शनिवार, 19 जुलाई 2014

स्थाई न्यूरो सर्जन की व्यवस्था आठों भाजपा विधायकों के लिए चुनौती

कथित नाकामियों की वजह से सत्ताच्युत हुई कांग्रेस के पास तो कोई समाधान नहीं था, सुराज और अच्छे दिन के वादे करके सत्ता में आई भाजपा भी अजमेर में न्यूरो सर्जरी सुविधा के मामले में हाथ खड़े किए हुए है। बीमारी की वजह से लंबे समय से छुट्टी पर चल रहे जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. बी. एस. दत्ता की गैर मौजूदगी में आखिर अस्पताल प्रशासन को न्यूरो सर्जरी वार्ड को ताले ही लगाने पड़ गए। भाजपा विदेश से आयातित हाईटैक चुनाव प्रचार के दम पर सत्ता पर तो काबिज हो गई, मगर सुपर स्पेशलिस्ट सेवाओं के मामले में अजमेर संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल बीमार पड़ा है, इससे शर्मनाक बात कोई हो नहीं सकती।
हालत ये है कि डॉ. दत्ता की अनुपस्थिति में गंभीर मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है और यहां आने वाले अधिकतर रोगियों को जयपुर रैफर किया जा रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि डॉ. दत्ता ने नौकरी को कभी नौकरी की तरह नहीं करके सदैव उसे सेवा के ही रूप में लिया, जिसकी वजह से बीमार होते हुए भी मरीजों के ऑपरेशन किए। मगर अब जब कि वे छुट्टी पर चले गए हैं तो नए मरीजों को भर्ती करना संभव नहीं रहा। ये तो चलो डॉ. दत्ता अब बीमार चल रहे हैं, मगर जिन दिनों तंदरुस्त थे, तब उनकी बदमिजाजी से प्रशासन से टकराव होता था। बेशक वे मरीजों के लिए भगवान की तरह ही हैं, मगर उनके काम को जो तरीका था, उसकी वजह से एक बार तत्कालीन तेजतर्रार जिला कलेक्टर राजेश यादव तक से भिड़ंत हो गई। दो इलैक्ट्रॉनिक मीडिया रिपोर्टस के मामले में सीधा तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दखल था, मगर यहां से रुखसत करने की चेतावनी दे कर भी जिला कलेक्टर डॉ. दत्ता का बाल भी बांका नहीं कर पाए। स्पष्ट है कि सरकार के पास अजमेर न्यूरो सर्जन के रूप में डॉ. दत्ता का विकल्प तब भी नहीं था। माना कि सरकार की अपनी मजबूरियां हैं कि अच्छे न्यूरो सर्जन उसके पास नहीं हैं, मगर इसका अर्थ ये तो नहीं कि न्यूरो सर्जरी की सेवाओं के लिए भारी राशि से खोला न्यूरो सर्जरी विभाग बंद होने के कगार पर आ जाना चाहिए। और मरीज दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाने चाहिए। यदि सरकार को वाकई मरीजों की चिंता है तो उसे चाहे अधिक पैकेज पर ही सही, न्यूरो सर्जन की व्यवस्था करनी ही चाहिए। सबसे बड़े संभागीय अस्पताल में न्यूरो सर्जन का अभाव जिले के सभी आठों भाजपा विधायकों सहित संभाग के सभी विधायकों के लिए एक चुनौती है। जनता की सेवा के नाम पर जीत कर आए ये विधायक देखते हैं कि जनसेवा के लिए सरकार पर दबाव बना कर समस्या का समाधान करवा पाते हैं या नहीं। हालांकि मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. अशोक चौधरी ने अर्जेंट टेम्प्रेरी बेस पर एक सहायक प्रोफेसर को नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं और उम्मीद है कि जल्द नियुक्ति भी हो जाए, मगर विधायकों को चाहिए वे सरकार पर दबाव बना कर स्थाई नियुक्ति के लिए प्रयास करें।

गोरान निर्दोष थे तो एफआईआर में जिक्र ही काहे को किया

इसे एसीबी की बेवकूफी या अतिरिक्त चतुराई ही कहा जाएगा कि जब पुलिस थानों से मंथली लेने के मामले में गिरफ्तार अजमेर के पूर्व एसपी राजेश मीणा के प्रकरण से राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष हबीब खान गोरान का कोई लेना-देना ही नहीं था तो उनका जिक्र एफआईआर में किया ही क्यों? यही वजह है कि आज जब कि आयोग विभिन्न कारणों से विवादों में आ गया है और गौरान पर हमले हो रहे हैं तो इस प्रकरण को विधानसभा में भी उठाया जा रहा है। 
असल में एफआईआर में ठठेरा के गोरान के घर भी जाने के जिक्र की वजह से ही निलंबित एसपी मीणा की ओर से पेश जमानत याचिका में यह सवाल उठाने उठाने का मौका मिल गया कि उनको भी नामजद क्यों नहीं किया गया। एसीबी की कार्यवाही कितनी गोपनीयता कितनी लचर थी, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि जैसे ही मीण को गिरफ्तार किया गया तो यह बात भी उजागर हुई कि दलाल ठठेरा आयोग के किसी बड़े अधिकारी के घर भी गया था, तभी उसका नाम उजागर करने के लिए आयोग के समक्ष प्रदर्शन किया गया।
बेशक, इस पूरे प्रकरण में सचमुच क्या हुआ, इसके लिए एसीबी पर ही यकीन करना होगा क्योंकि जांच एजेंसी वही है, मगर एसीबी के कार्यवाहक महानिदेशक अजीत सिंह का मात्र इतनी सफाई देना ही पर्याप्त नहीं कि गोरान की इस मामले में संलिप्तता नहीं पाई गई और उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। कैसी विडंबना है कि पहले खुद ही गोरान का नाम एफआईआर में शामिल किया और फिर खुद की खंडन कर दिया कि उनके बारे में कोई सबूत नहीं मिला है। वो भी तब जब निलंबित एसपी मीणा ने अपनी जमानत अर्जी में सवाल उठाया था। वरना यह पता ही नहीं लगता कि एसीबी ने कहां चूक की है।
जब अजीत सिंह ने यह कहा था कि गोरान बिलकुल निर्दोष हैं तो उन्हें यह भी बताना होगा कि आखिर किस तरह? आयोग अध्यक्ष का पद संवैधानिक है और आयोग की बड़ी गरिमा है, उसके बारे में यदि कोई संशय पैदा होता है तो उस पर सफाई होना बेहद जरूरी है। सिंह को यह बताना ही चाहिए कि ठठेरा ने गोरान के घर पर जाने का क्या कारण बताया है? फरार आरपीएस लोकेश सोनवाल के घर से निकलते समय जो बैग लेकर वह गोरान के घर गया और बाहर निकला तो बैग उसके हाथ में नहीं था, उस बैग में क्या था? सिंह को ये भी बताना चाहिए कि क्या उन्होंने इस बारे में गोरान से भी कोई पूछताछ की थी? यदि पूछताछ की थी तो उन्होंने ठठेरा के आने की क्या वजह बताई? अगर वे ऐसा नहीं करते तो आयोग अध्यक्ष गोरान व्यर्थ ही संदेह से देखे जाते रहेंगे।
-तेजवानी गिरधर