शनिवार, 23 सितंबर 2017

नगर निगम को अब कैसे नजर आ गई रेलवे की बिल्डिंग?

पिछले काफी समय से गांधी भवन चौराहे पर रेलवे स्टेशन परिसर में एक बहुमंजिला इमारत का निर्माण चल रहा है। संभवत: उसका ढ़ांचा बन कर पूरा हो गया है और अब उसे अंतिम रूप दिया जाना शेष है। मगर चंद कदम दूर ही स्थित नगर निगम को अचानक यह निर्माण खटक गया और उसने इस बहुमंजिला व्यावसायिक निर्माण को अवैध निर्माण बताते हुए काम बंद करने का नोटिस दिया है। इतना ही नहीं उसे अवैध निर्माण मानते हुए तोडऩे तक की आवश्यक कानूनी कार्यवाही करने को चेताया गया है। यह कैसी अंधेरगर्दी है?
हालांकि इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करें तो यह विभागीय तालमेल के अभाव अथवा नियमों की अस्पष्टता का मामला लगता है, मगर सवाल ये है कि जब बिल्डिंग इतनी ऊंचाई तक बन चुकी है, तब जा कर निगम को होश कैसे आया? एक के बाद एक मंजिल का निर्माण होता गया और अब यह विशालकाय हो चुकी है, तब जा कर ख्याल कैसे आया कि यह नियम विरुद्ध बन रही है? हालांकि निगम का यह रवैया नया नहीं है और गली-मोहल्लों में हो रहे निर्माण पूरे होने के करीब आने पर ही निगम को होश आता है, मगर ये निर्माण तो शहर की छाती पर हो रहा है, जिस पर गांधी भवन चौराहे से गुजरने वाले हर नागरिक की कई कई बार नजर पड़ चुकी है। बेहद अफसोसनाक बात है कि निगम के जिम्मेदार अधिकारियों की तंद्रा अब जा कर खुली है। स्मार्ट सिटी बनने जा रहे अजमेर में यदि ऐसे गैरजिम्मेदार व लापरवाह अधिकारी बैठे हैं तो इस शहर का भगवान ही मालिक है।
जहां तक विवाद का सवाल है, निगम का कहना है कि यह अगर रेलवे का कार्यालय होता तो कोई बात नहीं, कॉमर्शियल निर्माण के लिए तो अनुमति जरूरी है। दूसरी ओर निर्माण करवाने वाले हरसद तलेदा की तरफ से रेल भूमि विकास प्राधिकरण के जनरल मैनेजर वीरेंद्र कुमार ने तर्क दिया कि उक्त भूमि पर आरएलडीए यानी रेलवे भूमि विकास प्राधिकरण द्वारा निविदाएं आमंत्रित कर 45 वर्ष की लीज पर भूमि लेकर एमएफसी यानी मल्टी फंक्शन कॉम्पलेक्स के निर्माण के लिए दिया गया है। चूंकि एमएफसी रेलवे का संचालित भवन है, इसलिए रेल्वे अधिनियम के अंतर्गत इसके निर्माण की स्वीकृति स्थानीय नगरीय निकाय अथवा राज्य सरकार से लिए जाने की आवश्यकता नहीं है। यानि कि कुल मिला कर यह मामला नियमों की पेचीदगी का है। ऐसे में अगर यह प्रकरण कोर्ट में गया और निर्माण अवैध माना गया तो उसे तोडऩे से होने वाला नुकसान क्या देश का नुकसान नहीं होगा?
वैसे, लनता ये है कि आखिरकार इसका कोई न कोई रास्ता निकल आएगा, मगर तब तक यह विशालकाय भवन निगम को मुंह चिढ़ता रहेगा और आम जनता की जिज्ञासा बढ़ती ही जाएगी।
अंधेरगर्दी का दूसरा संगीन मामला
अजमेर नगर निगम की लापरवाही का दूसरा संगीन मामला भी गौर फरमाइये, जिसकी वजह से आम आदमी फोकट ही परेशान हो रहा है:-
नगर निगम द्वारा जलदाय विभाग के सहयोग से इस माह से सीवरेज सरचार्ज लिया जा रहा है, मगर कई उपभोक्ता ऐसे हैं, जिनके क्षेत्र में सीवरेज लाइन डाली ही नहीं गई और उनसे भी वसूली की जा रही है। असल में हुआ ये है कि निगम ने सीवरेज कनेक्शन लेने के लिए नोटिस जारी किए हैं, इस पर लोगों ने निगम में 600 रुपए की रसीद कटवा ली है। हालांकि अनेक आवेदकों के घरों के सीवरेज कनेक्शन या तो हुए नहीं हैं और या फिर सीवरेज कनेक्शन चालू किए नहीं गए हैं, लेकिन निगम ने सभी आवेदकों के नाम जलदाय विभाग को भिजवा दिए हैं, नतीजतन विभाग ने पानी के बिल के साथ सरचार्ज की राशि भी जोड़ दी गई है। ऐसे में जनता का परेशान होना स्वाभाविक ही है। जब उनका सीवरेज कनेक्शन चालू ही नहीं हुआ है तो वे काहे का सरचार्ज दें।
इस मामले में निगम के एक्सईएन केदार शर्मा का हास्यास्पद बयान देखिए कि इस त्रुटि का जल्द ही समाधान कर दिया जाएगा। वे कह रहे है कि ऐसे उपभोक्ता परेशान होने के बजाए निगम की योजना शाखा में आकर प्रार्थना पत्र मय मोबाइल नंबर दे सकते हैं। इसके लिए निगम स्तर पर एक कार्मिक को जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है। अजी महाराज, गलती आपकी और जनता निगम को चक्कर काटे, क्या वह फालतू है? आपको केवल उनके  के नाम जलदाय विभाग को भेजने चाहिए थे ना, जिनके सीवरेज कनेक्शन हो चुके हैं।
शर्मा कह रहे हैं कि उपभोक्ताओं की परेशानी को देखते हुए जलदाय विभाग के अधिकारियों से चर्चा की गई है। यदि पानी के बिल की अंतिम तिथि करीब ही है तो उक्त बिल को जमा करवा दें। अगले माह में आने वाले पानी के बिल में उक्त राशि को समायोजित कर लिया जाएगा। अरे प्रभु, पहले बिल में राशि जोडऩे और फिर समायोजित करने की मशक्कत क्यों करवाई? इस प्रकार की बेगारी करवाने के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या कानून को उसकी गर्दन नहीं नापनी चाहिए?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

लाचार शहर के लाचार मंत्री

गत दिवस स्वायत्त शासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी की मौजूदगी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों, जो कि राज्य सरकार में मंत्री भी हैं, ने जिस प्रकार स्मार्ट सिटी में काम न होने का रोना रोया, उससे एक ओर तो यह आभास कराया गया कि उन्हें अजमेर की बड़ी चिंता है, दूसरी ओर यह भी साबित हो गया कि टायर्ड-रिटायर्ड लोगों के इस लाचार शहर के मंत्री भी कितने लाचार हैं।
शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का तो यहां तक कहना था कि स्मार्ट सिटी केवल चर्चाओं में है, काम नहीं हो रहे। स्मार्ट सिटी पर काम कम, बातें ज्यादा हो रही हैं। जिस प्रकार काम चल रहा है, इसमें सालों लग जाएंगे। हम जब जनता के बीच जब जाएंगे तो उन्हें क्या जवाब देंगे। हालत ये थी कि मंत्री की हैसियत रखने वाले देवनानी को भी पूछना पड़ा कि स्मार्ट सिटी योजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च हो चुका है। अफसोसनाक बात देखिए कि बैठक के आखिर तक अधिकारी भी ये नहीं बता पाए कि दिल्ली से कितना आ बजट चुका है।
महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल की लाचारी देखिए कि उन्हें यह तक कहना पड़ा कि अमृत योजना में क्या चल रहा है, इसकी उनके पास जानकारी नहीं है। बैठक में उन्हें बुलाया ही नहीं जाता है। उनके विधानसभा क्षेत्र में सीवरेज की लाइनें जाम हो चुकी हैं, गंदा पानी ओवर फ्लो होकर सड़कों पर रहा है। निगम अधिकारियों को कई बार कहा, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। अब जब हम जनता के बीच जाएंगे तो उन्हें क्या जवाब दें? शहर जिला भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव तक की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही थी। उन्हें यहां तक कहना पड़ा कि लेपटॉप लेकर आने से बैठक पूरी नहीं हो जाती। जनता को हमें जवाब देना है। आचार संहिता लग जाएगी तब बजट का उपयोग किया जाएगा क्या?
देवनानी सहित अन्य जनप्रतिनधियों ने स्ट्रीट लाइट जैसी मूलभूत सुविधा को लेकर हो रही लापरवाही का रोना रोया, जिसका संचालन ईएसएल कंपनी करती है।
समझा जा सकता है कि हमारे जनप्रतिनिधि कितने लाचार हैं। जब वे ही संतुष्ट नहीं हैं तो जनता की क्या हालत होगी, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।
रहा सवाल जनप्रतिनधियों का तो वे समझ रहे हैं कि वे वैसा परफोरमेंस नहीं दे पाए हैं, जिसकी जनता अपेक्षा कर रही है। चार साल पूरे होने को हैं। बाकी एक साल बचा है। अगर ही हाल रहा तो जनता पलटी भी खिला सकती है। बस इसी बात की उन्हें चिंता सता रही है। विधानसभा चुनाव की छोड़ो, दो माह बाद लोकसभा उपचुनाव होने हैं। उन्हें डर है कि जनता का असंतोष भारी न पड़ जाए। ऐसे में जाहिर तौर पर हाईकमान कान उमेड़ेगा, इस कारण इस महत्वूपूर्ण बैठक में अपना असंतोष जाहिर कर दिया ताकि बाद में कहा जा सके वे तो पहले ही कह रहे थे कि जनता के काम ठीक से नहीं हो रहे।
एक ही पार्टी के जनप्रतिनिधियों के बीच तालमेल की हालत ये है कि वे एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। काम न होने की शिकायत का ठीकरा अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिव शंकर हेडा पर फोडऩे की कोशिश की गई। अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का कहना था कि एडीए एवं आवासन मंडल की कई योजनाएं हैं, लेकिन उन्हें निगम को ट्रांसफर नहीं किया है, जबकि इन क्षेत्रों में साफ सफाई एवं लाइट की जिम्मेदारी निगम प्रशासन की रहती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000