हालांकि अभी विधानसभा चुनाव दूर हैं और मसूदा से कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार पूर्व विधायक हाजी कयूम खान माने जाते हैं, मगर कानाफूसी है कि वाजिद खान ने भी पूरी तैयारी कर रखी है। जाहिर तौर पर वे कांग्रेस की ही टिकट मांगेंगे। बताया जाता है कि उनके पास तगड़ी टीम है, जो कि अभी सक्रिय हो गई है। हाल ही फेसबुक पर एक पोस्ट से यह संकेत मिला कि वाजिद की टीम टिकट के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोडऩे वाली है। हालांकि उनको टिकट मिलना आसान नहीं है, मगर उनको टिकट से वंचित रखना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है।
बुधवार, 5 अप्रैल 2017
क्या दरगाह दीवान को उनके भाई पद से हटा सकते हैं?
महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सालाना उर्स के आखिरी दिन दरगाह शरीफ में जो घटनाक्रम हुआ, उससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या दरगाह दीवान जेनुल आबेदीन को उनके छोटे भाई अलाउद्दीन अलीमी पद से हटाने का अधिकार रखते हैं? ज्ञातव्य है कि अलीमी ने बयान जारी कर कहा है कि दीवान आबेदीन ने तीन तलाक के संबंध में जो बयान दिया है, उसके संबंध में उन्होंने मुफ्ती साहब से मौखिक संपर्क किया। मुफ्ती ने कहा कि उसके द्वारा दिए गए बयान के आधार पर वह मुरतद हो गया है, अर्थात अब वह हनफी मुसलमान नहीं रहा। इस बारे में 10-12 अन्य मुफ्तियों को पत्र लिख कर फतवा मंगाने की भी राय दी गई। अलीमी ने कहा कि इस फतवे के बाद खानदान की रस्मों के अनुसार परिवार की एक बैठक आयोजित कर तय किया गया है जो व्यक्ति हनफी मुसलमान नहीं रह गया, वह गद्दी के लिए अयोग्य हो गया है। वह ख्वाजा साहब का सज्जादा नशीन दरगाह दीवान कैसे रह सकता है।
दरअसल दरगाह दीवान जेनुल आबेदीन उच्चतम न्यायालय के आदेश से इस पर काबिज हैं। सवाल उठता है कि क्या मुफ्ती को यह कानूनी अधिकार है कि वह तीन तलाक के बारे में निजी राय जारी करने वाले को हनफी मुसलमान न होने का फतवा दे सकते हैं? क्या हनफी मुसलमान न होने की स्थिति में उनके छोटे भाई को यह अधिकार है कि वे स्वयं जेनुल आबेदीन को हटा कर खुद को दीवान घोषित करें? क्या अलीमी के ऐलान को वैध मान कर उस पर प्रशासन व सरकार अमल करेंगे?
जानकारी के अनुसार दरगाह दीवान व उनके भाई के बीच विवाद पहले से चला आ रहा है। उर्स के दौरान ही दो दिन पहले विवाद हुआ था। तीन तलाक पर बयान तो बाद में आया। यानि कि इस बयान के बाद ही मामले ने तूल पकड़ा। दीवान ने अपने छोटे भाई को सचिव पद हटा दिया और उनके स्थान पर अपने बेटे नसीरुद्दीन को नियुक्त किया, उसकी प्रतिक्रिया में अलीमी ने जेनुल आबेदीन को दीवान पद से हटाने का ऐलान कर दिया।
एक नजर दीवान के बयान पर:-
दरगाह दीवान ने इस्लामी शरीयत के हवाले से कहा कि इस्लाम में शादी दो व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक करार माना गया है। इस करार की साफ-साफ शर्तें निकाहनामा में दर्ज होनी चाहिए। कुरान में तलाक को अति अवांछनीय बताया गया है। उस संवेदनशील मसले पर उनका तर्क है कि एक बार में तीन तलाक का तरीका आज के समय में अप्रासंगिक ही नहीं, खुद पवित्र कुरान की भावनाओं के विपरीत भी है। क्षणिक भावावेश से बचने के लिए तीन तलाक के बीच समय का थोड़ा-थोड़ा अंतराल जरूर होना चाहिए। यह भी देखना होगा कि जब निकाह लड़के और लड़की दोनों की रजामंदी से होता है, तो तलाक मामले में कम से कम स्त्री के साथ विस्तृत संवाद भी निश्चित तौर पर शामिल किया जाना चाहिए। यह भी कि निकाह जब दोनों के परिवारों की उपस्थिति में होता है तो तलाक एकांत में क्यों ?
उन्होने कहा कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को तलाक सख्त नापसंद है। कुरान की आयतों में साफ दर्शाया गया है कि अगर तलाक होना ही हो तो उसका तरीका हमेशा न्यायिक एवं शरअी हो। कुरान की आयतों में कहा गया है कि अगर पति-पत्नी में क्लेश हो तो उसे बातचीत के द्वारा सुलझाने की कोशिश करें। जरूरत पडऩे पर समाधान के लिए दोनों परिवारों से एक-एक मध्यस्थ भी नियुक्त करें। समाधान की यह कोशिश कम से कम 90 दिनों तक होनी चाहिए।
दरगाह दीवान ने कहा कि कुरान ने समाज में स्त्रियों की गरिमा, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे प्रावधान किए हैं। तलाक के मामले में भी इतनी बंदिशें लगाईं गई हैं कि अपनी बीवी को तलाक देने के पहले मर्दों को सौ बार सोचना पड़े। कुरान में तलाक को न करने लायक काम बताते हुए इसकी प्रक्रिया को कठिन बनाया गया है, जिसमें रिश्ते को बचाने की आखिरी दम तक कोशिश, पति-पत्नी के बीच संवाद, दोनों के परिवारों के बीच बातचीत और सुलह की कोशिशें और तलाक की इस पूरी प्रक्रिया को एक समय-सीमा में बांधना शामिल हैं।
उन्होने कहा कि इस विषय पर कुरान के शुरा में एक पूरे अध्याय का जिक्र है जिसे अल तलाक कहते हैं जिसमें 12 छंद हैं। इन छंदों में तलाक के लिए कुरान एक प्रक्रिया पालन करने की बात कहता है। कुरान कहता है कि तीनों तलाक कहने के लिए एक एक महीने का वक्त लिया जाना चाहिए कुरान एक बार में तीन तलाक कहने की परंपरा को जायज नहीं मानता है।
बहरहाल, सवाल ये कि क्या तीन तलाक के मामले में इस प्रकार का मन्तव्य जाहिर करने के आधार पर दीवान को हनफी मुसलमान होने का फतवा जारी किया जा सकता है? ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि यह मसला कहां तक जाता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
दरअसल दरगाह दीवान जेनुल आबेदीन उच्चतम न्यायालय के आदेश से इस पर काबिज हैं। सवाल उठता है कि क्या मुफ्ती को यह कानूनी अधिकार है कि वह तीन तलाक के बारे में निजी राय जारी करने वाले को हनफी मुसलमान न होने का फतवा दे सकते हैं? क्या हनफी मुसलमान न होने की स्थिति में उनके छोटे भाई को यह अधिकार है कि वे स्वयं जेनुल आबेदीन को हटा कर खुद को दीवान घोषित करें? क्या अलीमी के ऐलान को वैध मान कर उस पर प्रशासन व सरकार अमल करेंगे?
जानकारी के अनुसार दरगाह दीवान व उनके भाई के बीच विवाद पहले से चला आ रहा है। उर्स के दौरान ही दो दिन पहले विवाद हुआ था। तीन तलाक पर बयान तो बाद में आया। यानि कि इस बयान के बाद ही मामले ने तूल पकड़ा। दीवान ने अपने छोटे भाई को सचिव पद हटा दिया और उनके स्थान पर अपने बेटे नसीरुद्दीन को नियुक्त किया, उसकी प्रतिक्रिया में अलीमी ने जेनुल आबेदीन को दीवान पद से हटाने का ऐलान कर दिया।
एक नजर दीवान के बयान पर:-
दरगाह दीवान ने इस्लामी शरीयत के हवाले से कहा कि इस्लाम में शादी दो व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक करार माना गया है। इस करार की साफ-साफ शर्तें निकाहनामा में दर्ज होनी चाहिए। कुरान में तलाक को अति अवांछनीय बताया गया है। उस संवेदनशील मसले पर उनका तर्क है कि एक बार में तीन तलाक का तरीका आज के समय में अप्रासंगिक ही नहीं, खुद पवित्र कुरान की भावनाओं के विपरीत भी है। क्षणिक भावावेश से बचने के लिए तीन तलाक के बीच समय का थोड़ा-थोड़ा अंतराल जरूर होना चाहिए। यह भी देखना होगा कि जब निकाह लड़के और लड़की दोनों की रजामंदी से होता है, तो तलाक मामले में कम से कम स्त्री के साथ विस्तृत संवाद भी निश्चित तौर पर शामिल किया जाना चाहिए। यह भी कि निकाह जब दोनों के परिवारों की उपस्थिति में होता है तो तलाक एकांत में क्यों ?
उन्होने कहा कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को तलाक सख्त नापसंद है। कुरान की आयतों में साफ दर्शाया गया है कि अगर तलाक होना ही हो तो उसका तरीका हमेशा न्यायिक एवं शरअी हो। कुरान की आयतों में कहा गया है कि अगर पति-पत्नी में क्लेश हो तो उसे बातचीत के द्वारा सुलझाने की कोशिश करें। जरूरत पडऩे पर समाधान के लिए दोनों परिवारों से एक-एक मध्यस्थ भी नियुक्त करें। समाधान की यह कोशिश कम से कम 90 दिनों तक होनी चाहिए।
दरगाह दीवान ने कहा कि कुरान ने समाज में स्त्रियों की गरिमा, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे प्रावधान किए हैं। तलाक के मामले में भी इतनी बंदिशें लगाईं गई हैं कि अपनी बीवी को तलाक देने के पहले मर्दों को सौ बार सोचना पड़े। कुरान में तलाक को न करने लायक काम बताते हुए इसकी प्रक्रिया को कठिन बनाया गया है, जिसमें रिश्ते को बचाने की आखिरी दम तक कोशिश, पति-पत्नी के बीच संवाद, दोनों के परिवारों के बीच बातचीत और सुलह की कोशिशें और तलाक की इस पूरी प्रक्रिया को एक समय-सीमा में बांधना शामिल हैं।
उन्होने कहा कि इस विषय पर कुरान के शुरा में एक पूरे अध्याय का जिक्र है जिसे अल तलाक कहते हैं जिसमें 12 छंद हैं। इन छंदों में तलाक के लिए कुरान एक प्रक्रिया पालन करने की बात कहता है। कुरान कहता है कि तीनों तलाक कहने के लिए एक एक महीने का वक्त लिया जाना चाहिए कुरान एक बार में तीन तलाक कहने की परंपरा को जायज नहीं मानता है।
बहरहाल, सवाल ये कि क्या तीन तलाक के मामले में इस प्रकार का मन्तव्य जाहिर करने के आधार पर दीवान को हनफी मुसलमान होने का फतवा जारी किया जा सकता है? ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि यह मसला कहां तक जाता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
सबके हित जुड़े होने के कारण है अजमेर में सांप्रदायिक सौहार्द्र
महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पूरी दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है। जाहिर तौर पर उसमें ख्वाजा साहब की शिक्षाओं की भूमिका है। साथ ही हिंदुओं की उदारता, कि वे अपने धर्म के प्रति कटïïï्टर नहीं और अन्य धर्मों के प्रति भी पूरा सम्मान भाव रखते हैं। यदि वजह है कि इस दरगाह में साल भर में आने वाले जायरीन में हिंदुओं की तादाद भी काफी है। ऐसे में यह संदेश जाना स्वाभाविक है कि यह मरकज सांप्रदायिक सौहार्द्र का समंदर है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ये है कि जब जब भी देश भर में किसी वजह से सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ा और दंगे हुए, अजमेर शांत ही बना रहा।
असल में सुकून की बड़ी वजह है, सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का हित साधन। उर्स मेले में आने वाले लाखों जायरीन यहां के अर्थ तंत्र की धुरि हैं। मेला ही क्यों, अब तो साल भर यहां जायरीन का तांता लगा रहता है। भरपूर खरीददारी के कारण आम दुकानदार की अच्छी कमाई होती है। सैकड़ों होटलों का साल भर का खर्चा अकेले उर्स मेले के दौरान निकल जाता है। छोटी छोटी मजदूरी करने वाले भी इस दौरान खूब कमाते हैं। रहा सवाल खादिमों का तो वे सूफी मत को मानने वाले होने के कारण उदार प्रवृत्ति के हैं, मगर साथ ही उनकी आजीविका ही जायरीन पर टिकी हुई है। हालांकि अब खादिम भी अन्य व्यवसाय करने लगे हैं, फिर भी उनकी मुख्य आजीविका का जरिया खिदमत से होने वाली अच्छी आय ही है। स्वाभाविक रूप से जब वे दिल खोल कर खर्च करते हैं तो उसका लाभ आम दुकानदार को होता है। दरगाह शरीफ में लाखों रुपए का गुलाब चढ़ता है, जिसकी खेती पुष्कर में अधिसंख्य हिंदू करते हैं। समझा जा सकता है कि जिस शहर में जायरीन या पर्यटक कह लीजिए, के आगमन से अर्थ चक्र घूमता हो, वहां स्वाभाविक रूप से सभी का हित इसमें जुड़ा हुआ है कि यहां शांति कायम रहे। यहां शांति रहेगी तो बाहर से आने वाला भी बेखौफ आएगा। इसका यहां हर वर्ग को ख्याल रहता है। जब भी कोई छुटपुट घटना होती है तो सभी की कोशिश रहती है कि विवाद जल्द निपटा लिया जाए।
इन सबके बावजूद अजमेर को सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माना जाता है, उसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर का आंतकवाद। इसी कारण दरगाह की अतिरिक्त सुरक्षा की जाती है। एक बार तो दरगाह में बम ब्लास्ट भी हो चुका है, जिसके आरोपियों को हाल ही सजा सुनाई गई है। इस घटना के बाद अब यहां सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। उससे आभास ये होता है कि यहां खतरा है, मगर सच्चाई ये है कि अजमेर का नागरिक आम तौर पर शांति पसंद है। वह किसी उद्वेग में नहीं बहता। शहर के ऐसे शांत मिजाज के कारण एक बार अजमेर आ चुके अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद अजमेर में ही बसना पसंद करते हैं।
बहरहाल, चाहे जिस वजह से अजमेर सुकून भरी जगह हो, मगर इसी वजह से यह सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बना हुआ है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
असल में सुकून की बड़ी वजह है, सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का हित साधन। उर्स मेले में आने वाले लाखों जायरीन यहां के अर्थ तंत्र की धुरि हैं। मेला ही क्यों, अब तो साल भर यहां जायरीन का तांता लगा रहता है। भरपूर खरीददारी के कारण आम दुकानदार की अच्छी कमाई होती है। सैकड़ों होटलों का साल भर का खर्चा अकेले उर्स मेले के दौरान निकल जाता है। छोटी छोटी मजदूरी करने वाले भी इस दौरान खूब कमाते हैं। रहा सवाल खादिमों का तो वे सूफी मत को मानने वाले होने के कारण उदार प्रवृत्ति के हैं, मगर साथ ही उनकी आजीविका ही जायरीन पर टिकी हुई है। हालांकि अब खादिम भी अन्य व्यवसाय करने लगे हैं, फिर भी उनकी मुख्य आजीविका का जरिया खिदमत से होने वाली अच्छी आय ही है। स्वाभाविक रूप से जब वे दिल खोल कर खर्च करते हैं तो उसका लाभ आम दुकानदार को होता है। दरगाह शरीफ में लाखों रुपए का गुलाब चढ़ता है, जिसकी खेती पुष्कर में अधिसंख्य हिंदू करते हैं। समझा जा सकता है कि जिस शहर में जायरीन या पर्यटक कह लीजिए, के आगमन से अर्थ चक्र घूमता हो, वहां स्वाभाविक रूप से सभी का हित इसमें जुड़ा हुआ है कि यहां शांति कायम रहे। यहां शांति रहेगी तो बाहर से आने वाला भी बेखौफ आएगा। इसका यहां हर वर्ग को ख्याल रहता है। जब भी कोई छुटपुट घटना होती है तो सभी की कोशिश रहती है कि विवाद जल्द निपटा लिया जाए।
इन सबके बावजूद अजमेर को सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माना जाता है, उसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर का आंतकवाद। इसी कारण दरगाह की अतिरिक्त सुरक्षा की जाती है। एक बार तो दरगाह में बम ब्लास्ट भी हो चुका है, जिसके आरोपियों को हाल ही सजा सुनाई गई है। इस घटना के बाद अब यहां सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। उससे आभास ये होता है कि यहां खतरा है, मगर सच्चाई ये है कि अजमेर का नागरिक आम तौर पर शांति पसंद है। वह किसी उद्वेग में नहीं बहता। शहर के ऐसे शांत मिजाज के कारण एक बार अजमेर आ चुके अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद अजमेर में ही बसना पसंद करते हैं।
बहरहाल, चाहे जिस वजह से अजमेर सुकून भरी जगह हो, मगर इसी वजह से यह सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बना हुआ है।
-तेजवानी गिरधर
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