शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

मरते दम तक क्रांति की ज्वाला थी क्रांतिदेवी में



श्रीमती क्रांति देवी
अजमेर लोकसभा क्षेत्र के प्रथम सांसद, नगर पालिका के पहले अध्यक्ष स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीय पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा की पत्नी स्वाधीनता सेनानी श्रीमती क्रांति देवी के निधन के साथ एक युग का अंत हो गया। तकरीबन 84 क्रांतिदेवी में उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी क्रांति की ज्वाला धधकती रही। ज्ञातव्य है शुक्रवार, 21 सितंबर 12 को उनका निधन हो गया। वे कुछ दिन से अस्वस्थ थीं।
श्रीमती क्रांतिदेवी ने आजादी के आंदोलन में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर भाग लिया। उस वक्त वे जन प्रबल प्रचार समिति की अध्यक्ष रहीं। क्रांति देवी ने स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों के बीच चि_ियों का आदान-प्रदान कर सहयोग किया। उन्होंने अजमेर की महिलाओं के विकास एवं उन्हें शिक्षित करने के मद्देनजर महिला जागृति केंद्र की स्थापना की। आजादी के बाद वे प्रदेश कांगे्रस की उपाध्यक्ष रहीं और हाल तक अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संघ महिला विंग की अध्यक्ष भी थीं। क्रांति देवी ने इंदिरा जन प्रबलक प्रचार समिति का गठन कर इंदिरा गांधी के जेल भरो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें राज्य सरकार से स्वतंत्रता आंदोलन में खास भूमिका निभाने पर ताम्र-पत्र भी प्रदान किया गया था। वे शहर कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष पद पर भी रहीं। स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल झा के घर जन्मी श्रीमती क्रांतिदेवी ने एम.ए. हिंदी तक शिक्षा अर्जित की और लेखन कार्य करती थीं। उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी वे देश की ज्वलंत समस्याओं पर चिंता करती रहीं। साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी और गाहे-बगाहे चंद बुद्धिजीवियों के साथा गाष्ठियां करती रहती थीं।
स्वर्गीय पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा 
श्रीमती नीलिमा कृष्णा शर्मा
यहां उल्लेखनीय है कि उनके पति पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा केंद्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा के काल में अजमेर के विधायक रहे। वर्ष 1951-52 और 1957-58 में नगर पालिका के अध्यक्ष रहे थे। वे राजस्थान रोडवेज के पहले अध्यक्ष भी रहे। अजमेर में रोडवेज वर्कशॉप उन्हीं के प्रयासों से स्थापित हुआ था। उनका विवाह क्रांति देवी के साथ सन् 1946 में हुआ। स्वाधीनता संग्राम में अजमेर के उग्रवादी आंदोलनकारियों में पंडित श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा का नाम शीर्ष पर गिना जाता है। आपने डी.ए.वी. हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही सन् 1930 में सहपाठियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1931 में क्रांतिकारी श्री मदन गोपाल के नेतृत्व में रेलवे कारखाना लूटने की योजना बनाई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। आप श्री विजय सिंह पथिक व श्री अर्जुन लाल सेठी के सम्पर्क में भी आए। आपने हटूंडी में गांधी आश्रम में बाबा नृसिंहदास से बंदूक चलाना सीखा। एक सरकारी गुप्तचर ने आपको फंसाने के लिए सीकर के एक महाजन के घर डाका डालने के मकसद से रिवाल्वर दिया, मगर वे उसके चक्कर में नहीं आए और श्रीनगर के पास जंगल में उसी रिवाल्वर से उसको मार कर शव जमीन में दफन कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सन् 1942 में जेल में रहने के दौरान युक्ति लगा कर भागने में सफल हो गए। 20 मई, 1974 को जयपुर से अजमेर आते वक्त दूदू के पास कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
यहां यह भी ज्ञातव्य है कि ज्वाला प्रसाद शर्मा की पुत्री श्रीमती नीलिमा कृष्णा शर्मा भी माता-पिता की तरह राजनीति में सक्रिय रहीं। वे 1985 के चुनाव में जिले के भिनाय विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक निर्वाचित हुईं। वे समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी से नजदीकी के कारण उन्हें राजस्थान का सलाहकार बनाया गया था। एक बार अजमेर पश्चिम से कांग्रेस का टिकट मांगा लेकिन न मिलने पर वे निर्दलीय चुनाव लड़ीं, मगर हार गईं। सन् 1953 में जन्मी श्रीमती नीलिमा वर्तमान में अहमदाबाद में एक कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
अजमेरनामा श्रीमती क्रांतिदेवी के निधन पर शत-शत नमन करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।
-तेजवानी गिरधर

देवनानी एक तरफ, भाजपा दूसरी तरफ


एक लंबे अरसे से शहर के भाजपा विधायक द्वय प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल में बंटी भाजपा अब शनै: शनै: देवनानी बनाम एंटी देवनानी होती जा रही है। अर्थात एक तरफ पूरी भाजपा है तो दूसरी ओर देवनानी। हालांकि जब शहर भाजपा अध्यक्ष का विवाद आया था तो निर्गुट अध्यक्ष के रूप में पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को विराजमान किया गया था और दोनों गुटों के पदाधिकारियों को स्थान दिया गया था, मगर ताजा स्थिति ये है कि सक्रिय पदाधिकारियों की एक बड़ी लॉबी पूरी तरह से देवनानी के खिलाफ चल रही है, जो कि हर वक्त उन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। माना जाता है कि इस लॉबी को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत का वरदहस्त है। विधायक श्रीमती अनिता भदेल स्वाभाविक रूप से इस लॉबी में शामिल हैं ही।
दो भागों में बंटी पार्टी की हालत ये है कि पार्टी बैनर पर आए दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में यह लॉबी अलग ही चलती है और देवनानी अपने बलबूते पर अलग। यदि किसी कार्यक्रम में संयुक्त रूप से मौजूद भी रहते हैं तो भी इनकी खींचतान साफ देखी जा सकती है। यूं तो इस फूट के अनेकानेक उदाहरण मौजूद हैं, मगर सबसे ताजा प्रकरण अजमेर बंद से एक दिन पूर्व का है। तब भाजपा की ओर से कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन कर केन्द्र सरकार का पुतला फूंका गया तो देवनानी साफ तौर अलग थलग दिखाई दिए। दैनिक भास्कर में तो बाकायदा इस घटना का ब्यौरा तक दिया गया है। उसमें लिखा है कि कलेक्ट्रेट पर विधायक देवनानी पुलिस से उलझते नजर आए। देवनानी ने कलेक्ट्रेट के बंद मुख्यद्वार को खोलने का प्रयास करते हुए यातायात उपअधीक्षक जयसिंह राठौड़ व सिविल लाइन थाना प्रभारी रविंद्र सिंह से धक्का मुक्की हो गई। देवनानी चाहते थे कि वह कार्यकर्ताओं के साथ कलेक्ट्रेट के भीतर प्रवेश करें। जैसे तैसे कर देवनानी ने मुख्य द्वार को खुलवा लिया लेकिन उनके साथ कोई भी कार्यकर्ता भीतर नहीं गया। इसी बीच मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर खड़े शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत ने सभी कार्यकर्ताओं को अपने पास बुला लिया और देवनानी अलग थलग नजर आए। बंद वाले दिन भी देवनानी अपने समर्थकों के साथ अलग ही चल रहे थे।
इसका परिणाम ये है कि एक ही मुद्दे पर भाजपा की अधिकृत विज्ञप्ति अलग जारी होती है और देवनानी की अलग। हालांकि भाजपा की विज्ञप्ति में देवनानी का नाम भी जोड़ा जाता है, मगर उसके बावजूद देवनानी अलग से विज्ञप्ति जारी कर देते हैं। इनकी प्रतिस्पद्र्धा भी लगातार बढ़ती जा रही है। कई तटस्थ नेता इस स्थिति का तमाशबीन की तरह मजा ले रहे हैं।
पार्टी की ताजा स्थिति के चलते यह संदेह होता है कि क्या देवनानी विरोधी लॉबी उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव का टिकट लेने भी देगी? और टिकट ले आए तो जीतने भी देगी? तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि टिकट तो पिछली बार भी कट ही गया था, वो तो वे अकेले अपने दम पर टिकट ले कर आए थे। चुनाव के दौरान भी भाजपा का पूरा एक बड़ा गुट उनके खिलाफ था। सिंधी-वैश्यवाद के चलते वैश्य समाज के भाजपा नेता भी कारसेवा कर रहे थे। उसके बावजूद वे जीत गए। हालांकि इस जीत में ऐन वक्त पर संघ के महानगर प्रमुख सुनील जैन का खुल कर सामने आने और सिंधी समाज की एकजुटता की भी भूमिका रही थी। बहरहाल, अकेला यही तथ्य उनके पक्ष में जाता है कि वे विपरीत परिस्थिति में भी जीत कर आ गए। कदाचित यही तथ्य उनके आत्मविश्वास का कारण है। इसके अतिरिक्त विपक्षी विधायक के नाते पूरी सक्रियता और सार्वजनिक छवि बेदाग होना भी उनके पक्ष में जाता है। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार हालात पहले से भी ज्यादा विपरीत हैं। उसे देवनानी कैसे फेस करते हैं, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
-तेजवानी गिरधर