गुरुवार, 19 सितंबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग पांच
श्री सतीश शर्मा
मुझे पत्रकारिता में पहला कदम सन् 1979 में लाडनूं ललकार पाक्षिक समाचार पत्र के संपादक स्वर्गीय श्री राजेन्द्र जैन ने रखवाया। तब मैं नागौर में था। उन्होंने मुझे सहायक संपादक बनाया। उसके बाद मैने दैनिक अणिमा, दैनिक अरानाद व आधुनिक राजस्थान के लिए बतौर रिपोर्टर काम किया। नागौर से माइग्रेट होने के बाद 1983 में अजमेर में पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत आधुनिक राजस्थान में की। श्री सतीश शर्मा हालांकि उस वक्त सरकारी अध्यापक थे, लेकिन पार्ट टाइम संपादन का सारा काम वे ही देखा करते थे। उन्हें आम तौर पर सतीश जी माडसाब के नाम से जाना जाता है। वे ही मेरे प्राथमिक गुरू हैं। हालांकि हिंदी पर मेरा कमांड तब भी था, लेकिन समाचार लेखन की सारी बारीकियां उनसे ही सीखीं। शुरू में अंदर के पेजों पर काम किया। ये उनकी जर्रानवाजी ही थी कि उन्होंने मात्र छह माह बाद ही मुझे प्रथम पृष्ठ पर लगा दिया। प्रथम पृष्ठ की खबरें टेलीप्रिंटर पर आती थीं, जिनका संपादन कर हैंडिग लगाने व पेज की डमी बनाने का काम होता था। अखबार जगत में इस काम को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने मुझे दैनिक नवज्योति व राजस्थान पत्रिका के मुकाबले लीड-डिप्टी लीड का चयन और बेहतरीन हैंडिंग बनाना सिखाया। तब हैडिंग लगाना भी एक कला हुआ करती थी। सीसे के बने हुए टाइप 10, 12, 14, 16, 20, 24, 36, 48 पाइंट साइज में ही आते थे। 72 पाइंट साइज के लिए लकड़ी का टाइप आता था। अर्थात सीमित शब्दों में ही हैडिंग बनानी होती थी। वह वाकई कठिन हुआ करता था। आज तो कंप्यूटर में सारे पाइंट साइज उपलब्ध हैं, जिसकी वजह से हैंडिंग बनाना आसान हो गया है। मुझे आज भी याद है कि काम समाप्त करने के बाद रास्ते में जाते भी बार-बार जेहन में आता था कि हैडिंग ऐसा नहीं, वैसा होना चाहिए था। नींद तक में हैडिंग परेशान करती थी।
जब कभी टेलीप्रिंटर खराब होता तो रेडियो पर खबरें सुन कर उन्हें लिखना होता था। इसमें वे सिद्धहस्त थे। वे खबरों की मात्र टिप्स नोट करते और बाद में पूरी खबर हूबहू लिख दिया करते थे। पेशे से मास्टर थे, मगर समाचार लेखन व संपादन पर वाकई कमाल की मास्टरी थी। जरूरत होने पर संपादकीय भी लिखा करते थे। उनमें अकेले दम पर अखबार निकालने का भी माद्दा था। सुबह छह बजे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के रिजल्ट का स्पेशल स्पलीमेंट निकालना भी उनसे सीखा। केन्द्र सरकार के आम बजट व रेल बजट और राज्य के बजट का पेज बनाना बेहद चुनौतिपूर्ण था, वह भी उन्होंने सिखाया। पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांत, कि खबर में तथ्यात्मक गलती नहीं होनी चाहिए, कोई भी सूचना मिलने पर उसको क्रॉस टैली जरूर कर लेना चाहिए, वे जोर दिया करते थे।
पत्रकारिता को पूजा की तरह करना कोई उनसे सीखे।  प्रिंटिंग के लिए पेज जाने से पहले तक हर लैटेस्ट खबर कवर करते थे। कई बार तो पेज बनते-बनते भी उसे रुकवा कर ताजा खबर को लगवाने के लिए अड़ जाते। इस वजह से उनकी कंपोजिंग के ठेकेदार से झिकझिक भी होती, मगर वे खबर लगवा कर ही मानते। बाद में यही जज्बा मैने दैनिक भास्कर में स्थानीय संपादक श्री अनिल लोढ़ा में भी देखा। प्रिंटिग प्रोसेस से पहले खबर के लिए आखिर तक जद्दोजहद के चलते कई बार अखबार लेट हो जाता। आखिर की दस हजार कॉपी तक भी वे ताजा खबर के लिए प्लेट चैंज करवा देते थे। सतीश जी माडसाब की तरह ही श्री लोढ़ा भी पत्रकारिता को किस हद तक जीते हैं, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अचानक बेहतरीन फोटो कैप्शन सूझ जाने पर भी मशीन रुकवा कर संशोधन करवा देते थे।
प्रसंगवश बताता चलूं कि हाल ही सूचना व जनसंपर्क निदेशालय में संयुक्त निदेशक पद पर पदोन्नत श्री प्रेम प्रकाश त्रिपाठी भी उन दिनों हमारे साथ थे। वे प्रशासन व राजनीति की बीट देखा करते थे।
माडसाब की सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि काम के मामले में भले ही बहुत सख्त थे, मगर बाद में उनका व्यवहार मित्रवत होता था। साथ बैठा कर खिलाते-पिलाते।
आखिर में एक बात और। कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सफाई पर जोर देते हैं, मगर सतीश जी में भी यही क्वालिटी थी। आते ही काम शुरू करने से पहले अपनी टेबल को साफ करते। यही हमें भी सिखाते। यह कह कि कुत्ता भी जिस जगह बैठता है, पहले उसे साफ करता है। हम तो इंसान हैं।
सतीश जी माडसाब आधुनिक राजस्थान से पहले दैनिक न्याय में थे व बाद में कुछ साल तक दैनिक नवज्योति में प्रथम पेज का संपादन किया। सेवानिवृत्ति के बाद हौसलों की उड़ान के संपादक रहे।

डॉ. प्रभा ठाकुर
जानी-मानी कवयित्री व समाजसेविका और अजमेर सांसद रहीं डॉ. प्रभा ठाकुर का जन्म 10 सितम्बर 1949 को जिले के किशनगढ़ कस्बे में आरएएस अधिकारी श्री देवीसिंह बारहठ के घर हुआ। उन्होंने उदयपुर विश्वविद्यालय से बी.ए. व एम.ए. के अतिरिक्त पीएच.डी. की डिग्रियां हासिल की हैं। उनके तीन काव्य संग्रह बौरया मां, आखर-आखर व चेतना के स्वर प्रकाशित हो चुके हैं। वे देश-विदेश में अनेक काव्य संध्याओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी हैं। उन्होंने हिंदी फिल्म महालक्ष्मी, स्वाधीनता संग्राम पर आधारित फिल्म गोरा हट जा और राजस्थानी फिल्म बीनणी होवे तो इसी का निर्माण व पटकथा लेखन किया है। वे अनेक फिल्मी गीत भी लिख चुकी हैं। उनकी लेखनी के बारे में बहुत जानकारी  नहीं है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि अपने जमाने में उन्होंने काव्य में क्षेत्र में खूब नाम कमाया।

-तेजवानी गिरधर
7742067000