
वैसे, एक बात है, अकेला केसरगंज ही इस प्रकार का मामला नहीं है। शहर के अन्य कई स्थान भी पहले किसी और नाम से थे, जो कि बाद में बदल गए। इनकी बानगी देखिए- जिसे हम आज रामगंज कहते हैं, वह कभी रसूल गंज हुआ करता था। इसका प्रमाण ये है कि आज भी पुलिस चौकी वाली गली में उसकी नामपट्टिका लगी हुई है।
इसी प्रकार आज जिस पर्यटन स्थल को हम ढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं, वह कभी संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। दरगाह के सिर्फ एक किलोमीटर फासले पर स्थित यह अढ़ाई दिन का झौंपड़ा मूलत: सरस्वती कंठाभरण नामक विद्यालय था। अजमेर के पूर्ववर्ती राजा अरणोराज के उत्तराधिकारी विग्रहराज तृतीय ने इसका निर्माण करवाया था। सन् 1192 में मोहम्मद गौरी ने इसे गिराकर कर मात्र ढ़ाई दिन में बनवा दिया। बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे मस्जिद का रूप दे दिया। मराठा काल में यहां पंजाबशाह बाबा का ढ़ाई दिन का उर्स भी लगता था। कदाचित इन दोनों कारणो से इसे अढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहा जाता है। यहां बनी दीर्घाओं में खंडित मूर्तियां और मंदिर के अवशेष रखे हैं।
इसी प्रकार अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित इस अकबर के किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। बाद में इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाने लगा।
इसी प्रकार अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित इस अकबर के किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। बाद में इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाने लगा।
यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल भारतीय राजनीति में अहम स्थान रखता है, क्योंकि यहीं पर सम्राट जहांगीर ने दस जनवरी 1916 ईस्वी को इंग्लेंड के राजा जॉर्ज पंचम के दूत सर टामस रो को ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की अनुमति दी थी। टामस रो यहां कई दिन जहांगीर के साथ रहा। ब्रिटिश काल में 1818 से 1863 तक इसका उपयोग शस्त्रागार के रूप में हुआ, इसी कारण इसका नाम मैगजीन पड़ गया। वर्तमान में यह संग्रहालय है। पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर का सहज ज्ञान जनसाधारण को कराने और संपदा की सुरक्षा करने की दृष्टि से भारतीय पुरातत्व के महानिदेशक मार्शल ने 1902 में लार्ड कर्जन के अजमेर आगमन के समय एक ऐसे संग्रहालय की स्थापना का सुझाव रखा था, जहां जनसाधारण को अपने अतीत की झांकी मिल सके। अजमेर के गौरवमय अतीत को ध्यान में रखते हुये लार्ड कर्जन ने संग्रहालय की स्थापना करके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट कालविन के अनुरोध पर कई राज्यों के राजाओं ने बहुमूल्य कलाकृतियां उपलब्ध करा संग्रहालय की स्थापना में अपना अपूर्व योग दिया। संग्रहालय की स्थापना 19 अक्टूबर, 1908 को एक शानदार समारोह के साथ हुई। संग्रहालय का उद्घाटन ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट कालविन ने किया और उस समारोह में विभिन्न राज्यों के राजाओं के अतिरिक्त अनेक विदेशी भी सम्मिलित हुये। सन् 1892 में इसके दक्षिणी पूर्वी बुर्ज में नगरपालिका का दफ्तर भी खोला गया था।
कुछ और उदाहरण लीजिए- यह सब जानते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहा करते थे, उसे क्रिश्चियनगंज कहा जाता है, मगर आज कई लोग उसे कृष्णगंज के नाम से पुकारना पसंद करते हैं और कुछ संस्थाओं के नाम इसी नाम पर हैं। इसी प्रकार अंदरकोट को आज कई लोग इंद्रकोट कहना पसंद करते हैं, जब कि इसका अर्थ था परकोटे के अंदर का हिस्सा। इसी प्रकार आप ख्याल होगा कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को आज भी कई पुराने लोग विक्टोरिया अस्पताल के नाम से जानते हैं, जिसका नाम आजादी के बाद नेहरू जी के नाम से कर दिया गया।
इसी प्रकार इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की रजत जयंती के मौके पर रेलवे स्टेशन के सामने विक्टोरिया क्लॉक टावर निर्माण करवाया गया, जिसे आज हम केवल क्लॉक टावर या घंटाघर के नाम से जानते हैं और उसी के नाम पर क्लॉक टावर पुलिस थाने का नाम है।
वस्तुत: कालचक्र में जब भी जो प्रभावशाली हुआ, उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नाम बदल दिए। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें उद्वेलित होने जैसी कोई बात नहीं है।
जनाब ऐतेजाद अहमद खान ने बेशक एक महत्वपूर्ण जानकारी सार्वजनिक की है, मगर उसकी प्रस्तुति कुछ असहज करने वाली है। वो यह कि उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि कृपया बजरंग दल या कोई और दल इस पर उत्तेजित न हो, ये एक सच्चाई है। इस पंक्ति की जरूरत नहीं थी। उन्हें अपनी जानकारी को मात्र जानकारी के लिए निरपेक्ष भाव से प्रस्तुत करना चाहिए था।
-तेजवानी गिरधर
कुछ और उदाहरण लीजिए- यह सब जानते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहा करते थे, उसे क्रिश्चियनगंज कहा जाता है, मगर आज कई लोग उसे कृष्णगंज के नाम से पुकारना पसंद करते हैं और कुछ संस्थाओं के नाम इसी नाम पर हैं। इसी प्रकार अंदरकोट को आज कई लोग इंद्रकोट कहना पसंद करते हैं, जब कि इसका अर्थ था परकोटे के अंदर का हिस्सा। इसी प्रकार आप ख्याल होगा कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को आज भी कई पुराने लोग विक्टोरिया अस्पताल के नाम से जानते हैं, जिसका नाम आजादी के बाद नेहरू जी के नाम से कर दिया गया।

वस्तुत: कालचक्र में जब भी जो प्रभावशाली हुआ, उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नाम बदल दिए। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें उद्वेलित होने जैसी कोई बात नहीं है।
जनाब ऐतेजाद अहमद खान ने बेशक एक महत्वपूर्ण जानकारी सार्वजनिक की है, मगर उसकी प्रस्तुति कुछ असहज करने वाली है। वो यह कि उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि कृपया बजरंग दल या कोई और दल इस पर उत्तेजित न हो, ये एक सच्चाई है। इस पंक्ति की जरूरत नहीं थी। उन्हें अपनी जानकारी को मात्र जानकारी के लिए निरपेक्ष भाव से प्रस्तुत करना चाहिए था।
-तेजवानी गिरधर