारण अलग श्रेणी में गिनती होती है। उनका सोच का दायरा कुछ भिन्न है, इस कारण हिंदी के साथी पत्रकारों के बीच वे अलग से ही नजर आते हैं। अंग्रेजी पर उनकी अच्छी पकड़ है और सटीक रिपोर्टिंग करते हैं, जो कि अंग्रेजी पत्रकारिता की पहचान है। कभी अंग्रेजी की खबर पर गौर कीजिए। आपको साफ अंतर नजर आ जाएगा कि अंग्रेजी की खबर टू द पाइंट होती है, जबकि हिंदी में खबर कुछ फ्लेवर लिए हुए होती है।  
मेरा ख्याल है कि ये दोनों पत्रकार व्यावसायिक हो चुकी पत्रकारिता में पूरी तरह से फिट हैं। दोनों ने तेजी से आगे बढऩे का जज्बा दिखाया और कामयाबी भी हासिल की। ऐसे साथियों को देख कर लगता है कि वरिष्ठता इतने मायने नहीं रखती, जितना की योग्यता।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 25 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग नौ
जनाब मुजफ्फर अली
साठ के दशक में दिल्ली से अजमेर विस्थापित सैयद परिवार में जन्मे जनाब मुज$फफर अली अपने माता-पिता की अकेली संतान हैं। पिता का जरी का काम था, लेकिन उन्होंने परंपरागत काम करने की जगह पत्रकारिता को अपनाया। पत्रकारिता की शुरुआत 1994 में दैनिक नवज्योति के रविवारीय रंगीन पेज पर फीचर लिखने से की। अजमेर का गोटा उद्योग, जरी वर्क आदि पर फीचर प्रकाशित हुए। विधिवत रूप से 1995-96 में दैनिक प्रगतिशील न्याय में रिपोर्टर के रूप में कार्य की शुरुआत की। कुछ समय दैनिक आधुनिक राजस्थान से भी जुड़े। जनाब मुजफ्फर अली ने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र पर रिपोर्टिंग की। फिर 1997 में दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण के समय संपादकीय विभाग के पहले स्टाफ में सिटी संवाददाता के रूप में नियुक्ति मिली और दरगाह क्षेत्र की बीट संभाली। भास्कर के महानगर प्लस में साप्ताहिक कॉलम कॉलेज कैंपस बहुत प्रसिद्ध हुआ। 1997-98 में दरगाह क्षेत्र में हुए साम्प्रदायिक दंगों की निष्पक्ष रिपोर्टिंग की। वर्ष 2000-2001 में राजस्थान पत्रिका के संस्थापक संपादक स्वर्गीय कर्पूरचंद कुलिश द्वारा लिखित गयारह वेदों के वेद ग्रंथ के विज्ञापन की हिन्दी कॉपी राइटिंग की, जो जयपुर पब्लिसिटी सेंटर के माध्यम से पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्ही दिनों प्रसिद्व लेखक व साहित्यकार वेदव्यास के संपर्क में आने से आकाशवाणी जयपुर- अजमेर से प्रसारित साप्ताहिक कार्यक्रम विचार-बिन्दु में अनेक समसामायिक विषयों पर इनके लेखों का प्रसारण हुआ। फिर  दैनिक जागरण, संडे नई दुनिया और जयपुर महानगर टाइम्स के लिए अजमेर से रिपोर्टिंग की। 16 जनवरी 2012 को अजमेर से पहला वेब न्यूज पोर्टल न्यूज व्यू प्रारंभ किया। 2016-17 में दैनिक हौंसलों की उड़ान और दैनिक मॉर्निंग न्यजू के अजमेर संस्करण के संपादकीय प्रभारी बने। वर्तमान में दैनिक हमारा समाचार जयपुर के संपादकीय प्रभारी हैं। भारत के साथ इस्लामी देशों के संबंधों पर टिप्पणीयां और अन्य समसामायिक विषयों पर लेख सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं।

श्रीमती ज्योत्सना
पत्रकारों व साहित्कारों की चर्चा के दौरान श्रीमती ज्योत्सना का जिक्र यदि नहीं किया जाए तो बात अधूरी रह जाएगी। आर्य समाज के सचिव स्वर्गीय श्री धर्मवीर शास्त्री की धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्सना दैनिक भास्कर में कॉपी डेस्क पर रहीं। कॉपी डेस्ट का यह कन्सैप्ट भास्कर प्रबंधन का अनूठा प्रयोग था। प्रबंधन का मानना था कि आम तौर पर पत्रकारों की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ नहीं होती। इस कारण संपादन करने के दौरान संपादक का सारा ध्यान गलतियां सुधारने पर चला जाता है और खबर को और उन्नत नहीं बनाया जा पाता। अत: संपादक तक खबर आने से पहले उसमें वर्तनी व व्याकरण संबंधी गलतियां दुरुस्त होनी चाहिए। साथ ही भाषा का स्तर पर भी सुधार किया जाना चाहिए। समझा जा सकता है कि कॉपी डेस्क पर काम करने वाले कितने सिद्धहस्त होते होंगे। श्रीमती ज्योत्सना उनमें से एक थीं। उनके अतिरिक्त शिक्षाविद् नवलकिशोर भाभड़ा, श्री विनोद शर्मा व श्री केदार जी माडसाब भी थे। श्रीमती ज्योत्सना के बारे में एक बेहद रोचक जानकारी देना प्रासंगिक होगा कि उनके परिवार के सभी सदस्य आपस में संस्कृत में ही बात किया करते
थे।

डॉ. सुरेश गर्ग
डॉ. सुरेश गर्ग का नाम परिचय का मोहताज नहीं। शहर का शायद ही कोई ऐसा जागरूक व्यक्ति होगा, जो उनको न जानता हो, या जिसने इस हरदिल अजीज शख्सियत का नाम न सुना हो। वे अजमेर से जुड़े हर राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दे से हर वक्त जुड़े रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद तो वे पूरी तरह अजमेर के लिए समर्पित हो गए हैं और अजमेर के हित से जुड़े हर मुद्दे पर अपना किरदार निभाने की कोशिश कर रहे हैं। वे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की गहन जानकारी की वजह से भी लोकप्रिय हैं। इस कार्य में उनकी पत्नी श्रीमती शोभा गर्ग भी हाथ बंटाती हैं।
स्वर्गीय श्री किशन स्वरूप जी गर्ग के घर 13 फरवरी 1948 को जन्मे डॉ. गर्ग ने एमए व एलएलबी तक अध्ययन किया है और बायोकेमिस्ट व आयुर्वेद रत्न की शिक्षा भी अर्जित की है। समाजसेवा के क्षेत्र में भी आपकी सक्रियता रही। अग्रवाल वैवाहिक परिचय एवं सामूहिक सम्मेलन में अग्रबंधु निर्देशिका के संपादक रहे। उन्होंने नगर पालिका कानून की पांच पुस्तकें, व्यंग्य व स्वास्थ्य पर पुस्तकें लिखीं। उन्होंने च्स्थानीय निकाय के बढ़ते कदमज् पत्रिका का संपादन किया है और अनेक स्मारिकाओं का प्रकाशन करवाया है। वर्तमान में आंखन देखी पाक्षिक व रिमझिम साप्ताहिक में संपादन का कार्य कर रहे हैं। उनकी एक पुस्तक सीरीज के रूप में दैनिक सरेराह में प्रकाशित हुई है। आप सन् 2001 से 2005 तक अजयमेरू पे्रस क्लब में निदेशक रह चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग आठ
श्री अमित टंडन
दैनिक भास्कर ने जल्दी ही पत्रकारिता की स्थानीय ज़मीन पर अपनी जड़ें जमा लीं थीं और नई पौध के युवा लेखकों ने उस दौर का पूरा उपयोग कर खुद को साबित किया। अजमेर में नए दौर की पत्रकारिता में 21वीं सदी के शुरुआत में जो नाम तेजी से बढ़ा था, वो था अमित टंडन। मुम्बई के सामना, लोक स्वामी व राष्ट्र विचार समाचार पत्रों में काम करने के बाद जब वे 1997 में अजमेर लौटे तो दैनिक भास्कर यहां स्थापित होने की जद्दोजहद कर रहा था। भास्कर की सबसे शुरुआती टीम का हिस्सा बनने के बाद श्री टंडन ने बहुत जल्दी पत्रकार व लेखक के रूप में अपना नाम बनाया।
जब भास्कर ने श्री अनिल लोढ़ा जी के संपादकीय कार्यकाल में 2003 में स्मार्ट अवार्ड शुरू किए थे, तब टंडन डाक डेस्क प्रभारी थे।  उस वक्त डेस्क पर रहते हुए उन्होंने अजमेर डिस्कॉम के घोटाले की एक्सक्लूसिव खबर छापी थी। बाद में उस खबर के करीब 14 फॉलो अप छपे। रिपोर्टिंग के लिए सबसे पहला बेस्ट स्मार्ट स्टोरी अवार्ड श्री अमित टंडन को मिला था।
फि़ल्म समीक्षाओं के लिए भी श्री टंडन का नाम जाना जाता है।  करीब डेढ़ हजार फिल्मों की समीक्षा प्रकाशित हुई। इसी क्रम में हस्तियों के साक्षात्कार किये थे, जिनमें उमराव जान फि़ल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली, गीतकार नक्श लायलपुरी तथा रजनीगंधा व आनंद जैसी फिल्मों के गीतकार योगेश सहित अनके फि़ल्म कलाकारों (सचिन, संगीतकार उत्तम कुमार व आनंदजी, गायक अनूप जलोटा, अदाकार राहुल रॉय, निर्देशक इंद्रकुमार व सावन कुमार आदि के साक्षात्कार याद आते हैं।
दैनिक भास्कर में स्व. श्री राजेन्द्र हाड़ा द्वारा संपादित पेज महानगर प्लस और बाल साहित्यकार स्व. श्री मनोहर वर्मा जी द्वारा संपादित पेज विविधा के वे नियमित लेखक रहे।
समसामयिक विषयों पर टिप्पणियां, सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर लेख, व्यंग्य लेखन सहित विभिन्न मुद्दों पर तीखे बाण छोड़ते आर्टिकल उनकी पहचान बने।
मेरे न्यूज़ पोर्टल अजमेरनामा डॉट कॉम के लिए भी समय-समय पर बतौर गेस्ट राइटर, अनेक ताजा गर्म मुद्दों पर श्री टंडन के आर्टिकल व टिप्पणियां प्रकाशित होती रहती हैं।
एक कवि व गज़़लकार के रूप में भी टंडन ने खुद को आज़माया, मगर ये उनका केवल शौक है। मिजऱ्ा ग़ालिब पर उनके द्वारा बनाई गई वेब साइट the ghlaib dot com 2003 में काफी चर्चा में थी। कंप्यूटर का चलन उस समय तेजी पकड़ रहा था, जब 2003 में ये साइट डेवलप करके on air की थी। इसमें ग़ालिब का पूरा दीवान तो था ही, साथ ही उनके जीवन के रोचक किस्से, उनका व्यक्तित्व, आदतें, उनका दर्शन आदि सहित श्री टंडन द्वारा चित्रित ग़ालिब के कुछ स्केच भी शामिल थे।
कंप्यूटर की जानकारी की वजह से श्री अमित टंडन का नाम भास्कर ग्रुप के अजमेर संस्करण में प्रथम ऑनलाइन संपादकीय कार्मिक के रूप में भी जाना गया। बाद में सम्पूर्ण संपादकीय टीम को ऑनलाइन करने के उद्देश्य से जब वर्ष 2001-02 में भास्कर द्वारा ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया गया, तो उन्होंने दो महीने का एक कंप्यूटर कोर्स सभी संपादकीय साथियों को पढ़ाया। उसके बाद संभी डेस्क कार्मिक पेन लेस पत्रकार के रूप में सीधे कंप्यूटर पर काम करने लगे।
इस बीच जब tv पत्रकारिता की एक आंधी शुरू हुई, तो श्री टंडन ने वहां भी खुद को साबित कर दिखाया। स्थानीय tv न्यूज़ चैनल स्वामी न्यूज़ में बतौर समाचार संपादक व विजुअल संपादक के रूप में तो उन्होंने काम किया ही, मगर एक सफल tv प्रस्तोता के रूप में स्थानीय स्तर पर जो मुकाम श्री टंडन ने हासिल किया, वो उनके हुनर का हासिल है। चाहे न्यूज़ रीडिंग हो, समूह चर्चा हो, रोड शो या टॉक शो हों, ह्ल1 के हर तरह के कार्यक्रमों की एंकरिंग करके उन्होंने शहर में अपनी एक अलग छवि स्थापित की। जब चैनल के MD श्री कंवल प्रकाश किशनानी ने न्यूज़ से हट कर, नेशनल चेनल्स की तजऱ् पर सिंगिंग व डांस रियलिटी शो बनाने की सोची तो उसके निर्देशन, संपादन व संचालन की जि़म्मेदारी भी श्री टंडन को सौंपी, और 2005-06 में उन्होंने सीमित संसाधनों में ये कारनामा भी कर दिखाया।
वर्ष 2017 में टंडन का अपना गज़़ल संग्रह अभी ख्वाब जि़न्दा हैं प्रकाशित हुआ और काफी चर्चाओं में रहा। विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं व ग्रुप्स द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन व मुशायरों में यदा कदा उनकी मंचीय प्रस्तुतियां भी यादगार रहती हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 21 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग सात
अजमेर के पत्रकारों व साहित्यकारों की कथा इस यात्रा में कोई कमी न रह जाए, लिहाजा मैने अपने पत्रकार मित्र श्री अमित टंडन से, जो कि उम्दा दर्जे के गजलकार होने के साथ-साथ टीवी एंकर भी हैं, से दैनिक भास्कर में मेरे और उनके साथ काम कर चुके कुछ साथियों के बारे में तनिक चर्चा की। कुछ उनका भी नजरिया जाना।
अजमेर के कुछ पत्रकार साथी, जिन्होंने पत्रकारिता में बदलाव के दौर में अपनी अलग पहचान बनाई, उनमें स्व. श्री प्रदीप शेखावत का नाम याद आता है। 21वीं सदी शुरू हो चुकी थी और भास्कर के आने के बाद पत्रकारिता के साथ में मीडिया का एक विशुद्ध व्यावसायिक रूप सामने आने लगा था। उस व्यावसायिक दौड़ में हालांकि लेखन व पत्रकारिता को रनिंग ट्रेक पर कायम रखना मुश्किल सा होने लगा था, लेकिन तब पत्रकारिता में नौजवानों की एक ऐसी खेप आई थी, जो भाषायी ज्ञान की संपदा साथ लेकर आई। उनमें एक रोचक व्यक्तित्व स्व. श्री शेखावत भी थे।
यायावर की जिंदगी जीता एक फितरती इंसान। गहरी दार्शनिक सोच, मगर साथ ही मसखरी प्रवृत्ति। शेखावत की खासियत थीं उनकी त्वरित टिप्पणियां और उस पर कटाक्ष वाली भाषा शैली। एक मनमौजी लेखक का लापरवाह अंदाज था, मगर उस लापरवाही में से जो शब्द और तथ्य निकल कर आते थे, वो सीधे दिल पर असर करते थे। हालांकि स्व. श्री शेखावत ने रेपोर्टिंग कभी नहीं की थी, मगर डेस्क के उनके अनुभव व खबरों की समझ के कारण वे विशेष टिप्पियां बहुत सटीक करते थे। उनके लेखन की मारक क्षमता प्रभावी थी, जो मुद्दे को तुरंत हिट करती थी। हालांकि खुद अपने प्रति लापरवाही व व्यवहारिकता में कमी के कारण उनका सामाजिक जीवन वीरान सा रहा और अल्प आयु में ही निधन हो गया, मगर श्री अमित टंडन व वरिष्ठ पत्रकार श्री यशवंत भटनागर के साथ बनी उनकी तिकड़ी आज भी याद की जाती है।
इसी क्रम में याद आते हैं स्वर्गीय श्री रविन्द्र सिंह। अलमस्त शब्द शायद ऐसे ही लोगों के लिए गढ़ा गया होगा। हालांकि वे लेखक नहीं थे, मगर अखबारों में उप संपादक के रूप में काम करते हुए उनके भाषा ज्ञान को सबने बखूबी पकड़ा था। हिंदी साहित्य का विद्यार्थी होने के कारण उनका शब्द ज्ञान उत्तम था। वे एक कवि हृदय इंसान थे और खुद भी अच्छी गज़लें कहते थे। अनेक मुद्दों पर उनसे विमर्श के दौरान कई नए साहित्यिक विचार निकल कर आते थे। वे भी बहुत जल्द इस संसार को अलविदा कह गए। एक प्रतिभा, जिसे अभी और खिलना था, तिरोहित हो गई।

उन्हीं के जोड़ीदार श्री बलजीत सिंह आज राजस्थान पत्रिका के अजमेर संस्करण में संपादकीय डेस्क पर कार्यरत हैं। उन्होंने ने कैरियर के शुरुआती दौर में रिपोर्टिंग से खुद को प्रमाणित किया और लंबे समय तक भास्कर में डेस्क पर कार्य करते हुए भी अनेक लेख व समाचार वे देते रहे। साधारण वा आम जन को समझ में आने वाली भाषा शैली में भी उनके हिंदी साहित्य का ज्ञान साफ परिलक्षित होता है। उनकी उर्दू शब्दों पर भी अच्छी है। लेखों या खबरों में तो हिंदी-उर्दू मिक्स भाषा का प्रयोग करते हैं, लेकिन एक गज़़लकार के रूप में उर्दू के वजनी लफ्जों का उचित प्रयोग जहां उनकी गहरी सोच को दर्शाता है, वहीं एक विचारक के रूप में उनके फलसफे को उजागर करता है। शायद ड्यूटी की मजबूरी के चलते आज उनका गद्य लेखन न के बराबर ही देखने को मिलता है, मगर सोशल साइट्स पर उनकी नई-नई गज़लें सुकून देती है कि नीरस संपादकीय दिनचर्या के बीच गजल महक रही है।
श्री रवींद्र और श्री बलजीत सिंह के साथ एक नाम लेना और यहां अनिवार्य है, और वो हैं श्री संतोष खाचरियावास। श्री संतोष भी उसी बेच से हैं, जब श्री प्रदीप, श्री रवींद्र और श्री बलजीत ने पत्रकारिता में कदम रखा था। भास्कर के उन तमाम साप्ताहिक पृष्ठों यथा महानगर प्लस, विविधा आदि में रूटीन की खबरों से हट कर समाज के छोटे छोटे मगर अहम मुद्दों से जुड़ी खतरों के संकलन में श्री संतोष का भी योगदान रहा। हालांकि उनकी भी पहचान बाद में एडिटिंग डेस्क पर समाचार संपादक व पेज लेआउट के लिए बनी, मगर विभिन्न संस्करणों में भिन्न भिन्न प्रकार की खबरों के संपादन व पृष्ठ सज्जा में उनका अपना मुकाम रहा। आज संतोष दैनिक नवज्योति समाचार पत्र के अजमेर संस्करण में डेस्क पर कार्यरत हैं। साथ ही वह एक न्यूज़ पोर्टल का संचालन कर ऑनलाइन पत्रकारिता में भी पूरी तरह सक्रिय रह कर अपनी पहचान को कायम रखे हुए हैं।
तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग छह
श्री रास बिहारी गौड़
हास्य-व्यंग्य लिखने वाले किसी साहित्यकार की जीवन शैली भी हास्य और व्यंग्य से लबरेज हो, ऐसा इत्तेफाक कम ही मिलेगा। बात-बात में, हर बात में से झटपट हास्य-विनोद तलाश कर परोसना नि:संदेह विलक्षण क्षमता का द्योतक है। ऐसा अद्भुत, सजीव हास्य-पुंज, मस्तमौला हमारे अजमेर में उन्मुक्त ठहाके लगाता, लगवाता है। जी हां, अगर आप उनको निजी तौर पर जानते हैं तो जरूर मेरी बात की ताईद करेंगे। उनके रुक-रुक कर लंबे ठहाके लगाने का स्वछंद अंदाज ही ऐसा है कि बरबस अपनी ओर खींच लेता है। अगर किसी की बात पर आप की हंसी छूट पड़े, वो तो सामान्य है, मगर खुद बात करने वाला भी गर उसे एंजोय कर रहा है, तो इसके मायने वह यह सब स्वांत: सुखाय कर रहा हो सकता है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि वे जिस चक्कलस या महफिल में बैठे हों, वहां हंसी-ठट्ठे की आवाजें न गूंजती हों।
हम बात कर रहे हैं टीवी लाइव शो लॉफ्टर चैलेंज के जरिए अजमेर का नाम रोशन करने वाले श्री रासबिहारी गौड़ की, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं। राष्ट्रीय साहित्यिक क्षितिज पर उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजमेर जैसे शहर में नेशनल लेवल के लिटेरचर फेस्टिवल आयोजित कर चुके हैं, जिनमें देश के टॉप के साहित्यकार शिरकत करते रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में उनके इस दुस्साहस, मैं उसे दुस्साहस ही कहूंगा, उसकी अपनी अलग कहानी है, को दाद देने का मन करता है। ऐसे फेस्टिवल अजमेर जैसे टांग-खिंचाऊ शहर में आयोजित करना तो दूर, उसके बारे में सोचने की तक की हिम्मत किसी साहित्यकार अथवा आयोजक ने नहीं जुटाई है। उनके प्रयासों से जल्द ही एक और लिटरेचर फेस्टिवल होने वाला है। ऐसी शख्सियत पर अजमेर को नाज होना चाहिए।
ऐसा नहीं हैं कि वे केवल आला दर्जे के हंसोड़ ही हैं, बल्कि उतने ही धीर-गंभीर चिंतक भी हैं, जो कि देश के ज्वलंत विषयों पर उनकी नक्काशी लेखनी में झलकती है। बतौर बानगी चंद्रयान की विफलता पर फेसबुक पर उनकी त्वरित टिप्पणी के कुछ अंश देखिए:-
हमने अनेक क्षेत्रों के अनेक अभियानों में कई कई उपलब्धियां अर्जित की(भले ही उन्हें नकारने का राजनीतिक आग्रह इन दिनों प्रबल है)। अंतरिक्ष में आदमी भेजने से लेकर परमाणु विस्फोट तक। हर अभियान को पहले अभियान बनाया और बाद में उसकी सफलता का जश्न। लेकिन चंद्रयान के केस में हमने मिशन को ईवेंट बना दिया। एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने देश से लाइव देखने का आग्रह कर दिया। स्वम प्रयोगशाला में दर्जनों कैमरों के बीच अपनी व्यग्रता का सीधा प्रसारण करवाया। जरा सोचिए..! अति महत्वाकांक्षी प्रयोग का लाइव टेलीकास्ट समूचे वैज्ञानिक मन पर कितना दबाब बना रहा होगा। वह दबाब ही था जो इसरो प्रमुख की आंख से आंसू बनकर टपका। माना प्रधानमंत्री को उसका क्रेडिट या राजनीतिक लाभ लेना था तो यह प्रयोग की सफलता के बाद विधिवत बधाई या सम्मान समारोह आयोजित कर लिया जा सकता था और असफलता के संदर्भ में चुपचाप नई शुरुआत की जा सकती थी। खेलों के मामले में दबाब झेलते खिलाडिय़ों को हमने नायक से खलनायक बनते कईं बार देखा है।
सतही महत्वकांक्षा के कारण विज्ञान सहित आम देशवासी को बेवजह असफलता बोध भोगना पड़ा। स्वयं को महानायक सिद्ध करने की चाह में हमने अपने नायक के आंसुओं को भी इवेंट बना दिया।
अभियान को इवेंट मत बनाइये। वरना हम असली नायकों में फिल्मी हीरो देखना शुरू कर देंगे, जिसकी उम्र मात्र तीन घंटे होती है। हमें अबुल कलाम चाहिए, जो तीन घंटे नहीं, तीन पीढिय़ों तक याद रहे। आंसू का क्या, वे तो कैमरा हटते ही सूख जाते हैं।
यद्यपि उनकी पहचान एक हास्य कवि के रूप में कायम हुई है, मगर व्यवस्था पर कड़क चोट करने की वजह से कई बार विरोधी विचारधारा वाले विचलित हो कर उन्हें ट्रोल करने लगते हैं।
यद्यपि उनकी आजीविका का जरिया सरकारी नौकरी है, मगर आज एक प्रतिष्ठित लॉफ्टर के रूप में देशभर में उनकी मांग बनी हुई है। स्वर्गीय श्री गिरिराज किशोर गौड़ के घर 25 जनवरी 1964 को जन्मे श्री गौड़ ने बीएससी की डिग्री हासिल की है। वे शुरू से कविता, साहित्य के सरोकारों के सामाजिक गतिविधियों में जुड़े हुए हैं। वे अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित कवि सम्मेलन व लॉफ्टर शो में शिरकत करते रहते हैं। कई टीवी चैनल्स पर काव्य पाठ कर चुके हैं। उनकी रचनाएं देशभर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। उनकी एक पुस्तक लोकतंत्र के नाम प्रकाशित हो चुकी है। स्थानीय न्यूज चैनल पर अनेक राजनीतिक वार्ताएं आयोजित कर चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग पांच
श्री सतीश शर्मा
मुझे पत्रकारिता में पहला कदम सन् 1979 में लाडनूं ललकार पाक्षिक समाचार पत्र के संपादक स्वर्गीय श्री राजेन्द्र जैन ने रखवाया। तब मैं नागौर में था। उन्होंने मुझे सहायक संपादक बनाया। उसके बाद मैने दैनिक अणिमा, दैनिक अरानाद व आधुनिक राजस्थान के लिए बतौर रिपोर्टर काम किया। नागौर से माइग्रेट होने के बाद 1983 में अजमेर में पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत आधुनिक राजस्थान में की। श्री सतीश शर्मा हालांकि उस वक्त सरकारी अध्यापक थे, लेकिन पार्ट टाइम संपादन का सारा काम वे ही देखा करते थे। उन्हें आम तौर पर सतीश जी माडसाब के नाम से जाना जाता है। वे ही मेरे प्राथमिक गुरू हैं। हालांकि हिंदी पर मेरा कमांड तब भी था, लेकिन समाचार लेखन की सारी बारीकियां उनसे ही सीखीं। शुरू में अंदर के पेजों पर काम किया। ये उनकी जर्रानवाजी ही थी कि उन्होंने मात्र छह माह बाद ही मुझे प्रथम पृष्ठ पर लगा दिया। प्रथम पृष्ठ की खबरें टेलीप्रिंटर पर आती थीं, जिनका संपादन कर हैंडिग लगाने व पेज की डमी बनाने का काम होता था। अखबार जगत में इस काम को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने मुझे दैनिक नवज्योति व राजस्थान पत्रिका के मुकाबले लीड-डिप्टी लीड का चयन और बेहतरीन हैंडिंग बनाना सिखाया। तब हैडिंग लगाना भी एक कला हुआ करती थी। सीसे के बने हुए टाइप 10, 12, 14, 16, 20, 24, 36, 48 पाइंट साइज में ही आते थे। 72 पाइंट साइज के लिए लकड़ी का टाइप आता था। अर्थात सीमित शब्दों में ही हैडिंग बनानी होती थी। वह वाकई कठिन हुआ करता था। आज तो कंप्यूटर में सारे पाइंट साइज उपलब्ध हैं, जिसकी वजह से हैंडिंग बनाना आसान हो गया है। मुझे आज भी याद है कि काम समाप्त करने के बाद रास्ते में जाते भी बार-बार जेहन में आता था कि हैडिंग ऐसा नहीं, वैसा होना चाहिए था। नींद तक में हैडिंग परेशान करती थी।
जब कभी टेलीप्रिंटर खराब होता तो रेडियो पर खबरें सुन कर उन्हें लिखना होता था। इसमें वे सिद्धहस्त थे। वे खबरों की मात्र टिप्स नोट करते और बाद में पूरी खबर हूबहू लिख दिया करते थे। पेशे से मास्टर थे, मगर समाचार लेखन व संपादन पर वाकई कमाल की मास्टरी थी। जरूरत होने पर संपादकीय भी लिखा करते थे। उनमें अकेले दम पर अखबार निकालने का भी माद्दा था। सुबह छह बजे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के रिजल्ट का स्पेशल स्पलीमेंट निकालना भी उनसे सीखा। केन्द्र सरकार के आम बजट व रेल बजट और राज्य के बजट का पेज बनाना बेहद चुनौतिपूर्ण था, वह भी उन्होंने सिखाया। पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांत, कि खबर में तथ्यात्मक गलती नहीं होनी चाहिए, कोई भी सूचना मिलने पर उसको क्रॉस टैली जरूर कर लेना चाहिए, वे जोर दिया करते थे।
पत्रकारिता को पूजा की तरह करना कोई उनसे सीखे।  प्रिंटिंग के लिए पेज जाने से पहले तक हर लैटेस्ट खबर कवर करते थे। कई बार तो पेज बनते-बनते भी उसे रुकवा कर ताजा खबर को लगवाने के लिए अड़ जाते। इस वजह से उनकी कंपोजिंग के ठेकेदार से झिकझिक भी होती, मगर वे खबर लगवा कर ही मानते। बाद में यही जज्बा मैने दैनिक भास्कर में स्थानीय संपादक श्री अनिल लोढ़ा में भी देखा। प्रिंटिग प्रोसेस से पहले खबर के लिए आखिर तक जद्दोजहद के चलते कई बार अखबार लेट हो जाता। आखिर की दस हजार कॉपी तक भी वे ताजा खबर के लिए प्लेट चैंज करवा देते थे। सतीश जी माडसाब की तरह ही श्री लोढ़ा भी पत्रकारिता को किस हद तक जीते हैं, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अचानक बेहतरीन फोटो कैप्शन सूझ जाने पर भी मशीन रुकवा कर संशोधन करवा देते थे।
प्रसंगवश बताता चलूं कि हाल ही सूचना व जनसंपर्क निदेशालय में संयुक्त निदेशक पद पर पदोन्नत श्री प्रेम प्रकाश त्रिपाठी भी उन दिनों हमारे साथ थे। वे प्रशासन व राजनीति की बीट देखा करते थे।
माडसाब की सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि काम के मामले में भले ही बहुत सख्त थे, मगर बाद में उनका व्यवहार मित्रवत होता था। साथ बैठा कर खिलाते-पिलाते।
आखिर में एक बात और। कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सफाई पर जोर देते हैं, मगर सतीश जी में भी यही क्वालिटी थी। आते ही काम शुरू करने से पहले अपनी टेबल को साफ करते। यही हमें भी सिखाते। यह कह कि कुत्ता भी जिस जगह बैठता है, पहले उसे साफ करता है। हम तो इंसान हैं।
सतीश जी माडसाब आधुनिक राजस्थान से पहले दैनिक न्याय में थे व बाद में कुछ साल तक दैनिक नवज्योति में प्रथम पेज का संपादन किया। सेवानिवृत्ति के बाद हौसलों की उड़ान के संपादक रहे।

डॉ. प्रभा ठाकुर
जानी-मानी कवयित्री व समाजसेविका और अजमेर सांसद रहीं डॉ. प्रभा ठाकुर का जन्म 10 सितम्बर 1949 को जिले के किशनगढ़ कस्बे में आरएएस अधिकारी श्री देवीसिंह बारहठ के घर हुआ। उन्होंने उदयपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. व एम.ए. के अतिरिक्त पीएच.डी. की डिग्रियां हासिल की हैं। उनके तीन काव्य संग्रह बौरया मां, आखर-आखर व चेतना के स्वर प्रकाशित हो चुके हैं। वे देश-विदेश में अनेक काव्य संध्याओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी हैं। उन्होंने हिंदी फिल्म महालक्ष्मी, स्वाधीनता संग्राम पर आधारित फिल्म गोरा हट जा और राजस्थानी फिल्म बीनणी होवे तो इसी का निर्माण व पटकथा लेखन किया है। वे अनेक फिल्मी गीत भी लिख चुकी हैं। उनकी लेखनी के बारे में बहुत जानकारी  नहीं है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि अपने जमाने में उन्होंने काव्य में क्षेत्र में खूब नाम कमाया।

-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 18 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग चार
स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा
स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा पेशे से मूलत: वकील थे, मगर पत्रकारिता में भी उनको महारत हासिल थी। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में कोर्ट की रिपोर्टिंग की। बाद में दैनिक भास्कर से जुड़े, जहां उनके भीतर का पत्रकार व लेखक पूरी तरह से पुष्पित-पल्लवित हुआ। रूटीन की खबरों से हट कर वो सब कुछ जो खबर का हिस्सा नहीं बन पाता था, उसके लिए दैनिक भास्कर ने महानगर प्लस के नाम से एक पेज का अनूठा प्रयोग किया। उसमें खबरों के फॉलोअप, ह्यूमन स्टोरीज, जीवन के विविध रंगों इत्यादि का समावेश किया जाता था। इस पेज को उन्होंने बखूबी संभाला। खबर के तत्त्व को बारीकी से समझने वाले श्री हाड़ा बहुत टाइट खबर लिखा करते थे। मुझे एक भी खबर याद नहीं, जिसे संपादित करते वक्त एक भी शब्द इधर से उधर करना पड़ा हो। अपनी असीम कल्पनाशीलता का भरपूर उपयोग करते हुए उन्होंने महानगर प्लस में एक से बढ़ एक प्रयोग किए और पत्रकारिता को नया आयाम प्रदान किया। भाषा-शैली में विविध रंग भरने में भी कमाल की कारीगरी थी। उन्होंने पत्रकारिता में आए नए युवक-युवतियों को तराश कर परफैक्ट पत्रकार बनाया। मेरी नजर में वे एक संपूर्ण संपादक थे, जिनमें भाषा का पूर्ण ज्ञान था, समाचार व पत्रकारिता के सभी अंगों की गहरी समझ थी, किस खबर को कितना सम्मान चाहिए, इसका भान था। ले आउट के एक्सपर्ट थे। हैंड राइटिंग भी बहुत खूबसूरत थी, जो उनके खूबसूरत मिजाज  की द्योतक थी। यह बात दीगर है कि कंप्यूटर के इस युग में हैंडराइटिंग की प्रासंगिकता खत्म सी हो गई है। दैनिक भास्कर के कानूनी मसलों को भी उन्होंने बखूबी हैंडल किया। अजयमेरू प्रेस क्लब का संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। मीडिया की भीतरी दुनिया की खैर खबर रखने वाले पोर्टल भड़ास डॉट कॉम पर यदा कदा अपनी भड़ास निकाल लिया करते थे। इस हिसाब से वे एक विद्रोही इंसान थे, जिसे अव्यवस्था व अन्याय विचलित कर दिया करता था। जीवन के आखिरी दिनों में दरगाह ख्वाजा साहब पर अनूठ वेबसाइट भी बनाई। माशाअल्लाह, वाकई हरफनमौला इंसान थे।
अफसोस कि जीवन यात्रा में आधे रास्ते में ही हमको अलविदा कह के चल दिए। काश वे जिंदा होते तो न जाने कितने और नवोदित पत्रकारों को दिशा प्रदान करते। उनकी अंत्येष्टि के समय पार्थिव शरीर से उठती लपटों ने मेरे जेहन में यह सवाल गहरे घोंप दिया कि क्या कोई कड़ी मेहनत व लगन से किसी क्षेत्र में इसलिए पारंगत होता है कि वह एक दिन इसी प्रकार आग की लपटों के साथ अनंत में विलीन हो जाएगा? खुदा से यही शिकवा कि यह कैसा निजाम है, आदमी द्वारा हासिल इल्म और अहसास उसी के साथ चले जाते हैं। कौतुहल ये भी कि फिर जिस दुनिया में वह जाता है, वहां वह फन उसके किसी काम भी आता है या नहीं?

श्री हरि हिमथानी
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित श्री हरि हिमथानी की गिनती राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित सिंधी साहित्यकारों में होती है। उनका जन्म 1933 में सिंध के नवाबशाह जिले के हिसाब गांव में हुआ। भारत विभाजन के बाद वे अजमेर में आ कर बसे। उनकी पहली लघु कथा सन् 1952 में च्प्यार रोई दिनोज् का प्रकाशन एक प्रसिद्ध सिंधी मासिक पत्रिका च्कुमारीज् में हुआ। सन् 1954 में उनके नॉवेल च्रात जो बियों पहरज् और च्माझिया जा दंगाज् प्रकाशित हुए। इसके बाद उनके नॉवेल च्अभागिनज् और च्आशाज् ने उन्हें प्रतिष्ठित लेखक के रूप में स्थापित किया। सन् 1954 से 1960 के दौरान उनके पांच नॉवेल प्रकाशित हुए, जिनकी काफी सराहना हुई। सन् 1961 के दरम्यान उन्होंने आत्मकथा लिखना शुरू किया और दुर्भाग्य से उनके बड़े भाई ने दीपावली के सफाई के दौरान तकरीबन 1500 पन्ने कचरे के साथ फैंक दिए। तकरीबन दस साल तक उन्होंने लेखन बंद कर दिया। इसके बाद 1970 में उन्होंने फिर लिखना शुरू किया और एक के बाद एक पुस्तकें लिखते गए। सन् 1987 में उन्हें च्आरमेक असवार्डज् से नवाजा गया। सन् 1990 में उन्हें च्नई दुनिया पब्लिकेशनज् से सम्मानित किया गया। सन् 1993 में उन्हें अखिल भारतीय सिंधी बोली ऐं साहित सभा की ओर से च्लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्डज् दिया गया। सन् 1995 में उन्होंने च्डॉ. एच. एल. सदरंगानी गोल्ड मेडलज् हासिल किया। सन् 1996 में उन्हें राजस्थान सिंधी अकादमी ने लाइफ टाइम लिट्रेसी अचीवमेंट के लिए से च्सामी अवार्डज् से नवाजा गया। सन् 2001 में उन्हें एन.सी.पी.एस.एल. अवार्ड व 2002 में साहित्य अकादमी अवार्ड हासिल हुआ। सन् 2009 में उन्हें सिंधु वेलफेयर सोसायटी, जयपुर ने सम्मानित किया। उनकी तकरीबन दस लघु कथाएं और पंद्रह नॉवेल प्रकाशित हो चुके हैं। गत 21 अक्टूबर, 2010 को साहित्य अकादमी की ओर से उन्हें सम्मान देते हुए मीट द ऑथर के तहत साहित्य प्रेमियों से रूबरू करवाया गया।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग तीन

मित्रों, 
अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाओं के विषय पर जब लिखने का मन हुआ तो मुझे अंदाजा नहीं था कि यह गले पड़ जाएगा। कहते हैं न कि गए थे नमाज पढऩे और रोजे गले पड़ गए। वैसी ही हालत हुई है मेरी। असल में जिन पत्रकारों व साहित्यकारों को गहरे से जानता था, मेरा मन उनकी लेखन विधा का दर्शन करने व कराने का ही था, ताकि नए पत्रकारों व नवोदित लेखकों को साहित्य व पत्रकार जगत के बारे में एक दृष्टि दे सकूं। मगर बाद में लगा कि जिनके बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है, यदि उनका जिक्र तक नहीं किया तो यह वाजिब नहीं होगा। अत: मेरी कोशिश है कि शहर के सभी सुपरिचित पत्रकारों व साहित्यकारों को इस शृंखला में शामिल करूं। यदि किसी के बारे में बहुत अधिक जानकारी न दे पाऊं तो मुझे माफ कर दीजिएगा। एक बात और। सूची अधिक लंबी होने के कारण वरीयता की मर्यादा का पालन करने में कठिनाई होगी। मेहरबानी करके अन्यथा न लीजिएगा। एक निवेदन और। यदि किसी मित्र का इस यात्रा में सहभागी होने का मन करता हो तो, स्वागत है।

लीजिए, शृंखला की अगली कड़ी:-
यदि भाषा के संपूर्ण ज्ञान के हिसाब से देखा जाए तो डॉ. बद्री प्रसाद पंचोली का नाम शीर्ष पर है। यानि अल्टीमेट। झालावाड़ के खानपुर में 1 जून, 1935 को जन्मे डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली राजस्थान के प्रतिष्ठित साहित्यकार और हिंदी व संस्कृत के जाने-माने विद्वान हैं। उन्होंने हिंदी व संस्कृत में एम.ए. व पीएचडी की है। आप राजकीय महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
वस्तुत: वे हिंदी व संस्कृत भाषा और व्याकरण के इतने प्रकांड विद्वान हैं कि उन्हें शब्दों की व्युत्पत्ति तक का पूर्ण ज्ञान है। मेरी जानकारी के अनुसार वेद संस्थान के स्वर्गीय श्री अभयदेव शर्मा भी उनके समकक्ष माने जाते थे। श्री पंचोली को मैने ऐसे जाना कि मैं जब दैनिक न्याय में था, तब आपका संपादकीय नियमित रूप से प्रकाशन हेतु आता था। लेखन के क्षेत्र में उन्होंने लंबी यात्रा तय की है। उन्होंने तकरीबन चालीस साल तक न्याय में नियमित रूप से संपादकीय लिखा। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई विषय हो, जिस पर आपकी कलम न चली हो। हम जानते हैं कि संपादकीय आम तौर पर घटनाओं की संतुलित समीक्षा के साथ समाज को दिशा देने का काम करते हैं। इस लिहाज से उन्होंने लंबे समय तक एक उपदेशक के रूप में भी समाज को अपनी सेवाएं दी हैं। उनकी शैली में घुमाव भले ही कुछ खास न हो, मगर इतना सधा हुआ इतना लिखा करते थे कि वह धारा प्रवाह तो होता ही था, उसमें व्यवस्था पर प्रहार करती धार भी पर्याप्त होती थी। आम तौर पर नैतिकता पर जोर हुआ करता था। जिस भी विषय पर संपादकीय लिखा, उस पर संक्षेप में संपूर्ण जानकारी मिल जाती थी। न तो उसमें कोई अवांछनीय शब्द होता था और न ही उसमें कुछ जोड़ा जा सकता था। लेखनी पर कितना नियंत्रण था, इसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यूं समझिये कि ए फोर साइज के कागज से कुछ छोटे कागज पर ऊपर कोने से लिखना शुरू करते और ठीक नीचे के कोने तक संपादकीय पूरा हो जाता। कांट-छांट कहीं भी नहीं। कागज की बचत के लिए हाशिया तक नहीं छोड़ते। है न समझ से परे कि क्या किसी की अपनी लेखनी पर इतनी कमांड हो सकती है कि उसे शब्दों की गिनती तक का पता हो कि कितने में अपनी बात पूरी करनी है। यह जानकर आपका मन उनको नमन करने को करता है कि नहीं।

अजमेर में पहली पंक्ति के साहित्यकारों में स्वर्गीय श्री मनोहर वर्मा का नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है। वे प्रदेश के प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार थे। आजीविका के लिए 1953 से रेलवे में नौकरी की, लेकिन तभी से लेखन की निजी रुचि को भी पोषित करते रहे। उन्होंने बाल साहित्य पर अनेकानेक पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें 1973 में राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से विशिष्ट साहित्यकार के रूप में सम्मानित किया गया। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर व दैनिक नवज्योति में समीक्षक के रूप में सेवाएं दीं। स्वाभाविक है खबर की भाषा-शैली की गहरी जानकारी थी और बहुत बारीकी से नक्काशी किया करते थे। जीवन के आखिरी क्षणों तक पत्रकारिता व साहित्य की सेवा की। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 16 सितंबर 2019

अजमेर के ठिये-ठिकाने

ठिये-ठिकाने। आप समझे ना। जहां शहर की चौधर करने वाले जमा होते हैं। जहां बाखबर के साथ बेखबर चर्चाओं का मेला लगता है। अफवाहों की अबाबीलें भी घुसपैठ कर जाती हैं, तो कानाफूसियां भी अठखेलियां करती हैं। हंसी-ठिठोली, चुहलबाजी, तानाकशी व टीका-टिप्पणी के इस चाट भंडार पर शहर भर के चटोरे खिंचे चले आते हैं। दुनियाभर की टेंशन और भौतिक युग की आपाधापी के बीच यह वह जगह है, जहां आ कर जिंदगी रिलैक्स करती है। इतना ही नहीं, जहां अनायास शहर की फिजां का तानाबाना बुना जाता है। जहां से निकली हवा शहर की आबोहवा में बिखर जाती है।
दैनिक भास्कर, अजमेर संस्करण के संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल जिंदगी के इस अनछुए से ठिये को अपने आलेख में बखूबी छू चुके हैं। उन्होंने ठिये-ठिकाने पर ऐसा शब्द चित्र खींचा है, जिसे पढऩे पर आपके जेहन में हूबहू नक्शा उभर आएगा। उसकी सुर्खी है- ठिये-ठिकाने, जहां जि़न्दगी मुस्कुराती है।

तेजवानी गिरधर
पिछले दिनों अजयमेरू प्रेस क्लब मेें चाय पर चर्चा के दौरान भी उन्होंने अजमेर के एक खास ठिये का जिक्र करते हुए मौजूद पत्रकार साथियों को तकरीबन पंद्रह साल पीछे ले जा कर गहरी डुबकी लगवाई थी। उस ठिये का नाम यूं तो कुछ नहीं, मगर क्लॉक टॉवर पुलिस थाने के मेन गेट से सटी बाहरी दीवार पर रोजाना रात सजने वाले मजमे को कुछ मसखरे नाले शाह की मजार कहा करते थे। दरअसल दीवार के सहारे पटे हुए एक नाले पर होने के कारण ये नाम पड़ा था। अपने आलेख में डॉ. अग्रवाल ने इसे कुछ इस तरह बयां किया है:-
अजमेर रेलवे स्टेशन के बाहर मुख्य सड़क पर ऐसी ही एक चौपाल बरसों तक लगा करती थी, जिसमें बैठने के लिए लोग अपने दुपहिया वाहनों का इस्तेमाल किया करते थे। कई बार यह रात्रि चौपाल भोर होने तक खिंच आती थी। अजमेर की इस चौपाल में बहुसंख्या भले ही शहर के पत्रकारों की रहा करती हो, मगर शिरकत बड़े-बड़े मंत्रियों व अफसरों से लेकर पंक्चर बनाने वालों तक की रहती थी।
असल में डॉ. अग्रवाल ही इस ठिये के सूत्रधार थे। तब वे नवज्योति में हुआ करते थे। उनके संपादन कार्य से निवृत्त के बाद यहां पहुंचने से पहले ही  एक-एक करके ठियेबाज जुटना शुरू हो जाते थे। सबके नाम लेना तो नामुमकिन है। चंद शख्सियतों का जिक्र किए देते हैं:- स्वर्गीय वीर कुमार, रणजीत मलिक, इंदुशेखर पंचोली, संतोष गुप्ता, नरेन्द्र भारद्वाज, ललित शर्मा, अतुल शर्मा, तिलोक आदि आदि, जो कि रोजाना इस मजार पर दीया जलाने चले आते थे। डॉ. अग्रवाल के आने के बाद तो महफिल पूरी रंगत में आ जाती थी। इस मयखाने की मय का स्वाद चखने कई रिंद खिंचे चले आते थे। यहां दिनभर की सियासी हलचल के साथ अफसरशाही के किस्सों पर खुल कर चटकारे लिये जाते थे। समझा जा सकता है कि दूसरे दिन अखबारों में छपने वाली खबरों का तो जिक्र होता ही था, उन छुटपुट वारदातों पर भी कानाफूसी होती थी, जो ऑफ द रिकार्ड होने के कारण खबर की हिस्सा नहीं बन पाती थीं। अगर ये कहा जाए कि इस ठिये पर शहर का दिल धड़कता था तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। चूंकि यहां हर तबके के बुद्धिजीवी जमा होते थे, इस कारण खबरनवीसों को शहर की क्रिया-प्रतिक्रिया का भरपूर फीडबेक मिला करता था। जो बाद में अखबारों के जरिए शहर की दिशा-दशा तय करता था। जिन पंक्चर बनाने वाले का जिक्र आया है, उनका नाम है श्री सीताराम चौरसिया। कांग्रेस सेवादल के जाने-माने कार्यकर्ता। सेवादल के ही योगेन्द्र सेन इस मजार के पक्के खादिम थे। बाद में यह ठीया वरिष्ठ पत्रकार इंदुशेखर की पहल पर पैरामाउंट होटल के एक कमरे में शिफ्ट हो गया। एक घर बनाऊंगा की तर्ज पर एक सा छोटा ठिया सामने ही रेलवे स्टेशन के गेट के पास कोने में चाय की दुकान पर भी खुला, जो दैनिक न्याय के पत्रकारों ने जमाया था। लगे हाथ ये बताना वाजिब रहेगा कि नाले शाह की मजार से भी पहले क्लॉक टॉवर के सामने मौजूदा इंडिया पान हाउस के पास चबूतरे पर दैनिक नवज्योति के क्राइम रिपोर्टर स्वर्गीय जवाहर सिंह चौधरी देर रात के धूनी रमाया करते थे।
डॉ. रमेश अग्रवाल
शहर के दूसरे ठियों पर चर्चा से पहले डॉ. अग्रवाल के आलेख की चंद पंक्तियों का आनंद लीजिए:-
कहते हैं दिल से दिल को राहत होती है। इंसान को अगर कुछ दिन, किसी दूसरे इंसान की शक्ल दिखाई न दे तो वह यूं कुम्हला जाता है, जैसे धूप के बगैर कोई पौधा। इंसान की इसी फितरत ने तरह-तरह के मजमों को जन्म दिया। गांव की चौपालें, मारवाड़ की हथाइयां, भोपाल के पटिये, बीकानेर के पाटे, कस्बों में ठालों के अड्डे, छोटे शहरों में पान की दुकानें और बड़े शहरों में काफी हाउस, न जाने कब से एक-दूसरे के दिल तक पहुंचने का माध्यम बनते रहें हैं। टीवी, सिनेमा, इंटरनेट या फेसबुक ने इंसान को भले चलता- फिरता चित्र भर बना डाला हो, मगर ये सब मिलकर आज भी उन्मुक्त अट्टहास से आबाद उन असंगठित, अनाम और अनौपचारिक ठिकानों का विकल्प नहीं बन पाए हैं, जिन्हें कहीं ठिया कहा जाता है तो कहीं बैठक। ऐसे ठिकानों के रसिक फुरसतियों के घर, उनकी अनुपस्थिति में जब कोई उनका चाहने वाला उन्हें पूछने पहुंचता है तो घर का दरवाजा खोलती अम्मा या भाभी की आंखों में उलाहना देखकर ही समझ जाता है कि उनका अजीज इस समय कहां बैठा होगा।
गप्प, चुहल और मटरगश्ती के ऐसे ठिकानों के लिए किसी खास तरह की जगह की दरकार नहीं होती। ऐसी चौपाल किसी बारादरीनुमा हथाई में भी लग सकती है, तो गांव के किसी चौगान में भी। किसी पेड़ की छांव ऐसे फुरसतियों का स्थायी ठिकाना बन सकती है, तो किसी मंदिर की पेडिय़ां भी। गुजरे जमाने में इसी मकसद से मकान के बाहर मोखे, मोड़े या चबूतरे बनाए जाते थे। कई बार किसी का उजाड़ कमरा भी ऐसे ठिकानों की शक्ल ले लेता है। शहरों में मुड्डे अथवा मुड्डियों वाली चाय की थडिय़ां इस काम के लिए बेहतरीन जगह मानी जाती है।
इन चौपालों को महज गप्प ठोकने का अड्डा कहना इंसान की जिंदादिली का मजाक उड़ाने से कम नहीं होगा। जिंदगी से भरपूर इन ठिकानों का हिस्सा वही इंसान बन सकता है, जिसका दिल उसके दिमाग के सामने कतई कमजोर न हो।
बात अब शहर के कुछ और ठियों की। उनमें सबसे ऐतिहासिक है नया बाजार चौपड़। न जाने कितने सालों से यह चौराहा शहर की रूह रहा है। यहां से शहर का बहुत कुछ तय होता रहा है। सबको पता है कि अजमेर क्लब रईसों का आधिकारिक ठिकाना है। अंदरकोट स्थित हथाई भी सबकी जानकारी में है। इसी प्रकार पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के निवास स्थान की जाफरी वर्षों तक आबाद रही। वहां भी शहरभर के बतोलेबाज जमा हुआ करते थे। इसी प्रकार कांग्रेस नेता कैलाश झालीवाल का मदारगेट स्थित ऑफिस भी कई सालों से खबरनवीसों, कांग्रेस कार्यकर्ताओं व कांग्रेस नेत्रियों का ठिकाना रहा है। ऐसा ही अड्डा रेलवे स्टेशन के सामने स्थित शहर के जाने-माने फोटोग्राफर इन्द्र नटराज की दुकान पर भी सजता था, जहां विज्ञप्तिबाज विभिन्न अखबारों के लिए विज्ञप्तियां दे जाते थे। बौद्धिक विलास के लिए पत्रकारों का जमावड़ा जाने-माने पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा के कचहरी रोड पर नवभारत टाइम्स के ऑफिस में भी होता था। जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के सामने स्थित मुड्डा क्लब भी शहर के बातूनियों का ठिकाना रहा है। इसी प्रकार पलटन बाजार के सामने जम्मू की होटल कॉफी के शौकीनों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा। मूंदड़ी मोहल्ला का चौराहा भी बतरसियों की चौपाल रही है।
ठियों की बात हो और पान की दुकानें ख्याल में न आएं, ऐसा कैसे हो सकता है। ये शहर की पंचायती करने वालों से आबाद रही हैं। एक समय क्लॉक टावर थाने के नुक्कड़ पर इंडिया पान हाउस हुआ करता था, जो बाद में अतिक्रमण हटाओ अभियान में नेस्तनाबूत हो गया और बाद में सामने ही स्थापित हुआ। स्टेशन रोड पर मजदूर पान हाउस, जनता पान हाउस, गुप्ता पान हाउस व चाचा पान हाउस, हाथीभाटा के नुक्कड़ पर हंसमुख पान वाला, केन्द्रीय रोडवेज बस स्टैंड के ठीक सामने निहाल पाल हाउस, रामगंज स्थित मामा की होटल आदि भी छोटे-मोटे ठिये रहे हैं।  वैशाली नगर में सिटी बस स्टैंड पर गुप्ता पान हाउस पहले एक केबिन में था, जो बाद में एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में तब्दील हो गया। वहां पान की दुकान अब भी है। शाम ढ़लते ही सुरा प्रेमियों का जमघट ब्यावर रोड पर दैनिक न्याय के पास फ्रॉमजी बार में लगता था। ऐसे कई और ठिये होंगे, जो मुझ अल्पज्ञानी की जानकारी में नहीं हैं। आपको पता हो तो इस सूची में इजाफा कर दीजिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 15 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग दो
ताजिंदगी दैनिक नवज्योति से जुड़े रहे श्री नरेन्द्र चौहान लाजवाब इंसान तो हैं ही, खबरनसीस भी अपनी किस्म के इकलौते हैं। चंद लफ्जों में उनका इजहार करने के लिए इतना कहना ही काफी होगा- ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर। यह उनके मिजाज में तो है ही, लफ्जों की बाजीगरी में भी नजर आत है। डॉ. रमेश अग्रवाल की तरह लिखने का उनका अपना अलग अंदाज है। वे उर्दू के लफ्जों का जमकर तड़का लगाते हैं। अजमेर में उनके अलावा दैनिक न्याय से जुड़े रहे श्री अरविंद कौशिक के सटायर व टिट-बिट्स उर्दू की चाशनी में ही डूबे हुआ करते थे।
श्री चौहान को हिंदी में तो महारत हासिल है ही, कई जगह ठेठ उर्दू के लफ्जों का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें समझने के लिए आपको दिमाग पर पूरा जोर लगाना पड़ जाएगा। या फिर उर्दू के जानकार का दरवाजा खटखटाना पड़ जाएगा। मगर इतना तय है कि कंटेंट से भरपूर उनके आलेख को पढऩे के बाद लगेगा कि आपका वाकई किसी दमदार खबरनवीस से पाला पड़ा है। उनकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि जहां पत्थर पर रगडऩा जरूरी होता है, वहां बड़ी बेदर्दी से रगड़ते हैं और सहलाते भी बड़े खुलूस से हैं। यूं तो अनेक मुद्दों पर लिखते हैं, मगर अमूमन पर बदइंतजामियों पर जमकर तंज कसते हैं। मुल्क के ताजा तरीन मसलों पर भी सटीक लिखते रहे हैं। वे बेहतरीन कार्टूनिस्ट भी हैं। दैनिक नवज्योति में लंबे समय तक फ्रंट पेज पर उनके कार्टून शाया हुए हैं। भले ही नए खबरनवीस उन्हें न जानते हों, मगर वे अजमेर की पत्रकारिता के आइकन हैं।
गत दिनों दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर रचित गौरव ग्रंथ, जिसका संपादन करना मेरी खुशनसीबी थी, में श्री चौहान की कलम से निकले जज्बात की चंद सफें बतौर बानगी पेश हैं:-
चलो अब इन कमायतों के दरमियां गलों सी गुफ्तगू करें और देखें कि इस सफर की हिमाकतों के दौर में कैसे कैसे लोग मिले हैं।
जुस्तजू हो तो सफर खत्म कहां होता है, यूं तो हर मोड़ पर मंजिल का गुमां होता है।
तुम्हारे शहर के सारे दिए तो सो गए कब के, हवा से पूछना
दहलीज पर ये कौन जलता है।

यहां तंगी-ए-कफस है, वहां फिक्रे-आशियाना
न यहां मेरा ठिकाना, न वहां मेरा ठिकाना।

आंखन देखा वह मंजर आज भी मेरे दिलों दिमाग में जेबस्त है। झील के किनारे गुजरते हुए अब जब पानी की उत्ताल तरंगों से टकरा शीतल हवा की बहारें मन-शरीर को छूती हैं तो उस दौर का अफसाना-ए-जिक्र जरूरी हो जाता है और अफसानों को हकीकत में तब्दील होते देखने का सुखद अहसास भी होता है।
श्री चौहान ने खुद के बारे में लिख कर भेजा था, मगर वह शाया नहीं किया जा सका, चूंकि ऐसा फॉरमेट नहीं था, मगर आपकी नज्र हैं चंद सफें-
एक मायावरी और मुख्र्तालास जी जिंदगी की क्या पहचान। मां-बाप ने नाम दिया, मास्टरों ने पढ़ाया लिखाया और कुछ दिमाग का खोखलापन खत्म किया। कहानियों, किस्सों की तिलस्मी तलब 'नवज्योतिÓ के दरवाजे ले आई। ड्राइंग के शौक ने सफेद और काली लकीरें खींचने की आदत को परवान चढ़ाया। राजस्थान में पहली बार नवज्योति में रोजाना बड़े राष्ट्रीय रिसालों की तर्ज पर पाकेट कार्टून छपने शुरू हुए। हैडलाइन थी- 'यही जिंदगी हैÓ, जो अभी भी तमूदार है। एक लेखकीय नजर से मामूली इंसान की तकलीफें, राजनेताओं, नौकरशाहों की उठापटक, तिकड़मबाजी, जद्दोजहद पर उठ कर कलमघसीटी की। नतीजतन 'शहर अपने ही आइने मेंÓ 'चकतलानÓ, 'चिंतन का मंथनÓ, 'मेरे इर्द गिर्दÓ, रिवर्स गियरÓ, 'कबीरा खड़ा बाजार में, 'नजरियाÓ जैसे मामलों में शब्दों को कागज पर उकेरा। चापलूसी और मक्कारी से परहेज ने कई परेशानियों को झेलना भी सिखाया। यह मेरे सच और मेरे झूठ हैं, इसके अलावा दिमाग में कुछ नहीं है। साफगोई की तराजू आपके हाथ में है।
कुल जमा ये कहने का मन करता है कि बिंदास जेहनियत का ऐसा इंसान व खबरनवीस अजमेर की अखबारी दुनिया का सुनहरा सितारा है।
क्रमश:
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 14 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग एक
राजस्थान में अजमेर पत्रकारिता की पाठशाला रही है। आज राज्य में पत्रकारिता का जो कल्चर है, उसमें अजमेर की अहम भूमिका है। बेशक राष्ट्रदूत व राजस्थान पत्रिका का भी योगदान रहा है, मगर अजमेर में स्थापित दैनिक नवज्योति के मुख्यालय व दैनिक न्याय ने ऐसे कई पत्रकारों को जन्म दिया है, जो आज विभिन्न समाचार पत्रों में प्रतिष्ठित हैं। जहां राजस्थान पत्रिका सधी हुई भाषा व संक्षिप्तिकरण के लिए जाना जाता रहा है, वहीं दैनिक नवज्योति की पहचान समाचार में संपूर्ण अपेक्षित कंटेंट समाहित किए जाने के रूप में है। दैनिक न्याय का योगदान इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि यहां शुद्ध हिंदी पर विशेष जोर दिया जाता था। दैनिक भास्कर के राजस्थान में आने के बाद पत्रकारिता को नई दिशा मिली। यदि ये कहा जाए कि भास्कर ने अखबारी जगत के कल्चर में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भास्कर ने पत्रकारों को प्रोफेशनल बनाया है। विशेष रूप से भाषा-शैली की बात करें तो मध्यप्रदेश के नई दुनिया समाचार पत्र में किए गए प्रयोग भास्कर के माध्यम से ही राजस्थान में आए हैं।
इसमें कोई दोराय नहीं कि राजस्थान की पत्रकारिता अपने आप में परिपूर्ण व संपन्न रही है, मगर मेरी नजर में पत्रकारिता की स्कूलिंग मध्यप्रदेश की बेहतर है। जब भास्कर अजमेर में स्थापित हुआ तो आरंभ में भोपाल से पत्रकार भेजे गए थे। उनकी कार्यशैली को गहनता देखा तो पाया कि वे वर्सटाइल हैं। अर्थात उनसे समाचार लिखवाइये या संपादकीय, सटायर लिखवाइये या छोटी-मोटी कविता, आकर्षक हैडिंग बनवाइये या लेआउट, इस सब में वे पारंगत थे।
विषय की भूमिका के बाद अब बात अजमेर के जाने-पत्रकारों की भाषा-शैली की। मेरा प्रयास है कि विषय के साथ पूरी ईमानदारी के साथ न्याय करूं। स्वभाविक रूप से यह मेरा नजरिया है, जिन लोगों ने इन पत्रकारों का जाना होगा, उनका दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है। अत: समालोचकों का स्वागत है। एडीशन-ऑल्ट्रेशन अपेक्षित है, ताकि जिन करेक्टर्स को हम जानना चाहते हैं, उन्हें परिपूर्णता के साथ समझें।
आइये, अब मुद्दे पर आते हैं। मूर्धन्य पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा, जिन्होंने जयपुर जा कर अपनी धूम मचाई, की समाचार लेखन व न्यूज आइटम की शैली अनूठी है। असल में कॉलेज टाइम में वे बेहतरीन डिबेटर हुआ करते थे। उनकी शैली की विशेषता ये है कि भाषा बहुत टाइट होती है। मेरी नजर में वे एक मात्र पत्रकार हैं, जिनकी लेखनी में एक भी शब्द इधर से उधर नहीं किया जा सकता। चाह कर भी नहीं किया जा सकता। अलबत्ता, लोच का तनिक अभाव होता है, जो कि समाचार को रोचकता प्रदान करता है, मगर लेखन इतना धारा प्रवाह होता है, जो सीधे जेहन में उतरता चला जाता है।  हर शब्द व पंक्ति एक दूसरे से गहरी गुंथी होती है। पत्रकारिता में परफेक्शन की वे मिसाल हैं। जिन पत्रकारों की सीखने में रुचि है, उनके लिए वे प्रेरणा स्तम्भ हैं। वैसे भी राजस्थान में अनेक स्थापित पत्रकार उनकी देन हैं। ज्ञातव्य है कि श्री लोढ़ा अजमेर में दैनिक नवज्योति, राजस्थान पत्रिका व नवभारत टाइम्स से जुड़े रहे। जयपुर में भास्कर के आने पर स्टेट कॉआर्डिनेटर रहे। इसके बाद इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रवेश किया और बेहतरीन राजनीतिक विश्लेषक के रूप में स्थापित हो गए। वे सुनहरा राजस्थान नामक साप्ताहिक का भी शानदार संचालन कर रहे हैं।
बात अब डॉ. रमेश अग्रवाल की। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में रह कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद भास्कर ज्वाइन किया। कुछ वर्ष जयपुर भी रहे व अब लौट कर अजमेर को दिशा दे रहे हैं। गाहे-बगाहे संपादकीय टिप्पणी के अतिरिक्त कॉलम भी लिखते हैं। उनका अपना एक बड़ा पाठक वर्ग है। उनमें एक आदर्श पत्रकार के दर्शन किए जाते हैं। वे जिस शैली में अपनी बात रखते हैं, वह इस अर्थ में अद्वितीय है कि उसकी कॉपी अब तक कोई पत्रकार नहीं कर पाया है। की ही नहीं जा सकती। उनके लेखन में कई ऐसे शब्द मिल जाएंगे, जो आम तौर पर आपने सुने या पढ़े ही नहीं होंगे। कुछ शब्द ऐसे प्रयोग में लाते हैं, जिनका अर्थ समझने के लिए आपको डिक्शनरी का सहारा लेना पड़ जाएगा। शायद कुछ शब्द उत्तरप्रदेशी हिंदी के होते हैं, जो कि आम पाठक के सिर के ऊपर से गुजर जाते हैं। मगर ये ही शब्द उनके लेखन में खुशबू प्रदान करते हैं। सच कहा जाए तो उनके कुछ पेट वर्ड ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ कर तुरंत कह बैठेंगे कि ये उनकी लेखनी है, क्योंकि उनका उपयोग सिर्फ वे ही करते हैं। कड़वी से कड़वी बात को भी बहुत मीठे अंदाज में कहना कोई उनसे सीखे, जो कि उनके स्वभाव में भी है। हालांकि बक्शते फिर भी नहीं हैं। भाषा शैली में ट्विस्ट व लोच का अत्यंत रुचिकर समावेश होता है। आम तौर पर एक-आध शेर का तड़का डाल कर यह अहसास करवा देते हैं कि वे मूलत: साहित्यिक टच के पत्रकार हैं। पत्रकार से कहीं अधिक साहित्यिक व्यक्ति हैं। कुल मिला कर वे अपने लेखन में कई करवटें लेते हुए विविधता के साथ स्वादिष्ट प्रस्तुति देते हैं। साथ ही जो कहना चाहते हैं, उसे पाठक में गहरे पैठा कर ही सुकून पाते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में दैनिक भास्कर में प्रकाशित उनके एक पॉलिटिकल आइटम की चंद पंक्तियां बतौर बानगी पेश हैं:-
चुनावी गलियों में डंडे खड़काता चुनाव आयोग यह देख कर गद् गद् है कि उसके डंडे की फटकार से चुनावी उम्मीदवारों की घिग्घी बंध गई है।
चुनाव आयोग इन उम्मीदवारों की भोली सूरत और छुंछे हाथ देख कर कैसे ठगौरी खा रहा है।
कहते हैं कि पार्टी के सीनियर भाई गुलाम मुस्तफा ने इमरान भाई की बहियां मरोड़ते हुए यह कह कर उनका मुंह कील दिया कि तुम्हें अध्यक्ष बना दिया ना।
सरे आम ऐसी टकिहाई के बाद इमरान भाई भले ही, जनाब महेन्द्र सिंह रलावता के लिये काम न करें, रलावताजी के अंगरखे के टांके ढीले पड़ते दिखाई नहीं देते।
रलावताजी के एक करीबी दोस्त ने बगैर मतलब समझाए न जाने क्यूं एक शेर पिछले दिनों हमें सुनाया था कि:-
मेरे लिये किसी कातिल का इन्तजाम न कर 
करेंगी कत्ल खुद अपनी हरकतें मुझको।

क्रमश:

-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 12 सितंबर 2019

नाग पहाड़ पर भगवान देवनारायण का मंदिर बनाने की मांग में दम है

अजमेर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष एवं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता धर्मेश जैन ने राजस्थान के उपमुख्यमंत्री एवं सार्वजनिक निर्माण विभाग मंत्री सचिन पायलट से मांग की है कि पुष्कर घाटी पर बनी सांझी छत से सड़क बना कर नाग पहाड़ पर गुर्जर समाज के आस्था के केन्द्र देवनारायण भगवान का मंदिर बना कर एवं सघन वृक्षारोपण कर विकसित किया जाए।  उन्होंने क्या सोच कर यह मांग की है, इसका उन्होंने खुलासा तो नहीं किया है, मगर उनकी मांग में दम है। हो सकता है कि उन्होंने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में बनाई गई सांझी छत को हाईलाइट करने के लिए यह प्रस्ताव रखा हो। ज्ञातव्य है कि सांझी छत बनाने के पीछे उसे टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित करना था, मगर बनने के बाद एडीए ने इसके रखरखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया। अब यह खस्ताहाल है। शाम ढले यह शराबियों का ठिकाना बन जाती है। संभव है जैन यह सोच कर प्रस्ताव रख रहे हों कि पायलट को यह पसंद आएगा, क्योंकि भगवान देवनारायण गुर्जर समाज के आराध्य देव हैं।
तेजवानी गिरधर
इस सिलसिले में एक प्रसंग का जिक्र करना प्रासंगिक रहेगा। परम आराध्या देवी गायत्री का जन्म स्थान पुष्कर ही माना जाता है। कहते हैं कि यज्ञ शुरू करने से पहले ब्रह्माजी ने पत्नी सावित्री को बुला कर लाने के लिए अपने पुत्र नारद से कहा। नारद के कहने पर जब सावित्री रवाना होने लगी तो नारद ने उनको देव-ऋषियों की पत्नियों को भी साथ ले जाने की सलाह दी। इस कारण सावित्री को विलंब हो गया। यज्ञ के नियमों के तहत पत्नी की उपस्थिति जरूरी थी। इस कारण इन्द्र ने एक गुर्जर कन्या को तलाश कर गाय के मुंह में डाल कर पीठ से निकाल कर पवित्र किया और उसका ब्रह्माजी के साथ विवाह संपन्न हुआ। इसी कारण उसका नाम गायत्री कहलाया। जैसे ही सावित्री यहां पहुंची और ब्रह्माजी को गायत्री के साथ बैठा देखा तो उसने क्रोधित हो कर ब्रह्माजी को श्राप दिया कि पुष्कर के अलावा पृथ्वी पर आपका कोई मंदिर नहीं होगा। इन्द्र को श्राप दिया कि युद्ध में तुम कभी विजयी नहीं हो पाआगे। ब्राह्मणों को श्राप दिया कि तुम सदा दरिद्र रहोगे। गाय को श्राप दिया कि तू गंदी वस्तुओं का सेवन करेगी। कुबेर को श्राप दिया कि तुम धनहीन हो जाओगे। यज्ञ की समाप्ति पर गायत्री ने सभी को श्राप से मुक्ति दिलाई और ब्राह्मणों से कहा कि तुम संसार में पूजनीय रहोगे। इन्द्र से कहा कि तुम हार कर भी स्वर्ग में निवास करोगे।
राकेश धाभाई
इस प्रसंग से स्पष्ट है कि देवी गायत्री मूलत: गुर्जर समाज से हैं। पौराणिक काल से गुर्जर समाज का तीर्थराज पुष्कर से गहरा नाता रहा है। एक और महत्वपूर्ण बात। वो यह कि प्राचीन काल से परंपरागत रूप से अजमेर जिले के गुर्जर समाज के लोग किसी समाज बंधु के देहावसान होने पर उसका पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार करने के लिए पुष्कर ले जाते रहे हैं। जाने-माने एडवोकेट राकेश धाभाई से बात करने पर उन्होंने बताया वहां समाज का श्मशान स्थल अलग से है। जो लोग वहां पार्थिव शरीर ले जाने की स्थिति में नहीं होते वे अंतिम संस्कार के बाद के धार्मिक अनुष्ठान पुष्कर में ही करते हैं। उस हिसाब से यदि गुर्जर समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण मंदिर बनाया जाता है तो नाग पहाड़ की महत्ता और बढ़ जाएगी। गुर्जर समाज के लोग भी अपने पौराणिक महत्व के उभरने से गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

वाकई अजमेर-पुष्कर रोड को फोर लेन करने की जरूरत है

अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने मांग की है कि अजमेर-पुष्कर रोड को फोर लेन किया जाए। संभवत: पहली बार अजमेर के किसी नेता ने यह मांग उठाई है। वाकई मांग वाजिब है। ये बात दीगर है कि उस पर राजस्थान के उपमुख्यमंत्री एवं सार्वजनिक निर्माण विभाग मंत्री सचिन पायलट कितना गौर करते हैं। बेहतर ये होता कि जब वे न्यास अध्यक्ष थे, तब खुद गौर करते। हालांकि तब पुष्कर न्यास के कार्यक्षेत्र में नहीं था, मगर प्रभावशाली भाजपा नेता के नाते तो प्रयास कर ही सकते थे।
तेजवानी गिरधर
असल में इस रोड पर अजमेर-पुष्कर के बीच प्रतिदिन आने वाले लोगों का आवागमन तो है ही, बीकानेर व जोधपुर से आने वाले यात्री नागौर व मेड़ता होते हुए अजमेर आते हैं। विशेष रूप से पुष्कर मेला के अतिरिक्त धार्मिक दृष्टि से महत्वूपूर्ण तिथियों पर श्रद्धालुओं का आना-जाना रहता है। कावड़ यात्रियों व रामदेवरा आने-जाने वाले जातरुओं की भी भारी भीड़ रहती है। इस रोड पर यातायात का काफी दबाव है। दुर्घटना का खतरा सदैव बना रहता है। घाटी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक की रोड नाकाफी है। रोड के दोनों ओर पर्याप्त स्थान है, जिसे पक्का किया जाना चाहिए। घाटी से उतरते ही नौसर गांव वाले हिस्से की रोड की हालत बहुत खराब है। अफसोसनाक बात ये है कि इस रोड से जिला प्रशासन के अधिकारी आते-जाते हैं, वीआईपी विजिट भी होती रहती है, मगर ध्यान कोई नहीं दे रहा। पूर्व संसदीय सचिव सुरेश रावत के प्रयासों से एक हिस्सा जरूर गौरव पथ के नाम पर चौड़ा किया गया है। जरूरत अजमेर से पुष्कर के पूरे रोड को चौड़ा किए जाने की है।
आपको याद होगा कि इस रोड पर यातायात के दबाव को कम करने के लिए रेलवे ट्रेक बिछाया गया, मगर उसका उपयोग कोई कर ही नहीं रहा। इसके अतिरिक्त पहले पूर्व राज्यसभा सदस्य औंकार सिंह लखावत के प्रयासों से घाटी में सुरंग बनाने की कवायद फेल हो चुकी है। बाद में रावत के प्रयासों से सुरंग का प्रोजेक्ट तो मंजूर हो गया, मगर सरकार बदलने के बाद वह भी फाइलों में दफन हो गया दिखता है। ऐसे में अगर फोरलेन का काम हो जाए तो बहुत अच्छा रहेगा।
जैन ने एक मांग और की है, वो भी ऐतिहासिक दृष्टि से उचित प्रतीत होती है। उन्होंने कहा है कि सांझी छत को जोड़ते हुए नाग पहाड़ पर गुर्जर समाज के आराध्य देवनारायण महाराज का मंदिर बनाया जाए। ज्ञातव्य है कि पौराणिक दृष्टि से गुर्जरों का तीर्थराज पुष्कर से गहरा नाता रहा है। इस पर चर्चा अगले न्यूज आइटम में करेंगे।

-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

शहर भाजपा में अपरिहार्य हैं देवनानी व अनिता

लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीत कर अंगद के पांव की तरह जमे वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल कांग्रेस के लिए तो बहुत बड़ी परेशानी बने हुए हैं ही, भाजपा के अनेक समकक्ष व दूसरे दर्जे के नेताओं के लिए भी ऐसी गलफांस हैं, जिनसे मुक्ति नितांत असंभव सी प्रतीत होती है। ऐसा नहीं कि भाजपा के अन्य नेताओं ने इन दोनों के वर्चस्व को तोडऩे की कोशिश नहीं की, मगर उन्हें कभी कामयाबी नहीं मिली। यहां तक कि शहर जिला भाजपा के अध्यक्ष पद पर काबिज रहे शिव शंकर हेड़ा, प्रो. रासासिंह रावत व अरविंद यादव भी उनकी आभा को कम नहीं कर पाए। हेड़ा अपने दूसरे कार्यकाल में जरूर पहले की तुलना में अधिक मुखर हैं, मगर देवनानी व अनिता का तोड़ नहीं निकाल पाए हैं।
असल में लगातार तीन बार विधायक रहने और देवनानी के दो बार शिक्षा राज्य मंत्री व श्रीमती भदेल के एक बार मंत्री बनने के कारण भाजपा के अनेक कार्यकर्ता उनसे उपकृत हुए हैं। वे उनका अहसान कभी नहीं भुला सकते। और यही वजह है कि संगठन से इतर दोनों की अपनी-अपनी टीम है, जो उन्हें जितवाने का काम करती है। जनप्रतिनिधि के रूप में लगातार पंद्रह साल काम करने के कारण उन्हें गहरा अनुभव हो चुका है कि किसकी क्या औकात है और उसी के अनुरूप वे उनसे व्यवहार करते हैं। श्रीमती भदेल तो फिर भी ज्यादा विवाद में नहीं रहीं, मगर देवनानी के खिलाफ पूरा संगठन खड़ा हो गया, लेकिन न तो वह उनका टिकट कटवा पाया और न ही जीतने से रोक पाया। दोनों की जीत में जहां उनकी निजी टीम की भूमिका है, वहीं दोनों विधानसभा सीटों का जातीय ढ़ांचा ही ऐसा है कि उन्हें जीतने में कोई दिक्कत नहीं होती। हालांकि भाजपा के अनेक कार्यकर्ता श्रीमती भदेल के व्यवहार से दुखी हैं, मगर वे उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते, चूंकि सिंधी व माली वोट बैंक के अतिरिक्त निजी प्रयासों से अनुसूचित जाति के वोटों के दम पर वे हर बार जीत जाती हैं। इसी प्रकार सिंधियों के एक मुश्त वोटों के साथ भाजपा मानसिकता के बनिये हर बार देवनानी की नैया पार लगा देते हैं। बेशक संगठन का अपना ढ़ांचा है, मगर अधिसंख्य नेता व कार्यकर्ता देवनानी व अनिता के शिकंजे में हैं। लंबे समय तक अजमेर की भाजपा बाकायदा दो धड़ों में विभाजित रही है। प्रदेश हाईकमान भी उनके झगड़े को खत्म नहीं कर पाया। सच तो ये है कि प्रदेश स्तर पर जारी गुटबाजी से ही उनको संबल मिलता है। जहां संघ देवनानी पर वरदहस्त रखे हुए है, वहीं अनिता भदेल पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की विशेष कृपा से देवनानी के टक्कर में मंत्री बन बैठीं। पिछले विधानसभा चुनाव में जब नए चेहरे लाने की चर्चा आई तो अनिता पूरी तरह से आश्वस्त थीं कि अगर देवनानी का टिकट नहीं कटा तो उनका भी नहीं कटेगा। और कटता भी क्यों, आखिर दोनों लगातार तीन बार जीत चुके थे।
ताजा जानकारी अनुसार एडीए का चेयरमेन रह चुकने के बाद शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा कुछ मजबूत हुए हैं, मगर वे दोनों के वर्चस्व को खत्म नहीं कर पाए हैं। बताया जाता है कि तीसरी लॉबी के विकसित होने की आशंका के बीच देवनानी व भदेल ने अंडर द टेबल हाथ मिला लिया है। जिन के झगड़े पब्लिक डोमेन में आम थे, जिनके बीच सदा छत्तीस का आंकड़ा था, उनके बीच तरेसठ का आंकड़ा बनता दिखाई दे रहा है। स्वाभाविक रूप से उन कार्यकर्ताओं को भारी दिक्कत हो रही है, जो इनके झगड़े के कारण आइडेंटिफाई हो गए थे।
इस बीच कानाफूसी ये है कि हेड़ा प्रदेश हाईकमान के कान भरने में कामयाब हो गए हैं कि इन दोनों की वजह से संगठन का सत्यानाश हुआ है, लिहाजा दोनों को संगठन चुनाव में दखन न देने दिया जाए। हालांकि उनके पास इस बात का जवाब नहीं होगा कि यदि यह सच है तो फिर दोनों चौथी बार कैसे जीत गए?
यदि प्रदेश भाजपा की यह रणनीति है कि पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा से मुक्ति पा ली जाए, तो कदाचित वह थोड़ा बहुत कामयाब हो जाए, मगर अजमेर में यह नीति कामयाब होती नहीं दिखाई देती। यदि संगठन में देवनानी व भदेल के कुछ विरोधी काबिज हो भी गए तो भी अधिसंख्य वे ही संगठन में स्थान पा जाएंगे, जो इन दोनों से निजी तौर पर जुड़े हुए हैं।
रहा सवाल कभी अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह रहे औंकार सिंह लखावत की तो वे इन दिनों इतिहास लेखन में व्यस्त बताए जाते हैं। स्थानीय स्तर पर भले ही उनकी जाजम सिमट चुकी हो, मगर उनका कद प्रदेश स्तर पर इतना बड़ा हो गया है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। देवनानी के तो वे शुरू से धुर विरोधी थे, मगर बताते हैं कि अब उनके अनिता से भी पहले जैसे संबंध नहीं रहे।
कुल जमा बात ये है कि इस बार संगठन के चुनावों पर आगामी नगर निगम चुनाव की छाया रहेगी। सारा तानाबाना उसी के आधार पर बुना जाएगा। चुनाव लडऩे के इच्छुक घूम फिर कर देवनानी व अनिता से ही अपने तार जोड़ेंगे। हां, इतना जरूर है कि इस बार हेड़ा के इर्दगिर्द जमा हुई लॉबी भी बंदरबांट में अपना हिस्सा ले पड़ेगी। वैसे भी इस बार अस्सी वार्डों के लिए प्रत्याशी तलाशे जाएंगे, इस कारण अधिसंख्य दावेदार स्थान पा ही जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000