रविवार, 13 मई 2012

पहली बार दिखाई होटल मालिकों ने पुलिस के खिलाफ हिम्मत

उर्स मेले में बेगारी का करेंगे विरोध
अजमेर के होटल वालों ने पहली बार पुलिस की बेगारी के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटाई है। होटल एसोसिएशन आफ अजमेर के नाम से गठित संस्था ने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपना विरोध दर्ज कराया है। होटल आराम के मालिक दिनेश अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई आपात बैठक में होटल व्यवसाइयों ने अपना दुखड़ा तो रोया ही कि किस प्रकार पुलिस ने राठौड़ी कर रखी है तो साथ ही पुलिस की बेगारी को बर्दाश्त न करने का जज्बा भी दिखाया है।
असल में पिछले कुछ दिनों से होटल मालिकों में यह सुगबुगाहट थी कि 800 वें उर्स के मद्देनजर अन्य जिलों से आने वाले पुलिस अधिकारियों के ठहरने की व्यवस्था के लिए एसपी राजेश मीणा ने मेला क्षेत्र में आने वाली सभी होटलों में दो-दो कमरे आरक्षित रखने का जो फरमान जारी किया है, उसका क्या किया जाए? अजमेर में एक तो उर्स मेले के चक्कर में होटलों की बाढ़ आई हुई है, इस कारण पूरे साल धंधा मंदा ही रहता है। कंपीटीशन इतना अधिक है कि टैक्सी वालों को पच्चीस से चालीस प्रतिशत तक कमीशन देना पड़ता है। कमाई होती भी है तो केवल उर्स मेले के दौरान ही। एक तरह से देखा जाए तो उर्स मेले के दौरान ही पूरे साल की कमाई करनी होती है। ऐसे में यदि उर्स मेले के दौरान दो कमरे पुलिस को दे दिए जाएंगे तो जाहिर है कमाई मारी जाएगी। समझा जा सकता है कि मेले के दौरान कमरों का किराया मनमानी दर से वसूला जाता है। अव्वल तो होटल मालिकों की हिम्मत होती ही नहीं कि पुलिस वालों से किराया वसूल सकें, अगर किसी ने ईमानदारी से दे भी दिया तो क्या देगा, केवल न्यूनतम दर। वैसे भी उर्स की बुकिंग करीब एक माह पूर्व ही कर ली गई थी। ऐसे में पुलिस के लिए दो-दो कमरों की व्यवस्था करना मुश्किल है। इससे बुकिंग कराने वाले जायरीन को असुविधा का सामना करना पड़ेगा।
बहरहाल, एसपी के फरमान को लेकर होटल मालिक परेशान थे, मगर पुलिस के गले में घंटी बांधे कौन, इसी चक्कर में कोई बोल नहीं रहा था। कई तो इस असमंजस में थे कि पुलिस का यह फरमान राठौड़ी हैं फिर बाकायदा नियम के तहत हो रहा है। फिर किसी ने समझाया कि प्रशासन व सरकार को यह इख्तियार है कि वह व्यवस्था के लिए इस प्रकार होटल के कमरे आरक्षित कर सकती है। जैसे चुनाव के वक्त वाहनों का अधिग्रहण किया जाता है और बाकायदा सरकारी दर से किराया दिया जाता है। ठीक उसी प्रकार से होटलों के दो-दो कमरों का अधिग्रहण किया जा सकता है। बात केवल इतनी है कि नियमानुसार पुलिस को भी उसका किराया देना चाहिए। आखिरकार एसोसिएशन ने बीड़ा उठाया और साफ कर दिया कि बिना किराये के पुलिस वालों के लिए कमरा बुक नहीं किया जाएगा। साथ ही यह भी तय किया गया कि इस मसले को निपटाने के लिए पांच सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल एसपी से बात करेगा।
असल में यह पहला मौका नहीं है कि एसपी ने फरमान जारी किया हो। इससे पहले भी हर उर्स मेले के दौरान यह कवायद चलती रही है। मगर पुलिस से पंगा मोल किसी ने नहीं लिया। जहां तक बेगारी का सवाल है, केवल उर्स मेले के दौरान ही क्यों, सालभर भी थोड़ी बहुत बेगारी तो करनी ही पड़ती है। वजह साफ है। कानून-कायदे इतने अधिक हैं कि उनकी पालना संभव नहीं है। ऐसे में पुलिस को राजी रखना ही पड़ता है, ताकि वह परेशान न करे। यह पहला मौका है कि बेगारी के खिलाफ होटल मालिकों ने मुंह खोला है। देखना ये है कि वे आखिर किस हद तक अपने विरोध पर कामय रह पाते हैं। क्या वे अन्य यात्रियों की तरह पुलिस वालों के आईडी प्रूफ ले कर बाकायदा बुकिंग का रिकार्ड रख पाते हं या नहीं? क्या उस बुकिंग के आधार पर किराया वसूल कर पाते हैं या नहीं?
ज्ञातव्य है कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय से 4 मई को जारी किए गए पत्र क्रमांक 6155 में एसपी ने समस्त थाना प्रभारियों को मेला क्षेत्र में आने वाली होटलों को पुलिस अधिकारियों के लिए दो-दो कमरों की व्यवस्था करने के लिए कहा था।

-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com