सोमवार, 27 जनवरी 2014

क्या रलावता का विकल्प तलाशा जाएगा?

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन के काबिज होने के बाद अजमेर शहर जिला कांग्रेस में भी बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। हालांकि मौजूदा अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता उनकी ही पसंद के हैं और उन्हें अध्यक्ष भी उन्होंने ही बनवाया था, इस कारण कई लोग यह मानते हैं कि कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो उन्हें नहीं हटाया जाएगा, मगर शहर कांग्रेस की चरम पर पहुंची गुटबाजी के कारण शहर की दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की बुरी तरह से हार के बाद सचिन पर दबाव बन सकता है कि वे संगठन को दुरुस्त करने के लिए अध्यक्ष को बदलें।
बताया जाता है कि हालांकि रलावता सचिन की पसंद रहे हैं, मगर विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट के टिकट के लिए अडऩा सचिन को अच्छा नहीं लगा बताया। सचिन किसी सिंधी को ही टिकट देना चाहते थे, मगर खींचतान के चलते पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती टिकट पाने में कामयाब हो गए। इसका परिणाम ये रहा कि कांग्रेस ने उत्तर की तो सीट खोयी ही, दक्षिण में भी सचिन की पसंद के हेमंत भाटी हार गए। बेशक कांग्रेस विरोधी लहर के कारण हार का अंतर ज्यादा रहा, मगर कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों की शिकायत है कि उन्हें संगठन का साथ नहीं मिला।
चर्चा है कि पायलट अपनी पसंद के ही किसी नए चेहरे को शहर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे सकते हैं। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व पूर्व विधायक ललित भाटी से उनकी नाइत्तफाकी जगजाहिर है और पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल पर भी दाव खेले जाने की संभावना कम बताई जा रही है। ऐसे में पायलट के करीबी शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल का नंबर आ सकता है। वे तकरीबन तीस साल पुराने सक्रिय व जुझारू नेता हैं, मगर सवाल ये है कि क्या उनके लिए आम स्वीकार्यता बन पाएगी। इसी प्रकार विजय जैन के नाम की भी चर्चा है। अजमेर दक्षिण के कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी का नाम भी उभर कर आया है। वे पुराने दिग्गज कांग्रेसी स्वर्गीय सेठ श्री शंकर सिंह भाटी के परिवार के होने के कारण प्रतिष्ठित व्यवसायी व समाजसेवी तो हैं ही साधन संपन्न भी हैं। यदि सभी कांग्रेसी उन्हें स्वीकार कर लें तो संगठन चलाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। नया और ऊर्जावान चेहरा तो हैं ही। यूं पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग भी एक विकल्प हो सकते थे और उन्हें सरकारी नौकरी से सेवामुक्त होने के बाद सचिन ने ही उपाध्यक्ष बनवाया था, मगर अज्ञात गलतफहमियों के कारण उन्हें रलावता वाली कार्यकारिणी में नहीं रखा गया। ऐसे में सचिन से उनकी दूरी हो गई। दावेदार नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया भी हो सकते थे, उनका संगठन के नेताओं को साथ ले कर चलने का उनका परफोरमेंस नजर नहीं आता। नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी भी एक विकल्प हो सकते थे, मगर लैंड फॉर लैंड मामले में फंसने के बाद संभावना शून्य हो गई। सचिन से भी उनकी दूरी बताई जाती है। कुल मिला कर सचिन के लिए रलावता के मुकाबले नया चेहरा तलाशना कुछ मुश्किल काम है।

सचिन से भिडने को तैयार भाजपाई दावेदार

हालांकि अजमेर संसदीय क्षेत्र से मौजूदा कांग्रेस सांसद व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के दुबारा यहीं से चुनाव लडऩे अथवा केवल प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने का निर्णय होना बाकी है, मगर भाजपा के सभी दावेदार यही मान कर कि सचिन ही सामने होंगे, टिकट मिलने पर चुनाव लड़ कर जीतने के आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। ज्ञातव्य है कि पिछली बार सचिन के सामने उपयुक्त स्थानीय दावेदार नहीं मिलने पर भाजपा ने भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतारा था और वे 76 हजार 135 मतों के भारी अंतर से हार गई थीं। इस कारण इस बार भाजपा के सामने सशक्त दावेदार तलाशने की समस्या थी, मगर विधानसभा चुनाव में चली कांग्रेस विरोधी लहर में अजमेर जिले के ब्यावर विधानसभा क्षेत्र को छोड़ कर अजमेर संसदीय क्षेत्र में शामिल सभी सातों विधानसभा क्षेत्र और जयपुर जिले के दूदू विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की जीत ने भाजपा के हर किसी दावेदार में सचिन को हरा देने का उत्साह भर दिया है। अब किसी भी दावेदार को सचिन से भिडऩे में कोई डर नहीं है। उलटे वे यह सोच रहे हैं कि टिकट मिलने पर न केवल उनकी जीत सुनिश्चित है, अपितु प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर काबिज सचिन जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता को हराने का श्रेय अलग हासिल होगा। यह सोच इसलिए तर्कसंगत नजर आती है क्यों कि संसदीय क्षेत्र के सभी आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा व कांग्रेस को मिले मतों में 1 लाख 91 हजार 943 का भारी अंतर है। इस खाई को पाटना आसान काम नहीं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा खेमे में सरगरमी तेज है।
उधर कांग्रेस खेमे में हलचल इसलिए नहीं है कि उसमें यही माना जा रहा है कि उनकी ओर से प्रत्याशी सचिन ही होंगे, तो दिमाग काहे को लगाएं। यूं भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद अन्य दावेदारों में कोई उत्साह नहीं है। हां, अगर सचिन के पास जर्जर हो चुकी कांग्रेस का जीर्णोद्धार करने का जिम्मा है और उन्हें प्रदेश की सभी पच्चीस सीटों पर कांग्रेस को जिताने की मशक्कत करनी होगी, इस कारण यदि यह विचार बना कि वे लोकसभा चुनाव न लड़ें, उसी स्थिति में ही दावेदार उभर कर सामने आएंगे, यूं दावा भले ही कोई भी जताता रहे।
भाजपा के पास हैं कई विकल्प, जाट प्रत्याशी पर हो रहा है विचार
बात अगर भाजपा की करें तो उसके पास दावेदारों की कमी नहीं है। उसके पास सबसे दमदार विकल्प है किसी जाट को चुनाव मैदान में उतारना। इसकी वजह ये है कि परिसीमन के बाद इस संसदीय क्षेत्र में जाटों के वोट तकरीबन दो लाख माने जाते हैं। हालांकि यह विकल्प भाजपा के पास पिछली बार भी था, मगर चूंकि नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र से हारे दिग्गज भाजपा नेता व तत्कालीन जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट, जो कि वर्तमान में भी जलदाय मंत्री हैं, का मानस बना नहीं और सचिन के मुकाबले कोई अन्य जाट नेता मिला नहीं, इस कारण इस हाई प्रोफाइल चुनाव में भाजपा ने भी अपनी दिग्गज श्रीमती माहेश्वरी को उतार दिया। भाजपा खेमा यह मान कर चलता है कि इस बार जाट प्रत्याशी सचिन को टक्कर देने की स्थिति में हो सकता है। इसका आधार ये है कि दो लाख जाटों के अतिरिक्त भाजपा मानसिकता के दो लाख वैश्य, सवा लाख रावत, एक लाख सिंधी व एक लाख राजपूत मतदाता जाट प्रत्याशी को जितवा सकते हैं। इसी संभावना के मद्देनजर कुछ रिटायर्ड जाट अधिकारी भाग्य आजमाने की सोच रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी. आर. चौधरी व अजमेर में कलेक्टर रह चुके महावीर सिंह का नाम सामने आ रहा है। पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना के ससुर सी. बी. गैना का नाम भी चर्चा में है। एक अन्य जाट सज्जन भी बताए जा रहे हैं, जिन्होंने वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा के दौरान अहम भूमिका निभाई बताई।
फिर मैदान में आ सकती हैं किरण माहेश्वरी
भाजपा चाहे तो एक बार फिर वैश्य पर दाव लगा सकती है। हालांकि पिछली बार श्रीमती माहेश्वरी हार गई थीं, मगर इस बार स्थिति उलट है, इस कारण साहस जुटा सकती हैं। यदि उन्हें राज्य मंत्रीमंडल में स्थान नहीं मिलता तो कदाचित वे कोरा विधायक रहना पसंद न करें। उनके हाईकमान तक रसूखात भी हैं, इस कारण टिकट लाना उनके लिए कठिन नहीं होगा।
बात अगर अन्य वैश्य दावेदारों की करें तो इस सिलसिले में स्थानीय वैश्य दावेदारों का मानना है कि वे स्थानीयता के नाम पर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इनमें पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन व पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के नाम शामिल हैं। पहाडिय़ा ने गुपचुप तैयारी भी शुरू कर दी थी, मगर उन्हें टोंक-सवाईमाधोपुर का लोकसभा चुनाव प्रभारी बनाए जाने के बाद संभावना कम हो गई है। कारण ये है कि प्रदेश अध्यक्ष वसुंधरा राजे ये स्पष्ट कर चुकी हैं कि लोकसभा चुनाव प्रभारी चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि उनके जिम्मे लोकसभा क्षेत्र में सारा समन्वय, सम्मेलन, बूथ मैनेजमेंट सिस्टम आदि का काम रहेगा।
पूर्व सांसद रासासिंह रावत भी करेंगे दमदार दावेदारी
अजमेर के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत भी दावेदारी के पक्के मूड में हैं। उन्हें पुष्कर से विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं मिला तो यह सोच कर चुप रह गए थे कि लोकसभा चुनाव में दावेदारी करेंगे। दावा तो उनका पिछली बार भी था, मगर परिसीमन की वजह से अजमेर संसदीय क्षेत्र का रावत बहुल मगरा इलाका कट जाने पर उन पर पार्टी ने दाव खेलना मुनासिब नहीं समझा। रावतों के वोट कम होने के बाद भी तकरीबन सवा लाख रावत तो हैं ही, जिनके दम पर वे दावा ठोकेंगे। उनके पास कहने को ये तर्क भी है कि वे यहां से पांच बार सांसद रहे हैं, इस कारण उनकी पकड़ अच्छी है। साथ ही उन्हें स्थानीयता व सहज उपलब्धता का भी लाभ मिलेगा। जिले में पुष्कर व ब्यावर से रावत प्रत्याशियों के जीतने से उत्साहित रावत महासभा राजस्थान की ओर से अजमेर संसदीय क्षेत्र से समाज के योग्य व्यक्ति को टिकट देने की मांग से भी उनको बल मिला है।
वसुंधरा की पुत्रवधु पर भी है कयास
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पुत्रवधू व झालावाड़ के भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह की धर्म पत्नी श्रीमती निहारिका राजे को भी दावेदार माना जाता है। इसके पीछे एक तर्क ये है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ लाख गुर्जर मतदाता हैं और श्रीमती निहारिका भी गुर्जर समाज की बेटी हैं। जातीय समीकरण के लिहाज से वे परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहने वाले गुर्जर समुदाय में सेंध मार सकती हैं।
युवा नेता पलाड़ा कर चुके हैं अघोषित दावेदारी
आगामी चुनाव के लिए एक और सशक्त दावेदार भी उभर कर आए हैं। वे हैं युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा, जो कि पूर्व जिला प्रमुख व मौजूदा मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति हैं। पिछले दिनों उनकी पहल पर आयोजित पंचायतीराज सशक्तिकरण सम्मेलन में हालांकि उन्होंने खुल कर दावेदारी तो नहीं की, मगर उनके हाव-भाव और मिजाज ऐसा ही नजर आ रहा था। श्रीमती पलाड़ा के विदाई समारोह का रूप लिए इस समारोह में विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत का जिक्र करते हुए पलाड़ा ने अपनी हुंकार में कहा कि अभी तो लोकसभा का फाइनल बाकी है, उसे उनकी भाजपा के लिए खाली पड़ी लोकसभा सीट की दावेदारी के रूप में लिया गया। असल में इसकी तैयारी उन्होंने अपनी जिला प्रमुख पत्नी के कार्यकाल में बेहतरीन कार्य करवा कर कर ली थी। जहां तक टिकट लाने का सवाल है, उनके पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से संबंध जगजाहिर हैं, इस कारण ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। सचिन के मुकाबले साधन-संपन्नता के मामलें में भी वे कमजोर नहीं पड़ेंगे।
अजमेर जिले के भाजपा सदस्यता प्रभारी रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत भी इस बार दावेदारी करने के मूड में हैं, मगर पहले उन्हें नागौर का लोकसभा प्रभारी बनाया गया और फिर देहात जिला भाजपा अध्यक्ष का जिम्मा भी सौंप दिया गया। ऐसे में उनकी दावेदारी में रोड़ा पड़ गया है।
ऐसी चर्चा भी है कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी या निम्बाहेड़ा के भाजपा विधायक श्रीचंद कृपलानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने पर पार्टी हाईकमान विचार कर रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये बताई जा रही है कि सिंधी कोटे में ये दोनों ही मंत्री बनने की कतार में हैं। दोनों की दावेदारी मजबूत है, मगर दोनों को मंत्री बनाया नहीं जा सकता। पिछली बार सिंधी विधायक के रूप में अकेले देवनानी जीते थे, इस कारण उन्हें मंत्री बनाने में दिक्कत नहीं आई। इस बार देवनानी के अतिरिक्त कृपलानी व ज्ञानदेव आहूजा भी जीत कर आ गए। इसी कारण समस्या उत्पन्न हुई है। ऐसे में देवनानी व कृपलानी में से किसी एक को मंत्री बना कर दूसरे को लोकसभा में भेजना की बेहतर विकल्प होगा।
पिछली बार दावेदारी चुके अजमेर नगर निगम के पूर्व महापौर धर्मेन्द्र गहलोत, मगरा विकास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मदनसिंह रावत, अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पूर्व केकड़ी प्रधान रिंकू कंवर आदि के भी दावा ठोकने के आसार हैं।
बात अगर कांग्रेस की करें तो फिलहाल यही माना जाता है कि यहां से सचिन ही चुनाव लड़ेंगे, मगर यदि प्रदेश अध्यक्ष का महत्वपूर्ण दायित्व निभाने की वजह से मानस बदला तो पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी, पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती आदि दावा कर सकते हैं। दावा अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी भी करते, मगर उन्होंने विधानसभा चुनाव में बगावत कर चैप्टर क्लॉज सा कर लिया है। वैसे भी सचिन के खिलाफ चुनाव लडऩे के उनके ऐलान के बाद उन पर कोई विचार होना असंभव सा है। विशेरू रूप से अब जब कि सचिन प्रदेश अध्यक्ष के नाते टिकट निर्धारण में अहम भूमिका निभाने वाले हैं।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

जब डॉ. गोखरू का कुछ नहीं हुआ तो डॉ. मीणा का क्या होगा?

संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय में एक बार फिर भर्ती मरीजों से बाजार से दवा मंगाने का मामला सामने आया है। जेएलएन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अशोक चौधरी ने निरीक्षण के दौरान पाया कि डॉक्टर सी.के. मीणा की यूनिट में भर्ती मरीजों को वार्ड से दवा देने के बजाय बाजार से मंगवाई जा रही है। चौधरी ने मामले को गंभीर मानते हुए जांच के आदेश दिए और कहा कि मरीजों की शिकायत के कारण उजागर हुए इस प्रकरण में डॉ. मीणा से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा। जाहिर सी बात है कि निर्धारित प्रक्रिया के तहत की मामले की जांच होगी, जिसका नतीजा क्या होगा, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि इससे पहले भी अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में हुए इसी प्रकार के गोरखधंधे में जांच के बाद क्या कार्यवाही हुई, यह आज तक पता नहीं लग पाया है। इसमें रेखांकित करने वाली बात ये है कि उस गोरखधंधे को तो राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन के एमडी डॉ. समित शर्मा ने ही पकड़ा था, जिनको निशुल्क दवा योजना लागू करने का श्रेय दिया जाता है।
असल में सरकारी जांच प्रक्रिया इतनी जटिल और लंबी है कि अमूमन घोटालों व गोरखधंधों की जांच टांय टांय फिस्स हो जाती है और समय बीतने के साथ लोग भी उसे भूल जाते हैं। यहां आप को बता दें कि कार्डियोलॉजी विभाग में हुए दवाओं के गोरखधंधे के मामले में विभाग के प्रमुख डॉ. आर. के. गोखरू पर लगे आरोप तकनीकी पेच में ही उलझ गए थे। उसकी वजह ये समझी गई कि निशुल्क दवा योजना के लिए जो नियम बने हुए हैं, उसमें और इस योजना का संचालन व निगरानी करने वाले राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन को दिए गए अधिकारों में कुछ अस्पष्टता है, जिसे कभी स्पष्ट नहीं किया गया।
हालांकि डॉ. गोखरू प्रकरण में गठित हाईपावर कमेटी ने जांच कर रिपोर्ट राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन के एमडी डॉ. समित शर्मा को भेज दी, जिस पर कार्यवाही का आज तक पता नहीं लग पाया, मगर इस मामले में डॉ. गोखरू क जो रवैया रहा, उससे ही लग गया था कि जरूर कहीं न कहीं उनके बचने का ग्राउंड मौजूद था। तभी तो उन्होंने जेएलएन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ. पी. के. सारस्वत की ओर से दिए गए कारण बताओ नोटिस का जवाब देना जरूरी नहीं समझा। वस्तुत: उन्होंने यह पेच फंसाया था कि उनके खिलाफ जिस मामले में जांच की जा रही है, उसमें एक सामान्य फिजीशियन सही निर्णय नहीं कर सकता। इसके लिए हृदयरोग का विशेषज्ञ होना जरूरी है। अर्थात उन्हें इस बात का अंदाजा है कि यदि कमेटी में हृदयरोग विशेषज्ञ होंगे तो वे डॉ. गोखरू की ओर से सुझाए गए इंजेक्शन की अहमियत को स्वीकार करेंगे। इससे यह भी आभास हुआ कि डॉ. गोखरू के पास अपनी ओर से सुझाये हुए इंजैक्शन को ही लगाने के दमदार तकनीकी आधार थे, जिसके बारे में कार्पोरेशन के पास स्पष्ट नीति-निर्देश नहीं थे। उनका यह तर्क भी बेहद तकनीकी और दमदार था कि सरकार की ओर से निर्धारित इंजैक्शन की सक्सैस रेट कम है और देर से असर करता है, जबकि वे जो इंजैक्शन लिखते हैं, वही कारगर है। अर्थात वे यह कहना चाहते हैं कि एक विशेषज्ञ ही यह बेहतर निर्णय कर सकता है कि मरीज की जान बचाने के लिए तुरत-फुरत में कौन सा इंजैक्शन लगाया जाना चाहिए। वर्तमान प्रकरण में भी इस प्रकार का तर्क दिया जा सकता है कि जो दवाई बाजार से लाने को कही गई, वही कारगर है, सरकारी दवाई नहीं। अब इसका निर्धारण तो वरिष्ठ चिकित्सक ही कर सकते हैं। उसमें भी मतभिन्नता हो सकती है।
कुल मिला कर अब यह देखना होगा कि डॉ. मीणा क्या स्पष्टीकरण देते हैं और उनके खिलाफ क्या कार्यवाही होती है? होती भी है या नहीं?
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 15 जनवरी 2014

सांप सूंघ गया सचिन पायलट विरोधियों को

अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के जो विरोधी यह सोच कर मूछों को ताव दे रहे थे कि अब जब लोकसभा चुनाव आएंगे तो वे उन्हें निपटाएंगे, अब सचिन के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद चुप हो गए हैं। उन्हें सांप सूंघ गया है। वे यह सोच कर बैठे थे कि जैसे ही सचिन टिकट लाएंगे, वे अपनी औकात दिखाएंगे। यानि कि चुनाव जीतना है तो सचिन को उन्हें राजी करना ही होगा। हालांकि यह स्पष्ट होना अभी बाकी है कि सचिन चुनाव भी लड़ेंगे या नहीं, मगर अब जब कि सचिन को पूरे प्रदेश की कमान सौंप दी गई है, जो भी टकराव भरा रुख अपनाएगा, उसका पत्ता साफ हो जाएगा। जो भी पार्टी या सचिन विरोधी रुख रखेगा, उसे बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला करने में सचिन को देर नहीं लगेगी। हालांकि पार्टी नेताओं को एकजुट रखने की जिम्मेदारी सचिन की ही है, इस कारण बनती कोशिश वे अपने हाथ से बेहतर ही करने की कोशिश करेंगे, मगर जो भी एक सीमा से ज्यादा नखरे दिखाएगा, उसका इलाज करने के लिए सचिन को किसी से पूछने की जरूरत नहीं होगी।
आपको ख्याल होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दम पर अजमेर उत्तर से कांग्रेस का टिकट लाए पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती सचिन के धुर विरोधी हैं, मगर चूंकि प्रदेश अध्यक्ष बनवाने में गहलोत का सहयोग रहा है, इस कारण उन्हें रुख बदलना होगा। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि उन्हें गहलोत के कहने से एडजस्ट भी किया जा सकता है। बात अगर पूर्व उप मंत्री ललित भाटी की करें तो वे तो हार के लिए सचिन को जिम्मेदार बता कर खुले में खिलाफत कर चुके हैं। उन्हें फिर से सुर बदलने के रास्ते तलाशने होंगे या फिर पार्टी हित में सचिन को भाटी को राजी करने की युक्ति ढ़ंढऩी होगी। इसी प्रकार पुराने कांग्रेसी ललित भटनागर व दिनेश शर्मा को भी सुलह का रास्ता अख्तियार करना होगा, जो कि खुलेआम सचिन का विरोध कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के दौरान सचिन से नाराज हो चुके अन्य नेताओं को भी अपने रवैये में परिवर्तन लाना होगा।
सर्वाधिक दिलचस्प होगा अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का रुख। हालांकि सचिन के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उनकी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन यह सब जानते हैं कि वे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक के सामने सचिन का विरोध कर चुके हैं। उन्होंने तो यहां तक चुनौती दे दी थी कि अगर उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया गया तो वे लोकसभा चुनाव में सचिन के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। विधानसभा चुनाव तो वे बागी बन कर लड़े ही। यह जानते हुए भी अजमेर लोकसभा सीट पर पहला दावा सचिन का ही है, वे हाल ही अजमेर डेयरी के एक जलसे के दौरान कह चुके हैं कि वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अब देखना ये होगा कि नए हालात में उनको राजी करने के लिए उनकी जाट लॉबी के आका क्या प्रयास करते हैं। नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत की सचिन से नाइत्तफाकी भी जग जाहिर है, उन्हें भी पार्टी में रहने के लिए रुख बदलना होगा। हां, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल जरूर विधानसभा चुनाव से पहले सुलह कर चुके थे और चुनाव में उन्होंने काम भी किया, इस कारण उन्हें दिक्कत नहीं आएगी। कुल मिला कर यदि सचिन चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें अपने विरोधियों को सैट करने में पहले जितनी दिक्कत नहीं आएगी।

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

टंडन के रुख को लेकर आशंकित थे कांग्रेसी

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार के पश्चात कुछ दिन की चुप्पी के बाद जैसे ही वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एडवोकेट राजेश टंडन ने निष्ठावान कांग्रेसियों का जलसा आहूत किया तो हर कांग्रेसी के दिमाग में यही बात थी कि वे न जाने क्या नया शगूफा छोडऩे वाले हैं। जाहिर सी बात है कि जब मूल संगठन शहर कांग्रेस कमेटी मौजूद है तो कांग्रेस के भविष्य पर विचार करने के लिए व्यक्तिगत प्रयासों से आहूत नए मंच की जरूरत क्या है? इस प्रकार की हरकत से शहर कांग्रेस की भूमिका पर भी सवाल उठते थे कि वह क्या नकारा हो गई है? कहने की जरूरत नहीं है कि मुख्य धारा से अलग हट कर चल रहे कांग्रेसियों ने पहले से आम कांग्रेसजन के नाम से एक समानांतर सा संगठन बना रखा है, तो एक और मंच का नाम आने पर चौंकना स्वाभाविक ही है। कांग्रेसी अभी यह सोच ही रहे थे कि जलसे में जाएं या नहीं, अचानक अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष घोषित हो गए। अब तो कांग्रेसियों के लिए और दिक्कत हो गई। पता नहीं टंडन साहब के जलसे में क्या हो और उन्हें सचिन विरोधी खेमे में न गिन लिया जाए, सो कई कांग्रेसी किनारा कर गए। एक सोच ये भी थी कि टंडन साहब ने यह नई दुकान क्यों सजाई है? जितने मुंह उतनी बातें। कुछ कह रहे थे कि इस बहाने वे अपनी ताकत दिखा कर शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदारी करना चाहते हैं तो कुछ की सोच थी कि प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी में एडजस्ट होना चाहते हैं। बहरहाल फिर भी व्यक्तिगत संबंधों के नाते कांग्रेसी गए, मगर डर डर कर। उन्होंने वहां जा कर तब राहत की सांस ली, जब खुद टंडन ने ही कहा कि कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में पूरी ताकत और शक्ति के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। पायलट का गुणगान करते हुए उन्होंने कहा कि ऊर्जावान युवक को प्रदेश की कमान सौंपने के कारण लोकसभा चुनाव के परिणाम भी कांग्रेस के पक्ष में रहेंगे। कुल मिला कर टंडन साहब के इस जलसे को लेकर जो आशंकाएं थीं वे निर्मूल रहीं। अब कांग्रेसी इस बात पर भेजापक्की कर रहे हैं कि कहीं टंडन साहब की सोच कुछ और तो नहीं थी, जो कि पायलट के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बदल गई।

शनिवार, 11 जनवरी 2014

देवनानी या कृपलानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा

श्रीचंद कृपलानी
इन दिनों राजनीतिक हलकों में ऐसी चर्चा है कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी या निम्बाहेड़ा के भाजपा विधायक श्रीचंद कृपलानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने पर पार्टी हाईकमान विचार कर रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये बताई जा रही है कि सिंधी कोटे में ये दोनों ही मंत्री बनने की कतार में हैं। दोनों की दावेदारी मजबूत है, मगर दोनों को मंत्री बनाया नहीं जा सकता। पिछली बार सिंधी विधायक के रूप में अकेले देवनानी जीते थे, इस कारण उन्हें मंत्री बनाने में दिक्कत नहीं आई। इस बार देवनानी के अतिरिक्त कृपालानी व ज्ञानदेव आहूजा भी जीत कर आ गए। इसी कारण समस्या उत्पन्न हुई है। ऐसे में देवनानी व कृपालानी में से किसी एक को मंत्री बना कर दूसरे को लोकसभा में भेजना की बेहतर विकल्प होगा।
वासुदेव देवनानी
जहां तक कृपलानी का सवाल है, बताते हैं कि वे मंत्री बनने को ही प्राथमिकता दे रहे हैं, यह कह कर कि चित्तौड़ में उनके अनुकूल स्थितियां नहीं हैं। उनकी तो निम्बाहेड़ा में भी स्थिति खराब थी, वो तो कांग्रेस विरोधी लहर चली, वरना हार भी सकते थे। इधर स्वाभाविक रूप से देवनानी की प्राथमिकता भी मंत्री बनने की है, वे पहले भी मंत्री रह चुके हैं, मगर संघ को लगता है कि उन्हें अजमेर से आसानी से जितवा कर लोकसभा में भेजा जा सकता है। वजह ये बताई जा रही है कि उनको संसदीय क्षेत्र के सवा लाख सिंधी वोट तो मिलेंगे ही, भाजपा मानसिकता के वोट भी हासिल होंगे। यदि वोटों की बहुलता को देखते हुए किसी जाट को टिकट दिया जाता है तो भाजपा मानसिकता के राजपूत वोट छिटक सकते हैं, मगर देवनानी के साथ यह दिक्कत नहीं है। सिंधियों की इन मार्शल जातियों से कोई टसल नहीं है। रहा सवाल वैश्य समुदाय के विरोध का, क्योंकि उसका जिले में एक भी विधायक नहीं है, तो उसे एडीए का चेयरमैन बना कर संतुष्ट किया जा सकता है।

भाजपा के सामने अजमेर से जीत चुके कांग्रेस के आचार्य भगवान देव का उदाहरण है। इसी प्रकार कांग्रेस प्रत्याशी किशन मोटवानी भी प्रो. रासासिंह रावत से मात्र पैंतीस हजार से ही हारे थे। तब सिंधियों ने मोटवानी का साथ नहीं दिया था। उस वक्त चला काको आडवानी मामो मोटवानी का नारा लोगों को आज भी याद है। कुल मिला कर भाजपा को तो कम से सिंधी प्रत्याशी को उतारने में कोई दिक्कत नहीं है। बताते हैं देवनानी विरोधी लॉबी के जबरदस्त विरोध के बाद भी वे न केवल टिकट लेकर आए, बीस हजार वोटों से जीत भी गए, इससे उस लॉबी के पेट में भारी मरोड़ है। वह भी यह चाहती है कि किसी प्रकार देवनानी से मुक्ति मिल जाए ताकि वे मंत्री न बन पाएं। अब देखना ये है कि भाजपा के अंदर पक रही खिचड़ी पक पाती है या नहीं।

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

सारस्वत व पहाडिय़ा का टिकट गया खड्डे में

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की ओर से की जा रही कवायद के तहत जिस तरह अजमेर के दो नेताओं को पार्टी का काम सौंपा गया है, उससे तो उनका अजमेर संसदीय क्षेत्र के टिकट का दावा तो गया खड्डे में। ज्ञातव्य है कि पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व अजमेर जिले के भाजपा सदस्यता प्रभारी रहे प्रो. बी. पी. सारस्वत को क्रमश: टोंक-सवाईमाधोपुर व नागौर का लोकसभा प्रभारी बनाया गया है। इसके साथ ही स्पष्ट किया गया है कि ये प्रभारी खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे। लोकसभा क्षेत्र में सारा समन्वय, सम्मेलन, बूथ मैनेजमेंट सिस्टम आदि का सारा काम लोकसभा प्रभारी के जिम्मे रहेगा। ताजा जानकारी तो ये तक है कि सारस्वत को देहात जिला भाजपा अध्यक्ष का जिम्मा सौंपा गया है।
उल्लेखनीय है कि पहाडिय़ा व सारस्वत इस बार टिकट केलिए पुरजोर ताकत लगाने का मानस बना चुके थे। वैश्य समाज के कोटे में पहाडिय़ा तो पिछली बार भी दावेदार थे, मगर श्रीमती किरण माहेश्वरी को टिकट मिल गया, जबकि सारस्वत इस बार टिकट मांगने का पक्का मानस बना चुके हैं, हालांकि उन्होंने अब तक मांगने से परहेज रखा था। उन्हें किसी विश्व विद्यालय के कुलपति की ऑफर भी है। बहरहाल, यदि इन नियुक्तियों में कोई परिवर्तन नहीं होता तो दोनों का टिकट तो गया खड्डे में।

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

ललित भाटी ने पोष बड़े क्यों खिलाए?

हाल ही पूर्व उपमंत्री ललित भाटी ने विजय लक्ष्मी पार्क में पोष बड़े का आयोजन किया। इसकी राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है। सवाल ये उठ रहा है कि आखिर उन्हें यह आयोजन करने की जरूरत क्या थी? पोष बड़े के आयोजन आज तक तो मंदिरों अथवा घरों में ही होते रहे हैं, मगर स्टेटस सिंबल के लिए जिस प्रकार रोजा अफ्तार आयोजित किए जाते हैं, ठीक वैसे ही पोष बड़े का आयोजन हुआ तो यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि यह भाटी का एक शक्ति प्रदर्शन था। यह जताने के लिए कि वे अभी चुके नहीं हैं। विशेष रूप से विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी चुप्पी और बाद में हार के लिए अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट को जिम्मेदार ठहराये जाने के बाद इस आयोजन के अर्थ निकाले जा रहे हैं। इसमें यूं तो उनकी मित्र मंडली में शामिल अनेक कांग्रेसी नेता, कुछ अफसरान व पत्रकार बंधु शामिल हुए, इक्का-दुक्का भाजपा नेता भी थे, मगर सचिन विरोधियों की संख्या कुछ अधिक ही थी। असल में सचिन खेमे की इस पर नजर थी कि कौन-कौन वहां मौजूद रहा। जाहिर है वहां मौजूद सचिन खेमे के माने जाने वाले कुछ लोग चिन्हित किए गए हैं। संभव है वे मित्रता व पुराने संबंधों के नाते वहां गए हों, मगर भाटी द्वारा सचिन की खिलाफत करने के बाद भी उनकी मौजूदगी रेखांकित करने वाली रही। बेशक इसकी रिपोर्टिंग भी हुई ही होगी। प्रसंगवश आपको बता दें कि ललित भाटी अजमेर दक्षिण से कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी के बड़े भाई हैं और हेमंत को टिकट दिलवाने में सचिन की अहम भूमिका रही थी। दोनों भाइयों के बीच के संबंधों के बारे में सबको पता है।
खैर, जो कुछ भी हो, मगर जैसी कि भाटी की फितरत है, वे कभी चुप नहीं बैठ सकते, यह उसी का नमूना था। और सब जानते हैं कि वे चर्चा में रहने के फंडे जानते हैं। 

रविवार, 5 जनवरी 2014

लो रावत समाज ने तो कर दिया दावा

लोकसभा चुनाव की तारीखें अभी घोषित भी नहीं हुई हैं कि टिकट की दावेदारी खुल कर सामने आने लगी है। रावत महासभा राजस्थान ने जिले में पुष्कर व ब्यावर दो विधानसभा सीटें जीतने से उत्साहित हो कर अब अजमेर संसदीय क्षेत्र से समाज के योग्य व्यक्ति को टिकट देने की मांग कर दी है। प्रदेशाध्यक्ष ज्ञान सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई महासभा की बैठक में वरिष्ठ उपाध्यक्ष सेवा सिंह रावत, पूर्व अध्यक्ष मोहन सिंह रावत, उपाध्यक्ष लाल सिंह रावत व शंभू सिंह ने कहा कि अजमेर रावत बाहुल्य क्षेत्र है। अत: यहां से समाज के व्यक्ति को ही टिकट दिया जाना चाहिए। हालांकि महासभा ने अपनी ओर से किसी का नाम नहीं सुझाया है, मगर समझा जाता है कि भाजपा की ओर झुकाव वाले रावत समाज की ओर से अजमेर के ही पूर्व सांसद व मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत पूरी ताकत से दावेदारी करेंगे। वे इस आशय की मंशा जाहिर भी कर चुके हैं। उन्होंने यूं तो पुष्कर विधानसभा सीट के लिए भी दावेदारी की थी, मगर संभव है लोकसभा चुनाव में कंसीडर किए जाने के आश्वासन पर वे तब चुप हो गए थे। अब चुप रहने वाले नहीं हैं। ज्ञातव्य है कि वे अजमेर से छह बार चुनाव लड़े और पांच बार जीते। उनकी जीत का आधार मूल रूप से रावत वोट हुआ करते थे। पिछली बार इस कारण टिकट काट दिया गया क्योंकि रावत बहुल ब्यावर-मगरा इलाका परिसीमन में अजमेर संसदीय क्षेत्र से कट गया। मगर चूंकि बाहर से लाई गई किरण माहेश्वरी के हार जाने के कारण मैदान खाली है, इस कारण वे फिर दावेदारी करेंगे। हालांकि उन्हें पिछली बार राजसमंद से टिकट दिया गया, मगर हार गए, तब यही कहा था कि अगर अजमेर से ही टिकट दिया जाता तो वे जीत कर दिखा देते।
यूं परिसीमन के बाद भी रावतों के वोट इतने भी कम नहीं हो गए हैं कि दावा किया ही न जा सके। यह रावतों का ही दबाव था कि भाजपा को ब्यावर के साथ पुष्कर से भी रावत को ही टिकट देना पड़ा। ज्ञातव्य है कि पिछले विधानसभा चुनाव में पुष्कर से रावत को टिकट न दिए जाने के कारण रावतों ने भाजपा की पुष्कर सहित तीन सीटें खराब कर दी थीं। इसी दबाव में इस बार भाजपा को टिकट देना पड़ा। अब लोकसभा चुनाव में रावत फिर दबाव बना रहे हैं। मगरा विकास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष मदनसिंह रावत भी दावा कर सकते हैं, मगर उनका नकारात्मक पहलु ये है कि वे लगातार तीन बार नसीराबाद विधानसभा सीट से हार चुके हैं।
जातीय समीकरणों के लिहाज से जाटों की ओर से आपीएससी के पूर्व चेयरमैन सी. आर. चौधरी, अजमेर में कलेक्टर रह चुके महावीर सिंह और पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना के ससुर सी. बी. गैना दावा कर सकते हैं। एक और जाट सज्जन भी बताए जा रहे हैं, जिन्होंने वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा के दौरान अहम भूमिका निभाई बताई।
राजपूतों की ओर से युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा दावा ठोक सकते हैं। उनकी धर्मपत्नी सफल जिला प्रमख रही हैं और हाल ही मूसदा में कॉम्प्लीकेटेड विधानसभा चुनाव भी जीती हैं, इस कारण पलाड़ा उत्साहित हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक बड़ा जलसा करके अपनी दावेदारी जता भी दी थी। वैसे अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पूर्व केकड़ी प्रधान रिंकू कंवर आदि के भी दावा ठोकने के आसार हैं।
वैश्य वर्ग से पूर्व नगर सुधार न्यास सदर धर्मेश जैन, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा व शहर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा दावा कर सकते हैं। राजसमंद से भाजपा विधायक श्रीमती किरण माहेश्वरी भी वापस मैदान में आ सकती हैं। कदाचित उनकी रुचि प्रदेश की बजाय केन्द्र की राजनीति करने में हो। वे भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।
दावेदारों में एक नाम मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पुत्रवधू व झालावाड़ के भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह की धर्म पत्नी श्रीमती निहारिका राजे का भी है। इसके पीछे एक तर्क ये भी है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में तकरीबन डेढ़ लाख गुर्जर मतदाता हैं और श्रीमती निहारिका भी गुर्जर समाज की बेटी हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

शनिवार, 4 जनवरी 2014

भाजयुमो को अपनी सरकार पर ही भरोसा नहीं?

राजस्थान सरकार के पूर्व मुख्य सचेतक व केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक रघु शर्मा के खिलाफ लगातार पिछले तीन साल केकड़ी के अजमेर रोड पर स्थित अपने फार्म हाउस पर बीसलपुर की पाइपलाइन से अवैध कनैक्शन लेकर पानी की चोरी करने के मामले में सरवाड़ पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज हो चुका है, बावजूद इसके भारतीय जनता युवा मोर्चा को अपनी ही सरकार पर भरोसा नहीं हो रहा कि उन्हें गिरफ्तार किया भी जाएगा या नहीं। यह स्थिति तब है जबकि इस कारगुजारी की शिकायत क्षेत्रीय भाजपा विधायक शत्रुघ्र गौतम ने सिंचाई मंत्री सांवरलाल जाट से थी। जाट ने ही जलदाय विभाग के अधिकारियों को कार्यवाही करने के निर्देश दिये थे। इसके बाद जलदाय विभाग ने शर्मा के रघुवीरा नामक फार्म हाउस व सावर रोड पर ग्राम गुलगांव में स्थित शैलेन्द्र सिंह शक्तावत के फार्म हाउस से बीसलपुर पाइप लाइन से जोड़ी गई अवैध लाइनों को काट दिया था।
शर्मा के खिलाफ सरवाड़ व शक्तावत के खिलाफ केकड़ी पुलिस थाने में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने व पानी चोरी का मुकदमा दर्ज करवाया गया था। जाहिर सी बात है कि अब इस पर बाकायदा कार्यवाही होगी, बावजूद इसके भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने रघु शर्मा के खिलाफ जम कर प्रदर्शन किया। उनके पुतले की शव यात्रा निकाली और उपखण्ड अधिकारी कार्यालय में तहसीलदार ओमप्रकाश जैन को ज्ञापन दे कर शर्मा व शक्तावत को गिरफ्तार करने की मांग की। बेशक यदि आरोप सही है तो मामला गंभीर है और कानूनन गिरफ्तारी जरूरी होगी तो वह भी होगी ही, मगर संभव है भाजयुमो के शहर अध्यक्ष सत्यनारायण चौधरी व उनके कार्यकर्ताओं को अपनी ही सरकार पर भरोसा नहीं। या फिर शर्मा को हराने के बाद भी गुस्सा कम नहीं हुआ है, जो इस प्रकार गुबार निकालना पड़ा। या फिर ये भी हो सकता है कि भाजपा के कार्यकर्ता आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपने आप को वार्मअप करना चाहते हैं।
हां, इसमें कोई दोराय नहीं कि इस मामले में जलदाय विभाग की मिलीभगत ही रही। मामला काफी पुराना है, फिर भी उसने कार्यवाही नहीं की और आज जा कर सहायक अभियंता कालूराम मीणा को यह कहना पड़ रहा है कि शर्मा के इस कथन में कोई सच्चाई नहीं है कि उन्होंने कनैक्शन के लिये फाइल लगाई थी। सवाल ये उठता है कि क्या उस अभियंता के खिलाफ भी कार्यवाही होगी, जिसके कार्यकाल में ये अवैध कनैक्शन हुआ था। खैर, केकड़ी के एडीशनल एसपी कह रहे हैं कि पेयजल विभाग की ओर से पानी चोरी व सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की रिपोर्ट दी गई, जिस पर जांच की जा रही है और शीघ्र ही उचित कार्यवाही की जायेगी। अब देखना ये है कि क्या होता है? मगर इतना तय है कि जैसा भाजपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा है, वे इस मामले को ठंडा तो नहीं होने देंगे।

टंडन साहब दे रहे हैं मुख्यमंत्री को सलाह

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजेश टंडन की कांग्रेस में पूछ हो या नहीं, मगर भाजपा राज में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सलाह जरूर देना शुरू कर रहे हैं। असल में उन्होंने राजे से मांग की है कि वे 8-9 जनवरी को आयोजित कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस को रद्द करें। उन्होंने बाकायदा मुख्यमंत्री सचिवालय को पत्र लिख कर कहा है कि यह लगभग तय है कि सरकार मकर संक्रांति के बाद प्रदेश में बड़े पैमाने पर कलेक्टर एसपी के तबादले करेगी और जाहिर है कलेक्टर-एसपी नए आ जाएंगे। अत: सरकार मौजूदा कलेक्टर-एसपी के बजाय आने वाले नए कलेक्टर-एसपी को अपनी कार्य योजनाओं के बारे में समझाए तो ज्यादा बेहतर होगा। वैसे भी मौजूदा को समझाने का कोई मतलब नहीं है।
यूं एक बुद्धिजीवी के नाते उनका सुझाव वाकई काम का है, मगर चूंकि वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, इस कारण भाजपा सरकार को दी जा रही उनकी सलाह पर चौपाल पर चर्चा होना स्वाभाविक है। दिलचस्प बात ये है कि उन्हें ये पहले से पता है कि मकर संक्रांति के बाद प्रदेश में बड़े पैमाने पर कलेक्टर-एसपी के तबादले किए जाने हैं। सरकार की अंदर की जानकारी होना वाकई गौरतलब है। कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी मौजूदा कलैक्टर-एसपी ने ही उनसे ऐसी सलाह देने को कहा हो? उनको तो पता ही है, मगर वे संभव है सुझाव देने की हिमाकत न कर पा रहे हों। बात राजे तक पहुंची तो संभव है सलाह भी मान ली जाए। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेशभर के कलैक्टर-एसपी उन्हें दुआ देंगे। बहरहाल, जो कुछ हो, टंडन साहब का यह नया अवतार है बड़ा दिलचस्प। अपना तो सुझाव है कि उनको प्रशासनिक सलाहकार बना दिया जाना चाहिए। ज्ञातव्य है कि उनको प्रशासनिक अधिकारियों के साथ उठने-बैठने का अच्छा खासा अनुभव है और उनके मसलों को भलीभांति समझते हैं। कांग्रेस राज में भी उर्स व पुष्कर मेले जैसे महत्वपूर्ण मौकों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं। धरना तक देने से नहीं चूकते। अपनी इसी बेबाक बयानी और फक्कड़ अंदाज की वजह से ही वे हमेशा चर्चित रहते आए हैं।

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

भगत के खिलाफ मामला बेहद कमजोर?

भूमि के बदले भूमि आवंटन के लिए रिश्वत के तौर पर प्लॉट और रुपए की डिमांड करने के मामले में एक सवाल हर एक के जेहन में है कि आखिर इस मामले में न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत का क्या होगा? विशेष रूप से सरकार अब भाजपा की है तो क्या उनके प्रति कड़ा रुख अपनाया जाएगा? विधानसभा चुनाव में महज इसी वजह से टिकट से हाथ धो बैठे, मगर अब क्या उनका राजनीतिक कैरियर भी चौपट हो जाएगा? असल में यह चर्चा इस कारण उठी है क्योंकि हाल ही मीडिया में यह खबर सुर्खियों में थी कि एक ओर जहां रिटायर्ड आईएएस अधिकारी खन्ना की ओर से की गई जांच में पूर्व अध्यक्ष नरेन शाहनी पर जहां कोई आरोप नहीं बन रहा, वहीं एंटी करप्शन ब्यूरो ने उन्हें रिश्वत मांगने का दोषी ठहराया है।
इस सिलसिले में जानकारी ये भी आ रही है कि भगत के खिलाफ बना मामला बेहद कमजोर है। इसकी वजह ये बताई जा रही है कि जिस दिन की वॉइस रिकॉर्डिंग एसीबी के पास है, उस दिन भगत जयपुर में कांग्रेस स्थापना दिवस के कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। अजमेर से जयपुर जाते वक्त उनके साथ शहर कांग्रेस के दो बड़े दिग्गज भी थे। अगर यह वाकई सच है तो भगत के खिलाफ बनाया गया मामला या तो जयपुर मुख्यालय में ही दफ्तर दाखिल हो जाएगा, या फिर कोर्ट में पहुंचा तो पहली सुनवाई में ही फुस्स हो जाएगा। इसके अतिरिक्त बताया ये भी जा रहा है कि सबूत के तौर रखी गई ऑडियो रिकार्डिंग में भगत की आवाज साफ नहीं है, यानि कि फोरेंसिक लैब में वह रिजेक्ट भी हो सकती है।
सच क्या है ये तो वक्त ही बताएगा, मगर फिलवक्त खबर यही है कि भगत इस मामले में ज्यादा लपेटे में नहीं आएंगे। उन्हें जो नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका, विधानसभा टिकट कटने की वजह से। बताया जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी असलियत जानते थे, मगर एक तो चुनाव के दौरान भगत को क्लीन चिट देने पर किसी भी प्रकार का आरोप झेलने को तैयार नहीं थे, दूसरा ये कि अगर भगत को पाक साफ घोषित कर दिया जाता तो वे टिकट के प्रबलतम दावेदार हो जाते, जबकि वे अपने चहेते डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को टिकट देने का मानस बना चुके थे। उन्होंने मेहरबानी सिर्फ इतनी ही कि उनके खिलाफ सख्त रुख नहीं अपनाया। बताते तो ये तक हैं कि उनको साफ इशारा था कि उनके लिए बेहतर यही रहेगा कि डॉ. बाहेती के साथ ईमानदारी से काम करें, वरना डॉ. बाहेती के हारने पर और साथ ही सरकार रिपीट होने पर उनका हश्र कुछ अच्छा नहीं होगा। लिहाजा भगत ने पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। अब स्थिति ये है कि भगत के साथ लगने पर भी बाहेती हार गए और वह भी बुरी तरह। यानि की लहर इतनी तेज थी कि भगत भी हथेली नहीं लगा पाए। उधर सरकार भी नहीं आई। रहा संगठन का सवाल तो हालत ये है कि कांग्रेस की बुरी तरह से हार के लिए किसी को भी सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं माना जा रहा है। ऐसे में जाहिर है भगत को कम से कम शक की नजर से तो नहीं देखा जाएगा।