सोमवार, 30 जनवरी 2012

न्यास की तोडफ़ोड़ से उठे नेताओं पर कई सवाल

चंद्रवरदाई नगए ए ब्लॉक एवं जवाहर की नाड़ी में न्यास की अतिक्रमियों के विरुद्ध कार्रवाई से उठे बवाल ने अजमेर के नेताओं पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां इस मुद्दे ने न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है, वहीं शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता की प्रशासन विरोधी पहल ने सभी को चौंका दिया है। हालांकि न्यास की विशेषाधिकारी प्रिया भार्गव के चैंबर में हुए हंगामे से भौंचक्की रह गईं विधायक श्रीमती अनिता भदेल तनिक परेशानी में आई हैं, लेकिन साथ ही नए साल में उन्हें अपनी बुझती राजनीति को चमकाने का मौका भी मिल गया है। रहा सवाल सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य सचिन पायलट का तो भला से कांग्रेसी नेताओं की आपसी फूट के कारण रिंग मास्टर की भूमिका अदा करने से क्यों चूकते?
असल में जैसे ही न्यास के अधिकारियों ने अध्यक्ष भगत की गैर मौजूदगी में अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की तो सबसे पहला सवाल ये उठा कि क्या यह उनकी जानकारी में हुआ अथवा उन्हें कुछ पता ही नहीं है? अगर उनकी अनुमति से ऐसा हुआ है तो राजनीतिक लिहाज से यह एक आत्मघाती कदम था। वे अभी न्यास की कार्यप्रणाली को ठीक से समझ ही नहीं पाए हैं, विकास की दिशा में एक डग भर नहीं चले हैं कि नए साल की शुरुआत तोडफ़ोड़ से कर रहे हैं तो ये आगे चल कर घाटे का सौदा साबित हो सकता है। जैसा कि स्वयं भगत कह रहे हैं कि कागजी कार्यवाही पहले से ही चल रही थी और अतिक्रमणों को तोडऩे की योजना तो पहले ही बन गई थी तो क्या वजह रही कि जब तक जिला कलेक्टर के पास कार्यभार था, तब उन्होंने अंजाम की दिशा में कदम क्यों नहीं उठाया? भगत के आते ही कार्यवाही की याद कैसे आ गई? कहीं ऐसा तो नहीं कि अधिकारी ये सोच रहे थे कि वे तो भगत की आड़ लेकर जनता के आक्रोष से बच जाएंगे? हालांकि हुआ उलटा। संयोग से गुस्से का शिकार विशेषाधिकारी प्रिया भार्गव को होना पड़ा।
यदि भगत की जानकारी के बिना ही अतिक्रमण हटाए गए तो यह उनके लिए बेहद शर्मनाक है। यह स्थिति नगर निगम में मेयर कमल बाकोलिया व प्रशासन के बीच बिगड़ी ट्यूनिंग की याद दिलाती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रशासनिक अधिकारी भगत को भी नहीं गांठ रहे हैं? इससे भगत की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठते हैं।
उधर मामले की ज्यादा दिलचस्प बनाया शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने। उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार और कांग्रेस के न्यास अध्यक्ष के रहते तोडफ़ोड़ की जांच के लिए कमेटी बना कर यह साबित कर दिया कि वे भगत को नीचा दिखाना चाहते हैं। यह कह कर कि अतिक्रमण हटाना न्यास के कार्यक्षेत्र में है और वे इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे, पिंड छुड़ा सकते थे, मगर उन्होंने जांच की पहल कर यह साबित करने की कोशिश की वे जनता के ज्यादा हमदर्द हैं। अपनी सरकार के खिलाफ ही कदम उठाने की बेवकूफी से यह संदेह भी होता है कि कहीं वे अपने उग्रवादी व अति उत्साही सलाहकारों के चक्कर में तो नहीं आ गए? बहरहाल बताया ये जा रहा है कि जैसे ही बवाल उठा तो पायलट ने उनकी क्लास ले डाली। दरअसल वे भगत व बाकोलिया के साथ दिल्ली गए तो आगामी मेगा हैल्थ कैंप की तैयारियों के सिलसिले में थे, मगर वहां पायलट की डांट खा बैठे। इसका परिणाम ये हुआ कि अजमेर आने के बाद उनका सुर बदल गया और वे भगत के नेतृत्व में पीडि़तों की सुध लेेने की बात करने लगे।
कांग्रेसी नेताओं में तालमेल की कमी का भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने जम कर फायदा उठाया। उनका निशाना ही ये था कि अगर कार्यवाही जायज थी तो कांग्रेस को जांच कमेटी क्यों बनानी पड़ी? अर्थात गलती का अहसास कांग्रेस को भी है। रहा सवाल विशेषाधिकारी प्रिया भार्गव के साथ बदसलूकी और उसके कारण उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे का तो मौके के वीडियो फुटेज साफ दर्शाते हैं कि प्रदर्शन के दौरान उग्र हुए पीडि़त उनके नियंत्रण में ही नहीं रहे। वे हक्की बक्की रह गईं। प्रिया भार्गव के बाल खींचने की कोशिश करने वाली महिला को काबू में करने में उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ी। हकीकत ये है श्रीमती भदेल से कहीं ज्यादा नेतागिरी गणपत सिंह रावत कर रहे थे और उत्तेजना उन्होंने ही फैलाई। मगर जो कुछ हुआ, उसकी नैतिक जिम्मेदारी से वे नहीं बच सकतीं। हां, प्रदर्शन का नेतृत्व करके उन्हें अपनी बुझती राजनीति को चमकाने का मौका जरूर मिल गया। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद पूरी भाजपा भी उनके समर्थन में आ खड़ी हुई। हालांकि भाजपा नेताओं ने यह कहना पूरी तरह से झूठ ही है कि प्रदर्शन के दौरान न्यास कार्यालय में किसी भी प्रकार की अभद्रता नहीं की गई थी और न्यास प्रशासन ने दुराग्रह पूर्वक यह मुकदमा दर्ज कराया है। सच्चाई ये है कि प्रिया भार्गव के बाल नुचने में चंद लम्हों का फासला रह गया था। उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां भी बकी गईं। आशियाना उजडऩे से दु:खी पीडि़तों का गुस्सा जायज भले ही ठहराया जाए, मगर जो कुछ हुआ वह कानून-व्यवस्था के नाम पर सवाल तो खड़ा करता ही है। इसमें पुलिस की निष्क्रियता साफ तौर पर देखी जा सकती है। ऐसे में राजस्थान प्रशासनिक सेवा परिषद (अजमेर इकाई) गुस्सा गलत नहीं माना जा सकता। उधर जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष किशन गुर्जर का मामले में फच्चर डाल कर अनिता भदेल की पैरवी करना जरूरत समझ में नहीं आया कि उन्हें बैठे-बैठे क्या सूझी? ऐसे में अगर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस विधि विभाग के प्रदेश महासचिव प्रियदर्शी भटनागर को लंबी गुमनामी के बाद प्रशासन की पैरवी, भदेल के खिलाफ कार्यवाही की मांग व गुर्जर के बयान का विरोध करने की सूझी तो ये उनकी सेहत के लिए ठीक ही है।
हां, इतना जरूर सही है कि न्यास प्रशासन ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए बिना ही भीषण सर्दी में घर उजाड़ दिए। एक ओर सरकार बड़ी भारी संवेदनशीलता दिखाते हुए गरीबों को बसाने की योजना बनाती है तो दूसरी ओर उन्हें उजाडऩे समय क्रूर क्यों हो जाती है। सवाल ये भी उठता है कि जब अतिक्रमण हो रहा था, तब प्रशासन क्यों घोड़े बेच कर सो रहा था? अब भू माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही की बात की जा रही है, मगर उन अधिकारियों व कर्मचारियों का क्या होगा, जिनके रहते सरकारी भूमि का अवैध बेचान हो गया?