शनिवार, 12 जनवरी 2013

आरपीएससी का वह आला अधिकारी कौन है?

अजमेर के एसपी राजेश मीणा की गिरफ्तारी को तकरीबन दस दिन हो गए हैं, इस दौरान एक दर्जन थानेदार लाइन हाहिर हो गए व एसपी की विशेष टीम भंग कर दी गई, मगर आज तक ये पता नहीं लग पाया कि एसपी का दलाल रामदेव ठठेरा मंथली का थैला लेकर आखिर राजस्थान लोक सेवा आयोग के किस उच्चाधिकारी के घर पर कुछ वक्त रुका था? उसने वहां क्या किया? क्या वहां आयोग से जुड़े किसी मसले की दलाली की गई? या फिर वह यूं ही मिलने चला गया, क्योंकि वह उनका पूर्व परिचित था? जाहिर सी बात है कि हर किसी को यह जानने की जिज्ञासा है कि आखिर वह अफसर कौन है और दलाल ने उसके घर पर जा कर क्या किया? इस बारे में अब तक एसीबी ने मुंह नहीं खोला है। मीडिया ने खबरों के फॉलो अप में उसका जिक्र तो कई बार किया है, मगर अपनी ओर से नाम उजागर करने से बचा ही है, क्योंकि बिना सबूत के उच्चाधिकारी का नाम घसीटना दिक्कत कर सकता है। यहां तक कि मीडिया ने इशारा तक नहीं किया है, जबकि ऐसे मामलों में अमूमन वह इशारा तो कर ही देता है, भले ही नाम उजागर न करे। स्वाभाविक सी बात है कि विपक्ष को यह मुद्दा उछालने का अच्छा मौका मिला हुआ है, सो एबीवीपी ने आयोग दफ्त के सामने प्रदर्शन किया, टायर जलाया और नारेबाजी की। मगर सवाल आज भी वहीं का वहीं खड़ा है।
समझा जाता कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अच्छी तरह से पता है कि आखिर वह अधिकारी कौन है? ऐसा हो ही नहीं सकता कि रिपोर्टिंग और फॉलो अप के दौरान जिन्होंने पुलिस व एसीबी में अपने संपर्क सूत्रों के जरिए सूक्ष्म से सूक्ष्म पोस्टमार्टम किया हो, उन्हें ये पता न लगा हो कि वह अधिकारी कौन है? मगर मजबूरी ये है कि अगर एसीबी ने अपनी कार्यवाही में उसका कहीं जिक्र नहीं किया अथवा कार्यवाही में उसे शमिल नहीं किया तो नाम उजागर करना कानूनी पेचीदगी में उलझा सकता है। वैसे भी यह पत्रकारिता के एथिक्स के खिलाफ है कि बिना किसी जिम्मेदारी के किसी जिम्मेदार अधिकारी का नाम किसी कांड में घसीटा जाए। वैसे जानकारी ये है सरकार एकाएक उस उच्चाधिकारी को फंसाने के मूड में नहीं है। चाहे उसके खिलाफ कुछ सबत हों या नहीं। इसकी वजह ये है उसकी नियुक्ति ही आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिगड़े जातीय समीकरण के तहत की थी। इसके अतिरिक्त यदि उस पर हाथ डाला जाता है तो आयोग की कार्यप्रणाली को ले कर भी बवाल खड़ा हो जाएगा। ऐसे में संभावना कम ही है कि उस अधिकारी का नाम सामने आ पाए।
-तेजवानी गिरधर