गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

दिल्ली बदली है, अब अजमेर बदलेंगे: आम आदमी पार्टी उतरेगी निगम चुनाव में

अजमेर। दिल्ली विधानसभा में प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद आम आदमी पार्टी बेहद उत्साहित है। हालांकि अंदरखाने यह पहले से तय था कि आगामी नगर निगम चुनाव में भागीदारी निभाई जाएगी, लेकिन जैसे ही दिल्ली का चुनाव हुआ, पार्टी की ओर से बाकायदा ऐलान कर दिया गया है कि वह ताल ठोक कर मैदान में उतरने को तैयार है। एक नारा भी जारी हो गया है - दिल्ली बदली है , अब अजमेर बदलेंगे। इसके अतिरिक्त साफ़ नीयत और भ्रष्टाचार मुक्त निगम का वादा भी किया गया है। यहां तक कि चुनाव लडने के इच्छुक कार्यकर्ताओं से अपील भी की गई है कि जो भी अजमेर के साथी अपने अपने वार्ड में चेहरा बन कर सेवा करना चाहते हैं, उनको अपील है कि आइए, जुड़िए और बदलाव के कारक बनिए। 
जानकारी के अनुसार अन्ना हजारे आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी को अजमेर में खडा करने वाली श्रीमती कीर्ति पाठक पिछले दिनों चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली में थीं। वहां से लौटने के बाद वे पूरी तरह से सक्रिय हो गई हैं। वे पार्टी के कार्यकर्ताओं से संपर्क साध रही हैं और मेयर सहित काउंसलर के लिए चेहरों की तलाष आरंभ कर चुकी हैं। समझा जाता है कि पार्टी की नजर कांग्रेस व भाजपा से नाराज कार्यकर्ताओं से संपर्क साधेगी। सफलता कितनी मिलेगी, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि पार्टी को बहुत अधिक मेहनत करनी होगी, क्योंकि लंबे समय से चुप्पी के बाद सक्रियता लाने में काफी जोर आएगा। हालांकि श्रीमती कीर्ति पाठक ने लगातार सामाजिक सरोकारों में सक्रिय रह कर अपनी पहचान बना रखी है, लेकिन उनके अतिरिक्त पार्टी के पास फिलवक्त कोई बडा चेहरा नहीं है।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

अनेक सरकारी दफ्तरों की वजह से खास है अजमेर

सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और तीर्थराज पुष्कर के साथ रेलवे का मंडल कार्यालय होने के कारण तो इस शहर को दुनियाभर में जाना ही जाता है, अनेक महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय सरकारी दफ्तरों के यहां स्थापित होने के कारण इसे  विशिष्ट दर्जा हासिल है।
राजस्थान राजस्व मंडल
आजादी और अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के बाद राज्य के लिए एक ही राजस्व मंडल की स्थापना नवंबर 1949 में की गई। पूर्व के अलग-अलग राजस्व मंडलों को सम्मिलित कर घोषणा की गई कि सभी प्रकार के राजस्व विवादों में राजस्व मंडल का फैसला सर्वोच्च होगा। खंडीय आयुक्त पद की समाप्ति के उपरांत समस्त अधीनस्थ राजस्व विभाग एवं राजस्व न्यायालय की देखरेख एवं संचालन का भार भी राजस्व मंडल पर ही रखा गया। इसके प्रथम अध्यक्ष बृजचंद शर्मा थे। इसका कार्यालय जयपुर के हवा महल के पिछले भाग में जलेबी चौक में स्थित टाउन हाल, जो कि पहले राजस्थान विधानसभा भवन था, में खोला गया। बाद में इसे राजकीय छात्रावास में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद एमआई रोड पर अजमेरी गेट के बाहर रामनिवास बाग के एक छोर के सामने यादगार भवन में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद इसे जयपुर रेलवे स्टेशन के पास खास कोठी में शिफ्ट किया गया।
सन् 1958 में राव कमीशन की सिफारिश पर अजमेर में तोपदड़ा स्कूल के पीछे शिक्षा विभाग के कमरों में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1959 को जवाहर स्कूल के नए भवन में शिफ्ट किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय ज्ञ् श्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने किया। सन् 1966 में अध्यक्ष के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बदल कर कम से कम तीन और अधिकतम सात निर्धारित की गई। कुछ ही साल पहले इसकी सदस्य संख्या की सीमा 15 कर दी गई। इसमें सुपर टाइम आईएएस अधिकारियों के अतिरिक्त राजस्थान उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, वरिष्ठ अभिभाषक और आरएएस से पदोन्नत वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को पदस्थापित किया जाता है।
राजस्थान लोक सेवा आयोग
आजादी से पहले देशी रियासतों में प्रशासनिक तथा न्यायिक अधिकारियों के पदों पर रजवाड़ों के अधीन जागीरदार या बड़े पदों पर आसीन अधिकारियों की संतानों को ही लगाने की प्रथा थी। स्वाधीनता प्राप्ति से कुछ ही पहले के सालों में देशी रियासतों में राज्य सेवा में भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग अथवा चयन समिति का गठन किया था। सन् 1939 में जोधपुर, 1940 में जयपुर, 1946 में बीकानेर में लोक सेवा आयोग व 1939 में उदयपुर में चयन समिति स्थापित की गई थी। आजादी के बाद देशी रियासतों का एकीकरण किया गया और सभी वर्गों में से स्वतंत्र रूप से योग्य व्यक्तियों के चयन के लिए 16 अगस्त, 1949 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 में श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए राजस्थान लोक सेवा अयोग का मुख्यालय अजमेर में रखा गया। अगस्त, 1958 में इसे अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया। पूर्व में यह रवीन्द्र नाथ टैगोर मार्ग पर स्थित भवन में संचालित होता था, जबकि अब यह जयपुर रोड पर घूघरा घाटी के पास स्थित है। आयोग के प्रथम अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश सर एस. के. घोष थे। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले इसका विखंडन कर अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक सेवा चयन बोर्ड गठन कर दिया गया, लेकिन कांग्रेस सरकार ने उसे भंग कर दिया गया।
रीजनल कॉलेज
पुष्कर रोड पर स्थित रीजनल कॉलेज देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक है। केन्द्र सरकार की ओर से गठित नेशनल कौंसिल फॉर एज्यूकेशन रिसर्च एंड टेनिंग (एनसीईआरटी) ने सन् 1963 में क्षेत्रीय महाविद्यालय की स्थापना की। विज्ञान, तकनीकी, कृषि व वाणिज्य के शिक्षक प्रशिक्षण के लिए स्थापित इस प्रकार के देश में तीन और महाविद्यालय हैं। यहां पढऩे वालों को आवासीय सुविधा भी उपलब्ध है। यहां अनेक प्रांतों के छात्र-छात्राएं पढऩे आते हैं। इसी महाविद्यालय परिसर में डेमोंस्ट्रेशन स्कूल स्थापित है। यह स्कूल अपने आप में अनूठा है। यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा पद्धति में होने वाले परिवर्तनों का परीक्षण किया जाता है।
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड
आजादी के बाद विभिन्न रियासतों के विलीनीकरण के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। यह प्रदेशभर के सेकंडरी व सीनियर सेकंडरी के छात्रों की परीक्षा आयोजित करता है। पूरे देश के माध्यमिक शिक्षा बोर्डों में इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक है। विशेष रूप से परीखा संबंधी कार्यों की गोपनीयता के मामले में इसकी मिसाल दी जाती है। यही वजह है कि देशभर के शिक्षा बोर्डों के अध्यक्षों की संस्था कोब्से का नेतृत्व करने का गौरव इसे हासिल है।
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय की स्थापना मूलत: अजमेर विश्वविद्यालय के नाम से 1 अगस्त, 1987 को हुुई। बाद में 5 मई 1992 को इसका नाम बदल मौजूदा कर दिया गया। विश्वविद्यालय के पास अपना खुद का विशाल व खूबसूरत भवन जयपुर रोड से सटे पुष्कर बाईपास पर है। यह अजमेर से तकरीबन सात किलोमीटर दूर है। इस विश्वविद्यालय से प्रदेश के नौ जिलों के तकरीबन 214 राजकीय व निजी महाविद्यालय जुड़े हुए हैं और यह करीब डेढ़ लाख विद्यार्थियों की परीक्षा आयोजित करता है। वर्तमान में इसमें कुल 24 विषयों के विभाग हैं।
रेलवे भर्ती बोर्ड
रेलवे भर्ती बोर्ड, अजमेर की स्थापना मूलत: सन् 1983 में रेलवे सेवा आयोग, अजमेर के रूप में हुई थी। बाद में 1985 में इसका मौजूदा नामकरण किया गया। यह उत्तर-पश्चिम रेलवे के अजमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर डिवीजन और पश्चिम-केन्द्र रेलवे के कोटा डिवीजन के लिए ग्रुप सी के वर्किंग व सुपरवाइजरी स्टाफ का चयन करता है। यह हफ्ते में पांच दिन सोमवार से शुक्रवार तक खुलता है। इसके मौजूद अध्यक्ष श्री वी. डी. एस. कास्वां, सदस्य सचिव श्री आर. के. शर्मा व सहायक सचिव ए. के. जैन हैं।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान की स्थापना 20 मार्च, 2009 को हुई। यह अजमेर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर किशनगढ़ के पास बांदरा सिंदरी में मुख्य मार्ग से सात सौ मीटर दूर स्थापित की गई है, जो अजमेर से 46 व किशनगढ़ से 20 किलोमीटर दूर है। देश की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल इसकी विजिटर और प्रथम वाइस चासंलर प्रो. एम.एम. सांखुले हैं। इसका भवन पूरा बनने तक सत्र 2010-2011 के सभी अकादमिक कार्यक्रम किशनगढ़ के श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में संचालित किए जा रहे हैं। वहां इंटरनेट सुविधा से युक्त छात्र व छात्रा के लिए पृथक-पृथक आवास, पूर्णत: सुसज्जित प्रयोगशाला, 10 एमबीपीएस हाई स्पीट इंटरनेर फेसिलिटी, भाषा प्रयोगशाला और केंटीन मौजूद है। 
इसके अतिरिक्त यहां स्थापित आयुर्वेद निदेशालय पूरे प्रदेश के आयुर्वेद व यूनानी अस्पतालों का नियंत्रण करता है। इसी प्रकार श्री सीमेंट, ब्यावर, आर.के. मार्बल, किशनगढ़, तोषनीवाल इंडस्ट्रीज, एचएमटी, सोकलिया गोडावण संरक्षित क्षेत्र, पेट्रोलियम टेबल टेनिस अकेडमी, राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, ब्यावर का पावरलूम आदि के कारण भी अजमेर को पूरे देश में जाना जाता है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
अजमेर एट ए ग्लांस से साभार

रविवार, 9 फ़रवरी 2020

सांस्कृतिक विरासत के वारिस बी. एल. सामरा

आज आपकी मुलाकात करवा रहे हैं अजमेर शहर की एक मशहूर शख्सियत श्री बी. एल. सामरा से, जो भारतीय जीवन बीमा निगम के  अजमेर मंडल कार्यालय के प्रशासनिक अधिकारी पद से 31 जुलाई 2019 को सेवानिवृत्त हुए हैं। वे अपने विद्यार्थी जीवन से ही सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े रहे  और एक साप्ताहिक और एक पाक्षिक समाचार पत्र का संपादन किया। रचनात्मक लेखन और राजभाषा हिंदी से गहरा लगाव रखने वाले श्री सामरा पत्रकारिता एवं साहित्य क्षेत्र में सुरेंद्र नीलम के नाम से पहचान रखते हैं और अपनी एक विशिष्ट अभिरुचि के कारण अपने कार्य क्षेत्र में मिली व्यापक शोहरत के कारण आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। वे पिछले 50 वर्ष से हमारी सांस्कृतिक धरोहर से संबंधित सामग्री का संकलन कर रहे हैं।
राजस्थान के मेवाड़ अंचल में राजसमंद जिले के एक छोटे से गांव आसन ठीकरवास में 8 जून 1958 को एक सामान्य वणिक परिवार में जन्मे श्री सामरा 11 वर्ष की आयु में जब छठी कक्षा के विद्यार्थी थे, तभी परिवार में घटी एक छोटी सी घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल कर रख दी तथा जीवन का मकसद और मिशन तय कर दिया। हुआ यह था कि इनके दादा जी ने जो मेवाड़ की रियासत में कामदार थे, उन्हें तांबे का एक पुराना पैसा दिया, जिसको अपनी बाल सुलभ बुद्धि से उन्होंने अनुपयोगी मान कर फेंक दिया। उनके दादा जो यह सब देख रहे थे, उन्होंने प्यार भरी डांट लगाते हुए इन्हें अपने पास बुलाया और पूछा कि पैसे को क्यों फेंक दिया, इस पर उन्होंने जवाब दिया कि यह पैसा पुराना और खोटा है, तो दादा ने उनके सिर पर हाथ फेरकर नसीहत देते हुए कहा - बेटे, पैसा पुराना हो गया तो क्या हुआ, मगर पैसा लक्ष्मी का रूप होता है और उसको फेंक कर उसकी बेकद्री नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया में ईश्वर ने ऐसी कोई चीज नहीं बनाई है, जो फिजूल और फालतू है। कुदरत ने जो कुछ भी इस दुनिया में बनाया है, उस सबकी अपनी उपयोगिता है। भले ही हम नहीं जानते, मगर धरती का एक- एक कण और वनस्पति का एक तिनका भी औषधि हो सकता है। अगर हम हिफाजत करें तो एक कौड़ी की चीज भी करोड़ की बन सकती है और हिफाजत नहीं करें तो करोड़ की चीज भी कौड़ी की बन जाती है । कचरा और कूड़ा समझी जाने वाली सामग्री भी हमारी विरासत और धरोहर का हिस्सा हो सकती है। दादा जी की डांट भरी नसीहत ने श्री सामरा के जीवन का मकसद निर्धारित कर दिया और उन्होंने इसे जुनून के साथ अपने शौक और अभिरुचि सहित अपना मिशन बना दिया और पिछले 50 वर्ष से हमारी सांस्कृतिक धरोहर से संबंधित सामग्री का संचय करने में जी जान से जुटे हुए हैं। आज इनके संग्रह में सैकड़ों पांडुलिपियां, स्टैंप पेपर, पोस्ट कार्ड व विविध डाक सामग्री और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी प्रत्येक वह सामग्री, जिससे हमारी बुजुर्गों की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की झलक मिलती है, उसका संग्रह करने में जी जान से जुटे हुए है। आज उनके संग्रह में सैकड़ों घडिय़ां, ताले, हस्तलिखित पांडुलिपियां, बेहतरीन किताबें, सिक्के, डाक टिकट, पोस्टकार्ड, स्टैंप पेपर तथा हमारे बुजुर्गों की कला साधना के विविध नमूने, रियासतकालीन राजकीय पत्र व्यवहार, जन्म कुंडलियां, जो 20 -25 फीट लंबी हैं, कलम दवात, लेखन सामग्री, पेन स्टैंड, लेम्प स्टैंड, इत्र की खूबसूरत बोतलें, इत्रदान, फूलदान  आदि सैकड़ों वस्तुओं के बेहतरीन नमूनों का नायाब खजाना है।
श्री सामरा के पास हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी आदि समुदायों के प्राचीन धर्म ग्रंथ मौजूद हैं, जिसमें सवा सौ वर्ष पूर्व प्रकाशित कई तरह की बाइबल व क्रिसमस कार्ड तथा नव वर्ष से संबंधित शुभकामना वाले ग्रीटिंग कार्ड का संग्रह मौजूद हैं।
उनकी श्रमसाधना, इच्छाशक्ति और संकल्पयुक्त जीवन यात्रा आज के युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है। श्री सामरा विरासत के वारिस बन कर उसकी हिफाजत के लिए जुटे हुए हैं। उनके इस जज्बे और जुनून को सलाम।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

लखावत कहां गायब हो गए?

पिछले काफी समय से किसी भी राजनीतिक गतिविधि से वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत का नाम गायब है। आम आदमी को तो पता भी नहीं कि वे कर क्या रहे हैं। बस इतना पता है कि आजकल जयपुर निवास करते हैं। आपको बता दें किसी जमाने में लखावत की अजमेर में तूती बोलती थी। वे अजमेर में भाजपा के भीष्म पितामह कहलाते थे। उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। जब से प्रो. वासुदेव देवनानी अजमेर आए हैं, तब से उनका प्रभाव काफी कम हो गया है। हालांकि प्रदेश स्तर पर उनका रुतबा तब भी बरकरार रहा। इतना ही नहीं उन्होंने राजस्थान भर की पुरा धरोहरों को पुनर्जीवित करने का ऐतिहासिक कार्य किया। पिछली भाजपा सरकार के दौरान उन्होंने पेनोरमा पर अनूठा काम किया। सरकार बदल जाने के बाद भी उनका विभाग यथावत होने के कारण जिन पेनोरमा के टेंडर हो चुके थे, उनका काम जारी है। लेकिन लखावत क्या कर रहे हैं, ये सवाल बना ही हुआ है। बताया जा रहा है कि राजस्थान के ऐतिहासिक स्थलों पर काम करते हुए उन्होंने गहन अध्ययन किया। उनके पास ढ़ेर सारी जानकारी इक_ा हो गई। बताया जाता है कि वे अब न केवल और अध्ययन कर रहे हैं, अपितु कुछ विषयों को लिपिबद्ध करने में जुटे हुए हैं। उनका यह कार्य स्वांत:सुखाय तो है ही, साथ ही उम्मीद है कि वे समाज को बेहतरीन ऐतिहासिक जानकारियों से भरी पुस्तकें साझा करने में सफल होंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

जिला स्तरीय सम्मान को लेकर मचा बवाल

गणतंत्र दिवस पर दिए गए जिला स्तरीय सम्मान को लेकर बवाल मच गया है। सोशल मीडिया पर यह मसला खूब गरमा गया है। कहा जा रहा है कि ऐसे-ऐसे लोगो को सम्मान दे दिया गया है, जो कत्तई डिजर्व नहीं करते और किन्हीं प्रभावशाली लोगों के दम पर सम्मान हासिल करने में कामयाब हो गए हैं। चर्चा है कि ऐसे लोग आवेदन के बाद भी सम्मान पाने वालों की सूची में शामिल नहीं किए गए, जो कि वाकई डिजर्व करते थे, मगर उनकी ठीक से सिफारिश नहीं हो पाई, इस कारण वंचित रह गए। स्वाभाविक रूप से उनमें रोष है। हालांकि पूर्व में भी इसी प्रकार सिफारिशी लोगों सम्मानित होने की घटनाएं हो चुकी हैं, मगर संभवत: पहली बार खुल कर आरोप लग रहे हैं कि जिला प्रशासन ने जिला स्तरीय सम्मान की कद्र दो कोड़ी की कर दी है। खास करके उन सम्मानित लोगों को तकलीफ हो रही है, जो कि पात्रता के कारण पूर्व में सम्मानित हो चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से इस सम्मान को लेकर छिटपुट विवाद होता रहा है, मगर इस बार लगता है कि यह मसला तूल पकड़ सकता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मेयर पद की दो और दावेदारों के नाम हैं चर्चा में

चर्चा है कि अजमेर नगर निगम के मेयर पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए दो और नाम सामने आए हैं। एक का नाम है डॉ. नेहा भाटी व दूसरी हैं श्रीमती लीलादेवी बाकोलिया। डॉ. नेहा भाटी भाजपा की ओर से मेयर पद की दावेदार हो सकती हैं। वे प्रसिद्ध उद्योगपति स्वर्गीय रामसिंह भाटी परिवार से हैं। पिछले कुछ समय वे काफी सक्रिय हैं। हाल ही उन्होंने ब्लड डोनेशन कैम्प आयोजित किया, जिसमें अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल व अजमेर नगर परिषद के तत्कालीन सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत भी मौजूद थे। हालांकि माना यह जा रहा है कि कोली जाति से श्रीमती भदेल के विधायक होने व डॉ. प्रियशील हाड़ा के शहर जिला भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद मेयर पद पर भी कोली जाति की किसी महिला को टिकट दिया जाना मुश्किल है और इस पद पर जिला प्रमुख श्रीमती वंदना नोगिया का दावा मजबूत है। सर्वविदित है कि श्रीमती नोगिया पर अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त है। हालांकि डॉ. हाड़ा को शहर भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने से श्रीमती भदेल पहले से ही त्रस्त होंगी कि उनके सामने समाज में एक शक्ति केन्द्र खड़ा कर दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे डॉ. भाटी का साथ देंगी? हो सकता है कि देवनानी खेमे की वंदना को मात देने के लिए वे डॉ. भाटी को सपोर्ट कर भी दें। आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या होने वाला है।
उधर पूर्व मेयर कमल बाकोलिया की पत्नी श्रीमती लीलादेवी बाकोलिया के भी मैदान में उतरने की चर्चा है। कांग्रेस में उन्हें कितना सपोर्ट मिलेगा, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर इतना तय है कि बाकोलिया  के गैर कांग्रेसी मित्र उनका सहयोग कर सकते हैं। ज्ञातव्य है कि जब बाकोलिया टिकट लेकर आए तो न केवल टिकट दिलवाने में, अपितु जितवाने में भी उनके गैर कांग्रेसी मित्रों ने भरपूर सहयोग किया था। 

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग चौबीस
श्री विजय कुमार शर्मा
पत्रकारिता के क्षेत्र में करीब 36 साल से सक्रिय श्री विजय कुमार शर्मा अजमेर में कदाचित पहले पत्रकार हैं, जो तब इंटरनेट का इस्तेमाल किया करते थे, जब स्थानीय पत्रकार इस बारे में कुछ नहीं जानते थे। सोशल मीडिया नेटवर्किंग पर न्यूज पोर्टल व यू ट्यूब चैनल के क्षेत्र में भी वे सर्वाधिक सक्रिय हैं। पत्रकारिता के केरियर में उन्होंने देश में जितना भ्रमण किया है, उसे देखते हुए उन्हें अगर यायावर पत्रकार कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
वर्ष 1984 में हायर सेकंडरी परीक्षा पास करने के तुरंत बाद राजस्थान में पत्रकारिता की स्कूलिंग में अव्व्ल दैनिक न्याय से पत्रकारिता की शुरुआत की। उनका यायावर जीवन 1992 में आरम्भ हुआ, जब पारिवारिक कारणवश दैनिक न्याय के मालिक स्वर्गीय बाबा श्री विश्वदेव शर्मा ने अहमदाबाद से गुजरात वैभव समाचार पत्र आरम्भ किया। गुजरात के पहले हिन्दी दैनिक माने जाने वाले गुजरात वैभव के समाचार सम्पादक के रूप में उन्होने करीब दो वर्ष अपनी सेवाएं दीं। वहीं उनके तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल से नजदीकी सबंध बने। इसी प्रकार प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात भाजपा के खानपुर स्थित गुजरात प्रदेश कार्यालय में हुई, जब श्री मोदी खानपुर कार्यालय के ही एक कमरे में रहते थे। गुजरात का पानी उन्हें सूट नहीं किया और वे वापस राजस्थान आ गये। 1995 में दक्षिण भारत के पहले हिन्दी दैनिक समाचार-पत्र चमकता सितारा के सम्पादन के लिए वे चेन्नई चले गये। वहां भी राजनीतिक पहुंच बनाई और जयललिता तथा करुणानिधि से सम्बन्ध कायम किए। स्वयं श्री शर्मा ने जानकारी दी थी कि जयललिता के शासनकाल में उनके बारे में यह बात चर्चित थी कि जयललिता की कोई भी अंदरूनी जानकारी अथवा शासन-प्रशासन की किसी भी खबर के लिए विश्वसनीय जानकारी चाहिए तो उनसे सम्पर्क किया जाए।
सूफियाना मिजाज के चलते दक्षिण भारत से भी उनका जल्द ही मोह भंग हो गया और 1997 में मध्यप्रदेश आ गये। वहां कुछ समय दैनिक जागरण के रीवा संस्करण में प्रभारी सम्पादक रहे और उसके बाद जबलपुर में दैनिक स्वदेश के कार्यकारी सम्पादक रहे। उन्होंने बताया कि भोपाल में एक क्रिकेट मेच की कवरेज करने के दौरान बीना के तत्कालीन विधायक श्री सुनील जैन और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह के माध्यम से दैनिक भास्कर के मालिक श्री सुधीर अग्रवाल से परिचय हुआ और उन्होंने दैनिक भास्कर के राजस्थान संस्करण में जोब ऑफर किया। दैनिक भास्कर के जयपुर संसकरण में मूर्धन्य पत्रकार श्री कमलेश्वर जी के सान्निध्य में श्री रविन्द्र शाह और श्री अनिल लोढ़ा के साथ फ्रंट पेज डेस्क संभाली। नवीनतम टैक्नोलॉजी में रुझान और बेहतर कार्यक्षमता देखते हुए उन्हें दैनिक भास्कर के बीकानेर, गंगानगर और जोधपुर संस्करण में सेंट्रल डेस्क इंचार्ज बनाया गया।
1998 के अंत में पिताश्री का देहावसान होने के कारण वे पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने वापस अजमेर आ गये और दैनिक नवज्योति में उन्हें अंचल डेस्क का प्रभारी बनाया गया। जब दैनिक नवज्योति में डिजिटल क्रांति आई और प्रत्येक पत्रकार की कम्प्यूटर ज्ञान आवश्यक कर दिया गया तो उन्होने सभी को कम्प्यूटर पर हिन्दी में कार्य सिखाने का बीड़ा उठाया और सफलता भी हासिल की। पूर्व राज्यसभा सांसद श्री औंकार सिंह लखावत, तत्कालीन शिक्षा उपनिदेशक श्रीमती ललिता गोयल और उनके पति जिला शिक्षा अधिकारी रहे श्री कृष्ण मुरारी गोयल, डायबिटीज विशेषग्य डॉ. रजनीश सक्सेना और शहर के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तियों को घर जाकर उन्होने कम्प्यूटर सिखाया। वर्ष 2000 में दूरसंचार विभाग की कम्पनी संचारनेट ने जब शहर में पहले 25 इंटरनेट कनेक्शन दिए, तब उनमें से एक उनका भी था। वर्ष 2000 में ही स्थापित अजयमेरु प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में से एक सक्रिय सदस्य विजय कुमार शर्मा भी थे।
वर्ष 2005 के अंत में चेन्नई के हिन्दी समाचार पत्र दक्षिण भारत ने उन्हें अपने यहां बुलाया और ये फिर एक बार दक्षिण भारत चले गये। वर्ष 2011 में माता का स्वास्थ्य खराब होने पर वे वापस अजमेर आ गये और अपनी पत्रकारिता को सरे राह टीवी चैनल में क्राइम रिपोर्टर के रूप में आगे बढ़ाया। इसी साल में उन्होने डिजिटल मीडिया के साथ कदम से कदम बढ़ाते हुए वेब पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और www.indiannewstv.in वेब चेनल की शुरुआत की जो आज 166 देशों में विजिट किया जाता है। साथ ही सोशल मीडिया मार्केटिंग और कंटेंट राइटिंग भी करते हैं। गूगल प्ले स्टोर पर इनके एप्प indiannewstv ने बड़े-बड़े नेशनल और इंटरनेशनल न्यूज एप्स को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान प्राप्त किया है और प्ले स्टोर पर 5 स्टार रेंकिंग पाने वाला एकमात्र एप्प है।
इसे उनकी सबसे बड़ी कमी कहा जाए या खूबी, यायावर प्रकृति के श्री विजय कुमार शर्मा कभी एक स्थान पर टिक कर नहीं रहे। जब भी इनसे सम्पर्क किया जाता है, तो वे एक नये स्थान पर होते हैं। फिलहाल वे दिल्ली में हैं। हां, एक खूबी उनमे यह है कि अपने व्यवहार कुशलता के कारण जहां जाते हैं, अपने दोस्तों की संख्या में इजाफा ही करते हैं। 35 साल से ज्यादा के पत्रकारिता जीवन में उन्होने अब तक एक बार भी अधीस्वीकरण, भूमि या अन्य किसी भी सरकारी सुविधा या सम्मान के लिए आवेदन नहीं किया। उनका कहना है कि मेरा सबसे बड़ा सम्मान 166 देशों में फैले मेरे लाखों विजिटर्स और उनकी प्रतिक्रियाएं हैं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com