शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

भाजपा ने भी किया अजमेर बंद में सहयोग

शहर जिला कांग्रेस की ओर से आयोजित बंद की सफलता के लिए कांग्रेस को भाजपा का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए। असल में उसके सहयोग से ही बंद ऐतिहासिक रूप से सफल रहा। अगर शहर जिला भाजपा बंद का विरोध नहीं करती तो कदाचित बंद इतना सफल नहीं होता। है न कबीर की उलटबांसी की तरह।
असल में बंद को लेकर कांग्रेस के नेताओं में तनिक आशंका थी। लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस फिर से जीवित हो रही है। यह पहला मौका था, जो बंद जैसा बड़ा टास्क में लिया गया। वो भी तब जब शहर अध्यक्ष विजय जैन महेन्द्र सिंह रलावता वाली कार्यकारिणी से काम चला रहे हैं। यह इसलिए भी कठिन था चूंकि जनहित का होते हुए भी आम आदमी के ठीक से पल्ले नहीं पड़ रहा था। भाजपा ने भी मुद्दे को नकारने का अभियान चला रखा था कि यह फालतू है। ऐसे में बंद पूरी तरह से सफल हो पाएगा या नहीं, थोड़ी सी धुकधुकी थी। इस कारण जैन ने सभी नेताओं का सहयोग लेकर एडी चोटी का जोर लगा दिया था। उधर भाजपा अपने गढ़ में अति उत्साही थी। मोदी लहर पर सवार हो कर पिछली बार कांग्रेस को बुरी तरह से परास्त कर चुकी भाजपा ने कांग्रेस को बेहद कमजोर आंक कर हड़काने का मानस बनाया। उसे लगा कि अगर ये ऐलान किया जाएगा कि उसके कार्यकर्ता बंद के विरोध में सड़क पर उतरेंगे तो कांगेस कार्यकर्ता घबरा जाएंगे। आम दुकानदार भी सोचेगा कि भाजपा उनके साथ है, लिहाजा दुकान खोल लेगा। मगर हुआ इसका उलटा। एक तो कांग्रेस कार्यकर्ता चुनौती को स्वीकार कर जोश में आ गया और दूसरा दुकानदार यह सोच कर कि अब टकराव होना निश्चित है, सो उसने दुबकने में ही भलाई समझी। पुलिस का अतिरिक्त जाप्ता तैनात होने से दहशत और ज्यादा हो गई। और नतीजतन बंद अपेक्षा से बहुत अधिक और ऐतिहासिक रूप से सफल हो गया। भला ऐसे में कांग्रेस का फर्ज बनता है कि नहीं कि वह भाजपा को धन्यवाद ज्ञापित करे।
वस्तुत: यह भाजपा की नादानी ही कही जाएगी कि उसने बंद का विरोध सड़क पर उतर कर करने की ठानी। इतनी भी अक्ल नहीं लगाई कि ऐसी घोषणा से टकराव की आशंका उत्पन्न होगी और दुकानदार और अधिक भयभीत हो जाएंगे। ये कोई चुनाव तो हैं नहीं कि आप अजमेर को अपना गढ़ मान कर जीत की उम्मीद लगाएं। सोचने वाली बात है कि बंद जैसे आयोजनों में तोडफ़ोड़ की आशंका में अधिसंख्य व्यापारी वैसे ही बंद करने में ही भलाई समझते हैं। चाहे बंद कोई भी करवाए। भले ही कोई व्यापारी भाजपा समर्थक हो, और भाजपा को चंदा देता रहा हो, मगर बंद जैसे मामले में वह यह उम्मीद करके बेखौफ दुकान नहीं खोल सकता कि भाजपा वाले उसे बचा लेंगे। कोई कितना भी मोदी समर्थक हो, अपनी दुकान में नुकसान की कीमत पर मोदी मोदी नहीं कर सकता।
बहरहाल, इस ऐतिहासिक बंद ने अजमेर की राजनीति में तनिक बदलाव कर दिया है। एक तो केन्द्र व राज्य में मोदी लहर के सहारे सत्ता पर काबिज भाजपा का दंभ टूट गया है। वो भी आ बैल मुझे मार की तर्ज पर। न वह विरोध का राग छेड़ती और न ही पासा उलटा पड़ता। आज हालत ये है कि अखबार इन सुर्खियों से भरे पड़े हैं कि भाजपा बंद को रुकवाने में नाकामयाब हो गई। कांग्रेस बंद को सफल करवा पाई, उसकी तुलना में कहीं अधिक यह हाईलाइट हो रहा है कि भाजपा विफल हो गई। अफसोसनाक बात ये कि भाजपा यह दावा कर रही है कि बंद विफल हो गया, जबकि जनता ने खुद देखा कि बंद कितना सफल रहा, उसे भाजपा की राय जानने की जरूरत क्या है। अब भले ही आप से कह कर बचने की कोशिश करें कि डंडे के जोर पर बंद करवाया गया, मगर यह खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे वाली कहावत ही चरितार्थ करेगी। कुल मिला कर भाजपा का यह समझ में आ गया होगा कि मोदी लहर धीमी पड़ चुकी है और उसके जनाधार में कमी आई है।
उधर स्वाभाविक रूप से कांग्रेस बल्ले बल्ले कर रही है। उसकी सोच से कहीं अधिक सफलता जो हाथ लग गई। इसमें कोई दोराय नहीं कि इस टास्क को पूरा करने में सभी कांग्रेसी एकजुट हो गए थे, मगर जैन के खाते में ऐतिहासिक बंद करवाने का श्रेय दर्ज हो गया है।
अब भाजपाई आत्ममंथन कर रहे होंगे कि उड़ता तीर अपनी ओर बुलाने का सुझाव किसने तो दिया और उसका समर्थन किस किस ने किया, जो ये दिन देखना पड़ा। चुपचाप बैठे रहते, कौन सी देग लुट रही थी। बैठे ठाले भद्द पिटवा ली।
-तेजवानी गिरधर
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भाजपा की वजह से ही लखावत के घर के बाहर तैनात हुई पुलिस

राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत के सुपुत्र एवं जाने माने वकील उमरदान लखावत ने फेसबुक अकाउंट पर एक विचारणीय बिंदु पर चर्चा की है। अपनी बात लिखने से पहले उनकी बात हूबहू देखिए:-
आदरणीय पुलिस जी, अजमेर की राजनैतिक संस्कृति ऐसी नहीं रही है कि विरोधी दल शहर बंद कराए तो दूसरे दल के नेताओं के घर सुरक्षा के लिए पुलिस लगानी पड़े। आज सुबह जब उठे तो घर के बाहर चार पुलिस के सिपाही जी खड़े थे पूछा क्या हुआ तो बोले आज अजमेर बंद है, लखावत जी के घर पर हमें भेजा है पूछा क्यों तो बोले सुरक्षा के लिए, दूसरे नेताओं के भी ऐसा ही किया है। मैंने कहा भाई अजमेर शहर की संस्कृति में ऐसा नहीं होता है, आप जाओ। एक एसआई से बात कराई तो वो बोले ठीक है सर वापस बुला लेता हूं। अभी कोर्ट से वापसी पर वे पुलिस जी गली के बाहर अजमेर की राजनैतिक संस्कृति की सुरक्षा में खड़े है अब पुलिस जी कौन समझाए?
अब अपनी बात। असल में उमरदान लखावत ने बिलकुल सही लिखा है। वाकई अजमेर की राजनीतिक संस्कृति ऐसी नहीं है। यहां नेता भले ही अपनी अपनी पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं, मगर आपस में उनके संबंध सौहार्द्रपूर्ण हैं। किसी के मन में व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं। ये अच्छी बात है। बंद करवाने निकले नेता व कार्यकर्ता भी लखावत जी का सम्मान करते हैं। मगर पुलिस की तो अपनी ड्यूटी है। लखावत जी आज राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता हैं। खुदानखास्ता बंद के दौरान कोई असामाजिक तत्त्व भीड़ का फायदा उठा कर गलत हरकत कर देता तो पुलिस के लेने के देने पड़ जाते। ऐसे में उनकी तो ड्यूटी थी कि वे लखावत जी के घर के बाहर सुरक्षा व्यवस्था चौकस रखते।
सामान्यत: भी यदि सुरक्षा के लिए व्यवस्था की जाती तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होती। मगर ऐसा लगता है कि पुलिस को इस कारण ज्यादा ध्यान रखना पड़ा चूंकि भाजपा की ओर से टकराव के संकेत दिए गए थे। जबरन बंद करने का विरोध करने के लिए खुद भी मैदान में डटने का ऐलान करने से स्वाभाविक रूप से पुलिस भी चौकन्नी हो गई। उसे मजबूरन संवेदनशील स्थानों पर पुलिस कर्मी लगाने पड़े। छिटपुट घटनाएं हुई भीं, जिनको पुलिस ने ही निपटाया। काश भाजपा ने टकराव की रणनीति नहीं अपनाई होती, तो न तो लखावत जी के घर के बाहर पुलिस तैनात होती और न ही उमरदान लखावत को इस प्रकार की बात कहनी पड़ती। यह तो भाजपा को ही समझना होगा कि अजमेर की राजनीतिक संस्कृति को कायम रखना चाहिए अथवा नहीं।
-तेजवानी गिरधर
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