गुरुवार, 30 जून 2016

भास्कर ने फर्ज निभा दिया, क्या राजनेता व प्रशासन भी निभाएंगे?

हाल ही दैनिक भास्कर ने पहल कर शहर के उन चुनिंदा धार्मिक स्थलों का खुलासा किया, जो कि सार्वजनिक स्थानों पर बने हुए हैं। साथ ही स्थानीय संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल ने बहुत ही दार्शनिक अंदाज में त्वरित टिप्पणी भी की कि किस प्रकार ये सब ठिकाने सार्वजनिक जमीन हड़पने या भोलेभाले धर्मभीरू लोगों को लूटने के माध्यम हैं, जो न सिर्फ आमजन के आवागमन में बाध उत्पन्न करने और दुर्घटनाएं कारित करने का पाप कर रहे हैं, बल्कि उस सर्वोच्च शक्ति को नालों के किनारे या सड़क पर बैठा कर उसका अपमान भी कर रहे हैं। धर्म स्थलों के बारे में इस प्रकार खुल कर लिखना वाकई साहस का काम है, मगर क्या स्थानीय जनप्रतिनिधि वोटों की राजनीति को ताक पर रख कर समाधान के प्रति गंभीरता दिखाएंगे? क्या प्रशासन हरकत में आएगा, या अपनी चिर मुद्रा में आंख मूंद कर ही बैठा रहेगा?
असल में अतिक्रमण, यातायात समस्या, पेयजल सहित गंदगी और अन्य जनहितकारी मुद्दों को दैनिक भास्कर सहित अन्य समाचार पत्र पूरी शिद्दत से उठाते रहे हैं। अगर ये कहा जाए कि अजमेर का मीडिया साफ सुथरी पत्रकारिता के मामले में अव्वल है व सामाजिक सरोकार का भी पूरा ध्यान रखता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यानि कि लोकतंत्र का यह इकलौता स्तम्भ है जो पूरी ईमानदारी के साथ अपना फर्ज निभा रहा है। मगर इसके ठीक विपरीत ये कड़वी सच्चाई है कि यहां का प्रशासनिक तंत्र नकारा और राजनेता लापरवाह हैं। हो सकता है किसी को ये बात एकाएक हजम नहीं हो, मगर सच्चाई यही है।
यूं तो आए दिन अव्यवस्थाओं से संबंधित खबरें छपती हैं, मगर एक छोटा सा उदाहरण इसके लिए पर्याप्त है कि दैनिक भास्कर में प्रतिदिन पाठकों की ओर से अव्यवस्था से संबंधित भेजी गई सूचना पर कितनी कार्यवाही होती है। आप जांच करके देख लीजिए कि एक माह में ऐसी सूचनाओं व शिकायतों का कितना निपटारा हो रहा है। यानि कि मीडिया ने अपनी भूमिका बखूबी निभा दी और शिकायतकर्ता को अपनी फोटो के साथ सूचना प्रकाशित करवा कर संतुष्ट होना पड़ रहा है, जबकि संबंधित विभाग के अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
एक जमाना था कि किसी समस्या बाबत मात्र चार लाइन प्रकाशित होने पर भी तुरंत कार्यवाही होती थी, जबकि आज पूरा का पूरा पेज छाप दो तो भी कुछ नहीं होता। असल में प्रशासनिक तंत्र ढ़ीठ हो चुका है। सच तो ये है कि अधिकारी वर्ग इतना हावी है कि राजनीति से जुड़े लोगों तक की सिफारिश के काम बमुश्किल हो पाते हैं। किसी भी विभाग में चले जाइये, सब जगह लापरवाही का आलम है। वरना क्या वजह है कि गंदगी की समस्या वर्षों से हम ढ़ोये जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अजमेर को गंदा शहर बताती हैं। स्थाई व अस्थाई अतिक्रमण लाइलाज बीमारी बन चुका है। अवैध निर्माण तभी जानकारी में आ पाता है, जब वह पूरा हो चुका होता है। यातायात की समस्या पर अनगिनत बैठकें हो चुकी हैं, मगर समाधान निकलने की कोई सूरत नजर नहीं आती। और तो और जिस स्मार्ट सिटी का सब्जबाग अजमेर वासी देख रहे हैं, उस पर ग्राउंड वर्क ही ठीक से नहीं किया गया, नतीजतन हम फिसड्डी साबित हो गए।
हां, इतना जरूर है कि जब से गौरव गोयल ने जिला कलेक्टर का पद संभाला है और एसी चैंबर में बैठने की बजाय धरातल पर जा कर समस्याओं को जाना और उनके निराकरण के सख्ती बरतना शुरू किया है, लोगों को सहसा पूर्व कलैक्टर श्रीमती अदिति मेहता की याद आ रही है। अब उम्मीद जगी है कि यह शहर कुछ सुधर पाएगा। संयोग से आगामी 15 अगस्त को अजमेर में राज्य स्तरीय स्वाधीनता समारोह होने जा रहा है, इस कारण भी प्रशासनिक तंत्र की नींद उड़ी हुई है। ऐसे में आशा है कि अजमेर का कुछ कायाकल्प होगा। प्रशासन की रफ्तार 15 अगस्त के बाद कैसी होगी, जिला  कलेक्टर गोयल का उत्साह बरकरार रह पाएगा या नहीं, और स्थानीय जनप्रतिनिधि उन्हें काम करने देंगे या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा। वैसे इस शहर की रवायत है कि यहां सिंघम जैसों को जल्द ही रुखसत कर दिया जाता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

बुधवार, 29 जून 2016

आखिर सख्त होना पड़ा वंदना नोगिया को

आरंभ से लो प्रोफाइल रही जिला प्रमुख वंदना नोगिया नौसीखियेपन, सदाशयता और भोलेपन का अधिकारियों ने जब ज्यादा ही नाजायज फायदा उठाना शुरू कर दिया तो आखिर उन्हें सख्त होना पड़ा। उन्होंने प्रत्येक बुधवार को जिला परिषद कार्यालय में होने वाली जिला प्रमुख जन सुनवाई में अधीनस्थ सभी पांचों विभागों के अधिकारियों को उपस्थित रहने के निर्देश दिए हैं। ज्ञातव्य है कि कई बार विधायक भी जरूरी बैठकों से नदारद रहते हैं। शायद उन्हें अपने से बहुत कम उम्र की जिला प्रमुख की अध्यक्षता में भाग लेने में शर्म आती है।
हालांकि यह सही है कि वंदना नोगिया कम उम्र और नई नवेली हैं, मगर वे जिला प्रमुख की हर गतिविधि का गहराई से अध्ययन कर रही हैं और ज्यादा ध्यान मॉनिटरिंग पर दे रही हैं। जनसुनवाई के दौरान उन्होंने अनियमितताओं के कई मामले उजागर किए हैं। कदाचित वे पहली ऐसी जनप्रतिनिधि होंगी, जो कि विभागीय लापरवाही को उजागर कर उसका समाधान करने की कोशिश करती हैं। वरना आम तौर पर जनप्रतिनिधि अपने अधीनस्थ विभाग की कमियों को छुपाते हैं और केवल उपलब्धि का ही बखान करते हैं। बहरहाल, वंदना नोगिया जनसमस्याओं के निराकरण के प्रति जितनी सजग हैं, उनके अधीनस्थ आने वाले विभागों के अधिकारी उतने ही लापरवाह हैं। या फिर वंदना के कमजोर राजनीतिक कद की वजह से जानबूझकर लापरवाह बने हुए हैं। और यही वजह है कि कई विभागों द्वारा अपने अधिनस्थ अधिकारियों को भिजवाने से ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा। शिक्षा, चिकित्सा, महिला एवं बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग एवं कृषि विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों द्वारा कार्यालय प्रतिनिधि के तौर पर उपस्थित अधिकारियों एवं कर्मचारियों को जिला परिषद जनसुनवाई में भेजने के मामले को वंदना नोगिया ने गंभीरता से लिया गया है। उन्हें निर्देश जारी करने के साथ इतना भी आगाह करना पड़ा कि जन सुनवाई में अनुपस्थित रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 28 जून 2016

क्या वाकई देवनानी और भदेल की छुट्टी होने वाली है?

एक बार फिर सोशल मीडिया पर अजमेर के दोनों मंत्रियों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल की छुट्टी होने का समाचार चल रहा है। इससे पहले भी इस आशय का समाचार दिल्ली की एक न्यूज एजेंसी जारी कर चुकी है। हालांकि सोशल मीडिया की विश्वसनीयता नहीं है क्योंकि वहां कोई भी किसी भी मकसद से किसी भी प्रकार का समाचार जारी कर देता है, जिसकी कोई जवाबदेही नहीं होती, मगर फिर भी वह नोटिस लेने लायक इस कारण है कि जरूर तिल तो है ही, वरना ताड़ नहीं बनता। जरूर कुछ न कुछ सुगबुगाहट है, वरना हवा में इस प्रकार अफवाह की अबाबील नहीं उड़ सकती।
हाल ही जारी समाचार के अनुसार राज्य के वसुंधरा राजे मंत्रीमंडल के चार मंत्रियों का हटना तय है, जिसे कि आलाकमान ने भी हरी झंडी दे दी है।  हटने वाले मंत्रियों में कालीचरण सर्राफ, राजपाल सिंह शेखावत, श्रीमती अनिता भदेल व प्रो. वासुदेव देवनानी शामिल हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि देवनानी के स्थान पर जातिगत समीकरण को देखते हुए श्रीचंद कृपलानी को मंत्री बनाना तय हो गया है। मंत्रीमंडल का पुनर्गठन आगामी 12 जुलाई को होना बताया गया है।
असल में देवनानी संघ कोटे से मंत्री बनाए गए हैं, और संघ  लॉबी में दमदार मौजदूगी भी है, इस कारण उनको हटाए जाने की बात यकायक गले नहीं उतरती, मगर पिछले दिनों पाठ्यपुस्तकों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के संदर्भ हटाए जाने और एक शिक्षा कर्मी के तबादला उद्योग के शिकंजे में आ कर आत्महत्या करने और सीधा देवनानी के पीए पर आरोप होने के कारण देवनानी विवाद में आए। हालांकि नेहरू प्रकरण में तो उन्होंने संघ के एजेंडे को ही पोषित किया है, मगर बताया जाता है कि संघ में भी एक लॉबी उनके खिलाफ है। समझा जाता है कि अगर संघ के दबाव में उन्हें नहीं हटाया जा सका तो कम से कम उनका विभाग तो बदला ही जा सकता है। उनके स्थान पर श्रीचंद कृपलानी को लेने की बात इस कारण गले उतरती है क्योंकि भाजपा मानसिकता के सिंधी समुदाय को नाराज नहीं किया जा सकता। दूसरा श्रीचंद कृपलानी लगातार मंत्री बनने की जुगत भिड़ा रहे हैं। इसी कारण उन्होंने विरोध स्वरूप यूआईटी की चेयरमेनशिप भी ठुकरा दी थी।
इसी प्रकार श्रीमती भदेल का नाम केवल और केवल इस कारण आया क्योंकि पिछले नगर निगम चुनाव में उनका परफोरमेंस खराब रहा। जिस प्रकार उनकी पकड़ कोली समुदाय में कमजोर साबित हुई है, उसी को देखते हुए माना जा रहा है कि इस बार भाजपा कोई और जातीय कार्ड खेल सकती है। दोनों मंत्रियों के बीच छत्तीस का आंकड़ा होने के कारण अजमेर की भाजपा में सदैव चल रही खींचतान को भी दोनों को हटाए जाने का आधार माना जा रहा है। गौर करने लायक एक बात ये भी है कि आगामी 15 अगस्त को राज्य स्तरीय स्वाधीनता समारोह अजमेर में होना है और उसमें वसुंधरा स्वयं आएंगी, तो क्या इससे पहले दोनों मंत्रियों की छुट्टी कर दी जाएगी।
बहरहाल देखते हैं कि यह समाचार, जिसे कि अफवाह की ही संज्ञा दी जानी चाहिए, कितना सही साबित होता है।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, 16 जून 2016

अदिति मेहता की तरह ही हैं गौरव गोयल के पास पावर

गौरव गोयल
कानाफूसी है कि जिस प्रकार तत्कालीन कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत का वरदहस्त था, ठीक उसी प्रकार मौजूदा कलेक्टर गौरव गोयल को भी वर्तमान मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने फ्री हैंड दे रखा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जिस प्रकार अदिति मेहता ने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटा कर अजमेरवासियों को सुधार दिया था, उसी प्रकार गौरव गोयल भी अजमेर का कायाकल्प करने में कामयाब हो जाएंगे।
वस्तुत: जब से गौरव गोयल अजमेर आए हैं और जिस प्रकार त्वरित गति से काम कर रहे हैं, उससे ही लग गया था कि उन पर ऊपर का हाथ जरूर होगा। स्मार्ट सिटी के पैमाने में कहीं भी फिट नहीं बैठ रहे अजमेर को जिस प्रकार गोयल प्रयास कर दूसरी राष्ट्रीय सूची में शामिल करवाने के लिए विशेष कवायद कर रहे हैं, वह भी इसका संकेत है कि उनमें जो आत्मशक्ति है, उसके पीछे कोई राजनीतिक इच्छा शक्ति भी काम कर रही है। हाल ही जब टॉय बैंक की स्थापना के अवसर पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की तो गौरव गोयल के साथ बात करते वक्त उनका जो लहजा था, वह इस बात का सबूत दे रहा था कि वे उनके कामकाज से पूरी तरह से संतुष्ट हैं। ज्ञातव्य है कि शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी और महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल के बीच छत्तीस के आंकड़े के कारण प्रशासन पंगु हो गया था। समझा जाता है कि उसी के मद्देनजर वसुंधरा ने गौरव गोयल को विशेष पावर दे दिए हैं कि वे बिना किसी दबाव के अजमेर का कायाकल्प करें। आगाज तो अच्छा ही नजर आ रहा है, अब अंजाम देखना है कि वाकई वे अदिति मेहता की तरह आम अजमेरवासी के जेहन में स्थान बना पाते हैं या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
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