शुक्रवार, 31 मार्च 2017

कौन जाए वाजपेयी जी की चादर में?

एक कहावत है कि उगते सूरज को हर कोई सलाम करता है, डूबते को कोई नहीं। यह यूं ही नहीं बनी है। अनुभव सिद्ध है। दुनिया के अधिकांश रिश्ते व व्यवहार स्वार्थ आधारित हैं। जिससे स्वार्थ सिद्ध नहीं होता, उससे भला कौन नेह रखता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दरगाह शरीफ लाई गई चादर को चढ़ाते वक्त अगर कोई भाजपाई नहीं पहुंचा तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह तो दुनियादारी व राजनीति का दस्तूर है।
भाजपाई जानते हैं कि वाजपेयी की ओर से भेजी गई चादर को चढ़ाते वक्त कौन कौन हैं, ये वाजपेयी जी देखने व जानने वाले नहीं हैं। ऐसे में वहां हाजिर हो कर क्या हासिल कर लेंगे? जब तक वे प्रधानमंत्री थे, पार्टी के हर कार्यकर्ता का हित उनसे जुड़ा हुआ था। अब क्या? दूसरा ये भी कि अब तो ऐसा दौर आ गया है कि वाजपेयी जी के प्रति थोड़ी भी निष्ठा दिखा तो जिनके हाथ में सत्ता है, वे बुरा मान जाएंगे। उनका भी ये ही दबाव होता है कि आज हम ताकतवर हैं, हमें मानो, जो नैपथ्य में चले गए, उनको क्यों याद करते हो।
वाजपेयी जी की तो स्थिति भिन्न है। लाल कृष्ण आडवाणी जी की स्थिति का अनुमान लगाइये। वे तो अब भी शारीरिक व बौद्धिक रूप से सक्रिय हैं, मगर चूंकि अब सत्ता में नहीं, इस कारण उनको कोई नहीं पूछता। अजमेर तो पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत की भी दुर्गति देख चुका है। राज्य पर वसुंधरा राजे के काबिज होने के बाद उनको हाशिये पर डाल दिया गया था। जब अजमेर आए तो गिनती के भाजपाईयों के अलावा कोई भी जिम्मेदार नेता उनके स्वागत को नहीं पहुंचा। इस डर से कि वसुंधरा राजे बुरा मान जाएंगी। इसके अतिरिक्त ये भी कि किसी वक्त राजस्थान का शेर कहलाने वाले से अब रिश्ता रखने से मिलना भी क्या था, जो उनकी मिजाजपुर्सी करें।
ताजा उदाहरण ही ले लीजिए। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर अजमेर आए तो शहर भाजपा की ओर से आह्वान के बाद भी जिम्मेदार पदाधिकारी व जनप्रतिनिधियों ने परहेज किया। वजह साफ है। वसुंधरा राजे अभी सत्ता में हैं। अगर माथुर के प्रति थोड़ी सी औपचरिक निष्ठा दिखाई तो महारानी रुष्ठ हो जाएंगी। सच तो ये है कि जिन लोगों ने माथुर का स्वागत किया, उनकी सूची बाकायदा वसुंधरा राजे तक पहुंचाई गई है।
कुल मिला कर सारा ताकत का खेल है। जिसके पास सत्ता है, जिसका सूरज अभी चमक रहा है, उसी को सलाम है, जो डूबा हुआ है या डूबता जा रहा है, उसको सलाम करने से कोई फायदा नहीं। उलटा चमकते सूरज से होने वाले नुकसान का खतरा है।
-तेजवानी गिरधर
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