शनिवार, 10 मार्च 2012

एएसआई तक पिटा, लाइलाज है मेडिकोज की दादागिरी की समस्या?


अजमेर। मेडिकल कॉलेज के कुछ छात्रों की दादागिरी की समस्या लाइलाज सी हो गई प्रतीत होती है। धुलंडी के मौके पर शराब के नशे में धुत्त मेडिकल छात्रों ने जब जेएलएन अस्पताल की कैंटीन में जमकर तोडफोड़ कर कैंटीन संचालक व मौके पर पहुंचे केसरबाग चौकी के एएसआई शंकर सिंह सहित दो अन्य पुलिसकर्मियों के साथ-साथ राहगीरों के साथ मारपीट की तो एक बार फिर मेडिकोज की दादागिरी का मुद्दा गरमा गया है। हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं कि अधिकतर छात्र अधिसंख्य छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर अपना कैरियर बनाने व पढ़ाई में लाखों रुपए लगने के कारण पढ़ाई में मग्न रहते हैं। चंद उत्पाती किस्म के छात्र गड़बड़ी करते हैं। उन्हीं की वजह से सारे मेडिकोज बदनाम होते हैं। इस प्रकार की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं, उसके बाद भी इनकी पुनरावृत्ति होती रहती है, तो आम लोगों में यही संदेश जाता है कि प्रशासन इस समस्या का परमानेंट इलाज करना ही नहीं चाहता। मेडिकोज की दादागिरी की पृष्ठभूमि पर नजर डाले तो दरअसल सच्चाई ये है कि मेडिकल कॉलेज के छात्र एक तो युवा हैं और दूसरा संगठित हैं, इस कारण उनमें कुछ ज्यादा ही जोश रहता है। तीसरी सबसे बड़ी बात ये है कि अगर मेडिकोज बिगड़ जाएं तो पास ही स्थित जेएलएन हॉस्पिटल की व्यवस्था भी चौपट हो जाती है। यही वजह है कि जेएलएल मेडिकल कॉलेज के आसपास के दुकानदार उनसे किसी प्रकार का पंगा मोल नहीं लेते। कुछ दुकानदार इस कारण दबे रहते हैं क्योंकि मेडिकोज उनके ग्राहक हैं और वे उन्हीं से कमाते हैं, इस कारण व्यवहार खराब करने की बजाय समझौतावादी रुख अपनाते हैं। वैसे भी पंगा होने के बाद दर्ज मुकदमों से मेडिकोज का भविष्य खराब न हो, इसके मद्देनजर कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन व पुलिस और पीडि़त पक्ष बाद में विवाद खत्म करने पर जोर देते हैं, इस कारण मेडिकोज में डर कुछ कम ही रहता है और जोश-जोश में एकबारगी तो हंगामा कर ही देते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है? इसी सिलसिले में आपको पिछले साल हुई घटना की ओर ले चलते हैं। आपको याद होगा कि पिछले साल जनवरी में भी ऐसे ही टकराव की नौबत आई थी। तब छात्रों की दादागिरी से परेशान व्यापारियों ने पहली बार हिम्मत जुटा कर विरोध प्रदर्शन किया था। तब चूंकि एक प्रतिष्ठित व्यवसायी के साथ पंगा हुआ था और मेडिकोज ने उसकी दुकान पर तोडफ़ोड़ कर दी, इस कारण दुकानदार लामबंद हो गए। मेडिकोज ने बजरंगगढ़ चौराहे पर रास्ता जाम किया तो व्यापारियों ने भी मिल कर विरोध में सावित्री कॉलेज तिराहे पर जाम कर दिया। तब इस बात की तारीफ हुई थी कि दुकानदारों ने एकजुट हो कर अच्छा किया और उम्मीद बनी कि भविष्य में मेडिकोज किसी दुकानदार से एकाएक विवाद करने बचेंगे। हुआ भी यही। उसके बाद कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। ताजा घटना भी मेडिकोज पर कुछ भारी इस कारण पड़ क्योंकि कैंटीन संचालक आबिद कांग्रेसी नेता आरिफ हुसैन का भाई है। इस कारण यासिर चिश्ती व सुकेश कांकरिया सहित कई कांग्रेसी मौके पर पहुंच गए और हाथों हाथ कार्रवाई की मांग पर अड़ गए। पीडि़त आबिद की रिपोर्ट पर डॉ. जगन सहित तीन अन्य के खिलाफ मारपीट का मुकदमा दर्ज किया गया और रोहिताश्व, राजेंद्र वर्मा, राजेंद्र कुमार और लक्ष्मीनारायण को शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। उधर मारपीट के शिकार एएसआई शंकरसिंह की रिपोर्ट पर रेजीडेंट चिकित्सक डॉ. आलोक गोयल, नसीराबाद स्थित सराना में मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रदीप वर्मा और यूजी छात्र डॉ. अशोक कुमार को राजकार्य में बाधा और पुलिसकर्मी से मारपीट के आरोप में गिरफ्तार किया और कोर्ट के आदेश से तीनों चिकित्सकों को न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया। इस मामले में विधायक वासुदेव देवनानी, भाजपा युवा मोर्चा के शहर अध्यक्ष देवेंद्रसिंह शेखावत, भाजपा पार्षद नीरज जैन आदि ने भी कार्यवाही का दबाव बनाया। सभी का कहना है कि कठोर कार्रवाई होने से ही ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी। सच्चाई भी यही है। अगर चंद उत्पाती छात्रों के साथ प्रशासन, पुलिस, राजनीतिज्ञ व दुकानदार सख्त हो जाएं तो कुछ हद तक इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।