सोमवार, 12 अगस्त 2013

पैनल धरे रह जाएंगे, टिकट तो ऊपर ही फायनल होंगे

इन दिनों में विधानसभा चुनाव का टिकट हासिल करने के लिए कांग्रेस के दावेदार येन-केन-प्रकारेन अपने-अपने नाम ब्लॉक अध्यक्षों की ओर से बनाए जा रहे पांच-पांच दावेदारों के पैनल में जुड़वाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। वजह ये है कि यह पहले से प्रचारित किया गया है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर हाईकमान की बजाय ब्लॉक स्तर पर तैयार किए गए पैनल को ही तवज्जो दी जाएगी। वहीं जानकार लोगों का कहना है कि ये पैनल ऐसे के ऐसे धरे रह जाएंगे और टिकटों की कवायद गोपनीय रिपोर्टों के आधार पर ही की जा रही है। उसमें बेदाग छवि व सर्वमान्यता व जिताऊ पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित है।
बताया जाता है कि ब्लॉग स्तर पर की जा रही कवायद मूलत: निचले स्तर पर पार्टी को सक्रिय करने के मकसद से की जा रही है, जिसका टिकट वितरण से कोई लेना-देना नहीं है। हाईकमान जानता है कि पार्टी के निचले स्तर के नेताओं का कल्चर क्या है और वे पैनल बनाने में किन-किन बातों से प्रभावित हो सकते हैं। यही वजह है कि दावेदारों से सीधे प्रदेश कांग्रेस कमेटी तक भी दावा पेश करने की व्यवस्था की गई है, ताकि कहीं गंभीर दावेदार वंचित न रह जाएं।
जहां तक अजमेर का सवाल है, यहां के चारों ब्लॉकों के अध्यक्ष स्थानीय बड़े नेताओं के इतने दबाव में हैं कि उन्होंने गुण-दोष का परीक्षण किए बिना ही उनके नाम पैनल में डाल दिए हैं। वे किसी भी बड़े नेता को नाराज नहीं करना चाहते। मीडिया में आ रही खबरों का सही मानें तो अजमेर उत्तर में महेन्द्र सिंह रलावता, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व नरेन शहाणी के नाम पहले तीन स्थानों पर हैं। बाकी के दो स्थान ब्लॉक अध्यक्षों ने अपने-अपने हिसाब से तय किए हैं।  इकलौते सुकेश कांकरिया ऐसे हैं, जो दोनों ब्लॉकों के पैनल में नाम जुड़वाने में कामयाब हो गए हैं। उनके अतिरिक्त एक में सुनिल मोतियानी तो दूसरे में रश्मि हिंगोरानी नाम जुड़वाने में कामयाब हो गए हैं। बात अजमेर दक्षिण की करें तो दोनों ब्लॉकों में ललित भाटी, डॉ. राजकुमार जयपाल व कमल बाकोलिया के नाम कॉमन हैं। विजय नागौरा भी दोनों ब्लॉकों में नाम जुड़वाने में कामयाब रहे हैं। बाकी एक में छीतरमल टेपण ने तो दूसरे में प्रताप यादव ने स्थान पाया है। हालांकि ये पता नहीं है कि जो पैनल मीडिया में आ रहे हैं, वाकई वे ही बनाए गए हैं, क्योंकि ब्लॉक अध्यक्ष अधिकृत तौर पर कुछ कह ही नहीं रहे। शक तो ये भी होता है कि कहीं छोटे दावेदार मीडिया का तो मैनेज नहीं कर रहे। यह संदेह इस कारण होता है कि एक दिन अजमेर उत्तर के लिए विन्नी जयसिंघानी का नाम पैनल में बताया गया तो दूसरे दिन वह गायब हो गया।
जो कुछ भी हो, ये साफ है कि पैनल बनाने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई देती। इसी कारण पैनलों में नाम जुड़वाने वाले दावेदारों ने जयपुर से दिल्ली तक तार जोडऩे की कवायद शुरू कर दी है। उन्हें ऊपर मिल रहे रेस्पांस से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि टिकट फायनल करने में नीचे बनाए गए पैनल साइड में कर दिए जाएंगे। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि यदि ब्लॉक व जिला स्तर पर तैयार पैनल पर ही विचार होना है, तो ऊपर अलग से कवायद काहे को हो रही है। इसका अर्थ ये है कि जिसे टिकट देना होगा, उसे दिया ही जाएगा, चाहे उसका नाम पैनल में हो या नहीं। और जिसे नहीं देना होगा, उसे यह कर टरका दिया जाएगा कि आपका नाम तो नीचे से आया ही नहीं है। इसी कारण समझदार दावेदार न केवल नीचे पूरा ध्यान दे रहे हैं, अपितु ऊपर भी मैनेज कर रहे हैं।
टिकट को लेकर कितनी मारामारी है, इसका अनुमान इसी बात से लगता है कि अजमेर के दो विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस से 129 दावेदार सामने आए हैं। जाहिर तौर पर इनमें ऐसे भी शामिल हैं, जिनका सक्रिय राजनीति से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है।
कुल मिला कर स्थानीय भाग-दौड़ के बाद दावेदारों का मेला जयपुर व उसके बाद दिल्ली में लगेगा। तब तक कई नाम ऊपर आएंगे और कई नीचे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

पार्षद का मिला नहीं, एमएलए का टिकट मांग लिया

चुनावी मौसम में टिकट मांगने की बीमारी इतना जोर पकड़ लेती है, जिसका कोई जवाब नहीं। अपने राज दरबार अगरबत्ती वाले राजकुमार लुधानी को ही लीजिए। उन्होंने पिछले नगर निगम चुनाव में पार्षद का टिकट मांगा था। एडी चोटी का जोर लगा दिया। मगर किसी ने नहीं गांठा। मन मसोस कर बैठ गए। जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आए हैं, उनकी टिकट मांगने की खुजली फिर शुरू हो गई है। उन्होंने अजमेर उत्तर के टिकट के लिए आवेदन किया है। जैसे ही उनका नाम आया तो उसी के साथ उनका एसीबी के लपेटे में आने का प्रकरण भी सामने आ गया। ऐसे में उन्हें कुछ नहीं सूझा तो अपनी बेटी हर्षा को आगे कर दिया। यानि कि टिकट चाहिए ही, किसी भी सूरत में। मानो डाक्टर ने सलाह दी हो। सोचने वाली बात ये है कि जब उन पर कोई आरोप नहीं था, साफ सुथरी छवि थी, तब पार्षद तक का टिकट नहीं मिला तो अब आरोप लगने के बाद क्या कद्दू मिलेगा। मगर भला उन्हें मांगने से कौन रोक सकता है? असल में यह स्थिति आई ही इस कारण है कि नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत के लैंड फॉर लैंड मामले में रिश्वत मांगने के आरोप में मामला दर्ज होने के बाद हर पैसे और बिना पैसे वाले सिंधी को लगता है कि मैदान खाली है, हाथ मार लो।
ज्ञातव्य है कि अजमेर उत्तर की सिंधी बहुल सीट से टिकट मांगने वाले सिंधियों की लिस्ट लंबी है, जिसमें लुधानी व उनकी बेटी हर्षा सहित डॉ. लाल थदानी, नरेश राघानी, हरीश मोतियानी, सुनील मोतियानी, रश्मि हिंगोरानी, दिलीप सामनानी, अशोक मटाई, विनी जयसिंघानी, जोधा टेकचंदानी, चंद्र कुमार, पिंकी वासनानी, शिव कुमार भावनानी आदि के नाम शामिल हैं।

उपेक्षा का शिकार है मध्य पुष्कर

पुष्कर के वरिष्ठ पत्रकार श्री नाथू शर्मा की फेसबुक वाल पर अंकित यह चित्र तीर्थराज पुष्कर स्थित मध्य पुष्कर का है, जिसकी हालत देख की अनुमान लगाया जा सकता है कि यह उपेक्षा का शिकार है।
प्रसंगवश बता दें कि पद्मपुराण के सृष्टि खंड के अनुसार किसी समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडिय़ां जमीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा, मध्य के विष्णु व कनिष्ठ के देवता शिव हैं।
आम तौर पर हम जिसे तीर्थराज पुष्कर सरोवर के नाम से जानते हैं, असल में वह ज्येष्ठ पुष्कर है। इसके अतिरिक्त मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर भी हैं। कनिष्ठ पुष्कर वह है, जिसे कि बूढ़ा पुष्कर के नाम से जाना जाता है, जिसका जीर्णोद्धार वर्ष दो हजार आठ में राज्य की वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण न्यास के अध्यक्ष श्री औंकारसिंह लखावत ने करवाया। कांग्रेस सरकार ने उसे जैसा है, वैसी ही हालत में छोड़ दिया और उसके विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया। यानि की वह अब सरकारी उपेक्षा का शिकार है। ठीक उसी प्रकार मध्य पुष्कर की देखरेख पर भी सरकार का कोई ध्यान नहीं है।