बुधवार, 6 जुलाई 2011

आखिर सचिन पायलट ने कर लिया शहर कांग्रेस पर कब्जा



अध्यक्ष पद पर महेन्द्र सिंह रलावता के काबिज होने के साथ ही निवर्तमान शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल व पूर्व उप मंत्री ललित भाटी की खींचतान से एक लंबे अरसे से पीडि़त शहर कांग्रेस दो के कब्जे से मुक्त हो गई है, वहीं सांसद बनने के बाद लगातार अपना कब्जा बनाने को आतुर स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट को एक बड़ी सफलता हासिल हो गई है।
यह सर्वविदित ही है कि गुटबाजी के कारण ही कांग्रेस को बहुत पिछले बीस साल में काफी नुकसान उठाना पड़ा है। अजमेर पूर्व विधानसभा सीट, जो कि अब अजमेर दक्षिण है, केवल इसी गुटबाजी के कारण कांग्रेस को तीन बार गंवानी पड़ी। दोनों ही गुटों के प्रमुख डॉ. राजकुमार जयपाल व ललित भाटी इसका शिकार हुए। इसी प्रकार स्थानीय निकाय के चुनाव में भी कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा। निगम चुनाव में मेयर भले ही कांग्रेस का बन गया, मगर बोर्ड पर तो भाजपा ने ही कब्जा कर लिया। हालांकि लोकसभा के चुनाव में इसी गुटबाजी को दबा कर सचिन पायलट जीतने में कामयाब हो गए थे, मगर संगठन पर फिर भी उनकी विरोधी जयपाल लॉबी ही काबिज थी। यद्यपि पायलट ने ऊपर से दबाव डाल कर अपने कुछ चहेतों को संगठन में प्रवेश करवा दिया, मगर फिर भी अपने मन के मुताबिक जाजम बिछाने का उन्हें बेसब्री से इंतजार था। पिछले दिनों जब संगठन चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो एक बारगी शहर अध्यक्ष पद पर नियुक्ति का अधिकार सर्वसम्मति से पायलट को दे दिया गया, लेकिन जयपाल लॉबी बाद में इससे मुकर गई। इस घटना से पायलट को बड़ा झटका लगा है। वे यह सोच रहे थे कि बड़ी आसानी ने सभी गुट उनकी छतरी के नीचे आ जाएंगे, लेकिन सब कुछ गड़बड़ हो गया।
हुआ दरअसल यूं कि नगर निगम चुनाव में स्थानीय कांग्रेसियों को जीत के आसार कम नजर आ रहे थे। इस कारण उन्होंने उस वक्त शहर अध्यक्ष का नाम तय करने का मसला पायलट पर छोड़ दिया, ताकि परिणाम आने के बाद हार का ठीकरा पायलट पर यह कह कर फोड़ा जा सके कि स्थानीय स्तर पर कांग्रेस में कोई मतभेद नहीं था। जैसे ही चुनाव में कांग्रेस के कमल बाकोलिया मेयर बने तो जीत का पूरा श्रेय पायलट को दिया जाने लगा। खुद बाकोलिया ने भी पायलट का ही अहसान माना। पायलट का इस प्रकार मजबूत होना जयपाल लॉबी को रास नहीं आया। उसने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए शहर अध्यक्ष पद के लिए पायलट को दिए गए अधिकार पर बनाई गई आमराय को उखाड़ फैंका। उन्होंने कांग्रेस पर्यवेक्षकों के सामने साफ कह दिया कि विधिवत चुनाव कराए जाएं। बहरहाल, स्थानीय खींचतान के अतिरिक्त नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के विवाद की वजह से नियुक्ति अटकी रही। जैसे ही डॉ. चंद्रभान प्रदेश अध्यक्ष बने, जिला अध्यक्ष की नियुक्ति का रास्ता भी खुल गया। समझा यही जा रहा था कि अजमेर संगठन पर पकड़ रखने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने चहेते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को ही नियुक्त करवा लेंगे, मगर पायलट की हाईकमान से नजदीकी के चलते उन्हें अपने चहेते रलावता को कब्जा दिलवाने में कामयाबी हासिल हो गई। इसमें कुछ भूमिका स्वयं रलावता की कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से करीबी की भी रही।
निर्गुट की शुरुआत की थी राठौड़ ने
हालांकि शहर को जयपाल-भाटी लॉबी से मुक्त करवाने की सफलता पायलट के जरिए रलावता को हासिल हो गई है, मगर इसकी पृष्ठभूमि काफी पहले ही बनने लगी थी। कांग्रेस के अनेक कार्यकर्ता दोनों गुटों से मुक्ति चाहते थे। देहात जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे भूपेन्द्र सिंह राठौड़ ने उन्हें एक जाजम पर बैठा कर शहर व इस दिशा में प्रयास शुरू किए। उन्होंने किसान कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष के नाते एक जलसा कर पायलट का जवाहर रंगमंच पर शानदार स्वागत किया। उनका मकसद था कि अपनी ताकत दिखा कर वे शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद हासिल कर लें। मगर बाद में हालात को भांप कर उन्होंने अपने आप को दौड़ से अलग कर लिया। असल में राठौड़ ने तीसरी लॉबी बना कर शहर कांग्रेस पर कब्जा करने की कोशिश तो काफी पहले ही कर ली थी, लेकिन उनकी चतुराई काम न आई। विधिवत चुनाव प्रक्रिया के दौरान हकीकत में रिकार्ड पर तो वे शहर अध्यक्ष लगभग बन ही चुके थे, लेकिन उस वक्त चुनाव प्रक्रिया को दफ्तर दाखिल कर दिए जाने के कारण उनके मनसूबे पूरे नहीं हो पाए थे।
अब न्यास अध्यक्ष की कुर्सी पर नजर
रलावता के शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही अब सबकी निगाहें नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद पर टिक गई है। रलावता की प्राथमिकता न्यास सदर बनने की थी, मगर आखिरकार वे संगठन की जिम्मेदारी को संभालने को राजी हो गए। एक प्रमुख दावेदार के मैदान से बाहर होने के साथ ही न्यास सदर बनने के लिए खींचतान तेज हो जाएगी। जाहिर तौर पर शेष दावेदारों में सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री गहलोत के खासमखास पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ही हैं, मगर चूंकि उन्हें बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का उपाध्यक्ष बनाया जा चुका है, इस कारण कई लोगों को मानना है कि उनको मौका नहीं दिया जाएगा। वैसे भी न्यास में हुए घोटालों में उनके पुत्र वैभव गहलोत का नाम घसीटे जाने से वे बेहद खिन्न हैं। कदाचित इसी कारण अपने चहेते को सदर बना कर नई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहेंगे। एक कयास ये भी है कि विधानसभा चुनाव में सिंधी-गैर सिंधीवाद से चोट खाई कांग्रेस सिंधियों को खुश करने के लिए किसी सिंधी को मौका दे सकती है। इस लिहाज से नरेन शहाणी का दावा सबसे मजबूत है, मगर सुना है कि सूचना आयुक्त एम.डी. कोरानी के पुत्र शशांक कोरानी ने भी इस कुर्सी पर नजर टिका रखी है। अन्य प्रबल दावेदारों में जसराज जयपाल अथवा डॉ. राजकुमार जयपाल भी माने जा रहे हैं, ताकि शहर अध्यक्ष पद से बेदखली से नाराज उनकी लॉबी को संतुष्ट किया जा सके। यूं ललित भाटी, राजेश टंडन, प्रकाश गदिया, डॉ. लाल थदानी व मुकेश पोखरणा के नाम भी चर्चा में हैं।
बाकोलिया होंगे मजबूत
रलावता के शहर अध्यक्ष बनने से मेयर कमल बाकोलिया को सर्वाधिक राहत मिली है। सचिन पायलट लॉबी का होने के कारण शहर अध्यक्ष जयपाल की लॉबी उन्हें कोई तवज्जो नहीं दे रही थी। हाल ही जब उनकी जानकारी में लाए बिना ही प्रशासन ने माधव नगर कॉलोनी में जमीन का कब्जा लिया तो वे काफी कसमसाए। उनके कुछ समर्थकों ने संगठन की बैठक कर निगम सीईओ सी. आर. मीणा के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया, मगर जयपाल लॉबी ने सरकार के निर्णय के खिलाफ उनका साथ देने से इंकार कर दिया। इससे बाकोलिया काफी आहत हुए। अब जबकि उनके सबसे ज्यादा करीबी रलावता शहर अध्यक्ष बन गए हैं तो वे काफी सुकून महसूस कर रहे हैं। वे समझते हैं कि नए समीकरणों में संगठन के साथ होने पर उनके कब्जे में नहीं आ रहे कांग्रेस पार्षदों पर कुछ तो अंकुश लगेगा। देखते हैं अब तक कमजोर साबित हो रहे बाकोलिया कैसा परफॉर्म कर पाते हैं।