मेयर के लिए सीधे चुनाव की बात और थी, तब कम से कम एक स्तरीय चुनाव लडऩे का ग्रेस तो था, मगर अब चूंकि चुने हुए पार्षदों में से मेयर चुना जाएगा, इस कारण मेयर बनने के इच्छुक बड़े नेताओं को बड़ी दिक्कत होगी। हालांकि मेयर पद के लिए लार तो टपकेगी, मगर उसके लिए पार्षद स्तर का चुनाव लडऩा होगा। अगर मेयर का पद किसी वर्ग के लिए आरक्षित होता तो बात अलग थी, उसमें दावेदार सीमित होते, मगर अब चूंकि अजमेर मेयर का पद सामान्य हो गया है, इस कारण एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है।
जहां तक भाजपा का सवाल है, उसमें पहले तो वे दावेदार होंगे, जो कि विधानसभा चुनाव में गंभीर दावेदार थे। इनमें मुख्य रूप से शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री व स्वामी समूह के सीएमडी कंवल प्रकाश किशनानी, पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पूर्व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत आदि का नाम गिना जा सकता है। देखने वाल बात ये होगी कि क्या शहर स्तर के ये नेता पहले पार्षद का चुनाव लडऩे के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं या नहीं। हां, अगर पार्टी ने आश्वासन दे कर खड़ा करवाया तो बात अलग है। कुछ इसी प्रकार की झिझक शहर जिला भाजपा के पूर्व अध्यक्ष पूर्णा शंकर दशोरा के लिए होगी। इन नेताओं के अतिरिक्त तुलसी सोनी, भागीरथ जोशी, सोमरत्न आर्य, नीरज जैन, अरविंद यादव, संपत सांखला, कमला गोखरू, सुभाष खंडेलवाल की भी गिनती दावेदारों में की जा सकती है। हां, इतना जरूर है कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में तगड़ी जीत के कारण इस बार भाजपाइयों के हौसले बुलंद रहेंगे। और इसी वजह से पार्षद के टिकट को लेकर जबरदस्त हंगामा होने वाला है। पिछली बार से पिछली बार, जब चूंकि वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह कुछ कमजोर भूमिका में थे, इस कारण उनके धुर विरोधी प्रो. वासुदेव देवनानी नगर परिषद सभापति पद सामान्य के लिए होने के बाद भी ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत को चुनवाने में कामयाब हो गए थे, मगर इस बार लखावत काफी प्रभावशाली हैं, इस कारण शहर के दो विधायकों देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के अतिरिक्त उनकी भी चलेगी। चूंकि लखावत व अनिता की एक ही लॉबी है, इस कारण उनका पलड़ा भारी भी रह सकता है। वैसे यह इस पर भी निर्भर करता है कि अनिता व देवनानी में से कौन मंत्री बनता है। भाजपा में एक बात और होगी, वो यह कि टिकट न मिलने पर उसके बागी भी मैदान में आ सकते हैं। सब को पता है कि जीतने के बाद पार्टियां बोर्ड बनाने की गरज से बागियों को ले ही लेती हैं।
रहा सवाल कांग्रेस का तो बेशक दावेदार वहां भी होंगे, मगर कौन कितना दमदार होगा, यह तब की शहर कांग्रेस कार्यकारिणी पर निर्भर करेगा। हालांकि अभी महेन्द्र सिंह रलावता शहर अध्यक्ष हैं और तब कौन होगा, कुछ पता नहीं, मगर इतना तय है कि यहां के टिकटों में सीधा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का दखल होगा। कम से कम अजमेर में तो वे अपना नेटवर्क बनाए ही रखेंगे। वैसे मोटे तौर पर मेयर पद के दावेदारों में शहर अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता, पूर्व उप मंत्री ललित भाटी, पूर्व विधायक डॉ. श्री गोपाल बाहेती, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, मौजूदा मेयर कमल बाकोलिया, शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल, वरिष्ठ महिला नेत्री श्रीमती प्रमिला कौशिक, वरिष्ठ नेता प्रताप यादव, अशोक जैन, हेमंत शर्मा, गुलाम मुस्तफा आदि के नाम गिने जा रहे हैं, मगर चूंकि यह पद सामान्य के लिए है, इस कारण अनुसूचित जाति के दावेदारों का पलड़ा भारी रहेगा।
-तेजवानी गिरधर
जहां तक भाजपा का सवाल है, उसमें पहले तो वे दावेदार होंगे, जो कि विधानसभा चुनाव में गंभीर दावेदार थे। इनमें मुख्य रूप से शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री व स्वामी समूह के सीएमडी कंवल प्रकाश किशनानी, पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पूर्व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन, नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत आदि का नाम गिना जा सकता है। देखने वाल बात ये होगी कि क्या शहर स्तर के ये नेता पहले पार्षद का चुनाव लडऩे के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं या नहीं। हां, अगर पार्टी ने आश्वासन दे कर खड़ा करवाया तो बात अलग है। कुछ इसी प्रकार की झिझक शहर जिला भाजपा के पूर्व अध्यक्ष पूर्णा शंकर दशोरा के लिए होगी। इन नेताओं के अतिरिक्त तुलसी सोनी, भागीरथ जोशी, सोमरत्न आर्य, नीरज जैन, अरविंद यादव, संपत सांखला, कमला गोखरू, सुभाष खंडेलवाल की भी गिनती दावेदारों में की जा सकती है। हां, इतना जरूर है कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में तगड़ी जीत के कारण इस बार भाजपाइयों के हौसले बुलंद रहेंगे। और इसी वजह से पार्षद के टिकट को लेकर जबरदस्त हंगामा होने वाला है। पिछली बार से पिछली बार, जब चूंकि वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह कुछ कमजोर भूमिका में थे, इस कारण उनके धुर विरोधी प्रो. वासुदेव देवनानी नगर परिषद सभापति पद सामान्य के लिए होने के बाद भी ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत को चुनवाने में कामयाब हो गए थे, मगर इस बार लखावत काफी प्रभावशाली हैं, इस कारण शहर के दो विधायकों देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के अतिरिक्त उनकी भी चलेगी। चूंकि लखावत व अनिता की एक ही लॉबी है, इस कारण उनका पलड़ा भारी भी रह सकता है। वैसे यह इस पर भी निर्भर करता है कि अनिता व देवनानी में से कौन मंत्री बनता है। भाजपा में एक बात और होगी, वो यह कि टिकट न मिलने पर उसके बागी भी मैदान में आ सकते हैं। सब को पता है कि जीतने के बाद पार्टियां बोर्ड बनाने की गरज से बागियों को ले ही लेती हैं।
रहा सवाल कांग्रेस का तो बेशक दावेदार वहां भी होंगे, मगर कौन कितना दमदार होगा, यह तब की शहर कांग्रेस कार्यकारिणी पर निर्भर करेगा। हालांकि अभी महेन्द्र सिंह रलावता शहर अध्यक्ष हैं और तब कौन होगा, कुछ पता नहीं, मगर इतना तय है कि यहां के टिकटों में सीधा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का दखल होगा। कम से कम अजमेर में तो वे अपना नेटवर्क बनाए ही रखेंगे। वैसे मोटे तौर पर मेयर पद के दावेदारों में शहर अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता, पूर्व उप मंत्री ललित भाटी, पूर्व विधायक डॉ. श्री गोपाल बाहेती, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, मौजूदा मेयर कमल बाकोलिया, शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल, वरिष्ठ महिला नेत्री श्रीमती प्रमिला कौशिक, वरिष्ठ नेता प्रताप यादव, अशोक जैन, हेमंत शर्मा, गुलाम मुस्तफा आदि के नाम गिने जा रहे हैं, मगर चूंकि यह पद सामान्य के लिए है, इस कारण अनुसूचित जाति के दावेदारों का पलड़ा भारी रहेगा।
-तेजवानी गिरधर